यह प्रश्न निश्चय ही बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गढ़ समझे जाने वाले पांच मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में कभी न हारने वाले दिग्गज कांग्रेसी मुस्लिम उम्मीदवार आख़िर क्यों हार गए? आख़िर ऐसा क्या हुआ कि जो चेहरे इन क्षेत्रों में चुनाव के वक्त कांग्रेस की नैया पार लगाते थे, उन्हें इस बार धूल चाटनी पड़ी? आइए, जानते हैं कि इन सबके पीछे क्या वजह रही और खुद उक्त उम्मीदवार इस बारे में क्या सोचते हैं…
यह सच किसी से ढंका-छिपा हुआ नहीं है कि ओखला, बल्लीमारान, मटिया महल, सीलमपुर एवं मुस्तफाबाद दिल्ली के ऐसे मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र हैं, जो कांग्रेस के गढ़ रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मटिया महल को छोड़कर शेष चार विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के टिकट पर मुस्लिम उम्मीदवार सफल हुए थे. मटिया महल में इस चुनाव से पहले राजद और बाद में जदयू के सहारे निर्वाचित होते आए विधायक शोएब इकबाल हाल में कांग्रेस में शामिल हो गए थे और फिर उन्हें इस पार्टी से टिकट मिला. इस तरह वह भी दिल्ली में कांग्रेस के दिग्गज मुस्लिम उम्मीदवारों की सूची में शामिल हो गए. लेकिन, इस बार उन्हें आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार आसिम अहमद खां के हाथों जबरदस्त शिकस्त मिली. आसिम को 47,584 और शोएब को 21,488 वोट मिले.
कभी न हारने वाले शोएब इकबाल की 26,096 वोटों से हुई हार एक बहुत बड़ी हार मानी जा रही है. आश्चर्य की बात यह है कि कुछ मुस्लिम संगठनों एवं शख्सियतों ने उनके समर्थन में अपील भी जारी की, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ. ग़ौरतलब है कि चौथी दुनिया अपने 02-08 फरवरी, 2015 के अंक में दिल्ली का चुनावी दंगल शीर्षक तले पहले ही बता चुका था कि 65 प्रतिशत मुस्लिम वोटों वाले मटिया महल क्षेत्र में शोएब इकबाल का खासा प्रभाव है, लेकिन बार-बार पार्टी बदलने के चलते वह बदनाम हो गए हैं. हालांकि, इस बारे में शोएब की राय अलग है. उनका कहना है कि वह आम आदमी पार्टी की सुनामी का शिकार हो गए. बताते चलें कि मतदान से दो दिन पहले शोएब इकबाल की रैली में हज़ारों लोगों ने शिरकत की थी.
दूसरा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बल्लीमारान है, जहां से पांच बार विधायक रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मंत्री हारून यूसुफ इस बार आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार इमरान हुसैन से 43,913 वोटों से हार गए. हारून को स़िर्फ 13,205 वोट मिले. उन्हें स्वयं समझ में नहीं आ रहा है कि वह इतने ज़्यादा वोटों से कैसे हार गए. ग़ौरतलब है कि चौथी दुनिया ने अपने उक्त अंक (देखें, दिल्ली का चुनावी दंगल) में बताया था कि स्थानीय लोगों की शिकायत है कि हारून ने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया और न कभी दिखाई पड़े. हारून को शिकस्त देने वाले इमरान हुसैन क्षेत्र के काउंसलर हैं और युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं.
तीसरा क्षेत्र ओखला है, जिसे मटिया महल और बल्लीमारान की तरह पुरानी दिल्ली कहा जाता है. यहां से पिछली बार कांग्रेस के आसिफ मुहम्मद खां निर्वाचित हुए थे. आसिफ अपने विकास कार्यों के लिए जाने जाते हैं. इसके अलावा वह क्षेत्र में मुस्लिम नौजवानों की गिरफ्तारी के समय उनका एवं उनके परिवार का सहारा बनते रहे और उनकी आवाज़ उठाते रहे. अभी हाल में बरेलवी विचारधारा के इस्लामी विद्वान मौलाना यासीन अख्तर मिसबाही की गिरफ्तारी होने पर आसिफ खासे सक्रिय रहे, उनकी रिहाई कराने में भी कामयाब रहे. वैसे, इस मामले में आम आदमी पार्टी के नवनिर्वाचित विधायक अमानतुल्लाह खां भी खासे सक्रिय रहे. आसिफ 2013 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन इस बार वह तीसरे नंबर पर रहे. यहां आप उम्मीदवार अमानतुल्लाह खां ने भाजपा उम्मीदवार ब्रह्म सिंह को 60,321 वोटों से जबरदस्त शिकस्त दी. अमानतुल्लाह खां को 1,04,271 वोट मिले, जबकि ब्रह्म सिंह को 39,739 और आसिफ को 20,135 वोट मिले. आसिफ मुहम्मद खां भी शोएब इकबाल की तरह बार-बार पार्टी बदलते रहे. हालांकि, चौथी दुनिया से बातचीत में आसिफ ने कहा कि जब कोई सुनामी होती है, तो लोग विकास एवं अन्य कार्यों की अनदेखी कर देते हैं. लेकिन, काउंसलर या विधायक रहे बगैर भी वह क्षेत्र के विकास के लिए हमेशा प्रयास करते रहेंगे.
चौथा क्षेत्र सीलमपुर है. कांग्रेस के चौधरी मतीन अहमद 1993 से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे. वह भी इस सुनामी में बह गए और तीसरे नंबर पर पहुंच गए. मतीन अहमद को स़िर्फ 23,791 वोट मिले, जबकि आप उम्मीदवार हाजी मुहम्मद इशराक उर्फ भूरे को 57,302 और दूसरे नंबर पर रहे भाजपा के संजय जैन को 29,415 वोट मिले. बकौल चौधरी मतीन अहमद, ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि मुसलमानों में यह सोच उभरने लगी कि कांग्रेस तो भाजपा को रोक नहीं पाएगी और न कुछ सीटें जीतने से उसकी सरकार बनेगी. दूसरी तरफ़ आम आदमी पार्टी ने बिजली और पानी जैसे बुनियादी मुद्दे उठाए, जबकि कांग्रेस की ओर से ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसके अलावा आम आदमी पार्टी का चुनाव प्रबंधन दीगर सियासी दलों की तुलना में मजबूत था. मतीन अहमद कहते हैं, यही वजह थी कि मेरे द्वारा कराए गए विकास कार्य और मेरी छवि भी मेरे काम नहीं आ सके.
पांचवां मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मुस्तफाबाद है, जहां भाजपा के जगदीश प्रधान, जो पिछली बार कुछ वोटों से हार गए थे, ने इस बार कांग्रेस के हसन अहमद को 6,031 वोटों से परास्त किया. जगदीश प्रधान को 58,388 और हसन अहमद को 52,357 वोट मिले. यहां आम आदमी पार्टी के हाजी युनूस बुरी तरह हारे. हसन अहमद अपनी हार का कारण मुस्लिम वोटों का विभाजन बताते हैं. इस तरह पांच मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में से चार में दिग्गज मुस्लिम उम्मीदवार आम आदमी पार्टी की सुनामी और अच्छे चुनाव प्रबंधन के साथ-साथ अपनी खराब होती छवि के कारण हार गए, जबकि मुस्तफाबाद में कांग्रेस उम्मीदवार को अपनी अक्षमता के साथ-साथ मुस्लिम वोटों के चलते हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के लिए यह सब कुछ चिंता और आत्ममंथन का विषय है.