उत्तराखंड के गठन के बाद कुंभ और अर्द्धकुंभ जैसे विराट जनपर्वों को लेकर एक जो महत्वपूर्ण परिवतर्र्न सामने आया, वे हैं स्थायी निर्माण कार्य. इससे पहले उक्त विराट मेले हरिद्वार में करोड़ों रुपये ख़र्च करने के सशक्त बहाने बनकर आते थे. रुपये तो अब भी पहले की तुलना में कई गुना अधिक ख़र्च हो रहे हैं, पर अब ज़ोर स्थायी निर्माण कार्यों पर अधिक है. यह परिवर्तन उत्तराखंड बनने के बाद आए पहले अर्द्धकुंभ से हुआ. तब पंडित नारायण दत्त तिवारी राज्य के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने ही इन महामेलों के निमित्त स्थायी निर्माण कार्यों की पहल की.
2004 के अर्द्धकुंभ की याद लोग स्थायी कुंभ मेला कार्यालय यानी केंद्रीय नियंत्रण भवन, सीसीआर और एक बड़े मेला अस्पताल के निर्माण वर्ष के रूप में करते हैं. पूर्व के मेलों में सारी व्यवस्थाएं प्राय: ठेकेदारों पर ही निर्भर रहा करती थीं और मेला बजट का बहुत बड़ा हिस्सा अस्थायी टेंट-शामियानों, छोलदारियों, टीन और बांस-बल्लियों पर ही ख़र्च हो जाता था. ठेकेदारों के चहेते अधिकारियों की पौ बारह रहती थी. रहती अब भी है, पर अब स्थायी निर्माणों के चलते थो़डा अंकुश लगा है. यह अलग बात है कि विभिन्न स्तरों पर रिश्वत और दलाली की लाली तब भी मेले को सुर्ख़रू करती थी और अब भी करती है.
2010 के महाकुंभ की चर्चा करें तो इस मेले के बहाने भी अनेक स्थायी कार्य किए जा रहे हैं. कुछ पूरे हो चुके हैं और कुछ शीघ्र ही पूरे होने वाले हैं. इस संदर्भ में चौथी दुनिया की ओर से जब कुंभ के प्रमुख मेलाधिकारी आनंद वर्द्धन से जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि महाकुंभ के लिए अब तक चार अरब चालीस करोड़ रुपये के विभिन्न विभागीय निर्माण प्रस्तावों को स्वीकृति दी जा चुकी है. तीन अरब पच्चीस करोड़ रुपये विभागों को दिए जा चुके हैं, जबकि 31 अक्टूबर 2010 तक दो अरब बीस करोड़ रुपये ख़र्च कर दिए गए हैं.
मेलाधिकारी ने मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा 8 नवंबर को दिए गए वक्तव्य को दोहराते हुए 1998, 2004 एवं 2010 के महाकुंभों की तुलना प्रस्तुत की. उन्होंने बताया कि 1998 के कुंभ के लिए 31 अक्टूबर 1997 तक मात्र 55 करोड़ रुपये की धनराशि अवमुक्त की गई थी, जबकि काम केवल 34 करोड़ रुपये के ही हो पाए थे. इसी तरह 2004 में इसी अवधि तक एक अरब 18 करोड़ रुपये स्वीकृत करके उनमें से 81 करोड़ रुपये ख़र्च कर दिए गए थे.
यहां मेला रिकॉडर्स के इन आंकड़ों को देखना भी इस तुलना के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट करता है कि 1998 में कुल कुंभ मेला बजट निन्यानबे करोड़, सत्ताइस लाख 20 हज़ार रुपये और 2004 में अर्द्धकुंभ मेला बजट एक अरब, साठ करोड़ चौहत्तर लाख पचास हज़ार रुपये था. इस लिहाज़ से तुलना करके तो किसी बहुत बड़ी उपलब्धि का श्रेय मेलाधिकारी आनंद वर्द्धन नहीं ले सकते हैं, पर ज़्यादा रुपयों से ज़्यादा काम कराने का श्रेय अलबत्ता उनके सिर जाता है. इस बार के कार्यों की विशेषता यह है कि अधिकांश कार्य 2004 के कार्यों की तरह नेत्राकर्षक, आई-कैचिंग और एकदम आंखों में आने वाले न होकर यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं. इसलिए इस बार के मेला कार्यों का संदेश अधिक असरकारी नहीं हो पा रहा है.
मेलाधिकारी के अनुसार, इस बार के महाकुंभ के स्थायी कार्यों का असर भविष्य के कांव़ड मेलों, सोमवती अमावस्या और बैसाखी जैसे बड़े स्नान पर्वों पर दिखाई पड़ेगा, क्योंकि मेलों के यातायात की सुविधा के लिए नए मार्गों और नए पुलों पर बड़ी राशि ख़र्च की जा रही है. पहला बड़ा मार्ग दिल्ली से हरिद्वार आने वाले यातायात के लिए लक्सर पुरकाज़ी के बीच तैयार हो रहा है. इस मार्ग को तैयार करने के दावे 1998 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी किए थे. वह पत्रकारों को भी इस अधबने मार्ग पर ले गए थे. पिछले बारह वर्षों से यह मार्ग अधबना पड़ा था. लेकिन अब इसे तैयार किया जा रहा है.
इस मार्ग पर पड़ने वाली एक रेलवे क्रॉसिंग पर मेला बजट से ओवर ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है. इस कार्य में छब्बीस करोड़ सत्रह लाख रुपये ख़र्च होंगे. आनंद वर्द्धन ने बताया कि दूसरा बड़ा कार्य बारह करोड़ ग्यारह लाख रुपये की लागत से धनौरी में एक स्थायी पुल का निर्माण है. इससे भगवानपुर, इमलीखेड़ा, धनौरी और सिडकुल को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. पंजाब और हरियाणा से आने वाले लोगों को इससे लाभ होगा. तीसरा बड़ा काम हरिद्वार के बंद पड़े हिल बाईपास मार्ग को सुधार कर चालू करने का है. इसे मोतीचूर रेलवे स्टेशन के पीछे से ले जाकर दूधाधारी तिराहे पर हरिद्वार-देहरादून राजमार्ग से मिलाया जाना है. बरसों से बंद पड़े इस मौजूदा पहाड़ी मार्ग को करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये की लागत से सुधार तो दिया गया है, पर मेलाधिकारी का कहना है कि विस्तारित मार्ग का इस्तेमाल शायद ही मेले में हो सके. खड़खड़ी से मोतीचूर के जंगल मार्ग के लिए वन विभाग की औपचारिकताएं पूरी होकर सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति तो मिल चुकी है, पर अब भी कुछ तकनीकी कमियों के चलते यह विस्तारित मार्ग मेले तक न तो बन पाएगा और न ही इसका कोई उपयोग किया जा सकेगा. मज़े की बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के चलते मौजूदा हिल बाईपास मार्ग का उपयोग भी केवल अर्द्धकुंभ, कुंभ और सोमवती अमावस्या जैसे चंद मेलों के दिनों में ही सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच किया जा सकेगा. इस मार्ग के सुधार और निर्माण कार्य हेतु करीब 22 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं.
कुंभ कार्यों के अंतर्गत स्नानार्थियों की सुविधा के लिए पूरे मेला क्षेत्र में क़रीब 5 किलोमीटर लंबे स्थायी स्नानघाट 74 करोड़ 81 लाख रुपयों की लागत से बनाए गए हैं. इनके अलावा मायापुर डामकोठी और गुरुकुल सिंह़द्वार के पुराने ब्रिटिशकालीन पुलों के पास दो नए पुलों का निर्माण, पंतद्वीप पार्किंग के लिए मुख्य राजमार्ग के नीचे और सर्वानंद घाट के निकट एक-एक अंडरपास, शंकराचार्य चौराहे और आरटीओ तिराहे पर एक-एक फुटओवर सेतु, मेला अस्पताल में आवासीय भवनों का निर्माण, सुभाषघाट पर कोटा स्टोन का फर्श, हरिद्वार बस अड्डे का नवीनीकरण तथा हरिलोक कालोनी से ट्रांसपोर्ट नगर तक सराय माइनर के ऊपर से सड़क निर्माण आदि कार्य भी स्थायी प्रकृति के हो रहे हैं.
इन सभी स्थायी बड़े-छोटे कामों पर क़रीब 153 करोड़, 19 लाख 38 हज़ार रुपये व्यय हो रहे हैं. इसके अलावा दक्षद्वीप से नजीबाबाद को जोड़ने वाले तीन अस्थायी सेतुओं, कांगड़ाघाट को पंतद्वीप से जोड़ने वाले दो सेतुओं, हरिद्वार डैम एस्केप चैनल और अविच्छिन्न गंगा धारा पर दो अस्थायी सेतुओं पर नौ करोड़ दस लाख इक्यानबे हज़ार रुपये ख़र्च किए जा रहे हैं. मेलाधिकारी की मानें तो 2010 के महाकुंभ में नए कामों पर कुल 162 करोड़, 60 लाख 20 हज़ार रुपये ख़र्च किए जा रहे हैं. बिंदुवार देखें तो कुंभ के कामों में 19 किलोमीटर नई सड़कों के निर्माण के अलावा मेला क्षेत्र की 37 किलोमीटर मुख्य और शहर के भीतर की 16 किलोमीटर सड़कों का सुधार एवं पुनरुद्धार, छह नए पुलों एवं एक नए ओवरब्रिज का निर्माण, 33/11 केवीए के तीन नए विद्युत उपगृहों के निर्माण के अलावा चार मौजूदा विद्युत उपगृहों की क्षमता में वृद्धि, 11/0.4 केवीए के 31 नए ट्रांसफॉर्मरों की स्थापना, 11 केवीए की 30.69 किलोमीटर लाइन के अलावा 4 किलोमीटर एलटी लाइन का निर्माण तथा शहर के मुख्य मार्गों पर नई पथ प्रकाश व्यवस्था आदि प्रमुख हैं.
कुंभ यात्रियों की सुविधा के लिए की जा रही पेयजल व्यवस्था के अंतर्गत बारह उच्च जलाशयों, छह नए अंत:स्रोत कूपों एवं छह नलकूपों की स्थापना के अलावा 40 किलोमीटर पाइप लाइन बिछाई गई है. गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा शहर में 33 किलोमीटर सीवर लाइन बिछाने के अलावा 2 एसटीपी का निर्माण और 8 सीवर सेक्शन एवं 2 सीवर क्लीनिंग मशीनों का क्रय किया जाना भी तय है.
मेलाधिकारी ने बताया कि गंगा के मध्य स्थित टापुओं में इस बार पहले की तुलना में अधिक भूमि साधु-संतों, महामंडलेश्वरों के शिविरों और वाहन पार्किंग के लिए समतल व सा़फ की जा रही है. भूमि आवंटन का कार्य शुरू हो चुका है और काम तेज़ी से पूरे किए जा रहे हैं. आला अधिकारी आश्वस्त हैं कि 2010 का महाकुंभ मेला शानदार होगा और सभी तीर्थयात्री सुविधापूर्वक स्नान करके खुशी-खुशी अपने घर लौटेंगे.