अमेरिका में लुटे लोकतंत्र पर हावी भीड़तंत्र
संसार के चौधरी ने लोकतंत्र को शर्मसार कर दिया । अब तक अपने जिस गणतांत्रिक विकेंद्रीकरण के जिस चेहरे पर यह विशाल और शक्ति संपन्न मुल्क गर्व करता रहा है,अब वह किसी को दिखाने के क़ाबिल नहीं रहा । यकीनन एक सनकी और अराजक धंधेबाज को राष्ट्रपति के लिए चुनने पर औसत अमेरिकी सिर धुन रहे होंगे ।
यह इस बात को भी रेखांकित करता है कि जम्हूरियत में एक ग़लत निर्णय उस देश के इतिहास को कलंकित करने के लिए काफ़ी होता है । यह उन राष्ट्रों के लिए भी एक चेतावनी है, जो दल की साख़ और उपलब्धियों के आधार पर नहीं,बल्कि आत्ममुग्ध और मूडी राजनेता के हाथों में अपने सत्ता संचालन की चाबी सौंप देते हैं ।शायद इसीलिए ऐसे राजनेता अपने मतदाताओं को लुभाने वाले फॉर्मूलों और लटकों – झटकों से बांध कर रखने का प्रयास करते हैं ।
इससे मतदाता अंधेरे में रहते हैं । वे अपने हक़ के लिए जागरूक नहीं होते और राजनेता उन्हें शिकारी की तरह जाल में फांसकर रखता है । यह किसी भी विवेकशील देश के अंधे कुएं में समाने जैसा है । दरअसल डोनाल्ड ट्रंप की नाकामियां तो उनके पदभार संभालने के बाद से ही दिखाई देने लगी थीं ।वे जिस ढंग से पुराने निर्णयों पर अपना रवैया दिखा रहे थे ,उससे अमेरिका के समझदार लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि दुनिया पर राज करने वाले राष्ट्रपति के लक्षण उनमें नहीं हैं । इस पन्ने पर अपने अनेक आलेखों में मैंने ट्रंप के यू टर्न लेने वाले निर्णयों का विश्लेषण किया है ।
दक्षिण मध्य एशिया के कई राज्य इससे परेशान रहे हैं । अब तक आंख मूंदकर अमेरिका का साथ देते आए परंपरागत
गोरे मित्र देश उनसे संवेदनशील मसलों पर कन्नी काटते दिखाई दिए हैं । अंतरराष्ट्रीय शिखर संस्थाओं का उन्होंने उपहास किया है और भारत जैसे भरोसेमंद शुभचिंतक का तो अनेक अवसरों पर मज़ाक उड़ाया है । इसके बाद भी हिंदुस्तान वर्षों से उनका पिछलग्गू बना रहा है । भारत की विदेश नीति और आर्थिक हितों को गंभीर चोट पहुंचाने वाले श्रीमान ट्रंप ही हैं ।
अगर उनके कार्यकाल में अमेरिका तरक्की के मार्ग पर कुलांचें भरता तो भी मतदाता उन्हें दोबारा स्वीकार कर सकते थे,लेकिन कुल मिलाकर उल्टा ही हुआ । न अमेरिका इंच भर खिसका और न दुनिया में उसकी साख बढ़ी । इसी वजह से लोकतंत्र की किसी भी ज़िम्मेदार शीर्ष संस्था और मीडिया ने उनका साथ दिया ।
यह ठीक है कि जो बाइडेन और उनकी सहयोगी कमला हैरिस की टीम को अंततः अपने पदों पर अगले चार साल तक रहना ही है ।यह इबारत साफ़ तौर पर अमेरिकी इतिहास में लिखी जा चुकी थी,लेकिन अब उसमें कालिख भरा एक उप अध्याय भी जुड़ गया है और जब भी संसार का यह सरपंच किसी देश को आंखें दिखाने का प्रयास करेगा ,उसके पास भी एक आईना दिखाने के लिए होगा ।
अपनी कलंकित कथा को मिटाने के लिए जो बाइडेन और कमला की जोड़ी को ही प्रयास नहीं करने होंगे,अपितु उनके बाद आने वाले नेतृत्व को भी जी तोड़ मेहनत करनी होगी । अगर इसमें वे नाकाम रहे तो अमेरिका के बहाने तानाशाही के घुड़सवारों को अनेक मुल्कों पर चढ़ाई करने का अवसर मिल जाएगा । पाकिस्तान जैसे कई राष्ट्र हैं ,जहां लोकतंत्र की गाड़ी पटरी से उतरी तो आम अवाम दशकों पीछे चली गई ।
अमेरिकी नागरिकों को अब बड़ी भूमिका निभानी होगी। भारतीय लोकतंत्र अमेरिका की तुलना में पुराना होते हुए भी कुछ मसलों पर अत्यंत पौराणिक विचार बोध प्रदर्शित करता है । मगर अमेरिकी मतदाता अपेक्षाकृत जागरूक माना जा सकता है ।इसलिए अब उन्हें अपनी जम्हूरियत बचाने के लिए पहरेदारी करनी होगी । वे अगर एक और धोखा खाते हैं ,तो फिर उनके सोच और साक्षर होने पर बड़ा सवालिया निशान लग जाएगा ।
भारत के लिए भी अमेरिकी घटनाक्रम में चेतावनी भरा संदेश छिपा है । इस देश ने अब तक गुट निरपेक्ष विदेश नीति के चलते ही प्रतिष्ठा और गौरव हासिल किया है ।किसी व्यक्ति अथवा राष्ट्र का पिछलग्गू बनकर नहीं। हालिया दौर में भारतीय नज़रिए में इस हिसाब से चूक हुई है ।इतिहास अपनी गलतियां सुधारने के कई अवसर नहीं देता । अमेरिकी उदाहरण से अगर हम सीख सके तो वैश्विक स्तर पर अलग पहचान बना सकेंगे ।
मगर अलग पहचान से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण भारतीय हित हैं । दक्षिण मध्य एशिया की राजनीति में चीन और भारत के रिश्ते बहुत मायने रखते हैं । भारत चीन संबंध इन दिनों अत्यंत तनावपूर्ण और नाज़ुक दौर से गुज़र रहे हैं । अब वह एक चालाक और काइयां पड़ोसी के रूप में नए अवतार में प्रकट होगा ।जो लोग चीन के चरित्र को पहचानते हैं ,वे समझते हैं कि चीन इस समय अमेरिका की अंदरूनी स्थिति का फ़ायदा उठाना चाहेगा ।
ताज़ी सूचना के मुताबिक़ चीन ने अपनी सेना को आगाह किया है कि वह जंग के लिए तैयार रहे । इसी तरह ईरान के साथ संबंधों में भारत को नए सिलसिले की शुरुआत करनी होगी । इन संबंधों में अमेरिका को बेअसर करना पड़ेगा ,तभी भारत पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के उत्तर में चाबहार को सक्रिय कर सकेगा ।इसमें चीन के लिए भी शक्ति संतुलन का संदेश छिपा रहेगा ।
राजेश बादल