भाई, हम तो एक साधारण और स्वतंत्र हिंदी पत्रकार हैं, कोई भी अच्छा लेख, रिपोर्ट, कार्टून या भाषण हमें आकर्षित करता है. एक संसदीय संवाददाता के तौर पर जब मैं संसद की कार्यवाही ‘कवर’ करता था, हमेशा इंतजार करता था कि कोई सदस्य अच्छा बोलकर हमें अच्छी खबर दे दे! उन दिनों संसद के दोनो सदनों में एक से बढ़कर एक प्रभावशाली वक्ता हुआ करते थे. सिर्फ शब्द-बाज और लफ्फाज ही नहीं, वे ठोस तथ्यों के साथ बेहद सारगर्भित भाषण देने वाले नेता थे! उनके संबोधनों का उस वक़्त की सरकारों पर असर भी पड़ता था(अब तो सरकारें हर आवाज़ को नज़रंदाज़ करने की अभ्यस्त हो चुकी हैं). ऐसे में अच्छे भाषण सिर्फ जनता को शिक्षित, सूचित और सजग कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वह सचमुच जनता की अपनी जुबान में हों! उनके दुख दर्द पर केंद्रित हों!
याद रखें, मैं भारत, खासकर हिंदी भाषी सूबों में अंग्रेजी के पठन-पाठन और प्रचार-प्रसार का आज उतना ही बड़ा पैरोकार हूं, जितना हमारे लोहियावादी-भाई विरोधी हुआ करते थे! लेकिन यह कहना नहीं भूल सकता कि अंग्रेजी में दिये भाषण आज के दौर में सिर्फ अंग्रेजी में सुशिक्षित मध्यवर्ग या उच्च वर्ग के लोगों या फिर प्रशासनिक तंत्र को ही प्रभावित कर पाते हैं. लेकिन हमारा प्रशासनिक तंत्र आज किसी विरोधी नेता या बुद्धिजीवी की आलोचनात्मक आवाज से प्रभावित होने वाला नहीं! यानी ऐसे प्रभावोत्पादक भाषणों का दायरा बहुत सीमित होता है: अंग्रेजी में सुशिक्षित कुलीन और दक्षिण के कुलीन वर्ग के साथ आम मध्यवर्गीय लोगों का भी एक हिस्सा इस दायरे में आता है.
अगर अपने राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो ये बात साफ है कि दक्षिण का बड़ा हिस्सा पहले से ही हिंदुत्व की मौजूदा सत्ता-राजनीति से ज्यादा प्रभावित नहीं! जो इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं, वो हैं हिंदी-भाषी प्रदेशों के सवर्ण और शूद्रों(ओबीसी आदि) के बड़े हिस्से! इनका बहुत बड़ा हिस्सा अंग्रेजी नही जानता-समझता! हिंदी चैनलों के टीवीपुरम् और प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों का यही समाज सबसे बडा ‘दीवाना’ है! इस विशाल आबादी को अंग्रेजी भाषण, भद्रलोक या कथित ‘लिबरल्स’ के लटके-झटके से नहीं; सहज संवाद, समावेशी सोच, ईमानदार विचार और मजबूत सांगठन के बल पर ही बदला जा सकता है. उसे सही सोच और समझ से लैस करने का यही तरीका हो सकता है!
इस विशाल आबादी के लिए Mahua Moitra का भाषण गर्मी की किसी उदास शाम की झमाझम बारिश की तरह कुछ देर के लिए सुहाना और सुरीला लग सकता है पर इससे उस विशाल आबादी के मानस पर कोई असर नहीं पडेगा! बस, आप-हम Mahua Moitra के लिए ताली बजायें और Mahua Moitra भी कुछ महीने बाद होने वाले अपने अगले भाषण के मौके का इंतजार करें! इस तरह हम भारत के लोग खुशफहमी पालते रहें और लोकतंत्र को दम तोड़ते देखते रहें!
उर्मिलेश
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