कांग्रेस को पूरे देश में हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाने वाले दक्षिण में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. जहां कांग्रेस 2009 में दक्षिण के चार राज्यों में 60 सीटे जीती थी. वहीं इस बार कांग्रेस दक्षिण में केवल 19 सीटों पर ही सिमट कर रह गई. कांग्रेस ने सबसे ज्यादा आंध्रप्रदेश में 33 सीटे जीती थी वहां इस बार वह केवल दो ही सीटें जीत पाई. मोदी की लहर दक्षिण में भी दिखाई दी कमजोर संगठन के बावजूद भाजपा 21 सीटें जीतने में कामयाब रही.
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जीत हासिल की है. कोई ऐसा कोना नहीं बचा जहां पर कमल न खिला हो. पुर्वोत्तर के राज्यों को छोड़ दें तो पुरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर जगह कमल खिला है. भारतीय जनता पार्टी ऐसी पार्टी है जिसने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 1984 के बाद सबसे बड़ी जीत हासिल की है और भाजपा गैर कांग्रेसी पार्टी भी है जो देश में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी. दक्षिण भारत में भाजपा कमजोर है और वहां पर उसके पास मजबूत संगठन भी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद कर्नाटक में भाजपा की सरकार रह चुकी है. केरल को छोड़ दे तो दक्षिण के सभी राज्यों में कमल खिला है और यहां पर सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को हुआ है. दक्षिण के चार राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश में कांग्रेस ने 2009 लोकसभा चुनाव में 60 सीटें जीती थी जो इस बार केवल 19 पर सिमट कर रह गईं. वहीं भाजपा अपने सहयोगियों के साथ मजबूत हुई है और पहले उसके पास 19 सीटें थी अब 21 हो गई हैं. उसने आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी सीटे जीती हैं. दक्षिण में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने आंध्रप्रदेश का बंटवारा जाते-जाते इसलिए किया था कि जिसका फायदा तेलंगाना में कांग्रेस को होगा, लेकिन कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान हुआ जिसे केवल आंध्रप्रदेश में दो ही सीटें मिली. आंध्रप्रदेश के बंटवारे का फायदा केवल च्रदशेखर राव की पार्टी टीआरएस को मिला है जिसे 11 सीटें मिली है. लहर की बात करें तो शहरी इलाकों में को मोदी का लहर का ही नतीजा था कि वायएसआर कांग्रेस नेता जगन मोहन रेड्डी की मां विजयम्मा को भाजपा के कामभामपति हरि बाबु से हार मिली. सीमांध्रा में असली लड़ाई केवल भाजपा के साथ गठबंधन वाली पार्टी टीडीपी और वायएसआरसी के बीच थी. कांग्रेस से अलग होकर किरण रेड्डी ने अलग पार्टी बनाई थी उनकी पार्टी ने जगनमोहन काफी नुकसान पहुंचाया है. इसी का नतीजा है कि भाजपा गठबंधन वहां पर 19 सीटें जीतने में कामयाब रहा. कर्नाटक में भाजपा में येद्दियुरप्पा के वापस आने से काफी फायदा मिला है. येद्दियुरप्पा के पार्टी से बाहर जाने कारण भाजपा को कर्नाटक विधानसभा में भारी नुकसान हुआ था और सत्ता गवानी पड़ी थी. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन इसके बावजूद वहां पर कांग्रेस को केवल 9 सीटे मिली हैं. भाजपा के तमाम कोशिशों और नरेंद्र मोदी के लहर के बावजूद केरल भाजपा का खाता नहीं खुला. हालांकि तिरवनंतपुरम में भाजपा के ओ राजगोपाल ने शुरूआत में शशि थरूर पर बढ़त बनाने के बावजूद अंत में वह उनसे 15 हजार मतों से हार गए, लेकिन वहां भाजपा का मतप्रतिशत बढ़कर दोगुना हो गया है जो 2009 6 फीसदी था. मतप्रतिशत बढ़कर इस चुनाव में 10 प्रतिशत हो गया है. केरल में भी कांग्रेस की सरकार के बावजूद यहां पर कांग्रेस को ज्यादा फायदा नहीं मिल पाया. तमिलनाडु की बात करें तो यहां पर कांग्रेस और डीएमके ये दोनो पार्टियों का यहां पर सुफड़ा साफ हो गया. यहां पर सबसे फायदा जयललिता की पार्टी एआईडीएमके को हुआ जिसको यहां 37 सीटें मिली हैं और दो सीटें भाजपा गठबंधन को मिली हैं. पहली बार कांग्रेस तमिलमाडु में साफ हो गई है. इसका कारण यह भी है कि वह इस बार अकेले चुनाव लड़ी थी और चिदंबरम के बेटे कीर्ति चिदंबरम भी अपनी सीट नहीं बचा पाए. टू-जी स्पेक्ट्रम घोटालों के कारण डीएमके का भी खाता तक नहीं खुला. यहां पर केवल एआईडीएमके के एक विकल्प के तौर पर था और भाजपा का गठबंधन छोटी पार्टियों के साथ था. दस साल बाद भाजपा ने कन्याकुमारी सीट पर जीत हासिल की. जयललिता को 37 सीटें मिली हैं और वह देश में तीसरी शक्ति रूप में उभरी हैं, लेकिन इसके बावजूद केंद्र में उनकी कोई भूमिका नहीं होगी.
कर्नाटक-
भाजपा-17
कांग्रेस-9
जेडी(एस)-2
आंधप्रदेश-
टीडीपी-16
टीआरएस-11
वायएसआरसी-9
भाजपा-3
कांग्रेस-2
अन्य-1
केरल-
कांग्रेस-8
आईएनडी-4
आईयूएमएल-2
आरएसपी-1
सीपीआई-1
केईसी(एम)
तमिलनाडु-
आईडीएमके-37
पीएमके-1
भाजपा-1