दिल्ली और नोएडा की लाइफ लाइन कहे जाने वाले डीएनडी के टोल टैक्स की वसूली का किस्सा उस अंतहीन क़र्ज़ की तरह है, जो वर्षों बीत जाने के बाद भी ख़त्म नहीं होता. इस फ्लाई ओवर से रोज़ाना हज़ारों वाहन गुजरते हैं, जिनसे नोएडा टोल ब्रिज कंपनी को लाखों रुपये की आमदनी होती है. बावजूद इसके, कंपनी का रोना है कि उसकी लागत अभी पूरी नहीं हुई है, लिहाज़ा वह कई वर्षों तक आम जनता से टोल टैक्स वसूलेगी. जनता को उम्मीद थी कि निर्माण लागत पूरी होने के बाद इसे टोल मुक्त कर दिया जाएगा, लेकिन इसके उलट कंपनी और अधिक टैक्स बढ़ाने के मूड में है. हालांकि, आर्थिक गड़बड़ियों और मनमानी के ख़िला़फ स्थानीय जनता ने भी अब डीएनडी ब्रिज कंपनी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है.
दिल्ली से नोएडा को जोड़ने वाला डीएनडी फ्लाई ओवर अपने निर्माण के वक्त से ही विवादों में घिरा रहा है. शुरुआती दिनों में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई संगठनों ने डीएनडी फ्लाई ओवर निर्माण का विरोध किया था, लेकिन सरकार जनहित और लोगों की सुविधाओं के नाम पर उन तमाम विरोधों को दबाने में कामयाब रही. ़िफलहाल इन दिनों टोल टैक्स की वसूली को लेकर डीएनडी के ख़िला़फ विरोध-प्रदर्शनों का दौर जारी है.
ग़ौरतलब है कि वर्ष 2001 में आईएल एंड एफएस ग्रुप की नोएडा टोल ब्रिज कंपनी ने डीएनडी के निर्माण का काम पूरा किया. इस परियोजना पर कुल 408 करोड़ रुपये की लागत आई. कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार, कंपनी को 30 वर्षों में 20 फीसद मार्जिन के साथ लागत वसूलनी थी. वर्ष 2004 में एनटीबीसीएल की लागत और रिकवरी कॉस्ट बढ़कर 695 करोड़ रुपये हो गई और 2014 में तो कंपनी की रिकवरी कॉस्ट का आंकड़ा बढ़कर 3,458 करोड़ रुपये हो गया. अव्वल यह कि लागत 408 करोड़ रुपये और रिकवरी कॉस्ट 3,458 करोड़ रुपये हो गई. कंपनी के निदेशकों की मानें, तो डीएनडी की लागत वसूलने में कम से कम 70 साल और लग जाएंगे. हैरानी की बात यह है कि जिस हिसाब से कंपनी अपनी लागत की समीक्षा कर रही है, उस हिसाब से रिकवरी कॉस्ट वर्ष 2031 तक बढ़कर 85,759 करोड़ रुपये हो जाएगी. कंपनी के मसौदे पर योजना आयोग (अब नीति आयोग) ने अपनी सलाह देते हुए कहा कि कंपनी रकम और मार्जिन वसूलने का जो फॉर्मूला बता रही है, उससे लागत कभी वसूल ही नहीं हो पाएगी और लोगों को हमेशा टोल टैक्स देते रहना पड़ेगा.
दरअसल, कई ऐसे महत्वपूर्ण सवाल हैं, जिनका जवाब नोएडा टोल ब्रिज कंपनी के अधिकारियों के पास नहीं है. कंपनी हमेशा अपने ख़र्चों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है, जबकि सच्चाई यह है कि डीएनडी फ्लाई ओवर को शुरुआती दिनों से ही ़फायदा हो रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि डीएनडी पर टोल लागत से ज़्यादा धनराशि वसूली जा चुकी है.
दरअसल, कई ऐसे महत्वपूर्ण सवाल हैं, जिनका जवाब नोएडा टोल ब्रिज कंपनी के अधिकारियों के पास नहीं है. कंपनी हमेशा अपने ख़र्चों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है, जबकि सच्चाई यह है कि डीएनडी फ्लाई ओवर को शुरुआती दिनों से ही फायदा हो रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि डीएनडी पर टोल लागत से ज़्यादा धनराशि वसूली जा चुकी है. बावजूद इसके, कंपनी लोगों की जेब पर डाका डालने से बाज नहीं आ रही है. पिछले दिनों डीएनडी टोल वसूली बंद करने की मांग को लेकर जनहित मोर्चा, क्राइम फ्री इंडिया फोर्स, रोटरी क्लब एवं एक्टिव सिटीजन जैसे कई संगठनों ने इस लूट के ख़िला़फ जनता को जागरूक किया. इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के नेता नवाब सिंह नागर ने कहा कि डीएनडी टोल वसूली के ख़िला़फ जनता बेहद आक्रोशित है. उनके मुताबिक़, जब तक डीएनडी को टोल मुक्त नहीं किया जाता, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा.
महा-लूट में नौकरशाहों की मिलीभगत
डीएनडी टोल ब्रिज के निर्माण एवं टोल वसूली को अरबों रुपये की लूट का मामला बताते हुए मौलिक भारत नामक एक संगठन ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के कई वरिष्ठ अधिकारियों पर इसमें शामिल होने का आरोप लगाया है. संगठन का दावा है कि डीएनडी टोल ब्रिज का घोटाला आईएएस अधिकारियों की मिलीभगत से ही मुमकिन हो पाया. मौलिक भारत संगठन की मानें, तो नोएडा टोल ब्रिज का निर्माण वर्ष 2001 में हुआ था. उस समय इसकी कुल लागत 408 करोड़ रुपये बताई गई थी, जबकि वास्तविक लागत 100 से 125 करोड़ रुपये के आस-पास थी. उल्लेखनीय है कि एनटीबीसीएल 31 मार्च, 2014 तक 690 करोड़ रुपये वसूल चुकी है. वहीं नोएडा अथॉरिटी पर इसका बकाया 2,950 करोड़ रुपये है, जो वर्ष 1932 तक 53,352 करोड़ रुपये हो जाएगा. टोल कंपनी ने सरकार की आंखों में धूल झोंककर लागत की वसूली तक टोल टैक्स वसूलने के अधिकार में एक नियम यह डाला कि यदि निर्माण लागत का 20 प्रतिशत प्रतिवर्ष बतौर लाभांश नहीं मिला, तो कंपनी इस राशि को निर्माण लागत में जोड़ती जाएगी. इस प्रावधान के तहत नोएडा अथॉरिटी को इस समय कंपनी को 2,950 करोड़ रुपये देने हैं और अथॉरिटी ने लिखित तौर पर उच्च न्यायालय को बताया है कि 2032 तक यह राशि 53,352 करोड़ रुपये हो जाएगी. मौलिक भारत संगठन का आरोप है कि निर्माण लागत कई गुना ज़्यादा बताई गई और वसूली कई गुना छिपाई गई. यहां तक कि टोल ब्रिज से रा़ेजाना गुजरने वाले वाहनों की संख्या में भी हेर-फेर की गई. आ़िखर यह कौन सी व्यवस्था है, जिसके तहत डीएनडी फ्लाई ओवर पर सदैव टोल वसूला जाता रहेगा. मौलिक भारत ने सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से अनुरोध किया कि एनटीबीसीएल एवं आईएल एंड एफएस के साथ हुए करार को रद्द करते हुए डीएनडी टोल ब्रिज को टोल मुक्त किया जाए. इसके अलावा, इस घोटाले के ज़िम्मेदार लोगों के ख़िला़फ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए.
इन नौकरशाहों पर लगे आरोप
गोपी अरोड़ा – तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निजी सचिव एवं केंद्रीय वित्त सचिव रहे 1957 बैच के इस अधिकारी ने एनटीबीसीएल को ़फायदा पहुंचाने में निर्णायक भूमिका निभाई और सेवानिवृत्ति के बाद यह इसके पहले अध्यक्ष बने.
प्रदीप पुरी-1978 बैच एवं उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी प्रदीप एनटीबीसीएल के बनते ही सरकारी सेवा से इस्ती़फा देकर इसके सीईओ बन गए.
आरके भार्गव-उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव भार्गव वर्ष 1997 से एनटीबीसीएल के चेयरमैन हैं.
पीयूष मनकड़-1964 बैच के अधिकारी एवं पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव मनकड़ एनटीबीसीएल के निदेशक हैं.
सनत कौल-1971 बैच के अधिकारी सनत ने समझौते में दिल्ली सरकार की तऱफ से हस्ताक्षर किए. फिलहाल यह एनटीबीसीएल के निदेशक हैं.
रवि माथुर-1970 बैच के अधिकारी रवि समझौते के समय नोएडा प्राधिकरण के सीईओ थे.
प्रभात कुमार-पूर्व कैबिनेट सचिव प्रभात ने रवि माथुर को अनेक स्तरों और अवसरों पर फायदा पहुंचाया.