संघ ने संविधान को कभी भी स्वीकार नहीं किया ! इसलिए उसकी राजनीतिक ईकाई संविधान संशोधन के नाम पर उसे चुहे के जैसा कुतर रही है !
संसद में चल रहे आपाधापी के माहौल में, देश के उपर लंबे समय तक असर डालने वाले बीलो को पास कराने की चालाकी सत्ताधारी दल कर रहा है !
विरोधी दलों की ओर से संसद में प्रधानमंत्री ने मणिपुर के उपर बोलना चाहिए इसलिए रोज संसद में हंगामा जारी है ! और सत्तारूढ़ दल देश के विकास के नाम पर वनविधेयक से लेकर बहुत ही महत्वपूर्ण बिलों को इस गड़बड़ी के माहौल में बगैर किसी बहस – मुहाबसे से रोज एक – दो विधेयक तथाकथित आवाजी बहुमत से पारित कराने में सफल हो रहा है !
भारत जैसे 140 करोड जनसंख्या में आदिवासियों की जनसंख्या चौदह से पंद्रह करोड़ के आसपास है ! जो कुछ राष्ट्रों की आबादी से अधिक है ! वर्तमान वनविधेयक इतनी बड़ी लोकसंख्या के जीवन पर असर डालने वाला है ! वैसे भी भाजपा पांचवी और छठवीं अनुसुचि को संविधान के खिलाफ बोलते आ रही है ! जोकि हमारे संविधान निर्माताओं के पास भारतीय आदिवासीयो के अधिकारों के लिए विस्तार से संविधानिक प्रावधान करने के लिए पर्याप्त समय नहीं था ! अन्यथा और एक साल इसी काम को पूरा करने के लिए समय चाहिए था ! यह व्यथा खुद डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कबुल की है ! इस कारण पांचवीं और छठी अनुसुचि में डालकर उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है ! जिसे भाजपा नही मानतीं है ! और वर्तमान विधेयक उसी मानसिकता का परिचायक है !
वैसे भी भाजपा की मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघने अपने मुखपत्र ऑर्गनायझर के 29,30 नवंबर 1949 के अंक में साफ – साफ लिखा है भारतीय संविधान को शुरू से ही नकार दिया है ! “स्पार्टा और ग्रिक से भी पुराना मनुस्मृति जैसे संविधान के रहते हुए ! देशविदेशोके संविधानों की नकल किए हुए, गुदड़ी जैसे संविधान की कोई आवश्यकता नहीं थी ! जिसमें भारतीयत्व का कुछ भी समावेश नही है !” संघ आदिवासी शब्द का प्रयोग कभी भी नहीं करते हैं ! (वैसे तो संघ की अपनी खुद के अलग शब्दों का संग्रह है ! ) उदाहरण के लिए समता की जगह समरसता वैसे ही वह आदिवासीयो को वनवासी कहा करते हैं ! सिर्फ वनो में रहने वाले लोग ! आदिवासी शब्द का प्रयोग करने से संघ को लगता है, कि वह खुद विदेशी होने की संभावना है ! इसे छुपाने के लिए वनवासी कल्याण आश्रम जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं !
क्या प्रधानमंत्री ने मणिपुर के बारे में कुछ भी वक्तव्य दे देने से मणिपुर की वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिए कोई मदद हो सकती है ? वर्तमान प्रधानमंत्री की समझ को देखते हुए उनके किसी भी वक्तव्य का कोई मतलब है ? जिस आदमी ने साडेपांच करोड जनसंख्या के गुजरात के दंगों से अपनी राजनीतिक हैसियत बनाने का काम किया हो ! वह मणिपुर जैसे गुजरात के एक चौथाई हिस्सा ! और वह भी सूदूर उत्तर पूर्व के प्रदेश में गत तीन महीनों से जो भी अधिक समय से जल रहा है ? वह क्या नरेंद्र मोदीजी को बगैर जानकारी से चल रहा है ? एकेक मिनट की जानकारी दी जा रही है ! यह खुद महामहिम राज्यपाल महोदया अनुसया उईके ने कहा है ! और इसके अलावा केंद्र के सभी सुरक्षा दल और उनके इंटेलिजंस सर्विसेज मौजूद हैं ! उसके अलावा आई बी, सीबीआई तथा लोकल इंटेलिजन्स के रहते हुए, प्रधानमंत्री या गृहमंत्री को जानकारी नहीं है ? यह हो ही नहीं सकता ! और ऐसा नहीं है , तो सबसे पहले इन दोनों को राष्ट्रपति महोदया को इन्हें अविलंब इनके पदो से हटाना चाहिए !
लेकिन मैंने यह पोस्ट सिर्फ़ इतनी सी बात के लिए नही लिखि है ! वर्तमान मान्सून सेशन मे देश के उपर लंबे समय तक परिणाम करने वाले बिलों को पास कराने के लिए विरोधी दलों के कारण ! सत्ताधारी दल को बगैर कोई चर्चा किए आसानी से इन बीलो को पास करने के लिए बहुत ही माकुल समय मील गया है !
जिस मणिपुर की वर्तमान स्थिति को लेकर विरोधी दल ‘सिर्फ प्रधानमंत्री वक्तव्य दो’ की रट लगाए जा रहा है ! और इधर सत्ताधारी दल आराम से एक एक करके विधेयकों को पारित करने की जल्दबाजी कर रहा है ! सबसे भयानक विधेयक वनविधेयक है ! भारत का वन क्षेत्र वैसे ही बहुत कम है ( 15%,जो कि कम-से-कम 27% होना चाहिए ! ) और वर्तमान विधेयक बचा-खुचा वन क्षेत्र को खत्म करने की इजाजत दिलाने वाले विधेयक को पारित करने का काम कर रहा है ! जहाँ मणिपुर का भी अस्तित्व ही समाप्त करने के लिए बील पास हो रहा है ! वैसे तो संपूर्ण देश के वनक्षेत्र को खत्म करने का बील है ! और सबसे हैरानी की बात इस बील का नाम रखा गया है, “फॉरेस्ट कंजर्वेशन अॅक्ट” ! मतलब शक्कर के मुल्लमा लगाया हुआ जहर ! विदेशी कंपनियों से लेकर रामदेव जैसे लोगों को “बायोडायव्हर्सिटी बील” के नाम पर हमारे वनक्षेत्र को बर्बाद करने की खुली छूट देने का इस बील से बचा-खुचा फॉरेस्ट कवरेज खत्म करने की कृती इन मीठे – मीठे और आम आदमी को भटकाने की शब्दावली के आड में 1980 के वनविधेयक से आदिवासीयो को दिए गए अधिकार खत्म हो रहे हैं !
और सबसे हैरानी की बात इस बील को पेश करने के पहले आदिवासी मंत्रालय, पर्यावरण संरक्षण मंत्रालयो को विश्वास में नहीं लिया गया है ! संसदीय परंपराओं की ऐसी की तैसी वैसे भी नरेंद्र मोदीजी हिटलर के जैसा संसद को कार्पोरेट जगत के खजाने भरने के लिए विशेष रूप से पिछले नौ सालों से इस्तेमाल कर रहे हैं ! मजदूरों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए विशेष रूप से शेकडो वर्षों की लड़ाई लड़ कर बनाएं गए बीलो को कोरोना के आड में खत्म करने की कृती को क्या कहेंगे ? नरेंद्र मोदी भले सर्वसामान्य लोगों के वोटों से संसद में पहुंच गए ! लेकिन वह शतप्रतिशत पूंजीपतियों के खजाने भरने के लिए भारत में मजदूरों से लेकर दलितों – आदिवासीयो के सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून बदलकर, जिसमें पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी करते हुए ! दो दिन पहले संसद में तथाकथित फॉरेस्ट कंजर्वेशन अॅक्ट पारित किया गया है ! जिसका राज्यसभा में विरोधी दलों ने इस बील को पास नहीं होने देना चाहिए !
पहले से ही हमारे देश की जलवायूपरिवर्तन की वजह से, बारिश, गर्मी और सर्दी जैसे मौसमों की साइकिल बिगड़ने की वजह से कही भयंकर गर्मी ! तो कहीं भयंकर वर्षा ! तो कहीं सुखाड की स्थिति को देखते हुए ! देश के विरोधी दलों ने ऐसे बीलो का राज्यसभा में पास करने की सत्ताधारी दल का विरोध करना चाहिए !
जिस समय वर्तमान राष्ट्रपति महोदया को राष्ट्रपति बनाया जा रहा था ! उसी समय मैंने लिखा है, “कि भारतीय संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची जिसमें हमारे देश के सभी वनक्षेत्र, और उनमें हजारों वर्ष से रह रहे आदिवासीयो को हमारे संविधान निर्माताओं ने विशेष सुरक्षा प्रदान करने के लिए उन्हें इन सूचियों में रखा था ! लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा ने शुरू से ही यह प्रावधानों को हटाने की मांग की है !” और श्रीमती द्रोपदी मूर्मूजी को राष्ट्रपति सिर्फ संविधान की पांचवीं और छठी सूची को खत्म करने के लिए ही बनाया गया है ! ताकि दुनिया को बता सके कि हमें भारत के सभी आदिवासीयो का समर्थन था !
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिंदुत्व छोड़कर जीवन के किसी भी विषय पर नही कोई भूमिका है ! और नही कोई सरोकार ! उन्हें तो सिर्फ एक राष्ट्र – एक निशाण – एक विधान और एक जुबान की व्यवस्था करनी है ! उसके लिए पर्यावरण जैवविविधता, ग्लोबल वॉर्मिंग, सांस्कृतिक विविधता भाषाओं से लेकर खानपान, वेशभूषाओ के बारे में एकदम हिटलर के जैसे मणिपुर से लेकर, जुनैद – अखलाख मॉबलिंचग में लोगों को मारकर यह सब लागू करने की जल्दी पडी हुई है !
नितिन गडकरी और प्रकाश जावडेकर इन दोनों बचपन से ही संघ की शाखा से तैयार होकर निकले लोगों को मैंने अक्सर सुना है “कि विकास की आड में जंगल आते हैं !” यह जब महाराष्ट्र स्तर पर थे, तबसे बोलते हुए सुन रहा हूँ ! फिर नरेंद्र मोदीजी या अमित शाह अलग कैसे हो सकते हैं ? संपूर्ण संघ की कुंडली बनाने में भारतीय पूंजीपतियों का हाथ रहा है ! जैसे जर्मनी में आजसे सौ वर्ष पहले हिटलर ने अपने राजनीतिक अजेंडा को आगे बढ़ाने के पहले संपूर्ण जर्मनी के कार्पोरेट वर्ग के लोगों के साथ विचार विमर्श करने के बाद ही अपने राजनीतिक दल को आगे बढ़ाया है !
परसो दिल्ली में प्रधानमंत्री के तथाकथित कन्वेंशन सेंटर के उद्घाटन समारोह में कौन लोग शामिल थे ? संपूर्ण भारत का कार्पोरेट वर्ग को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “मुझे तिसरी बार सत्ता में आने के बाद, मै भारत की अर्थव्यवस्था विश्व के तीन नंबर पर ले जाने की गारंटी देता हूँ !” यह जो नंबर गेम है ! इसमे आज भी भारत की अर्थव्यवस्था बहुत ही मजबूत मानी जाती है ! लेकिन 140 करोड जनसंख्या के देश में कौन लोग मजबूत हुऎ है ? और कौन लोग कमजोर ? अगर भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है तो महंगाई इतनी ज्यादा क्यों है ? अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का फायदा सर्वसामान्य लोगों को क्यों नहीं मिल रहा है ? और अदानी तथा अंबानी ने नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के बाद कितने गुना अपनी संपत्ति बढाई है ?
और वर्तमान बील का नाम है, फॉरेस्ट कॉन्जर्वैशन बील ! लेकिन इस बील से बचे-खुचे वनक्षेत्र को नष्ट करना यही मुख्य उद्देश्य है ! ताकि कार्पोरेट को वहाँ से खनिज, तेल निकालने का रास्ता साफ हो! जिसके साथ वहाँ रह रहे आदिवासीयो की जमीन गैरआदिवासियो को कब्जे में करने के लिए विशेष रूप से उद्योगपतियों के लिए ! मणिपुर जैसे सभी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में यह कानून लागू होगा जिससे बड़ी मुश्किल से 15 % प्रतिशत जंगल को उजाड़ने का रास्ता साफ हो गया ! नरेंद्र मोदीजी को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की जल्दी जो पडी है !
हप्ताह दस दिनों पहले ही यमुना ने अपना रौद्र रूप दिखाया है ! इस साल की बारिश में हिमालय में क्या नही हुआ ? कुछ समय पहले बद्रिनाथ – केदारनाथ में प्रकृति ने अपना रुप बताया और अभी कुछ दिन पहले ही जोशीमठ विलुप्त होने की शुरुआत हो गई है ! और हिमालय तथा अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में इस साल की बारिश में इर्शारवाडी का पूरा मलबा हटाने का कार्य शुरू है !
पर्यावरण के विशेषज्ञ श्री. माधव गाडगीळ जैसे लोग “वर्तमान विकास की वजह से यह सब हो रहा है !” और विश्व के 200 से अधिक वैज्ञानिकों ने संपूर्ण विश्व को ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर चेतावनी दी है ! और हिमालय के ग्लेशियर पिघलने से लेकर ध्रुवप्रदेश के बर्फ के पिघलने के कारण विश्व के विभिन्न देशों के तापमान वृद्धि से लेकर तुफान तथा वर्षा जैसे बेमोसमी संकटो की शुरुआत हो चुकी है ! लेकिन हमारे अपने ही देश में दुसरी तरफ संसद में तथाकथित विकास के आड में वनक्षेत्र आ रहे ! इसलिए बील लाकर संपूर्ण वनक्षेत्र को नष्ट करने वाले लोगों को, क्या हमारे देश और देश में रहने वाली जनता के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने देना कहाँ तक उचित है ?
डॉ. सुरेश खैरनार, 30 जुलै 2023, नागपुर