आज पंजाब नेशनल बैंक ने लोन दे दिया. यह सही था या गलत, वो उसका प्रबंध निदेशक तय करेगा. उसे सजा दीजिए, लेकिन उसकी भी गलती नहीं है, क्योंकि सरकार के  टेलिफोन कॉल पर ही बैंक ने लोन दिया. चाहे वो यूपीए की सरकार हो या फिर एनडीए की, लेकिन अगर सरकार चाहती है कि बैंक सही तरीके से चलें, तो रिजर्व बैंक को उन बैंकों का निरीक्षण कर चलाने दीजिए. सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ बैंकिंग बना दिया, उसको खत्म कीजिए. एक ज्वाइंट सेक्रेटरी दिल्ली में बोर्ड की बैठक में बोलता है कि इनको लोन देना है, तो सभी को अपनी नौकरी करनी है और बैंक लोन दे देता है. अगर बैंकों की व्यवस्था में मूलभूत सुधार करना है, तो  पहले डिपार्टमेंट ऑफ बैंकिंग को खत्म करना होगा. रिजर्व बैंक को ताकत देना होगा कि वह बैंकों की व्यवस्था को दुरुस्त कर सके. बैंक भी एक व्यवसाय है. बैंकिंग के भी कुछ नॉर्म्स होते हैं.


economic changeभाजपा सरकार को चार साल हो गए. भाजपा सरकार का यह कार्यकाल बेहद निराशाजनक रहा है. मोदी जी ने जनता से जो वादे किए थे, वे अतिश्योक्ति अलंकार में थे. उन्होंने करोड़ों जॉब की बात की थी, लेकिन क्या यह संभव था? देश में बहुत बेरोजगार लोग हैं. युवा पीढ़ी बहुत जल्दी में है, इसलिए उन्होंने मोदी जी को एक मौका दे दिया. शुरू में मोदी जी ने कुछ करने की कोशिश भी की. ये दिखाने की भी कोशिश की कि मैं लगातार कोशिश में लगा हूं. जाहिर है, इतने बड़े देश में मोदी कोई करिश्मा नहीं कर सके.  इसके लिए मोदी जी नौकरशाही को जिम्मेदार समझते हैं. मोदी जी ने गुजरात कैडर के या गुजराती बोलने-समझने वाले ब्यूरोक्रेट्स को आगे बढ़ाया. जिन क्षेत्रों में सरकार बेहतर नतीजे चाहती थी, वहां उनको नियुक्त किया गया. मोदी जी समझते हैं कि सब जगह गुजरात कैडर के लोगों को लगा देंगे, तो वे मनमाफिक नतीजे ला देंगे. ढाई साल बाद मोदी जी समझ गए कि ऐसा होना संभव नहीं है.

इसके बाद आठ नवंबर 2016 को नौकरशाहों की राय लिए बिना उन्होंने अचानक नोटबंदी लागू कर दिया. यह रिजर्व बैंक का काम है, जो करेंसी पर नियंत्रण रखती है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी ऐसा करने से मना किया था, लेकिन मोदी जी ने बिना सोचे-समझे यह कर दिया. पिछले पन्द्रह-सोलह महीने से लोग इसके नतीजे भुगत रहे हैं. कोई भी व्यवसाय, जो इस दौरान बर्बाद हो गया, आज तक पटरी पर नहीं लौटा है. लेकिन मोदी जी का यह स्वभाव नहीं है कि वे विनम्रता से अपनी गलती स्वीकार कर लें. इसके बाद मोदी जी ने जल्दी से जीएसटी लागू कर दिया, जो बीस साल से विचाराधीन था. किसी भी देश में जीएसटी को बेहतर तरीके से लागू करने में कम से कम पांच साल लग जाते हैं. सरकार सोच रही थी कि यह तुरन्त हो जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. लब्बोलुआब यह कि सोलह महीने में अर्थव्यवस्था चरमरा गई. पी. चिदंबरम जीएसटी के आंकड़े देते हुए एक आर्टिकल में सही तथ्य सामने रखते हैं. इकोनॉमी काफी नीचे आ गई है. सरकार आंकड़ों को बदलकर सही तथ्य छिपा रही है. दिखाने के लिए ग्रोथ 7.5 प्रतिशत है, लेकिन यह सचमुच 7.5 प्रतिशत नहीं है. लेकिन आंकड़े तो आंकड़े होते हैं. इन आंकड़ों से क्या होता है? इससे गरीब के पेट में न तो अनाज जाएगा, न ही किसी को नौकरी मिलेगी और न ही किसान के खेत में पानी आएगा. समस्या वहीं की वहीं है.

शेखावाटी में एक कहावत है कि मीठा उतना ही होगा, जितना आप गुड़ डालेंगे. अगर सरकार समझती है कि सूखे में नाव चल जाए, यानी बिना कुछ किए अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक हो जाए, तो यह होने वाला नहीं है. पता नहीं, मोदी जी के सलाहकार कौन हैं? वे तात्कालिक फायदों को लेकर नीतियों की घोषणा तो करते नहीं हैं. सरकार के लिए अचानक कालाधन प्रमुख हो गया. इसमें विदेशी पैसा प्रमुख था, लेकिन उसका जिक्र कहीं नहीं है, क्योंकि स्विट्‌जरलैंड से विदेशी पैसा गायब हो गया है. ये भारत तो आया नहीं, फिर कहां गया, इसके बारे में भी कुछ पता नहीं है. सरकार अब बैंक लोन के पीछे पड़ गई हैं.

भारत में सबसे बड़ा फायदा औद्योगीकरण का है, जो अफ्रीकी देशों में नहीं है. हमारे यहां का मोची भी उद्यमी है. वो जूता सिलने का तरीका बदलने और नई टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए तैयार है. यहां लोग बहुत हुनरमंद और कौशल प्रिय हैं, लेकिन यह सरकार कुछ अजीब है. उद्यमियों ने पचास साल मेहनत कर उद्योग खड़े किए. अगर आज किसी कारणवश वह उद्योग ठीक नहीं चल रहा है, तो उन्हें ऐसे परेशान किया जाता है, जैसे वे कोई चोर या बेईमान हों या उन्होंने देश का धन लूट लिया हो. विजय माल्या, नीरव मोदी सब भाग गए, सरकार क्या चाहती है? सरकार की पॉलिसी क्या है?

भारत में सबसे बड़ा फायदा औद्योगीकरण का है, जो अफ्रीकी देशों में नहीं है. हमारे यहां का मोची भी उद्यमी है. वो जूता सिलने का तरीका बदलने और नई टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए तैयार है. यहां लोग बहुत हुनरमंद और कौशल प्रिय हैं, लेकिन यह सरकार कुछ अजीब है. उद्यमियों ने पचास साल मेहनत कर उद्योग खड़े किए. अगर आज किसी कारणवश वह उद्योग ठीक नहीं चल रहा है, तो उन्हें ऐसे परेशान किया जाता है, जैसे वे कोई चोर या बेईमान हों या उन्होंने देश का धन लूट लिया हो. विजय माल्या, नीरव मोदी सब भाग गए, सरकार क्या चाहती है? सरकार की पॉलिसी क्या है? क्या यही हमारी पॉलिसी है कि उद्योग चलाने में कुशल हिन्दुस्तानियों को यहां से भगा देना है और विदेशियों को यहां उद्योग चलाने के लिए बुलाना है. अगर सरकार चाहती है कि बैंकों की ऋृण व्यवस्था को ठीक करना है, तब एक-एक केस पर विचार करना होगा. कुछ ब्याज में छूट देना होगा. कुछ समय देना होगा, तभी सब रुपए वापस आ सकेंगे. हिन्दुस्तान का उद्योगपति बेईमान नहीं है. यह भय और आतंक का वातावरण सरकार ने चार साल में बनाया है. मैं यह आक्षेप नहीं लगा रहा हूं कि सरकार व्यापारियों को डराकर पैसा ऐंठना चाहती है, लेकिन सरकार जो कर रही है, वह गलत है. इससे देश का कोई फायदा नहीं होगा. सरकार एयर इंडिया को नीलाम करना चाहती है. कोई देश अपना नेशनल कैरियर नहीं बेचता है. विदेशियों को तो कतई नहीं, लेकिन सरकार इसे बेचने के लिए उतावली हो रही है. अखबार में छपा है कि एयर इंडिया का 76 प्रतिशत शेयर बेचेंगे. फिर 76 प्रतिशत ही क्यों बेचेंगे, 100 प्रतिशत क्यों नहीं बेचेंगे? 76 प्रतिशत में तो सरकार के हाथ में कुछ नहीं रहेगा. इनके पास सबसे बढ़िया विमान के साथ कुशल पायलट भी हैं, फिर भी इसके बेहतर ढंग से नहीं चलने के कई कारण हो सकते हैं. बीच में पेट्रोल का दाम बहुत बढ़ गया था. एयर इंडिया को घाटा लगा. इन चीजों को बेहतर मैनेजमेंट से सुधारा जा सकता है.

सब काम संयम और धीरज रखने से होता है. इस सरकार को जल्दी है, क्योंकि चुनाव में एक साल ही रह गए हैं. कोई भी राजनीतिक दल चुनाव जीतना चाहेगा. चुनाव जीतने के लिए कई ऐसे काम करने पड़ते हैं, जो देश हित और दूरगामी हित के विरोध में होते हैं. कुछ काम तुरंत फायदे के लिए होते हैं, लेकिन यह सरकार तो दोनों काम नहीं कर रही है. फिजिकल डेफिसिट में थोड़ी ढील देकर अर्थव्यवस्था में रुपए डाल देते, तो इससे कई लोगों को रोजगार मिल जाता. चिदंबरम साहब बहुत विरोध करते, लेकिन कुछ तो फायदा होता, मोदी जी वह भी नहीं कर पाए. आज कोई भी उद्योगपति देश में उद्योग लगाने को तैयार नहीं है. हां, नीलामी की बात जरूर हो रही है. इससे क्या हासिल होगा? नई इंडस्ट्री लगाइए, पुरानी क्यों खरीद रहे हैं? नए लोगों को नौकरी दीजिए, लेकिन यह काम नहीं हो रहा है.

आज पंजाब नेशनल बैंक ने लोन दे दिया. यह सही था या गलत, वो उसका प्रबंध निदेशक तय करेगा. उसे सजा दीजिए, लेकिन उसकी भी गलती नहीं है, क्योंकि सरकार के  टेलिफोन कॉल पर ही बैंक ने लोन दिया. चाहे वो यूपीए की सरकार हो या फिर एनडीए की, लेकिन अगर सरकार चाहती है कि बैंक सही तरीके से चलें, तो रिजर्व बैंक को उन बैंकों का निरीक्षण कर चलाने दीजिए. सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ बैंकिंग बना दिया, उसको खत्म कीजिए. एक ज्वाइंट सेक्रेटरी दिल्ली में बोर्ड की बैठक में बोलता है कि इनको लोन देना है, तो सभी को अपनी नौकरी करनी है और बैंक लोन दे देता है. अगर बैंकों की व्यवस्था में मूलभूत सुधार करना है, तो  पहले डिपार्टमेंट ऑफ बैंकिंग को खत्म करना होगा. रिजर्व बैंक को ताकत देना होगा कि वह बैंकों की व्यवस्था को दुरुस्त कर सके. बैंक भी एक व्यवसाय है. बैंकिंग के भी कुछ नॉर्म्स होते हैं. जो सरकार की नजर में चोर या बेईमान हैं, ऐसे लोगों को एक-एक कर बुलाइए. उन पर केस कीजिए. उनसे किसी की सहानुभूति नहीं है, लेकिन इस देश में 99 प्रतिशत ईमानदार हैं. एक प्रतिशत व्यवसायी गड़बड़ होगा, जिनके प्रति किसी को कोई सहानुभूति नहीं होगी. लेकिन सरकार तो 99 प्रतिशत को चोर समझ रही है.

देश में बड़े उद्योग घरानों का कहना है कि भारत में निवेश करने में कोई फायदा नहीं है. विदेश में निवेश करना चाहिए. एनआरआई बन जाइए, लेकिन हमारे जैसे लोग उन बदनसीबों में से हैं, जो इस देश से इतना प्यार करते हैं कि एनआरआई बनने की कभी सोच ही नहीं सकते हैं. चना-मूंगफली खाकर जिन्दा रहेंगे, लेकिन यहीं रहेंगे और सामाजिक सौहार्द बढ़ाएंगे, लेकिन ये सबकी मनोस्थिति नहीं होती है. यह बात पूंजीवाद के खिलाफ है. मैं समाजवाद की बात कर रहा हूं. जहां पूंजी पर सबसे ज्यादा रिटर्न मिलेगा, सबसे ज्यादा इनकम होगा, पूंजीपति वहीं जाएगा. पानी उसी तरफ जाएगा, जिधर ढलान होगा, इसलिए पूंजी विदेश जा रही है. हम फालतू में विदेश से कालाधन लाने की बात कर रहे थे. भारतीय पूंजी के बाहर जाने से विदेश में लोगों को नौकरी मिलेगी. वहां की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. यह सरकार कृषि के खिलाफ है. किसानों, उद्योगों और व्यापारियों के खिलाफ है. जीएसटी लागू करके सरकार ने उनकी कमर तोड़ दी, फिर यह सरकार किन लोगों के पक्ष में है. कर्मचारियों के पक्ष का तो सवाल ही नहीं है. इंडस्ट्री नहीं लगेगी, तो लोगों को नौकरी कहां से मिलेगी? सरकार की दो-तीन नीतियां स्पष्ट हैं. एक, गाय का नाम लेकर हरेक आदमी को दबा दो और दूसरा, हिन्दू-मुसलमान. इस देश के सबसे बड़े दुश्मन कौन हैं? क्या पंद्रह करोड़ मुसलमान दुश्मन हैं, जो पाकिस्तान जा सकते थे, लेकिन उन्होंने इस देश पर भरोसा किया. अगर सरकार की सोच इतनी संकीर्ण है, तो इससे क्या विशाल देश बनेगा. जो 70 साल से सब कुछ ठीक चल रहा था, वो भी मटियामेट हो जाएगा. चार साल में सरकार ने 70 साल के काम को खत्म करने की काफी कोशिश की है. इसमें सरकार सफल तो नहीं हुई, लेकिन उनकी यह कोशिश जरूर है.

मोदी जी, जनता ने भरोसा कर आपको सत्ता सौंपी है, उसे इतनी जल्दी गंवाने की जरूरत नहीं है. अब भी सुधार कर सकते हैं. राजनीति में कोई शर्म की बात नहीं होती है. सभी पार्टियों की मीटिंग बुलाकर विपक्ष के लोगों से बातचीत कीजिए कि आगे क्या करना है? देश गंभीर स्थिति में है और इस समय सबकी राय लेकर कुछ करने की जरूरत है. अब भी सरकार के पास एक साल है. चुनाव में हार-जीत लगा रहता है. एक चुनाव जीतकर कोई ज्यादा कुछ नहीं कर सकता है, लेकिन देश तो सबका है. मोदी जी देश के 14वें प्रधानमंत्री हैं. इनके बाद भी कई और प्रधानमंत्री आएंगे. आपके और हमारे साथ दुनिया खत्म नहीं होती. यह पूर्णविराम नहीं है, अल्पविराम भी नहीं है. गांधी अल्पविराम थे, हम लोग तो कुछ भी नहीं हैं.

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