विभिन्न राजनीतिक दलों ने राज्य में लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है. वे यहां की 14 सीटों में से अधिक से अधिक अपने खाते में करने की कोशिश कर रहे हैं. राज्य के कई राजनीतिक दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. क्षेत्रीय दलों की सक्रियता से राष्ट्रीय दलों के नेताओं की नींद उड़ गई है. रही-सही कसर ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने पूरी कर दी है. सभी दलों के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतर चुके हैं. दुमका संसदीय सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन और झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, राजमहल संसदीय सीट पर पूर्व मंत्री एवं भाजपा प्रत्याशी हेमलाल मुर्मू, रांची संसदीय सीट पर आजसू अध्यक्ष एवं पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुदेश महतो, कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, गोड्डा के वर्तमान सांसद निशिकांत दुबे, गिरिडीह संसदीय सीट पर भाजपा के वर्तमान सांसद रवीन्द्र पाण्डेय, हजारीबाग संसदीय सीट पर भाजपा के दिग्गज नेता यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा, सक्सेस गुरु अरुण कुमार मिश्र, आजसू के लोकनाथ महतो और कांग्रेस विधायक सौरभ नारायण सिंह, पलामू संसदीय सीट पर पूर्व डीजीपी एवं भाजपा प्रत्याशी बी डी राम, कोडरमा संसदीय सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र कुमार राय, धनबाद संसदीय सीट पर पी एन सिंह और तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी एवं पूर्व मंत्री ददई दुबे सहित दो दर्जन ऐसे दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है, जिनकी झारखंड की राजनीति में मजबूत पकड़ मानी जाती है.
तृणमूल कांग्रेस ने रांची लोकसभा सीट से मांडर विधायक बंधु तिर्की और लोहरदगा से बिशुनपुर विधायक चमरा लिंडा को चुनाव मैदान में उतारा है. पलामू से कुल 13 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबले में तीन ही माने जा रहे हैं. भाजपा के बी डी राम, राजद के मनोज भुइयां और झाविमो के घुरन राम के बीच कड़ी टक्कर का अनुमान है. पलामू में पुलिस के शीर्ष पद से सेवानिवृत्त बी डी राम और नक्सलवाद का रास्ता छोड़कर संसद का सफर करने के इच्छुक कामेश्वर बैठा आमने-सामने होंगे. कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के कुल 21 प्रत्याशियों में ज़्यादातर ऐसे हैं, जो पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं. कुछ प्रत्याशी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं और कई बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. कांग्रेस प्रत्याशी तिलकधारी प्रसाद सिंह छठवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. भाकपा (माले) के राजकुमार यादव तीसरी बार, जबकि झाविमो के प्रणव वर्मा एवं सपा के जयदेव चौधरी दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं. झाविद के सूरज मंडल भी कई बार चुनाव लड़ चुके हैं. भाजपा के रवीन्द्र कुमार राय, आजसू के नजरुल हसन हाशमी, बसपा के विशेश्वर प्रसाद, जदयू के कृष्णा सिंह, आप के विजय चौरसिया, फारवर्ड ब्लॉक के रघुनंदन विश्वकर्मा, तृणमूल कांग्रेस की मंजू कुमारी समेत निर्दलीय प्रत्याशी कंचन कुमारी, रामेश्वर प्रसाद यादव, योगेंद्र राम, फलजीत महतो, जलील अंसारी, मनोज कुमार सिंह, शिवनाथ साव, महेंद्र दास एवं मुस्तकीम अंसारी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
संथाल परगना में इस बार सबसे अहम मुकाबला होने के आसार हैं, क्योंकि दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री यानी बाबूलाल मरांडी और शिबू सोरेन चुनाव मैदान में आमने-सामने हैं. दोनों अपने-अपने दलों के प्रमुख भी हैं. शिबू सोरेन के बेटे हेमंत फिलवक्त राज्य के मुख्यमंत्री हैं, इसलिए दुमका सीट के लिए उनकी भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. वहीं झारखंड विकास मोर्चा प्रमुख बाबूलाल मरांडी दो बार दुमका के सांसद रह चुके हैं. संथाल परगना की तीन सीटों दुमका, गोड्डा एवं राजमहल के लिए तीसरे दौर में 24 अप्रैल को मतदान होगा. दुमका सीट से अपने पिता शिबू सोरेन की जीत सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार क्षेत्र में बने हुए हैं. भाजपा के सुनील सोरेन ने पिछले चुनाव में शिबू सोरेन को कड़ी टक्कर दी थी और वह बहुत कम मतों से हारे थे. भाजपा ने इस बार फिर उन पर दांव लगाया है. यह सीट समझौते के तहत झामुमो को गई है, इसलिए यहां से कांग्रेस का कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं है.
गोड्डा में जदयू द्वारा राजवर्धन आज़ाद को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद भाजपा के निशिकांत दुबे घिरते नज़र आ रहे हैं. राजवर्धन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आज़ाद के पुत्र हैं. उनका कार्यक्षेत्र संथाल रहा है और ससुराल देवघर में है. क्षेत्र में उनके परिवार का प्रभाव है और प्रतिष्ठा भी. वह यहां के ब्राह्मण बाहुल्य तीन विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं. कांग्रेस ने यहां से पूर्व सांसद फुरकान अंसारी को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि झाविमो से पूर्व सांसद प्रदीप यादव चुनाव लड़ रहे हैं. फुरकान अंसारी का मुसलमान मतदाताओं में अच्छे-खासे प्रभाव से भी भाजपा प्रत्याशी को निपटना होगा. प्रदीप यादव भी भाजपा से सांसद रहे हैं. इस बार उन्हें झाविमो ने मैदान में उतारा है. कार्यकर्ताओं की नाराज़गी भी भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे को भारी पड़ सकती है. राजमहल क्षेत्र में भी भाजपा कार्यकर्ता खासे नाराज़ हैं. यहां मुख्य मुकाबला झामुमो के विजय हांसदा और भाजपा के हेमलाल मुर्मू के बीच होने की संभावना है. विजय हांसदा ईसाई एवं मुस्लिम मतों के भरोसे हैं, वहीं मुर्मू को भाजपा के परंपरागत वोटों के अलावा ग़ैर ईसाई मतदाताओं का सहारा है. मुर्मू की राह में रोड़े अटकाने के लिए झामुमो और झाविमो के नेता सक्रिय हो गए हैं. हेमंत सोरेन को चुनौती देकर राजनीति में अपने ऊंचे कद का परिचय देने वाले हेमलाल मुर्मू इस बार नए अवतार में लोगों के बीच हैं.
राज्य में टीएमसी का बढ़ता असर भी लोगों को देखने को मिलेगा. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के झारखंड आगमन के बाद सभी दलों के नेताओं के होश उड़े हुए हैं. देखना यह है कि राज्य के किन राजनीतिक दिग्गजों की लुटिया डूबती है और किसकी बचती है.
दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा
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