हम सद्भावना बढ़ाओ-देश बचाओ यात्रा की तरफ़ से एक खुली चिट्ठी के ज़रिए आज की सबसे बड़ी समस्या के बारे में आपसे संपर्क करना चाहते हैं. क्योंकि राजनीतिक कारणों से मीडिया, कट्टरपंथी ताक़तें और राष्ट्रीय एकता के विरोधी, नागरिकों के बीच नफ़रत के बीज बोए जा रहे हैं. सद्भावना के स्रोत सूख रहे हैं. क्या कोई देश सद्भावना और सहयोग के बगैर आगे बढ़ सकता है?
हमारे समाज को विदेशियों की ग़ुलामी से आज़ादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने उम्मीद की थी कि अंग्रेज़ी राज खत्म होने के साथ ‘बाँटो और राज करो!’ का दौर भी ख़त्म होगा और बिना किसी भेदभाव के हम ग़रीबी, बेरोज़गारी, अन्याय और नफ़रत का शांतिपूर्ण तरीक़ों से समाधान करेंगे. कमाई, दवाई, पढ़ाई और महंगाई के मुद्दों पर लड़ाई जीती जाएगी. लेकिन हम उलटी दिशा में जा रहे हैं.
इससे देश में दरारें बढ़ रही हैं तथा नफ़रत की आग और सांप्रदायिकता की आँधी का ख़तरा सामने है. क्या आपको भी ऐसा लग रहा है?
वैसे समाज में अमन-चैन और देश में इंसाफ़ और इंसानियत को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी राजनीति की होती है. यही हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत रही है. लेकिन चुनावी गरज़ को ही अपना फर्ज़ मान बैठे अधिकतर राजनीतिक दलों ने निराश किया है. इसलिए नागरिकों की तरफ़ से निगरानी के बिना यह संकट नहीं दूर होगा. सामाजिक जीवन में सद्भावना बढ़ाने के लिए छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना होगा. इसमें संत कबीर, गुरु नानक, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान, नेताजी सुभाष बोस, बाबासाहब आंबेडकर, शहीद भगतसिंह, डा. राममनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश जैसे पथप्रदर्शकों की सिखावन काम आएगी.
सद्भावना बढ़ाओ की प्रार्थना के साथ कुछ सरोकारी नागरिकों ने 23 जनवरी (नेताजी सुभाष जयंती) को क्रांतिधरा मेरठ से 30 जनवरी को गांधी समाधि (दिल्ली) तक सद्भावना संवाद के लिए एक यात्रा का आयोजन किया है. इसमें भारत के विभिन्न धर्मों, विचारों और प्रदेशों के सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार, समाजविज्ञानी, वकील, डाक्टर, किसान नेता, श्रमिक संगठनकर्ता, विद्यार्थी आदि हिस्सा ले रहे हैं. आपकी हिस्सेदारी से इसकी महत्ता बढ़ जाएगी.
सद्भावना बढ़ाओ-देश बचाओ! जयहिंद! जय जगत!!
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