झारखंड में कांग्रेस भले पावर में न हो, पर पार्टी के भीतर पावर को लेकर घमासान मचा है. नेताओं में पावर के लिए महत्वाकांक्षा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में बैठकों के दौरान जमकर धक्का-मुक्की, जूतम-पैजार और मारपीट हुए. कार्यकर्ताओं को अलग-थलग करने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी. रांची एवं जमशेदपुर में हुए कांग्रेस की बैठकों में यह सारा ड्रामा पार्टी के प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद के सामने हुआ.
हरिप्रसाद इस वाकये से नाखुश दिखे. दरअसल सुखदेव भगत को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद झारखंड कांग्रेस दो भागों में बंट गयी है. सुखदेव विरोधियों का नेतृत्व कांग्रेस के बरही से विधायक मनोज यादव कर रहे हैं. कांग्रेस के अधिकतर विधायक मनोज यादव का समर्थन कर रहे हैं, जिससे सुखदेव गुट अपने को कमजोर महसूस करने लगा है.
कांग्रेस में अंतर्कलह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार के खिलाफ विधानसभा घेराव के दौरान कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम के अलावा कोई भी कांग्रेसी विधायक वहां नहीं पहुंचा. इतना ही नहीं, पार्टी कार्यकर्ताओं की मौजूदगी भी कम ही रही. कांग्रेस के भीतर मनोज यादव की छवि एक दबंग विधायक की है, जिन्हें यादवों एवं मुसलमानों का समर्थन खुलकर हासिल है.
झारखंड में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था, तो वहीं 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ताकत आधी से भी कम रह गई. झारखंड में कांग्रेस विपक्ष की भूमिका भी अदा नहीं कर पा रही है और इधर अंदरूनी कलह से पार्टी और कमजोर होती दिख रही है. पहले जमशेदपुर और फिर रांची में कांग्रेस पार्टी के अंदर मारपीट तक की नौबत आ गयी.
प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत ने अपनी नवगठित कमेटी की पहली बैठक बुलायी थी. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद की मौजूदगी में ही सुखदेव भगत और मनोज यादव के गुट का कलह सामने आ गया. आखिर में दोनों गुटों के विवाद को सुलझाने के लिये केंद्रीय आलाकमान से शिकायत की गयी. अब यह मामला सोनिया गांधी के दरबार तक पहुंच गया है.
कांग्रेस विधायक दल के नेता और पूर्वमंत्री मनोज यादव फिलहाल बरही से विधायक हैं. उन्होंने माई समीकरण का सहारा लेते हुए जामताड़ा के विधायक इरफान अंसारी को अपने खेमे में लेकर सुखदेव भगत को हटाने की मुहिम शुरू कर दी है.
इसका आगाज जमशेदपुर और रांची की बैठक के दौरान ही हो गया था, जब सुखदेव भगत के समर्थकों को मनोज यादव के लोगों ने बैठक स्थल से खदेड़ दिया. मनोज यादव के गुट ने सुखदेव भगत पर भाजपा की मिलीभगत से झारखंड से कांग्रेस को समाप्त करने के लिए काम करने का आरोप लगाया है.
सुखदेव भगत पहली बार मई 2013 में कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने थे. उन्होंने नवगठित प्रदेश कमेटी में नौसिखिए लोगों को शामिल किया. अब झारखंड में कांग्रेस पार्टी रांची और लोहरदग्गा में सिमटकर रह गयी है. नयी प्रदेश कमेटी में सुखदेव भगत ने उनलोगों को शामिल किया है जो गणेश परिक्रमा करते हैं और जिनके पास कोई जनाधार नहीं है.
रांची से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े सुरेन्द्र सिंह को प्रदेश कमेटी में जगह मिली है, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में वो 5000 वोट ही जुटा पाये थे. वहीं प्रदेश कमेटी में आलोक दूबे को प्रदेश महासचिव बनाया गया है. 2014 में आलोक दूबे को हटिया से विधानसभा चुनाव लड़ाया गया था, जिसमें उन्हें महज 4000 वोट ही मिले थे.
सुखदेव भगत की कमेटी में ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को हराने के लिये काम किया था. इतना ही नहीं, सुखदेव भगत ने ऐेसे लोगों को भी जगह दी है, जिन्होने पार्टी के विरुद्ध चुनाव लड़ा है. राजमहल विधानसभा क्षेत्र से महागठनबंधन के प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी रहे बजरंगी यादव को सुखेदव भगत ने पार्टी का महासचिव बना दिया है.
2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रदीप बलमुचू के नेतृत्व में चुनाव लड़कर 14 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें 21.43 प्रतिशत वोट मिले थे. वहीं सुखदेव भगत के नेतृत्व में 2014 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था
जिसमें कांग्रेस पार्टी का न केवल जनाधार कम हुआ बल्कि सीटों की संख्या भी आधी से कम हो गयी. 2014 में सुखदेव भगत ने 62 सीटों पर अपने पसंदीदा प्रत्याशी उतारे, जिसमें 42 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी. 2014 में कांग्रेस पार्टी 6 सीटें ही जीत पाई.
कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी आधे से कम हो गया. कांग्रेस पार्टी को आरजेडी और जदयू के साथ गठबंधन के बावजूद केवल 10.45 प्रतिशत मिले. इस चुनाव में पार्टी के वोटों की संख्या घटकर 14 लाख 50 हजार 640 ही रह गई. सुखदेव भगत के नेतृत्व में कांग्रेस के 56 प्रत्याशी हार गए. इतना ही नहीं, सुखदेव भगत खुद अपनी सीट भी नहीं बचा पाये.
उन्होंने पार्टी आलाकमान को गुमराह करते हुए गलत लोगों को टिकट दे दिया. इसका उदाहरण बगोदर की प्रत्याशी पूजा चटर्जी हैं. चटर्जी ने चुनाव के पहले कभी बगोदर का मुंह भी नहीं देखा था, लेकिन समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते हुए उन्हें विधानसभा का टिकट दे दिया गया था. पूजा चटर्जी चुनाव में अपनी जमानत भी नहीं बचा सकीं.
2009 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी को विपक्ष के नेता का दर्जा मिला था. लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से विपक्ष के नेता का दर्जा भी छिन गया. 2009 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को झारखंड में एक सीट मिला था, लेकिन जब सुखदेव भगत के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा तो पार्टी अपनी एक सीट भी नहीं बचा सकी.
सुखदेव भगत जिस आदिवासी होने की दुहाई देकर प्रदेश अध्यक्ष बने हैं वह आदिवासी वोट भी कांग्रेस से खिसक गया है. 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दो आदिवासी विधायक चुनाव जीतकर आये थे जबकि सुखदेव भगत के नेतृत्व में 2014 में कांग्रेस का एक भी आदिवासी विधायक नहीं बन सका.
2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आदिवासियों के लिये सुरक्षित सीटों पर भी अपनी साख नहीं बचा पायी. आदिवासियों के लिये सुरक्षित 12 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाये. संथाल और कोल्हान कभी कांग्रेस के गढ़ थे, वहां सुखदेव भगत ने कांग्रेस का टिकट ऐसे लोगों को दिलाया, जिससे पार्टी संगठन पूरी तरह से धराशायी हो गया.
कोल्हान में सरायकेला, चाईबासा, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, खरसांवा सीटों पर 5 प्रतिशत तक वोट नहीं मिल सका. संथाल इलाके में बोरियो, बरहेट, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, दुमका और जामा में सुखदेव भगत के गलत लोगों को टिकट देने से कांग्रेस का वोट जेएमएम के खाते में ट्रांसफर हो गया.
जिस बोरियो में कांग्रेस का विधायक जीतकर आता था, उस कांग्रेस पार्टी को केवल 1 प्रतिशत वोट ही मिला. जेएमएम ने 2009 के विधानसभा चुनाव में 18 सीटें जीती थी, जबकि सुखदेव भगत के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर जेएमएम की एक सीट बढ़ गयी और 19 सीटें जीत लीं.
2009 में जेएमएम को 15.79 प्रतिशत वोट मिला था, जबकि 2014 में सुखदेव भगत की गलत नीतियों से जेएमएम को आदिवासी मतदाताओं का समर्थन मिला. जेएमएम का 2009 की अपेक्षा 5 प्रतिशत वोट बढ़ गया और 20.43 प्रतिशत वोट मिला.
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सुखदेव भगत के रवैये के कारण आदिवासी नेता भी कांग्रेस से नाराज होकर दूसरी पार्टी में चले गये. स्टीफन मरांडी जैसे नेता कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन सुखदेव भगत के कारण वे पार्टी छोड़कर जेएमएम में शामिल हो गये और बाद में विधायक भी बन गए. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष थॉमस हांसदा के पुत्र विजय हांसदा भी कांग्रेस छोड़कर जेएमएम में चले गयेे.
हांसदा जेएमएम में जाने के बाद चुनाव जीतकर राजमहल से सांसद बन गए. अल्पसंख्यक मतदाता भी कांग्रेस से विमुख हो चुके हैं. झारखंड में कांग्रेस पार्टी को अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट मिलता था, लेकिन अब अल्पसंख्यक भी जेएमएम से जुड़ चुके हैं.
सुखदेव भगत पर पार्टी के पदाधिकारी बनने के लिये पैसे के लेन-देन करने का भी आरोप लगा है. संतोष सिंह को आनन-फानन में धनबाद जिला अध्यक्ष घोषितकर दिया गया लेकिन एक सप्ताह में ही नेताओं के विरोध के कारण उनको हटाना पड़ा.
सुखदेव भगत हटाओ और कांग्रेस बचाओ अभियान के तहत मनोज यादव गुट के सभी नेताओं ने प्रदेश के सभी जिलों में बैठक कर आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है. मनोज यादव के शब्दों में यह तो केवल शुरुआत है, इसे मुकाम पर पहुंचाया जाएगा, तभी कांग्रेस झारखंड में बच पाएगी.
वहीं प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत इस विरोध के बावजूद खुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बता रहे हैं. सुखदेव भगत के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने मुझे प्रदेश अध्यक्ष बनाया है तो पार्टी के अंदर रहते हुए मेरा अनुशासन सभी को मानना ही पड़ेगा. फिलहाल कुछ भी कहना मुनासिब नहीं है.
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने कांग्रेसियों के खेमे को शांत कराने के लिए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात कराने का वादा किया है. हरिप्रसाद कांग्रेस के दो विधायकों मनोज यादव और इरफान अंसारी के साथ अन्य विक्षुब्धों को भी मनाने के प्रयास में जुटे हैं. सुखदेव भगत के विरोध में प्रदेश के एकमात्र सांसद प्रदीप बलमुचू खुलकर सामने आ गये हैं.
वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने भी सुखदेव भगत के खिलाफ मोर्चा संभालने के संकेत दिए हैं. विक्षुब्धों को पूर्व सांसद फुरकान अंसारी का भी समर्थन मिलने से सुखदेव भगत गुट अपने को असहाय महसूस करने लगा है. वहीं सुखदेव भगत के समर्थन में कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और सुबोधकांत सहाय खड़े हैं. अब विक्षुब्ध कांग्रेसियों को शांत कराने के लिए केंद्रीय आलाकमान की पहल पर ही सबकुछ निर्भर है.
किसी की कृपा से नहीं बना प्रदेश अध्यक्ष: सुखेदव
प्रदेश अध्यक्ष पद पर आसीन होते ही भारी विरोध का सामना कर रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत का कहना है कि किसी की कृपा से अध्यक्ष नहीं बना हूं. केन्द्रीय नेतृत्व ने मुझपर विश्वास जताते हुए मुझे यह जिम्मेदारी दी है. कौन मुझ पर क्या आरोप लगा रहा है, इसकी फिक्र नहीं कर पूरे राज्य में संगठन को मजबूत करने का काम करूंगा. उन्होंने कहा कि पहली बार भी मैं जब अध्यक्ष बना था तो भारी विरोध हुआ था, लेकिन उसका नतीजा क्या निकला, विक्षुब्धों का मंसूबा धरा का धरा रह गया.
आगे उन्होंने कहा कि मैं सभी से अनुरोध करता हूं कि वे संगठन को मजबूत करने में हमारी मदद करें. विक्षुब्ध पार्टी के प्रभारी एवं आलाकमान के पास अपनी बात रखने को स्वतंत्र हैं, मुझे इसकी कोई फिक्र नहीं है. पैसा लेकर पदाधिकारी बनाने के आरोप पर उन्होंने कहा कि सभी आरोप मनगढ़ंत हैं. कोई आरोप साबित कर दे तो मैं पद से स्वयं इस्तीफा दे दूंगा.
सुबोधकांत को मिल सकता है मौका
रांची से लगातार दो बार सांसद एवं मनमोहन सरकार में मंत्री रहे सुबोधकांत सहाय को पार्टी आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है. सुबोधकांत की पहचान मृदुभाषी एवं लोकप्रिय नेता के रूप में रही है. वे विक्षुब्धों के भी पसंद बन सकते हैं.
सोनिया गांधी, ऑस्कर फर्नांडिस, अहमद पटेल जैसे नेता से इनकी मधुरता जगजाहिर है. झारखंड में विपरीत परिस्थितियों को देखते हुए पार्टी आलाकमान को नेतृत्व परिवर्तन के बारे में सोचना पड़ रहा है, ताकि कांग्रेस की साख बच सके. ऐसे में पार्टी आलाकमान के सामने सुबोधकांत ही ऐसे नेता हैं, जो सभी के लिए सर्वमान्य हो सकते हैं.
सुखदेव को हटाना लक्ष्य: मनोज
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत का विरोध कर रहे गुट के नेता मनोज यादव का कहना है कि हमलोगों की एक ही मांग है, सुखदेव भगत को हटाना. कांग्रेस विधायक यादव का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष की कार्यशैली ठीक नहीं है. उनके कार्यकाल में समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है.
बिना जनाधार वाले नेता को पार्टी में तवज्जो दिया जा रहा है. इसके कारण भगत के खिलाफ पार्टी में उबाल है. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी से अनुरोध किया गया है कि वे किसी को रांची भेजकर अध्यक्ष की कार्यशैली की जांच करा लें. उन्होंने बताया कि आलाकमान ने आश्वस्त किया है कि वे पूरी मामले की जांच कराकर जल्द ही कोई ठोस निर्णय लेंगे.