किसी के दर्द को समझना हो

तो पहले माँ का दर्द समझो

आज मोहल्ले में कई बूढी माओं को

अकेले दर्द सहते देखा हैं

 

किसी के दर्द को समझना हो

तो पहले उस बेटी का दर्द समझो

इस कोरोना में कई अनाथ हुए बेटियों को

अकेले दर्द सहते देखा है

 

किसी के दर्द को समझना हो

तो पहले बहू का दर्द समझो

जिसने अपने ससुर और पति को खोया हो

अकेले हालात से लड़ते देखा है

 

किसी के दर्द को समझना हो

तो पहले उस बेटे का दर्द समझो

जो शहर नौकरी के लिए घर बोल कर आया हो

भूखे पेट नतीजों का इंतजार करते देखा है

 

किसी के दर्द को समझना हो

तो पहले उस पिता का दर्द समझो

जिसने अपना खेत गिरवी रख दिया हो

बैंकों के तानों से खुदकुशी करते देखा है

 

किसी के दर्द को समझना हो

तो पहले उस बेगुनाह को समझो

जिसको सच कहने पर बंद कर दिया हो

बिना जमानत कारावास में सड़ते देखा है

 

किसी के दर्द को समझना हो

तो उस दुल्हन के दर्द को समझो

जिसके दूल्हे को घोड़े से उतार दिया हो

बुरी तरह सरेआम सवर्णों से पिटते देखा है

 

किसी के दर्द को समझना हो

तो पहले महिला के दर्द को समझो

जिसको निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया हो

उसके माँ बाप को हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते देखा है

 

किसी के पुराने दर्द को समझना हो

तो पहले आज के सभी दर्द को समझो

जिस पुराने दर्द को बयां कर देश भर में बेचा गया हो

उसके मुनाफे से राजनीतिक रोटी पकते देखा है

 

पुराने दर्दों को ही समझाना हो

तो पहले आजादी के जंग को समझो

जब गुदों में डंडे, पेड़ों पर जिंदा फांसी चढ़ा दिया हो

कुछ लोगों को वतन से गद्दारी करते देखा है

 

दर्द नए हो या बहुत ही पुराने हो

उसे जान कर उसके कारण को समझो

जब सभी धर्मों ने अधर्म से दूर रहना सिखाया हो

धर्म के नाम पर अधर्म फैलाते लोगों को देखा है

 

जहाँ दर्ज, जुल्म या अत्याचार हो

इनके दुष्प्रभाव व दुष्परिणाम को समझो

जब समय के मरहम से ज़ख्म फिर प्रगति बन गया हो

स्वार्थ के लिए जख्मों को कुरेदते बेचते देखा है

 

क्यूँ गुजरे कल और भावी कल को

दुःख और आक्रोश से भरना चाहते हो

जब शांति सौहार्द अहिंसा का गांधी ने राह दिखाया हो

कुछ लोगों की चुप्पी पर, झूट को पनपते देखा है

 

क्यूँ झूट को, असत्य को अफवाह को

बिना सोचे और बिना समझे सही मान लेते हो

जब आपकी आवाज ने दुनियां की हुकूमत को हराया है

याद करो,…

इसी चुप्पी,अहिंसा से हमने तख्त-ओ-ताज पलटते देखा है

———‘

जी वेंकटेश (18 March 2022)

लेखक, 1973 में भोपाल में जन्मे,  और 1997 से, भारत में, एक वास्तुविद एवं नगर निवेशक हैं। आप लेखक होने के साथ साथ एक शिक्षाविद, समाज सेवी, कलाकार एवं दार्शनिक भी हैं।

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