कैंसर एक जानलेवा बीमारी है, लेकिन इससे बचने के उपायों पर अमल किया जाए तो इस बीमारी की मार से बचा जा सकता है. आमतौर पर यह समझा जाता है कि कैंसर पान और तंबाकू उत्पादों के सेवन से ही होता है, लेकिन स्वास्थ विशेषज्ञों का मानना है कि रोज़मर्रा में इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ों में कई ऐसी चीजें हैं जिनको हम साधारण समझकर उन पर ध्यान नहीं देते हैं, जबकि वही साधारण चीज़ें हमारे लिए कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन जाती हैं. उदाहरणस्वरूप हम अपने घरों में कालीन बिछाते हैं. कई बार कालीन पुरानी हो जाती है और इसको बदला नहीं जाता है. ऐसी कालीनों के नीचे धूल जमा हो जाती है और यह धूल कैंसर का सबब बन जाती है. कुवैत से प्रकाषित होने वाली एक पत्रिका ने स्वास्थ्य विषेशज्ञों के हवाले से लिखा है कि 600 घरों से ऐसी कालीनों के नमूने लिए गए जो पांच साल या उससे अधिक पुरानी थीं और जिनमें बड़ी मात्रा में धूल जमी हुई थी. इन क़ालीनों के नीचे जमी धूल का लैब टेस्ट किया गया तो इस धूल में कैंसर पैदा करने की संभावना 50 प्रतिशत अधिक पाई गई.
इसी प्रकार सुबह की ताज़ा हवा के लिए अक्सर लोग सड़क के किनारे टहलने निकलते हैं. बहुत से नौजवानों उस वक्त सड़क के किनारे दौड़ते दिखते हैं, जबकि उस वक़्त वहां सफ़ाईकर्मी झाड़ू लगा रहे होते हैैं. हर तरफ़ धूल उड़ती रहती है, अक्सर लोग वहां पर से गुज़रते हुए नाक पर कपड़ा रख लेते हैं. ताकि धूल से होने वाले नुक़सान से बचा जा सके. लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि नैनो कण (नैनो पार्टिकलस) जो कि एक मिलीमीटर का दस लाखवां हिस्सा होता है. यह हमारे शरीर के छिद्रों के द्वारा हमारे शरीर मैच के अंदर प्रवेश कर सकते हैं और ख़ून में मिलकर कैंसर पैदा करने का कारण बन सकता है. यही कारण है कि पूरे कपड़े पहने बगैर खुली हवा वाले क्षेत्र विशेषत: धूल भरे क्षेत्र में नहीं जाना चाहिए. बैथ इजराइल डेकोनेशन सेंटर जो बोस्टन में एक शोध संस्था है. उसके स्वास्थ्य शोध के अनुसार छोटे-छोटे कण जिसका आकार 34 नैनो मीटर से भी कम होता है और जिसको हम न तो हम देख सकते हैं और न ही छू सकते हैं. ऐसे कण ख़ून में मिल जाते हैं और फिर कैंसर का कारण बनते हैं.
यहां सबसे अहम सवाल यह उठता है कि होता है कि आख़िर इन कणों के हमारे शरीर में प्रवेश कर जाने का पता कैसे चला. इसबारे में एक विश्लेषण नेचर पब्लिशिंग गु्रप द्वारा ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाली पत्रिका नेचर
बायोटेक्नोलॉजी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि चूहों पर प्रयोग करके इस बात का पता चला है. प्रयोग के दौरान चूहों को प्रयोगशाला में ऐसी जगह रखा गया, जहां धूल उड़ती थी. इन चूहों की लगातार निगरानी की गई. कुछ दिनों बाद वैज्ञानिकों को अनुमान होने लगा कि धूल के कण सांस द्वारा चूहों के फेफड़ों में पहुंच रहे हैं और जमा हो रहे हैं. 40 मिनट बाद ये कण ख़ून में शामिल हो जाते हैं. इस निष्कर्ष के बाद यह बात तो लगभग निश्चित हो गई कि अब ये चूहे ख़ून के कैंसर से पीड़ित हो जाएंगे,लेेकिन पत्रिका में यह बात स्पष्ट तौर पर नहीं कही गई कि कितने दिनों तक चूहों के धूल आदि में रहने के बाद उनमें कैंसर क लक्षण पाए गए. लेकिन इतना निश्चित है कि बड़ी मात्रा में धूल और गर्द किसी भी जीव के अंदर पहुंचकर ख़ून में कैंसर का कारण बन सकते हैं. वैज्ञानिकों ने यह बात भी स्पष्ट की कि धूल व गर्द न केवल शरीर के अंदर जाकर न केवल ख़ून में कैंसर(ब्लड कैंसर) का सबब बनते हैं बल्कि ये कण फेफड़ों की दीवारों पर बैठ जाते हैं और धीरे-धीरे फैफड़े के कैंसर(लंग्स कैंसर) का भी कारण बनते हैं. विशेषज्ञों को इस बात का भी संदेह है कि ये नैनो कण न केवल कैंसर बल्कि अन्य गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकते हैं. उदाहरण के लिए अधिक मात्रा में फेफड़ों में धूल जमा होने की स्थिति में जलन जैसी शिकायत पैदा हो जाती है. इसलिए जहां तक हो धूल व गर्द जैसे माहौल से दूर रहना चाहिए, लेकिन यह बात भी याद रखने योग्य है कि जो धूल किसी एक जगह लंबे समय सेे जमी हुई न हो, जैसे बहुत पुरानी क़ालीन आदि के नीचे जमी हुईं धूल और खुली अल्मारी में किताबों या सामान में मौजूद धूल से कैंसर की संभावना अधिक रहती है जबकि
सड़क के किनारे वाली धूल से फेफड़ों में जलन की शिकायत हो सकती है.
कुवैत से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका ने कई डॉक्टरों के हवाले से लिखा है कि ऑर्गेनिक क्लोरीन भी ख़ून में कैंसर का कारण बनता है. सवाल यह है कि आर्गेनिक क्लोरीन से हम बच किस प्रकार सकते हैं, जबकि बाज़ार में जो भी चीज़ उपलब्ध है, उसमें आर्गेनिक क्लोरीन से प्रभाव किसी न किसी प्रकार से पाया जाना लगभग निश्चित है. लेकिन विशषज्ञ कहते हैं कि इससे बचने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि सब्ज़ियों और फलों आदि में हम ऑर्गेनिक तरीके से विकसित करें तो क्लोरीन के ख़तरों से बचा जा सकता है. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिक्किम आदि क्षेत्रों में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने की बात की है. इसका कारण भी यही है कि इस प्रकार की खेती से हम क्लोरीन के प्रयोग से बच सकते हैं. अगर आर्गेनिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध न हों तो ऐसी स्थिति में बाज़ार में मौजूद पपीते का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए क्यों पपीते में ऐसे तत्व शामिल हैं, जो इंसान को कैंसर सहित दूसरी अन्य बीमारियों से बचाता है.
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