24 अक्टूबर को इसी इलाके के दूसरे ब्लॉक से वाल्मिकी समुदाय के कुछ युवक ब्लॉक नंबर 20 आ गए. वे अपने साथ कुछ आपत्तिजनक सामान लेकर आए थे और कह रहे थे कि इसे मस्जिद में डाल देंगे. स्थानीय नागरिक खुर्शीद, जिन्होंने खुद मस्जिद से उपद्रव मचा रहे मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कराया था, ने इस पर कहा कि आप लोग ग़लत कर रहे हैं. दीवाली का समय है, हम सब शांति चाहते हैं, आप ऐसा न करें. अगर आप इस तरह की हरकत करेंगे, तो फिर हम भी शांति से नहीं बैठेंगे. इस तरह फिर एक बार मामला गर्म हो गया. इस दौरान पुलिस का रोल हमेशा की तरह संदिग्ध बना रहा. पुलिस जब आई, तो उसने स़िर्फ उसी गली का घेराव किया, जहां मुस्लिम आबादी है. हिंदू इलाके में पुलिस ने घेराबंदी नहीं की, जबकि पत्थरबाजी की ज़्यादातर वहीं से हो रही थी.
देश के किसी सुदूर हिस्से में दंगा हो जाए और पुलिस उसे संभाल न पाए, तो थोड़ी देर के लिए बात समझ में आती है, लेकिन अगर मामला देश की राजधानी दिल्ली का हो, तो यह अखरने वाली बात है. दीवाली की रात से लेकर अगले तीन-चार दिनों तक दिल्ली का एक इलाका हिंसा की चपेट में रहे और स्थानीय पुलिस उसे संभाल न पाए और दूसरे दिन रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती करनी पड़ जाए, तो क्या समझा जाना चाहिए? पुलिस की निष्क्रियता या उसकी अक्षमता? बहरहाल, कारण चाहे जो हो, लेकिन पूर्वी दिल्ली का त्रिलोक पुरी इलाका तीन दिनों तक हिंसा और नफ़रत की आग में जलता रहा. वजह स़िर्फ इतनी कि कुछ दोस्तों के बीच बहस हुई. लेकिन, सवाल यह है कि उस बहस को आख़िर दंगा किसने बना दिया?
23 अक्टूबर, 2014. सारा देश दीवाली मना रहा था, लेकिन देश की राजधानी दिल्ली के एक इलाके में माहौल कुछ अलग था. पूर्वी दिल्ली का त्रिलोक पुरी एक अपेक्षाकृत पिछड़ा हुआ इलाका है. निम्न-मध्य आय वर्ग के हिंदू, मुसलमान एवं सिख समुदाय के लोग इस इलाके में साथ-साथ रहते हैं. यहां के युवा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, साथ-साथ रहते हैं, खाते हैं, पीते हैं. दीवाली के दिन भी यहां के कुछ युवा, दोनों समुदाय के, शराब पीकर ब्लॉक नंबर 20 में एकत्र थे. वे आपस में बातचीत कर रहे थे. अचानक आपसी बातचीत बहस में बदल गई. ध्यान देने की बात यह है कि उनके बीच ऐसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं, लेकिन 23 अक्टूबर को यह बहस अपनी सीमा लांघ गई और हाथापाई की नौबत आ गई. मामला इतने से भी शांत नहीं हुआ. अचानक पथराव शुरू हो गया. पहले एक पक्ष की ओर से पथराव हुआ और फिर दूसरे पक्ष ने भी पथराव शुरू कर दिया. दरअसल, इस पूरी घटना के बीच एक और घटना साथ-साथ चल रही थी. ब्लॉक नंबर 20 में ही क़रीब एक महीने से जागरण चल रहा था. यह जागरण ब्लॉक नंबर 20 स्थित मस्जिद के सामने चल रहा था. उधर उन युवाओं के बीच शुरू हुई झड़प जैसे ही हिंसक हुई, जागरण में शामिल लोगों ने शोर मचा दिया कि कुछ लोग इधर पत्थरबाजी कर रहे हैं. उस समय रात के आठ बज रहे थे. नमाज का वक्त था. कुछ मुस्लिम युवक मस्जिद की छत पर चढ़ गए. मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना था कि हिंदू युवकों ने पत्थरबाजी शुरू की, जबकि हिंदुओं ने कहा कि पत्थर मस्जिद से चल रहे थे. इस सबके बीच पुलिस आई और मस्जिद से युवकों को उतार कर ले गई.
इसके बाद मामला बजाय शांत होने के और भी गर्म होता चला गया. 24 अक्टूबर को इसी इलाके के दूसरे ब्लॉक से वाल्मिकी समुदाय के कुछ युवक ब्लॉक नंबर 20 आ गए. वे अपने साथ कुछ आपत्तिजनक सामान लेकर आए थे और कह रहे थे कि इसे मस्जिद में डाल देंगे. स्थानीय नागरिक खुर्शीद, जिन्होंने खुद मस्जिद से उपद्रव मचा रहे मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कराया था, ने इस पर कहा कि आप लोग ग़लत कर रहे हैं. दीवाली का समय है, हम सब शांति चाहते हैं, आप ऐसा न करें. अगर आप इस तरह की हरकत करेंगे, तो फिर हम भी शांति से नहीं बैठेंगे. इस तरह फिर एक बार मामला गर्म हो गया. इस दौरान पुलिस का रोल हमेशा की तरह संदिग्ध बना रहा. पुलिस जब आई, तो उसने स़िर्फ उसी गली का घेराव किया, जहां मुस्लिम आबादी है. हिंदू इलाके में पुलिस ने घेराबंदी नहीं की, जबकि पत्थरबाजी की ज़्यादातर वहीं से हो रही थी.
24 अक्टूबर की रात को फिर एक बार झगड़ा हुआ. ब्लॉक नंबर 27 में ब्लॉक नंबर 15, 21, 34 के लोगों ने एक साथ हमला बोला. एक शोरूम जला दिया गया, जो एक मुस्लिम व्यापारी का था. कई दुकानों में आग लगा दी गई. 25 अक्टूबर की सुबह मस्जिद के मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को पुलिस उठाकर ले जा रही थी. इस दौरान ब्लॉक नंबर 28 के लोगों ने ब्लॉक नंबर 20 पर हमला कर दिया, जबकि वहां पुलिस मौजूद थी. फिर भी बाहर से पत्थरबाजी हो रही थी. गोलियां भी चलीं. यह सब दोनों पक्षों की ओर से हुआ. चौथी दुनिया से बात करते हुए स्थानीय लोग (ब्लॉक नंबर 20 की गली के) कहते हैं कि वे झगड़ा नहीं चाहते. बाहर से यानी दूसरे ब्लॉक से लोग आ रहे हैं, जो माहौल को बिगाड़ देते हैं.
दिल्ली : दोस्तों के बीच बहस को दंगा कौन बना देता है
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