अपने पारंपरिक विधानसभा चित्रकूट में हुए उपचुनाव में कांग्रस ने भारी जीत दर्ज की है. यह सीट कांग्रेस के विधायक स्व. प्रेम सिंह की मौत के बाद खाली हुई थी. यह कांग्रेस की बेहद मजबूत सीट मानी जाती है. 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर के बावजूद कांग्रेस को यहां 10 हज़ार से ज़्यादा वोटों से जीत मिली थी. उस चुनाव के मुकाबले जीत का यह अंतर करीब डेढ़ गुना ज्यादा है. कांग्रेस यहां से 14 हज़ार से ज्यादा वोटों से जीती है. पिछले चुनाव के मुकाबले इस इस बार बढ़े हुए 4 हज़ार वोटों में कई सियासी संकेत छिपे हैं, जिन्हें समझना ज़रूरी है.
चुनाव परिणाम के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान ने कहा कि यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है और कांग्रेस इस सीट से आगे भी जीतेगी. इस बयान से यही लगता है कि भाजपा मानती है कि यहां कांग्रेस को परास्त नहीं किया जा सकता. लेकिन बात अगर इतनी सी है, तो जीत का अंतर क्यों बढ़ा? इसके लिए तो फिर यह भी दलील दी जा सकती है कि चूंकि वहां के विधायक की मृत्यु हो गई थी, इसलिए सहानुभूति में ज्यादा लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया.
इन दोनों दलीलों को मान लिया जाए, तो पहला सवाल यही खड़ा होता है कि जब पहले से पता था कि सीट कांग्रेस की है, तो फिर भाजपा ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रचार में उतारकर उनकी फज़ीहत क्यों कराई. शिवराज सिंह चौहान ने यहां आदिवासी के घर रात बिताया और योगी आदित्यनाथ तो प्रचार के लिए दो-दो बार आए. वहीं मध्यप्रदेश के कई मंत्रियों ने विधानसभा चुनाव के दौरान यहां लगातार डेरा-डंडा जमाए रखा था. भाजपा के लिए फजीहत की बात तो यह रही कि शिवराज के ससुराल और जहां उन्होंने रात गुजारी उस गांव में भी भाजपा को कांग्रेस से बहुत कम वोट मिली. यह शिकस्त और बड़ी होती, अगर आखिरी दौर में भाजपा उम्मीदवार ने वोटों के अंतर को न पाटा होता.
इसे समझना जरूरी है कि उपचुनाव में विरोधी दल के बड़े अंतर से जीतने के मायने क्या हैं. यह बताने की बात नहीं है कि उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी की ओर से सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि पूरी सरकारी मशीनरी चुनाव लड़ती है. ऐसे में कोई विरोधी दल उपचुनाव तभी जीत सकता है, जब जनता पूरी तरह से सरकार के खिलाफ खड़ी हो. तो क्या यह माना जाय कि चित्रकोट का चुनाव एक संकेत है. अगर संकेत है, तो किसके खिलाफ, शिवराज सरकार के खिलाफ या फिर केंद्र की भाजपा की सरकार. अगर मध्य प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो संकेत राज्य सरकार के खिलाफ है, क्योंकि इससे पहले पूरा ज़ोर लगाने के बाद भी भाजपा अटेर उपचुनाव हार गई थी. भले ही उस जीत का अंतर 1 हज़ार से कम था, लेकिन हार तो हार होती है, वो भी उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी की हार.
हालांकि चित्रकोट का उपचुनाव हारने से भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. लेकिन इस जीत से कांग्रेस का मनोबल कई गुना बढ़ गया है. इस जीत ने गुजरात में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए टॉनिक का काम किया है. इसका सबसे बड़ा फायदा हाल में होने वाले गुजरात विधानसभा उपचुनाव में दिख रहा है. जहां कार्यकर्ताओं को यकीन हो चला है कि वे भाजपा को हरा सकते हैं. ये वाकई कांग्रेस के लिए उस प्रदेश में चमत्कार है, जहां पार्टी का संगठन खत्म हो गया था.
इस उपचुनाव परिणाम के आइने में हाल के अन्य उपचुनावों के परिणाम भी देखते चलें. इस चुनाव से पहले पंजाब में भाजपा गुरुदासपुर लोकसभा उपचुनाव बुरी तरह हार गई. यह सीट बीजेपी की परंपरागत सीट थी. चूंकि भाजपा सांसद विनोद खन्ना की मौत के बाद यहां चुनाव हुआ था. इसलिए सहानुभूति भाजपा के साथ थी. लेकिन फिर भी भाजपा यहां बुरी तरह से हार गई. दरअसल, इस वक्त देश में जो मुद्दे सियासी तौर पर हावी हैं, वो मुद्दे सरकार के नहीं बल्कि विपक्ष के हैं. जीएसटी, खराब आर्थिक हालात और नोटबंदी जैसे मुद्दों पर सरकार असहज है. भाजपा दावा कर रही है कि इन मुद्दों से लोगों का और देश का फायदा हुआ है.
सरकार को गुमान हो चला है कि वो जो कहेगी, जनता उसे ही मानेगी. ऐसा सोचकर सरकार जनमानस की भावनाओं को पकड़ने में असफल हो रही है. सरकार के जिस कदम से जनता को परेशानियां हो रही हैं, उन कदमों का महिमामंडन करके सरकार जनता के ज़ख्मों पर नमक छिड़क रही है. यही कारण है कि कांग्रेस जनता को आवाज देकर उसके करीब आ रही है. इन उपचुनावों के ज़रिए जनता ने यह संदेश दिया है. इस संदेश को न समझकर अगर भाजपा यह मानती है कि चूंकि यह कांग्रेस की परपंरागत सीट है, इसलिए वो चुनाव हार गए, तो यह बात भाजपा के लिए बेदह खतरनाक है.
अगर खुदा ना खास्ता कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनाव जीत गई, तो इसका स्वाभाविक असर कर्नाटक में दिखेगा. इसके बाद अगले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन तीनों राज्यों में माहौल भाजपा के पक्ष में उस तरह से नहीं दिख रहा है, जैसा 2013 के चुनाव से पहले दिख रहा था. हालांकि इन राज्यों के चुनाव में अभी एक साल का वक्त बाकी है और यह समय कांग्रेस के लिए माहौल बनाने में काफी मददगार साबित होगा. वर्तमान स्थिति तो यही है कि चित्रकूट उपचुनाव में जीत ने कांग्रेस को लड़ने की ताकत दे दी है.