sharabबिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी का मानना है कि शराबबंदी के नाम पर सरकार वास्तविक अपराधियोंे को पकड़ने के बजाय दलितों और गरीबों को तंग कर रही है. शराबबंदी की आड़ में दलितों व महादलितों के छह गांवों पर सामूहिक जुर्माना लगाकर सरकार ने ब्र्रिटिश काल की याद को ताजा कर दिया है. सुशील मोदी कहते हैं कि हम सभी शराबबंदी के पक्ष में हैं, लेकिन शराबबंदी के नाम पर पुुलिस को असीमित अधिकार देने, अंग्रेजों की तरह गांव पर सामूहिक जुर्माना लगाने, हत्या और बलात्कार से भी कठोर शराबबंदी कानून लागू करने की वजह से बिहार की जगहंसाई हो रही है. नीतीश कुमार अगर सच में शराबबंदी को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें जमीनी सच्चाई को ध्यान में रखते हुए कदम बढ़ाना चाहिए.

उनका कहना है कि आतंकवाद को लेकर नीतीश कुमार का ढीला रवैया हमें परेशान कर रहा है. पटना की सड़क पर पाकिस्तान समर्थक नारेबाजी और जाकिर नाइक के महिमामंडन ने फिर साबित किया है कि नीतीश सरकार न केवल आतंकवादियों के प्रति नरमी बरत रही है, बल्कि उनका दुस्साहस बढ़ा रही है. पटना के जिस जुलूस में जाकिर नाइक और आतंकवाद की फैक्ट्री पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगे, वह पुलिस की मौजूदगी में निकला था. पुलिस देशविरोधी नारेबाजी से तब तक इंकार करती रही, जबतक नारे लगाते लोगों का 14 सेकेंड का वीडियो वायरल नहीं हो गया. नीतीश कुमार को बताना चाहिए कि भड़काऊ भाषणों की वजह से जिस जाकिर नाइक को बांग्लादेश, ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा ने प्रतिबंधित कर दिया है, उसके समर्थन में पटना में जुलूस कैसे निकला? बिहार के लोग भूले नहीं हैं कि तीन साल पहले कैसे नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते दरभंगा, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर आतंकी मॉड्यूल के ठिकाने बन गए थे.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हर घर में नल का वादा किया है इसे वह कैसे पूरा करेंगे? इस पर सुशील मोदी कहते हैं, मुख्यमंत्री ने ही स्वीकार किया है कि तमाम प्रयासों के बावजूद अभी राज्य के मात्र 5 हजार बसावटों में ही पाइप से पानी पहुंचाया जा सका है. अगर जलापूर्ति की सारी योजनाएं पूरी कर ली जाएं तो भी 22 प्रतिशत से ज्यादा घरों में नल से पानी नहीं पहुंच पाएगा. ऐसे में मुख्यमंत्री बताएं कि उनकी सरकार अगले चार साल में सूबे के एक लाख से ज्यादा बसावटों में पाइप से जलापूर्ति कैसे कर पाएगी? नीतीश कुमार की सरकार पिछले चार साल में तय लक्ष्य का 80 हजार चापाकल नहीं लगा सकी. 2015-16 में अनुसंशित 55,228 चापाकलों में से मात्र 2,572 ही लगा पाई. दूसरी ओर दावा किया कि ग्रामीण जलापूर्ति के नाम पर शुरू की गई पाइप जलापूर्ति योजना, मिनी पाइप जलापूर्ति योजना तथा सौर चालित पम्प आदि योजनाओं में से 90 प्रतिशत या तो आधी-अधूरी हैं या अधिकांश बंद पड़ी हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री शहरी और ग्रामीण पेयजल निश्‍चय योजना में विधायकों की भूमिका को पूरी तरह से खत्म करने की निन्दा करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री चापाकल योजना में विधायकों की अनुशंसा पर ही चापाकल लगाए जाते थे. 11 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद अब नीतीश कुमार को लग रहा है कि गांवों में पाइप से जलापूर्ति के लिए जलमीनारों की कोई उपयोगिता नहीं है, जबकि जलापूर्ति योजना की 40 प्रतिशत राशि जलमीनारों के निर्माण पर ही खर्च हुई है. मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि जो जलमीनारें बन चुकी हैं, उनका क्या होगा?

दलितों के नाम पर हो रही राजनीति से दुखी  सुशील मोदी कहते हैं कि नीतीश कुमार को गुजरात की चिंता छोड़कर पहले बिहार के दलितों की चिंता करनी चाहिए. राजधानी पटना से सौ किमी की दूरी पर मुजफ्फरपुर के पारू में दो दलित युवकों के साथ मारपीट और उनके मुंह में पेशाब करने की शर्मनाक घटना घटी. महागठबंधन के नेता लालू प्रसाद यादव के 15 साल के राज में एक दो नहीं सैंकड़ों दलितों का सामूहिक नरसंहार हुआ, तो नीतीश कुमार के राज में सभी नरसंहारों के आरोपी साक्ष्य के अभाव में एक-एक कर हाईकोर्ट से बरी हो गए.

अरवल के लक्ष्मणपुर बाथे में 58 दलित, भोजपुर के बथानी टोला में 21 और औरंगाबाद के मियांपुर में 34 दलित मारे गए थे. इन सभी नरसंहारों के नामजद अभियुक्त जिन्हें निचली अदालत से सजा मिली थी, नीतीश कुमार के राज में साक्ष्य के अभाव में रिहा हो गए. बड़े भाई ने पिछड़ों व दलितों को आरक्षण से वंचित कर पंचायत चुनाव करा लिया था.

बड़े और छोटे भाई हमेशा दलितों को अपमानित करते रहे हैं. महादलित जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से अपमानित कर हटाने वाले नीतीश कुमार की सरकार में पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति से वंचित हजारों दलित छात्र बीच में पढ़ाई छोड़ने के लिए बाध्य हो रहे हैं. वहीं, सरकार द्वारा प्रोन्नति में आरक्षण के मामले को कोर्ट में मजबूती से नहीं लड़े जाने की वजह से हजारों दलित और आदिवासी प्रोन्नति से वंचित हैं. ऐसे में क्या इन बड़े और छोटे भाइयों को दलितों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने का कोई हक है? सुशील मोदी कहते हैं कि गुजरात में दलित उत्पीड़न की एक घटना पर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने जोर-जोर से छाती पीटना शुरू कर दिया ताकि बिहार के मुजफ्फरपुर में दलित युवकों की पिटाई, बुजुर्ग दलित दम्पती की हत्या, दरभंगा-किशनगंज में महिलाओं का उत्पीड़न और भभुआ में दलित छात्रा के साथ गैंगरेप के बाद उसकी नृशंस हत्या की लगातार हुई पांच घटनाओं की ओर देश-दुनिया का ध्यान ही न जाए. यह ऐसा ही कृत्य है जैसे घर के भीतर अपराध के समय टीवी की आवाज कुछ ज्यादा ही तेज कर दी जाती है. लालू प्रसाद जिस दिन दलित प्रेम दिखाने के लिए प्रधानमंत्री को चिट्ठी जारी कर रहे थे और उनके समर्थक पटना में पुतले फूंकने मेंं हाथ जला रहे थे, उसी दिन किशनगंज और दंरभगा से दलित औरतों को नंगा कर पीटने की खबरें आ रही थीं. क्या लालू प्रसाद कोई पत्र नीतीश कुमार को भी लिखेंगे? राहुल गांधी और केजरीवाल के बाद शरद यादव, वृंदा करात और डी राजा भी गुजरात के इन पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंच गए, जिनसे मिलकर आनंदीबेन पटेल पहले ही समुचित मुआवजा और दोषियों को सख्त सजा दिलाने का भरोसा दिला चुकी थीं. गुजरात में दलित घरों का राजनीतिक पर्यटन करने वाले ये नेता क्या मुजफ्फरपुर, दरभंगा और किशनगंज के पीड़ित-प्रताड़ित दलितों के घर नहीं जाएंगे? गुजरात में कथित दलित प्रताड़ना को लेकर हाय तौबा मचाने वाले मुख्यमंत्री बिहार में दलितों के उत्पीड़न पर चुप क्यों है? गुजरात में जहां 2015 में दलित उत्पीड़न की मात्र 1,052 घटनाएं घटीं वहीं बिहार में इसी अवधि में 7,874 घटनाएं दर्ज की गईं जो 2013 की 4,821 से करीब तीन हजार अधिक हैं. बिहार में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं मगर सरकार आरोपितों पर कार्रवाई करने की जगह मामलों की लीपापोती में जुटी है. कैमूर के भभुआ में एक दलित युवती की हत्या और यौन शोषण के मामले को पुलिस जांच से पहले ही आत्महत्या बता रही है. मुजफ्फरपुर के पारू में दलित युवकों को पेशाब पिलाने के आरोप को सरकार नकार रही है. पिछले तीन दिनों में नरकटियागंज में एक दलित युवती के साथ हथियार का भय दिखा कर अवैध संबंध बनाने और जमीन रजिस्ट्री नहीं करने पर अश्‍लील वीडियो वायरल करने की धमकी, जहानाबाद के मखदुमपुर में दलितों के साथ मारपीट और घर में आग लगाने तथा दरभंगा के कुशेश्‍वरस्थान में दलितों के उत्पीड़न के मामले प्रकाश में आए हैं. इन सभी मामलों में कारगर कार्रवाई करने की जगह सरकार मामले को रफा-दफा करने में लगी हुई है. क्या इससे मुख्यमंत्री का दलित विरोधी चेहरा उजागर नहीं हो रहा है?

सूबे में निवेश को लेकर मोदी कहते हैं कि बिहार में उद्योग के क्षेत्र में कोई बड़ा निवेश नहीं हो पाया है. सरकार की उदासीनता से रोजगार के सर्वाधिक संभावना वाले आईटी के प्रक्षेत्र में भी बिहार देश के अन्य राज्यों की तुलना में निचले पायदान पर खड़ा है. नतीजतन आईटी प्रक्षेत्र में सृजित होने वाले रोजगार के बड़े अवसरों से वंचित बिहार के युवाओं को बंगलुरु व अन्य शहरों में जाने के लिए विवश होना पड़ रहा है.

भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग कलस्टर के लिए राज्य सरकार ने 2014 में नालंदा के राजगीर में 250 एकड़ जमीन चिन्हित कर केंद्र सरकार को सूचित किया था, मगर आजतक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है. इसी तरह केंद्र सरकार द्वारा राजगीर में प्रस्तावित आईटी सिटी भी जमीन के अभाव में अधर में है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की स्थापना बक्सर और मुजफ्फरपुर में तथा सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया की भागलपुर और दरभंगा में करना था, जिसके लिए राज्य सरकार आज तक जमीन उपलब्ध नहीं करा सकी है. निलेट के लिए अन्तत: बिहटा में जो जमीन दी गई उसमें से 2.64 एकड़ पर अतिक्रमण है.

आईआईटी, पटना में केंद्र सरकार की ओर से स्थापित होने वाले इन्क्यूबेशन सेंटर के मैचिंग ग्रांट के तौर पर दिए जाने वाले 25 करोड़ में से राज्य सरकार बमुश्किल 5-6 करोड़ ही दे पाई है. डिजिटल इंडिया के तहत बिहार के करीब पांच हजार पंचायतों में कॉमन सर्विस सेंटर खोला गया है, मगर राज्य सरकार की ओर से इन केंद्रों को आय प्रमाण पत्र, बिजली बिल आदि जमा करने जैसी सेवाएं नहीं दी जा रही हैं जिसकी वजह से यह केंद्र लाभकारी साबित नहीं हो पा रहे हैं.

2011 में बनी आईटी पॉलिसी के निष्प्रभावी होने की वजह से बिहार में उम्मीद के अनुरूप सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के क्षेत्र में सौ करोड़ का पूंजी निवेश भी नहीं हो पाया. ऐसे में बिहार के लिए अब नई आईटी पॉलिसी की जरूरत है. बिहार न केवल आईटी क्षेत्र में पिछड़ गया है, बल्कि यहां के युवाओं को रोजगार के बड़े अवसरों से भी वंचित होना पड़ा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बताना चाहिए कि क्या केवल शराबबंदी को लेकर दिन-रात अभियान चलाने से बिहार के युवाओं को रोजगार मिल जाएगा? सुशील मोदी का आरोप है कि गरीबों के अनाजों के उठाव में फर्जीवाड़े को रोकने में बिहार सरकार बुरी तरह से विफल रही है. सूबे के 1.54 करोड़ राशन कार्डधारियों में से मात्र 9 हजार को ही आधार नंबर से जोड़ा जा सका है. आधार कार्ड बनाने में भी बिहार देश के तमाम बड़े राज्यों में सबसे अंतिम पायदान पर है. राज्य में अभी तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को आधार नंबर दिया जाना बाकी है. अनाजों के उठाव में फर्जीवाड़े को रोकने के लिए पीडीएस दुकानों में ‘प्वाइंट आफ सेल’ डिवाइस लगाने की योजना अभी बिहार में ठीक से शुरू भी नहीं हो पाई है.

गरीबों को दो रुपये किलो दिए जाने वाले गेहूं पर करीब 22 रुपये और तीन रुपये किलो दिए जाने वाले चावल पर 30 रुपये का अनुदान भारत सरकार देती है. मगर बिचौलिए और दलाल उन्हें हड़प जा रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को  जनता को बताना चाहिए कि गरीबों का अनाज जो दलालों व बिचौलियों के हाथों में चला जा रहा है, क्या उसे रोका नहीं जा सकता है?

बिहार में राशन कूपन योजना विफल हो चुकी है. ऐसे में राशनकार्ड के डिजिटलीकरण के बाद उन्हें उपभोक्ताओं के आधार नंबर से जोड़ने की जरूरत है. उसके बाद पीडीएस दुकानों पर प्वांइट ऑफ सेल उपकरण लगाया जाए, जिससे कि लाभार्थियों की अंगुली के निशान से अनाज उठाव की पुष्टि हो तथा अन्य सरकारी योजनाओं को भी डीबीटी से जोड़ कर ही फर्जीवाड़े को रोका जा सके. आंध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्य प्वांइट ऑफ सेल डिवाइस और राशन कार्ड को आधार नंबर से जोड़कर फर्जीवाड़े को रोकने में सफल रहे हैं. सरकारी योजनाओं के बंदरबांट और फर्जीवाड़े को रोकने में विफल रहने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को क्या कालेधन पर आवाज उठाने का कोई हक है?

लालू प्रसाद के दोहरे व्यवहार पर सुशील मोदी कहते हैं कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने सभी केंद्रीय मंत्रियों के सरकारी बंगले में गोपालन के लिए पीएम को पत्र लिखने से पहले क्या बिहार के मंत्रियों से गोपालन सुनिश्‍चत करा लिया है? लालू प्रसाद जब मुख्यमंत्री बनते हैं, तब घोटाला कर 900 करोड़ रुपये का चारा खा जाते हैं और जब आय से अधिक संपति के मामले में फंसते हैं, तब अपने को दूध का व्यापारी बताते हैं. उन्होंने दावा किया था कि दहेज में मिली एक बाछी से गायों की संख्या बढ़कर 100 हो गई और गायों का दूध बेचने से लाखों रुपये की जो कमाई हुई, उसे आय के ज्ञात स्त्रोत से अधिक संपति बताया जा रहा है. वे गोपालक हैं या दूध-व्यवसायी?

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