CSDS के लोकनीति प्रोजेक्ट में अस्सी के दशक में मैं जुड़ा था । मेरे बास हुआ करते थे सुरेश शर्मा । तब इसका आफिस मालरोड के बीचों-बीच Exchange store में ऊपर हुआ करता था । नीचे पेट्रोल पंप था और उसके बीच से एकदम सीधी बाईस सीढ़ियां जाती थीं । उस समय वहां की रिसेप्शनिस्ट हुआ करती थी – ऐनी (जहां तक मुझे याद है) । मेरे बहुत अच्छे संबंध थे ऐनी के साथ । शायद क्रिश्चियन थी । हमारा कमरा एक साइड में था तो बीचों-बीच का हाल रजनी कोठारी , धीरू भाई शेठ आदि के लिए । हम सर्वे और तमाम रिपोर्ट्स में लगा करते थे । यहां तक तो सब ठीक था ।काम बहुत बारीकी या पैने ढंग से होता था । विश्वसनीयता और प्रामाणिकता पर कोई भी दाग न लगे । लेकिन एक बात मुझे सालती रहती थी । वहां का आभिजात्य वातावरण । सिगार और पाइपों से निकलता धुआं । शानदार क्राकरी में शानदार लंच । धीरे भाई बहुत सीधे और सरल थे । रजनी कोठारी से बात करते हुए भी डर लगता था । उनकी विद्वता का आतंक था । राजपुर रोड पर तब CSDS की लाइब्रेरी हुआ करती थी जहां गिरधर राठी बैठते थे । उनसे चकल्लस में मजा आता था । लेकिन जिस आभिजात्य वातावरण का मैंने जिक्र किया वह हमेशा परेशान करता थी । मैं उस समय मस्त मौला और फक्कड़ सा रहा करता था । तब मैंने उस माहौल पर एक कविता लिखी – ‘टेस्ट ट्यूब में पलता समाजवाद’ । सुरेश शर्मा ने पड़ी । बहुत नाराज हुए । और अपनी सख्त नाराजगी दिखाते बोले, यह आपने ठीक नहीं किया ।वह कविता कारण बनी मेरे CSDS छोड़ने का । लेकिन उस संथा के प्रति मेरी आस्था जैसी थी आज भी वैसी ही है । बाद में योगेन्द्र यादव, अभय कुमार दुबे, अरविंद मोहन जैसे लोग उससे जुड़े । CSDS से जुड़े हर व्यक्ति के प्रति मेरे मन में सम्मान रहा है । आज हिंदू वादी मधु किश्वर इस संस्था से जुड़ी हैं लेकिन तब उन दिनों वे यहां नहीं थीं और खालिस या खांटी समाजवादी थीं । जब भी उनसे बात होती धाकड़ महिला के रूप में । आज लोकनीति के डायरेक्टर संजय कुमार हैं ।बेहद सौम्य और मृदुभाषी ।
इन चुनावों में CSDS के पोस्ट पोल ने कमाल किया है । 9 मार्च की शाम जब संजय कुमार ने आशुतोष को इंटरव्यू दिया और भाजपा को जीतता हुआ बताया उसी समय से मन मनाता रहा , काश संजय की बातें ग़लत साबित हो जाएं । लेकिन मन था कि मानता नहीं था क्योंकि इनकी कार्यप्रणाली देखी है । फिर कल या परसों तो CSDS ने पार्टियों के मत प्रतिशतों के आंकड़ों को जारी किया है । कई बार सोचता हूं कि एक ओर झूठा और छलिया मोदी और उनका भांड मीडिया है और दूसरी ओर CSDS जैसी संस्था है । 10 मार्च की शाम जो गुस्सा था वह इसलिए जाता रहा कि हमारे लोगों ने संजय कुमार, यशवंत देशमुख, शीतल पी सिंह, कुर्बान अली आदि की बातों पर चिंतन क्यों नहीं किया ।और क्यों उन लोगों पर यकीन करते रहे जो बिना मेहनत किये खुद को दिग्गज समझते रहे । इन दो तीन दिनों में कुछ अच्छे और शांत (चार चार पांच पांच पैनलिस्टों की बजाय सिर्फ एक ) कार्यक्रमों से सुकून मिला । विजय त्रिवेदी की संजय कुमार से बातचीत, आशुतोष की आशुतोष वार्ष्णेय से बातचीत, आलोक जोशी की आशुतोष से, नीलू व्यास की संदीप दीक्षित से, संतोष भारतीय की अभय कुमार दुबे और अखिलेंद्र प्रताप सिंह से । इन बातचीतों में चुनाव परिणामों का सार था। अब साफ है कि भाजपा क्यों और कैसे जीती। यहां एक और बातचीत का जिक्र जरूरी है जो शीतल पी सिंह ने डिजिटल दुनिया के एक धुरंधर युवा लक्ष्मी प्रताप सिंह से भाजपा की जीत के कारणों को जानना चाहा । नतीजा यह है कि सोशल मीडिया के अलग अलग प्लेटफार्म पर जितनी एक्टिव भाजपा है बाकी पार्टियां उसकी पासंग भी नहीं हैं । मुकेश कुमार ने यशवंत सिन्हा का इंटरव्यू में किया । कुछ विशेष तो नहीं था लेकिन बाद में उन्हें जेपी यादव आये जो आने ही थे तो कहा कि फिर कोई नया प्रबुद्ध व्यक्ति निकलेगा । पर मुझे लगता है कि मोदी की आज की जान पड़ती विराटता और अपराजेयता के समक्ष 2024 तक तो ये पार्टियां टांय टांय फिस्स रहेंगी । कांग्रेस अपनी उम्र के सबसे अंतिम पड़ाव पर है । केजरीवाल में दमखम दिखाने के लिए अभी काफी वक्त है । ममता तो अकेले दम पर हिंदी की टांग तोड़ती ही नजर आती हैं । उत्तर भारत को वहीं जीत सकता है जो हिंदी का मास्टर हो ।
अपने चुनावी आकलनों पर सवाल जवाब के कार्यक्रम में आलोक जोशी ने बहुत सफाई दी । इसके जवाब में उन्हें अभय कुमार दुबे की बात सुननी चाहिए कि हम लोगों ने समाज किस तरह से सोच रहा है यह सोचने का की बजाय हम किस तरह से सोच रहे हैं इस पर ज्यादा जोर दिया । असल में हुआ यही है इसीलिए हम बुरी तरह से पिटे अपने अपने आकलनों में । बहरहाल , अब हमें सतर्क हो जाना चाहिए । अब चुनौतियों भरा समय है । शैली बदल कर कुछ नयी शैली से विश्वास जगाने की जरूरत है । एकमात्र संतोष भारतीय हैं जो बिना किसी उद्वेग और हाबड़ ताबड़ के अपनी राह पर चलते रहे । विश्लेषण या गणित उनका भी बिगड़ा है । पर वे शायद विचलित नहीं हैं ।
मित्रो, यह नया समय है । इस समय से किसी भी पुराने समय की तुलना बेमानी है । हर मामले में भाजपा सिरमौर है । और यह श्री भाजपा है बेशर्मी और झूठ के साथ । कारपोरेट , मीडिया, ट्रोल आर्मी, संगठन सब ग्रासरूट लेवल से टाप तक उसके साथ और उसके पास है । उसके मुकाबले में कौन कहां ठहरता है यह सर्वविदित है । इसलिए 2024 में मोदी अपराजेय से लगते हैं । उनका अभेद्य किला कौन भेद पाएगा यह सौ टके का सवाल है । यह भी सुना है कि मोदी को जिस लाभार्थी वर्ग ने सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाया है उसका और विस्तार किया जाएगा । यानी 2024 तक निरंतर फ्री राशन दिया जाता रहेगा । क्या आपको नहीं लगता ये पचास सालों की तैयारी है । तो हमारी आपकी और प्रबुद्धजनों की भूमिका क्या है होगी यह तय कीजिए ।
CSDS की प्रामाणिकता …..
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