जो लोग डोनाल्ड ट्रंप की जीत पर खुशियां मना रहे थे अब उनके चिंतित होने की बारी आ गई है. सिर्फ अमेरिका में ही नहीं, पूरी दुनिया में डोनाल्ड ट्रंप का विरोध शुरू हो गया है. हालांकि, इन विरोध प्रदर्शन का क्या असर होगा, ये कहना मुश्किल है.
लेकिन डोनाल्ड ट्रंप का ढोल पीटने वाले उन भारतीयों, जो भारत और अमेरिका में रह रहे हैं, को अब ये समझ में आ गया होगा कि ट्रंप की नीतियां भारत के लिए मुसीबत का सबब बनने वाली हैं. सबसे पहला खतरा तो उन भारतीयों पर आने वाला है जो एच1बी वीसा लेकर अमेरिका में काम कर रहे हैं. इनमें से कई लोग ऐसे होंगे जो अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगा रहे थे.
शायद अब उन्हें अमेरिका छोड़ किसी और देश या वापस भारत आना पड़े, क्योंकि दुनिया के सबसे पुराने प्रजातंत्र ने अब अमेरिका-फर्स्ट की नीति को प्राथमिकता देने का फैसला किया है. अमेरिका के राष्ट्रपति ने शपथ लेते ही बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन का ऐलान कर दिया. मतलब यह कि अमेरिका में अब सरकार अमेरिकन सामान को खरीदने और सिर्फ अमेरिकी नागरिक को ही नौकरी देने की नीति पर काम करेगी.
डोनाल्ड ट्रंप सरकार की विदेश नीति का भारत पर असर क्या होगा? इसे समझने के लिए हमें डोनाल्ड ट्रंप की मानसिकता को समझना होगा. उनके बयानों से ये साफ है कि डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां संकुचित राष्ट्रवाद से प्रेरित होगी. अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत भारत को नुकसान होने वाला है. ट्रंप ने साफ-साफ शब्दों में कहा है कि एच1बी वीजा अमेरिकी नागरिकों के साथ अन्याय है.
यह एक धोखा है. उन्होंने चुनाव-प्रचार के दौरान यह कहा था कि विदेश से लोग अमेरिका में आकर अमेरिकी नागरिकों की नौकरी खा जाते हैं और उन्हें बेरोजगार रहना पड़ता है. उन्होंने ये वादा किया था कि वो ऐसी नीतियों को लागू करेंगे जिससे विदेशी नागरिकों को नौकरी मिलना मुश्किल हो जाएगा. इस नीति का सबसे पहला दुष्प्रभाव टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज और इंफोसिस जैसी भारत की आईटी कंपनियों पर पड़ने वाला है.
जिन भारतीयों ने ट्रंप को समर्थन दिया उन्हें ये बात समझ में नहीं आई कि वो एक तरफ भारत को महान बताते रहे और दूसरी तरफ भारतीयों से नौकरी छीन कर अमेरिकी नागरिकों को देने का वादा करते रहे. ट्रंप ने अमेरिका में कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दी है. इसे 35 फीसदी से घटा कर 15 फीसदी कर दिया गया है. मतलब यह कि अमेरिका की बड़ी-बड़ी कंपनियां अब वापस अमेरिका की तरफ रुख करेंगी. इनमें से कई ऐसी कंपनियां भी होंगी जो फिलहाल भारत में उत्पादन कर रही है.
इसका सबसे बुरा असर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेक-इन-इंडिया पर होगा. यही वजह है कि भारत के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर अरविंद सुब्रमन्यम ट्रंप की नीतियों पर सार्वजनिक रूप से चिंता जाहिर कर चुके हैं. उनका मानना है कि एच1बी वीजा को खत्म करने से भारत के निर्यात पर नकारात्मक असर होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्रंप के अमेरिका से सचेत रहने की जरूरत है. डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को संरक्षणवाद की ओर ले जाने की नीतियों पर काम कर रहे हैं. संरक्षणवाद वह आर्थिक नीति है, जो विभिन्न देशों के बीच होने वाले व्यापार में निरोधक लगाता है. व्यापार निरोधक विभिन्न प्रकार से लगाये जा सकते है. जैसे, आयातित वस्तुओं पर शुल्क लगाना, प्रतिबंधक आरक्षण और अन्य बहुत से सरकारी प्रतिबंधक नियम, जिनका उद्देश्य आयात को हतोत्साहित करना और विदेशी कंपनियों द्वारा स्थानीय बाजारों और निकायों के अधिग्रहण को रोकना है.
यह नीति अवैश्विकरण से संबंधित है और वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार के बिल्कुल विपरीत है. यह चिंताजनक स्थिति है. अमेरिका अब तक पूरे विश्व में वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार का पक्षधर रहा है. भारत जैसे देशों पर संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और इंटरनेशनल मोनेटरी फंड जैसे वैश्विक संस्थाएं बाजारीकरण का दबाव देते रहे है.
कई दशकों से लगातार अमेरिका ने पूरी दुनिया को उदारवाद, बाजारवाद और वैश्वीकरण के दलदल में ढकेलने की नीति अपनाई. अब डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद अचानक इन नीतियों पर पूर्णविराम लगा दिया है. इसका असर घातक होने वाला है, खासकर भारत जैसे विकासशील देशों पर जो मुक्त व्यापार के दंश से अभी तक उबरा नहीं है. इसकी वजह से घरेलू व्यापार और परंपरागत कारोबार खत्म हो गए बेरोजगारी बढ़ गई. इन नीतियों की वजह से देश में गरीब और अमीर के बीच का फासला बढ़ा है. शहरों और ग्रामीण इलाकों में काफी अंतर बन चुका है.
समाज में कई क्षेत्रों और स्तर पर ऐसा अंतर्विरोध पैदा हो गया है जो भविष्य के लिए एक चिंताजनक स्थिति है. कहने का मतलब यह कि बाजारवाद आधारित प्रजांतत्र का झंडाबरदार अमेरिका अब डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में संरक्षणवाद का पैरोकार बन जाएगा. यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार में अराजकता को जन्म देगी. ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों, जहां लोगों के पास खाने को पैसे नहीं है, को सतर्क रहने की जरूरत है.
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से अंतरराष्ट्रीय राजनीति और विश्व-व्यापार में अराजकता तो आएगी ही, साथ ही यह भारत को नई मुसीबत में फंसाने वाला है. ट्रंप के शासनकाल में चीन के साथ अमेरिका के रिश्ते पहले से और भी खराब होने के आसार नजर आ रहे हैं. साथ ही, मुस्लिम देशों के साथ डोनाल्ड ट्रंप का रवैया भी ठीक नहीं है. आंतकवाद से लड़ने के नाम पर ट्रंप ने इस्लाम को ही निशाने पर ले लिया है. इससे दुनिया भर के मुसलमान हैरान हैं.
ट्रंप ने सात मुस्लिम देशों के नागरिकों को वीजा देने से मना कर दिया है. माना ये जा रहा है कि पश्चिम एशिया के देश, खासकर ईरान भी डोनाल्ड ट्रंप के निशाने पर होंगे. पाकिस्तान को राष्ट्रपति ट्रंप एक अस्थिर और आंतकवादियों का पनाहगार देश बता चुके हैं. मतलब यह कि डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका का सारा ध्यान मुस्लिम देशों और चीन पर होने वाला है.
साउथ चाइना सी (दक्षिणी चीन सागर) विवाद की वजह से अमेरिका और चीन के रिश्ते में क़डवाहट तेज हो गई है. अगर अमेरिका और चीन के बीच आमना-सामना जैसी स्थिति बनती है, तो पूरे पूर्व-एशिया में अस्थिरता का महौल बनेगा. ऐसे हालात में भारत भी इसकी चपेट में आएगा.
भारत के लिए यह एक खतरे की घंटी है. पश्चिम एशिया के मुस्लिम देशों के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. ये रिश्ते कई सालों की मेहनत और सहयोग का नतीजा है. पश्चिम एशिया के देशों ने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी योजनाओं को दोनों हाथों से लिया. इन देशों ने भारत में निवेश किया.
ईरान के साथ भारत के रिश्ते सुदृढ़ हैं. प्रतिबंध के बावजूद भारत ने ईरान के साथ रिश्ता नहीं तोड़ा. इन देशों में काफी बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं. ये भारत की सीमा से सटे हुए नहीं हैं लेकिन पड़ोसी ही है. भारत अब तक मुस्लिम देशों से पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफल रहा है.
पश्चिम एशिया के देश पाकिस्तान से ज्यादा भारत को तरजीह दे रहे हैं. भारत को अमेरिका का इस्तेमाल पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए करना है. वैसे भी आतंकवाद से निपटने के मामले में पाकिस्तान भी ट्रंप की विदेश नीति का एक केंद्र होगा. ऐसे में, भारत अपने रिश्ते अमेरिका और पश्चिम एशिया के देशों के साथ कैसे संतुलित करेगा, ये मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
डोनाल्ड ट्रंप की वजह से मोदी सरकार को देश के अंदर भी मुसीबत झेलनी पड़ सकती है. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है. डोनाल्ड ट्रंप के बयानों और नीतियों से भारत के मुसलमान भी चिंतित हैं. ऐसे में अमेरिका के साथ भारत की नजदीकियां देश के अंदर वातावरण को दूषित करेगी. वह इसलिए, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति तर्कहीन और सार्थक विचारों से विहीन है.
मोदी सरकार पर यह दायित्व है कि उसे भारत के वर्तमान और भविष्य के हितों की भी रक्षा करनी है और साथ ही अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के साथ-साथ मुस्लिम देशों में काम करने वाले भारतीयों के हितों को भी सुरक्षित रखना है.
भारत को अमेरिका से सामरिक मदद के साथ वैश्विक स्तर पर अपनी साख मजबूत करने के लिए मदद भी चाहिए और मुस्लिम देशों के साथ भारत के रिश्ते भी मजबूत रखने की जिम्मेदारी है. सवाल ये है कि क्या पश्चिम एशिया के देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखते हुए भारत ट्रंप प्रशासन के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ सकता है? मोदी सरकार को तलवार की धार पर चलना है, जरा सी चूक खतरनाक साबित हो सकती है. डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती भारत के लिए हानिकारक हो सकती है.
डोनाल्ड ट्रंप का पाकिस्तान पर असर
नाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतते ही पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ गई थी. डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान को एक अस्थिर और खतरनाक देश मानते आए हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने आगे बढ़ कर स्थिति को अपने अनुकूल करने की कोशिश की. राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले ही उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बात की.
लेकिन यहां पाकिस्तान सरकार से एक चूक हो गई. उसने फोन पर हुई बातचीत को सार्वजनिक कर दिया. वो भी झूठा. पाकिस्तान की तरफ से ये दावा किया गया कि ट्रंप ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को कॉल किया. उन्होंने पाक को एक शानदार देश बताया और नवाज शरीफ को एक शानदार नेता बताया और पाक का दौरा करने का वादा शरीफ से किया.
डोनाल्ड ट्रंप की टीम की तरफ से इन रिपोर्टों को सिरे से खारिज कर दिया गया. इसके बाद पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोनाल्ड ट्रंप से मिलने न्यूयार्क भी गए. वे नौ दिनों तक वहां इंतजार करते रहे, डोनाल्ड ट्रंप तो दूर, उनकी टीम के अदने से अधिकारी ने भी पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार से मिलने से इनकार कर दिया.
राष्ट्रपति की शपथ लेते ही ट्रंप ने जब यह ऐलान किया कि वो चरमपंथी इस्लामिक आतंकवाद का नामोनिशान मिटा कर रहेंगे, तब से पाकिस्तान की चिंता बढ़ गई. इसके बाद, राष्ट्रपति ट्रंप ने 7 मुस्लिम बहुल देशों के लोगों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगा दी. इन देशों में इराक, सीरिया, सूडान, ईरान, सोमालिया, लीबिया और यमन शामिल हैं. पाकिस्तान इस लिस्ट में नहीं था.
लेकिन, पाकिस्तान को झटका तब लगा जब ट्रंप ने पहला इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा कि पाकिस्तान के नागरिकों की छानबीन अब और भी क़डाई से की जाएगी. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव ने भी संकेत दिया कि पाकिस्तान इस सूची का हिस्सा हो सकता है.
इसका असर ये हुआ कि पाकिस्तान ने लश्कर प्रमुख हाफिज सईद को छह महीने के लिए नजरबंद कर दिया है. हाफिज सईद मुंबई आतंकी हमले का मास्टर माइंड है. भारत द्वारा मुंबई में हुए आतंकी हमलों में हाफिज सईद की संलिप्तता के तमाम सबूत दिए जाने के बावजूद, सालों से वह पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से रहता आ रहा है.
पाक-मीडिया के मुताबिक, यह कार्रवाई पाकिस्तान ने अमेरिका की उस चेतावनी के बाद की, जिसमें अमेरिका ने कहा कि अगर जमात-उद-दावा के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो वह पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगा सकता है. ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि जमात-उद-दावा को अमेरिका ने 2014 में आतंकी संगठन घोषित कर दिया था.पाकिस्तान में डोनाल्ड ट्रंप को लेकर जो चिंता है वो जायज भी है, क्योंकि राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने 17 जनवरी 2016 को ट्विटर पर लिखा था कि पाकिस्तान अमेरिका का दोस्त नहीं है.
अमेरिका ने पाकिस्तान को कई बिलियन डॉलर्स दिए हैं, लेकिन पाकिस्तान की तरफ से सिर्फ अमेरिका को धोखा मिला है. राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप ने आतंकवादी संगठनों के पनाहगार देशों को चिन्हित किया था, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल था. देखना ये है कि पाकिस्तान कितने दिनों तक न्यूक्लियर बम और अफगानिस्तान में मदद के नाम पर अमेरिका को ब्लैकमेल करने में सफल रहता है.