आगामी 23 मार्च को बिहार विधान परिषद का चुनाव होना है. चुनाव की अधिसूचना जारी की जा चुकी है. परिणाम 26 मार्च को आने हैं. पटना, दरभंगा, कोशी, सारण एवं तिरहुत क्षेत्र के स्नातक और शिक्षक निर्वाचन के कोटे से आठ लोग फिर इस बार विधान परिषद के लिए चुने जाने हैं. पटना शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नवल किशोर यादव कर रहे हैं. 2008 में जब चुनाव हुआ था, तब वह राजद में थे. पिछले दिनों नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने की वजह से उन्हें राजद ने निष्कासित कर दिया था. हाल में वह भाजपा में शामिल हुए हैं. उन्होंने कहा, मैं बाबा रामदेव का शिष्य हूं और उन्हीं के आदेश के बाद भाजपा में शामिल हुआ हूं.
पिछले चुनाव के समय पटना शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या नौ हजार थी. कहा जा रहा है कि इस बार मतदाताओं की संख्या साढ़े चौदह हजार हो गई है. पिछली बार नवल ने जदयू के जनार्दन प्रसाद सिंह को हराकर विजय हासिल की थी. नवल कहते हैं कि उन्होंने अब तक 178 स्कूलों का कायापलट किया है. साथ ही हमेशा से नियोजित शिक्षकों की लड़ाई लड़ी है और आगे भी लड़ते रहेंगे. इस बार जदयू ने जनार्दन प्रसाद को टिकट न देकर अर्जुन प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है. अर्जुन प्रसाद जदयू सांसद आरसीपी के क़रीबी बताए जाते हैं. राजद ने अपने उम्मीदवार के रूप में राम विनेश्वर सिंह को उतारा है.
पटना स्नातक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व जदयू के नीरज कुमार कर रहे हैं. इस बार भी जदयू की तरफ़ से वही उम्मीदवार हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि इस बार उनकी चुनौती बढ़ी है. इस बार भाजपा समर्थित व्यंकटेश कुमार शर्मा उर्फ डब्लू, राजद समर्थित आज़ाद गांधी, रालोसपा के नागेश्वर सिंह स्वराज एवं माकपा समर्थित गोपाल शर्मा को भी अपने कामरेड वोटरों पर भरोसा है. पिछले चुनाव में यहां स्नातक मतदाताओं की संख्या 65 हजार थी. इस बार चुनाव आयोग ने सरकारी संस्थानों के कर्मियों से उनका ईपिक नंबर मांगा था. इसके बाद पांच हजार मतदाता और बढ़ गए. 2008 के चुनाव में एनडीए समर्थित उम्मीदवार के रूप में नीरज कुमार विजयी हुए थे और उन्हें 13 हजार वोट मिले थे. इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिस समय सूबे में एनडीए की लहर थी, उस दौरान भी पटना स्नातक क्षेत्र चुनाव में मात्र 22 हजार मत पड़े. जानकारों के अनुसार, तीनों जिले मिलाकर लगभग बीस लाख स्नातक हैं, वहीं पटना में 75 हजार, नालंदा में 21 हजार और नवादा में 15 हजार मतदाता हैं. लोग अब तक इसे खास चुनाव के नजरिये से देखते हैं.
कई स्नातकों से बातचीत से पता चला कि वे इस चुनाव को लेकर जागरूक नहीं हैं. पिछले चुनाव में जदयू के नीरज कुमार ने राजद के आजाद गांधी को हराया था. उस समय उन्हें भाजपा-जदयू दोनों का साथ मिला था. कहा जाता है कि उस समय उन्हें सांसद ललन सिंह एवं विधायक अनंत सिंह का भी भरपूर सहयोग मिला था, लेकिन इस बार स्थितियां भिन्न हैं. भाजपा अलग हो चुकी है. व्यंकटेश इस बार भाजपा समर्थित उम्मीदवार हैं. दिल्ली में व्यवसाय करने वाले व्यंकटेश ललन सिंह के क़रीबी बताए जाते हैं. साथ ही इस बार अनंत सिंह के क़रीबी विश्वजीत कुमार शर्मा भी पटना स्नातक क्षेत्र चुनाव में उम्मीदवार हैं. इस वजह से अनंत और ललन का साथ नीरज को नहीं मिलेगा.
वर्तमान स्थिति यह है कि देवेश जदयू से अलग हो चुके हैं और मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में हैं. वहीं पूर्व विधान पार्षद राम कुमार सिंह को भाजपा का समर्थन हासिल है. कहा जाता है कि नमो लहर की वजह से फिलहाल राम कुमार सिंह का पलड़ा भारी है. वैसे यहां से जदयू के समर्थन से भूषण झा, राजद के प्रणय कुमार और उमेश भी भाग्य आजमा रहे हैं. यहां के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अब तक भाजपा समर्थित नरेंद्र प्रसाद सिंह कर रहे हैं.
दरभंगा स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में भी उलटफेर हो सकता है. इस क्षेत्र में चार जिले दरभंगा, मधुबनी, बेगूसराय और समस्तीपुर आते हैं. फिलहाल डॉ. विनोद कुमार चौधरी दरभंगा स्नातक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इस बार भी वह जदयू समर्थित उम्मीदवार हैं, लेकिन उन्हें भाजपा का साथ नहीं मिलेगा. भाजपा से डॉ. ब्रह्मदेव सिंह यादव उम्मीदवार हैं. इसके अलावा डॉ. दिलीप चौधरी, ज्योतिकृष्ण लवली भी सशक्त उम्मीदवार माने जा रहे हैं. दरभंगा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से माकपा समर्थित वासुदेव सिंह तीन बार से लगातार निर्वाचित हो रहे थे. लगभग छह महीने पहले उनका निधन हो गया. इस बार यहां की स्थिति भिन्न दिख रही है. माकपा का समर्थन रामदेव राय को मिल रहा है. यहां से प्रबल दावेदारों में भाजपा समर्थित सुरेश राय, कांग्र्रेस समर्थित मदन मोहन झा और रामदेव राय के नाम आ रहे हैं. वैसे नियोजित शिक्षकों के नेता नवीन कुमार नवीन ने भी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर नामांकन करा लिया है.
सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के अंदर सारण, सीवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण एवं पश्चिमी चंपारण जिले आते हैं. फिलहाल इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व दो बार से केदार नाथ पांडेय कर रहे हैं. यहां से जदयू ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है. कहा जाता है कि केदार पांडेय को जदयू ने यहां से अप्रत्यक्ष समर्थन दिया है. पिछली बार उनका मुकाबला कांग्रेस समर्थित डॉ. चंद्रमा सिंह से हुआ था. इस बार चंद्रमा सिंह यहां से भाजपा समर्थित उम्मीदवार हैं. वैसे यह कयास लगाया जा रहा था कि चंद्रमा सिंह जदयू के उम्मीदवार हो सकते हैं. इनके अलावा यहां से शिक्षक संघ के राजा जी राजेश और विधानचंद्र भारती भी उम्मीदवार हैं. केदार पांडेय कहते हैं कि उनके क्षेत्र में तो कोई लड़ाई ही नहीं है. पिछली बार यहां मतदाताओं की संख्या 6700 थी और मात्र पांच हजार मत पड़े थे, लेकिन इस बार मतदाताओं की संख्या 11,400 के आसपास बताई जाती है. फिलहाल यहां से केदारनाथ पांडेय का पलड़ा भारी दिख रहा है.
कोशी सूबे का सबसे बड़ा स्नातक क्षेत्र है. कुल चौदह जिले इस क्षेत्र में आते हैं. फिलहाल यहां का प्रतिनिधित्व भाजपा समर्थित डॉ. वीरकेश्वर प्रसाद सिंह कर रहे हैं, लेकिन इस बार भाजपा ने डॉ. एन के यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है. यादव इससे पहले लोजपा में थे. राजद ने यहां से विष्णुदेव यादव को उतारा है, वहीं जदयू ने संजय सिंह चौहान को समर्थन दिया है. इसके अलावा राणा गौरी शंकर सिंह, राम संजीव कुमार, नरेश यादव, विश्वजीत सिंह एवं अमलेश कुमार भी मैदान में हैं. डॉ. यादव इससे पहले भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें जीत कभी नसीब नहीं हुई. तिरहुत स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में वैशाली, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर और शिवहर जिले आते हैं. फिलहाल यहां के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा समर्थित नरेंद्र प्रसाद सिंह और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से देवेश चंद्र ठाकुर प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
वर्तमान स्थिति यह है कि देवेश जदयू से अलग हो चुके हैं और मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में हैं. वहीं पूर्व विधान पार्षद राम कुमार सिंह को भाजपा का समर्थन हासिल है. कहा जाता है कि नमो लहर की वजह से फिलहाल राम कुमार सिंह का पलड़ा भारी है. वैसे यहां से जदयू के समर्थन से भूषण झा, राजद के प्रणय कुमार और उमेश भी भाग्य आजमा रहे हैं. यहां के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अब तक भाजपा समर्थित नरेंद्र प्रसाद सिंह कर रहे हैं. इस बार भी भाजपा ने उन्हें ही समर्थन दिया है, लेकिन नमो लहर के बावजूद उनकी स्थिति ठीक नहीं बताई जा रही है. पिछली बार उनका मुकाबला भाकपा समर्थित डॉ. संजय कुमार सिंह से हुआ था. इस बार भी मुकाबला उन्हीं से है. संजय की स्थिति इस बार थोड़ी मजबूत इसलिए है, क्योंकि उन्हें जदयू का भी समर्थन मिल गया है.
समाजशास्त्री डी एम दिवाकर कहते हैं कि राजनीतिक जागरूकता के साथ चीजें बदलती हैं. अब यह जागरूकता कॉलेजों में घटी है. पहले यही चुनाव महत्वपूर्ण हुआ करता था, लेकिन आज इसके मतदाता उदासीन रहते हैं. लोगों में निराशा है, सामान्य स्नातक खुद को इससे जोड़ ही नहीं पाते हैं.