पहले ही अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस इन दिनो अपने ही सिपहसालारों के ‘बुक बमो’ से घायल हुई जा रही है। इसी महीने यह दूसरा मौका है, जब पार्टी असहज मुद्रा में है। समर्थन करें या खारिज करें। कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे सलमान खुर्शीद ने अपनी ताजा पुस्तक में आरएसएस की तुलना ‘आईसिस’ और ‘बोको हराम’ जैसे आतंकी संगठनो से करके पार्टी को मुश्किल में डाला तो अब एक और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने अपनी शीघ्र प्रकाश्य किताब में यूपीए चेयरपर्सन रही सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह पर यह सवाल दाग कर हमला किया कि वर्ष 2008 में मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले के बाद पाक पर जवाबी सैनिक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? कौन सी मजबूरियां थीं, जिसने ऐसा करने से रोका? मनीष उस समय कांग्रेस सांसद थे।
गौरतलब है कि मनीष तिवारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होने के साथ-साथ जाने-माने वकील और लेखक भी हैं। उनके प्रोफेसर पिता की चंडीगढ़ में 1984 में आतंकियों ने सरेआम हत्या कर दी थी। मनीष तिवारी की यह चौथी किताब है।‘10 फ्लैश पाॅइंट्स; ट्वेंटी ईयर्स नेशनल सिक्योरिटी सिचुएशन्स दैट इम्पेक्टेड इंडिया’ नामक उनकी इस नई किताब में पिछले 20 सालों में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण परिस्थितियों और देश पर उसके असर का जिक्र है। किताब के कुछ अंश ट्विटर पर जारी हुए हैं, उसी पर बवाल मच गया है। तिवारी लिखते हैं-एक ऐसा देश जिसे सैकड़ों लोगों को निर्मम तरीके से मारने का मलाल तक नहीं है, उसके खिलाफ संयम बरतना मजबूती का संकेत नहीं है। इसे कमजोरी के तौर पर देखा जाता है। एक ऐसा वक्त आता है जब आपका एक्शन शब्दों से ज्यादा असरदार होना चाहिए। इसलिए मेरा विचार है कि 26/11 ऐसा वक्त था, जब एक्शन होना चाहिए था। इस ट्वीट के बाद जहां कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में है, वहीं भाजपा हमलावर हो गई है। बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा, ”आज स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस की जो सरकार थी वो निठल्ली, निकम्मी थी, लेकिन राष्ट्र सुरक्षा जैसे मुद्दे पर भारत की अखंडता की भी उनको चिंता नहीं थी। भाटिया ने सवाल किया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी क्या आज इस मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ेंगे? सोनिया गांधी से हमारा प्रश्न है कि भारत की वीर सेना को उस समय अनुमति और खुली छूट क्यों नहीं दी गई?
वैसे मनीष तिवारी ने जो सवाल उठाया है, जवाब भी शायद उन्हीं के पास होगा। क्योंकि बाद में वो भी मनमोहन कैबिनेट में मंत्री रहे थे। 26/11 हमले में मुंबई में 166 लोग मारे गए थे, जिनमें 11 पुलिसकर्मी भी थे। इस भंयकर हमले के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने पाक के खिलाफ जवाबी कड़ी सैनिक कार्रवाई क्यों नहीं की? यह सवाल तब भी पूछा गया था, जब पुलवामा में आतंकी कार्रवाई के बाद मोदी सरकार ने पाक स्थित आतंकी शिविरों पर एयर स्ट्राइक की थी। इस बारे में भारत के पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने दो साल पहले लिखे एक लेख में बताया था कि मनमोहन सरकार ने 26/11 हमले के बाद भारत की जवाबी सैनिक कार्रवाई को क्यों टाला था। शिवशंकर मेनन उस वक्त विदेश सचिव थे। शिवशंकर के अनुसार वो खुद मुबंई हमले के बाद आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के पाक पंजाब में मुद्रिके स्थित मुख्यालय पर सैनिक कार्रवाई के पक्ष में थे। तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी की भी यही राय थी। क्योंकि देश की जन भावना भी यही थी। लेकिन बाद में तय हुआ कि सैनिक कार्रवाई के बजाए पाक के खिलाफ कूटनीतिक कार्रवाई का रास्ता अपनाया जाए। देश के शीर्ष कर्णधारो का मानना था कि पाक पर जवाबी हमला न करके ज्यादा हासिल किया जा सकता है बजाए सर्जिकल स्ट्राइक के। यह समझा गया कि भारत की जवाबी कार्रवाई पाक की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई आसिफ जरदारी की सरकार को कमजोर कर सकती थी और वहां कट्टरपंथी ताकतें एकजुट हो सकती थीं। साथ ही भारत पाक के बीच युद्ध भी छिड़ने का डर था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विपरीत प्रतिक्रिया भी हो सकती थी।
26/11 के हमले के बाद भारत में उच्च स्तर पर पाक के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का मानस बन चुका था, ऐसा दावा पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने भी अपनी पुस्तक ‘ खुर्शीद महमूद कसूरीज मेमाॅयर्स’ में किया है। इसकी जानकारी अमेरिका को भी थी। पाक सेना भी अलर्ट हो गई थी। मनीष तिवारी के पूर्व सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन अवर टाइम्स’ में हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठन आईसिस और बोको हराम से करके कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया। पार्टी इस मामले में विभाजित दिखी। हालांकि संघ पर लगातार हमले करने वाले दिग्विजयसिंह ने इस पुस्तक के विमोचन अवसर पर कहा कि ‘हिंदुत्व’ शब्द का हिंदू धर्म और सनातनी परंपराओं से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने आरएसएस और भाजपा पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि देश में हिन्दू खतरे में नहीं हैं, बल्कि ‘फूट डालो और राज करो’ की मानसिकता खतरे में है। संघ उसकी विचारधारा और कार्यशैली पर सवाल किए जा सकते हैं, लेकिन उनकी तुलना इस्लामिक आतंकी संगठन आईसिस और बोको हराम से की जाने से बहुत कम लोग सहमत होंगे। सलमान खुर्शीद के कथन से नाराज कट्टर हिंदू संगठनों ने नैनीताल स्थित उनके घर पर हमले और आगजनी की, जोकि निंदनीय है। हिंदू सेना ने खुर्शीद की किताब पर रोक लगाने की मांग की, जिसे दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहकर नामंजूर कर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रोकी नहीं जा सकती। इधर मप्र में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने राज्य में खुर्शीद की किताब पर बैन लगाने की ताबड़तोड़ घोषणा कर डाली। उधर सलमान खुर्शीद ने अपनी सफाई में कहा कि ‘मेरी किताब हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए है। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लोगों को समझाना है कि यह अच्छा फैसला है, आइये हम एक साथ मिलें, जुड़ें।’
यहां सवाल यह है कि जब देश में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसी मौके पर ये दो किताबें शाया होने जा रही हैं। क्या यह सिर्फ संयोग है या एक सुविचारित कदम? इन किताबों पर मचा बवाल कांग्रेस को मजबूत करेगा या कमजोर करेगा? खासकर तब कि जब कांग्रेस का एक वर्ग लगातार हिंदुत्व और आरएसएस पर हमलावर है तो दूसरा तबका यह संदेश देने की निरंतर कोशिश कर रहा है कि वह ‘साॅफ्ट हिंदुत्व’ का पक्षधर है। इसी संदर्भ में राहुल गांधी खुद को ‘ब्राह्मण’ बताना और प्रियंका गांधी आस्थावान हिंदू बताना एक निश्चित रणनीति का हिस्सा है। क्योंकि कांग्रेस को यह अहसास हो चुका है कि जब तक वह देश में बहुसंख्यक हिन्दुओं का विश्वास फिर से अर्जित नहीं करती तब तक दिल्ली के तख्त पर वापसी नामुमकिन है। जब तक कांग्रेस में बहुसंख्यक हिन्दुओं का भरोसा बना रहा, वह अजेय रही। लेकिन राम मंदिर मुद्दे पर उसकी दुविधा के बाद यह वर्ग धीरे-धीरे कांग्रेस से छिटकता गया। उल्टे कांग्रेस की यह छवि बन गई कि वह केवल अल्पसंख्यको की बात करती है। इसी संदर्भ में मनीष तिवारी के सवाल और सलमान खुर्शीद की हिंदुत्व पर टिप्पणी कांग्रेस को बैक फुट पर धकेलने वाले हैं। और मनीष तिवारी तो यूं भी कांग्रेस के बागी जी 23 के सदस्य रहे हैं।
वैसे किताबों में लिखी बातें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ-साथ निजी राय भी हो सकती हैं। लेकिन किताबों के प्रकाशन की जो टाइमिंग है, वो इनके राजनीतिक उद्देश्यों पर सवाल खड़े करती है। कांग्रेस यदि सलमान खुर्शीद के आरोप को सही ठहराती है तो पहले ही से छिटके हुए हिंदू वोटरों को और नाराज करना होगा और पल्ला झाड़ती है तो अल्पसंख्यकों में उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगेगा। उधर मनीष तिवारी ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर जो परोक्ष हमला किया है, उसका कोई संतुष्टिकारक जवाब शायद ही किसी के पास हो। हो सकता है की तत्कालीन मनमोहनसिंह सरकार ने व्यापक दृष्टि से पाक पर जवाबी हमला न करने को ही उचित माना हो, लेकिन इसके पीछे उस सरकार की परिपक्वता थी या हमले के बाद से उपजने वाली संभावित स्थितियों से न निपट पाने का भय था, यह सवाल अनुत्तरित है। यूपी में सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा ही भाजपा के लिए यह स्थिति अनुकूल ही है, जो सर्जिकल स्ट्राइक की कामयाबी को हर चुनाव में जिंदा रखने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओ के ये ‘किताबी सवाल और टिप्पणियां’ वोटो के अंकगणित में ‘घाटा’ ही साबित करेंगे।