day night testपरिवर्तन प्रकृति का नियम है. यदि कोई परिस्थितियों के अनुकूल ढ़लने में असमर्थ होता है तो उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है. टेस्ट क्रिकेट के सामने अस्तित्व का संकट लंबे समय से मुंह बाये खड़ा है. टेस्ट क्रिकेट के वजूद को बचाए रखने के  कई तरह की योजनायें बनाई गईं, लेकिन उन योजनाओं का कोई असर होता दिखाई दिया. टी-20 क्रिकेट के पदार्पण के बाद टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता में अचानक से गिरावट दर्ज की गई. हालांकि फटाफट क्रिकेट का असर टेस्ट क्रिकेट में सकारात्मक असर भी हुआ. टेस्ट क्रिकेट में भी तेजी आई और अधिकांश टेस्ट मैचों के परिणाम निकलने लगे. टेस्ट मैचों में की नीरसता के स्तर में भी कमी आई. बावजूद इसके मैदान में दर्शकों की संख्या में इजाफा नहीं हो सका. लोगों के पास टेस्ट मैच देखने के लिए पांच दिन का समय नहीं है. ऐसे में टेस्ट क्रिकेट में लोगों की रुचि वापस जगाने के लिए डे-नाइट टेस्ट खेले जाने की चर्चा पिछले सात सालों से हो रही है. इस साल 27 नवंबर से 1 दिसंबर के बीच ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच पहला टेस्ट मैच खेला जाएगा.

138 साल पुराने टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहली बार टेस्ट क्रिकेट दूधिया रोशनी में खेला जाएगा. 15 मार्च, 1877 को इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के  बीच पहला टेस्ट मैच, ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में खेला गया था. अब तक क्रिकेट की दुनिया में जितने बड़े बदलाव हुए हैं उन बदलावों की शुरूआत ऑस्ट्रेलिया से ही हुई है. पहली बार दूधिया रोशनी औैर रंगीन कपड़ों में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट ऑस्ट्रेेलिया में खेली गई, पहली बार कोई कोई विद्रोही क्रिकेट लीग (कैरी पार्कर) ऑस्ट्रेलिया में खेली गई.  पहली बार इंडोर स्टेडियम में एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच ऑस्ट्रेलिया में खेला गया. क्रिकेट की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाला पहला टी-20 अतंरराष्ट्रीय मैच भी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के  बीच ऑस्ट्रेलिया में खेला गया. अब इस कड़ी में नया अध्याय डे-नाइट टेस्ट मैच के रूप में जुड़ने जा रहा है. इस साल नवंबर में न्यूजीलैंड के ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान पहला ऐतिहासिक डे-नाइट मैच 27 नवंबर से खेला जाएगा. तीन टेस्ट मैचों की सीरीज का यह तीसरा मैच होगा. सफेद जर्सी, दूधिया रोशनी और गुलाबी कोकोबुरा गेंद के साथ दोनों देशों के खिलाड़ी दो-दो हाथ करते नज़र आयेंगे.

क्रिकेट में इस बड़े बदलाव को लेकर हर कोई उत्सुक है. इस ऐतिहासिक टेस्ट मैच के बाद टेस्ट क्रिकेट की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी. टेस्ट क्रिकेट के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ज्यादातर टेस्ट मैच तब खेले जाते हैं जब लोग कार्यालयों में और बच्चे स्कूलों में व्यस्त होते हैं. डे-नाइट टेस्ट होने से लोग कुछ घंटे के  खेल का लुत्फ उठा सकते हैं. इसके साथ ही उन्हें स्टेडियम में जाकर मैच देखना का मौका भी मिल सकता है. 1877 से शुरू हुए टेस्ट क्रिकेट में  में कई बदलाव हुए. कई नियमों को बदला गया और नए नियम जोड़े गए.  डे नाइट टेस्ट खेले जाने की घोषणा के बाद क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के मुख्य कार्यकारी जेम्स सदरलैंड ने कहा कि डे-नाइट टेस्ट में प्रशंसकों को तरजीह मिलेगी क्योंकि अधिक दर्शक मैदान पर आ पाएंगे और ज्यादा से ज्यादा लोग टेलीविजन पर भी मैच देख पाएंगे. संभावना है कि पहला डे-नाइट टेस्ट एडिलेड में दोपहर ढाई बजे शुरू होगा और रात साढ़े नौ बजे तक चलेगा. पारंपरिक रुप से टेस्ट मैचों में होने वाले ब्रेक से हटकर 40 मिनट का लंबा ब्रेक होगा, जिसे दिन के  टेस्ट में लंच के  रूप में जाना जाता है, यह पहले सत्र के बजाय दूसरे और तीसरे सत्र के  बीच में हो सकता है. इसे डिनर ब्रेक कहा जाएगा. इसी तरह चायकाल पहले सत्र के बाद किया जा सकता है.

पहली बार टेस्ट क्रिकेट में लाल रंग से इतर गुलाबी गेंद का इस्तेमाल किया जाएगा. खिलाड़ियों के साथ-साथ यह टेस्ट मैच दर्शकों के  लिए भी बेहद रोमांचक रहेगा.  गुलाबी गेंद के इस्तेमाल को लेकर भी अलग अलग प्रति क्रियाएं सामने आई हैं. जहां ऑस्ट्रलिया पहले डे-नाइट टेस्ट के  लिए गुलाबी गेंद के इस्तेमाल का पक्षधर है वहीं न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड इससे इत्तेफाक नहीं रखता है. न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड टेस्ट में दिन के  वक्त लाल गेंद का ही इस्तेमाल करने के पक्ष में है. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर भी दिन के वक्त लाल गेंद प्रयोग में लाने के  पक्ष में हैं. डे-नाइट टेस्ट मैचों को अनुमति देते वक्त अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद(आईसीसी) ने कहा था कि भागीदार देश ड-नाइट टेस्ट मैच खेलने पर राजी हो सकते हैं. घरेलू और मेहमान टीम के  बोर्ड खेल के समय तथा गेंद के ब्रांड, टाइप और रंग पर फैसला करेंगे.

गुलाबी गेंद से टेस्ट मैच खेले जाने की स्थिति में 80 ओवर के बाद गेंद बदले जाने के नियम में भी बदलाव करना पड़ सकता है. ऑस्ट्रेलिया के युवा गेंदबाज मिचेल स्टार्क का कहना है गुलाबी गेंद को देख पाना मुश्किल है, दर्शकों को भी यह गेंद नहीं दिखाई देगी. गुलाबी गेंद लाल गेंद से बिलकुल अलग व्यवहार करती है. यह लाल गेंद की तुलना में बहुत जल्दी मुलायम हो जाती ह. यह लाल गेंद जितनी स्विंग भी नहीं होती है. इसके अलावा रात में ड्यू फैक्टर(ओस) की भूमिका भी अहम हो जाएगी. ड्यू फैक्टर स्पिन गेंदबाजों के लिए परेशानी का सबब बनेगा. उन्हें गेंद को ग्रिप करने में परेशानी होगी. इसके अलावा गेंद के ओस में भीगने की वजह से गेंद के रंग और गेंद के आकार में भी बदलाव आएगा. इसका सीधा असर खेल पर होगा. इससे बोर्ड, खिलाड़ी, कप्तान और मैच ऑफीशियल्स कैसे पार पाते हैं यह देखना बेहद अहम होगा. क्रिकेट के नियमों के संरक्षक संस्था एमसीसी के प्रमुख स्टीफनसन का कहना है कि यह घोषणा टेस्ट क्रिकेट के लिए बहुत सकारात्मक कदम है और एमसीसी में इस खबर से खुश है. विश्व के इस सबसे सक्रिय क्रिकेट क्लब ने गुलाबी रंग की गेंद का उपयोग करके डे-नाइट मैचों की संभावना पर काफी शोध किया है अब डे-नाइट टेस्ट मैच होते हुए देखना रोमांचक होगा. कूकाबुरा के प्रबंध निदेशक का कहना है कि कूकाबुरा की गुलाबी गेंद पिछले पांच वर्षों में एमसीसी, ईसीबी, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने व्यापक परीक्षण किया है और यह गेंद अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच के लिए तैयार है.

एक ही दिन में बल्लेबाजों और गेंदबाजों को दो तरह की परिस्थितियों के लिए तैयार रहना होगा. एक दिन में और दूसरी रात में. ऐसे में खिलाड़ियों के लिए टेस्ट मैच ज्यादा चुनौती पूर्ण हो जायेंगे. इससे एक फायदा तो दिखाई दे रहा है कि खिलाड़ियों के खेल के स्तर में सुधार आएगा. इससे टेस्ट मैच की सामान्य गति पर असर पड़ेगा. यदि पिच पर ओस होगी तो गेंद स्विंग करेगी, लेकिन गेंद को ग्रिप करने में परेशानी आएगी. गुलाबी गेंद बहुत जल्दी मुलायम हो जाएगी ऐसे में उसका 80 ओवर तक चल पाना मुश्किल नज़र आ रहा है. जिस तरह एक दिवसीय मैचों में ओस की वजह से सफेद गेंद को बदलना पड़ता था उसके बाद ही दोनों छोर से नई गेदों का नियम आया ऐसा ही कुछ डे-नाइट टेस्ट मैचों में भी करने की आवश्यकता भविष्य में पड़ सकती है. हो सकता है कि आगे चलकर दोनों छोर से गुलाबी गेंदों का इस्तेमाल हो और 80 ओवर बाद दोनों छोर की गेंदों को नई गेंद से बदल दिया जाए. ऐसे में रिवर्स स्विंग करा पाना गेंदबाजों के लिए टेस्ट मैचों में भी मुश्किल हो जाएगा. टेस्ट मैच पर सूरज की रोशनी का अच्छाखासा असर होता है, मैच के दिन बढ़ने के साथ पिच में दरारें आती जाती हैं. मैच के चौथे और पांचवें दिन ये दरारें गेंदबाजों के लिए मददगार साबित होती है. लेकिन डे-नाइट टेस्ट मैच में ऐसा नहीं हो पाएगा, क्योंकि हर दिन मैच के दूसरे हिस्से में धूप नहीं होगी. इस वजह से किसी एक पक्ष को फायदा मिल सकता है.

टेस्ट मैच में यह विवादास्पद प्रयोग मुख्य रूप से दर्शकों को मैदान पर वापस खींचने के उद्देश्य से किया जा रहा है. इससे आयोजकों को पैसा भी मिलेगा. शाम और रात को कामकाजी लोगों और छात्रों को मैच देखना का मौका मिलेगा. लेकिन इस तरह के सवाल भी उठ रहे हैं, कि क्या क्रिकेट प्रशासन का काम केवल पैसा कमाना रह गया है, या फिर उनके कंधों पर इससे बड़ी जिम्मेदारी क्रिकेट के हर पहलू को बचाए रखने की है. क्या वह अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन अच्छी तरह से कर रहा है. भले ही डे-नाइट टेस्ट को लेकर मिले जुले विचार सामने आ रहे हैं लेकिन निश्चित तौर पर इससे टेस्ट मैचों के प्रति लोगों में रुचि एक बार फिर जगेगी और क्रिकेट के क्षेत्र में सफलता का एक और आयाम जुड़ जायेगा.

क्या कहना है पूर्व खिलाड़ियों का

ऑस्ट्रेलियाई कोच डैरेन लेहमैन सहित कई दिग्गजों ने डे-नाइट टेस्ट की वकालत की थी. पिछले सात सालों से इसके  लिए प्रयास किए जा रहे थे. अब जाकर इसे अंतिम रूप दिया जा सका है. न्यूजीलैंड के पूर्व दिग्गज जॉन राइट ने कुछ सालों पहले इस फैसले पर नाखुशी जाहिर की थी और कहा था कि टेस्ट क्रिकेट के पारंपरिक प्रारूप के  शौकीन हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि दिन-रात के  टेस्ट टेलीविजन के  फायदे के लिए हैं. दिन-रात के  टेस्ट भले ही भीड़ जुटाने के लिए हों लेकिन मुझे यह पसंद नहीं है. पूूर्व भारतीय ओपनर आंशुमन गयकवाड़ का कहना है कि यह कुछ अलग है नया है. हमें अभी यह देखना है कि यह कॉन्सेप्ट कैसा करता है. लेकिन ओस इस पूरे परिपेक्ष्य में मुख्य भूमिका होगी. हमें अभी तक यह नहीं मालूम है कि ओस का गुलाबी गेंद पर क्या और कैसा प्रभाव पड़ेगा. इसके अलावा गेंदबाजी पर ओस का क्या प्रभाव पड़ेगा. यदि ओस की वजह से पिच पर नमी होगी तो इसका फायदा तेज गेंदबाजों को होगा और स्पिनरों को गेंद को ग्रिप करने में परेशानी पेश आएगी. वहीं पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज व्यंकटेश प्रसाद का मानना है कि डे-नाइट टेस्ट का आइडिया मुझे पसंद नहीं आया. मेरा टेस्ट क्रिकेट को लेकर रूढ़ीवादी नज़रिया है. टेस्ट क्रिकेट की अपनी एक परंपरा है और हमें इससे दूर नहीं जाना चाहिए. न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान रिचर्ड हैडली ने ड-नाइट टेस्ट का समर्थन किया है. रिचर्ड ने कहा कि मैं परंपरावादी हूं लेकिन डे-नाइट के प्रयोग को मेरा समर्थन है. जब पहली बार मेरे सामने यह विचार आया था, तब मैं इसके प्रति आशंकित था. यह न्यूजीलैंड के पास इतिहास का हिस्सा बनने का मौका है. मैं दिल से ये भी कहना चाहता हूं कि टेस्ट मैच दिन में ही मैच खेला जाना चाहिए. सभी का मानना है कि खेल विकसित हुआ है. टी-20 और विश्वकप के बाद सफलता के बाद खेल आगे बढ़ रहा है. इसलिए हमें इसका समर्थन करना चाहिए.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here