-संवैधानिक संस्था को नहीं रखा जा सकता खाली

भोपाल। सरकार की अदला-बदली में विभागों से ओहदेदारों की आवाजाही कई संस्थाओं के लिए मुश्किल का कारण बनी है। इसी दौर में मप्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग भी पदाधिकारी विहीन होकर रह गया। पिछले छह माह से खाली पड़ी इस संवैधानिक संस्था के सूनेपन ने अल्पसंख्यक समुदाय के लिए सुलभ न्याय के दरवाजों पर तालाबंदी कर दी है। यहां हर दिन पहुंचने वाली सैकड़ों शिकायतों और उनसे बनने वाली न्याय की उम्मीदों का रास्ता फिलहाल बंद पड़ा हुआ है। निगम-मंडलों में नियुक्ति के लिए हो रही देरी के बीच इस संवैधानिक संस्था को भी सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है। यह स्थिति न सिर्फ संवैधानिक प्रक्रिया को रोकने जैसी कही जा सकती है, बल्कि सरकार की मंशा ने लोगों को मिलने वाली तात्कालिक राहत से भी वंचित कर दिया गया है।
जानकारी के अनुसार आयोग में पदस्थ रहे आखिरी अध्यक्ष न्याज मोहम्मद खान का कार्यकाल 20 जुलाई को समाप्त हुआ था। इनके साथ ही यहां मौजूद सदस्यों लालभाई कमाल भाई, डॉ. आनंद बर्नाड और टीडी वैद्य भी निवृत्त हो गए। इनके अलावा आयोग के एक और सदस्य डॉ. अमरजीत सिंह भल्ला का कार्यकाल इन सबसे तीन माह पहले ही समाप्त हो गया था। सरकार बदल के दौर में कांग्रेस ने अपने अंतिम दिनों में आनन-फानन में एक सदस्य के रूप में यहां नूरी खान की नियुक्ति की थी, लेकिन बाद में प्रदेश में भाजपा सरकार के काबिज होने से इस नियुक्ति को चुनौती दे दी गई और मामला अब अदालत की दहलीज पर ठोकरें खा रहा है। इन हालात के चलते राज्य अल्पसंख्यक आयोग फिलहाल उधार के सचिव और चंद कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है। जबकि यहां होने वाले संवैधानिक काम ओहदेदारों की कमी के चलते रुके हुए हैं।
सुलभ न्याय की पहली सीढ़ी
जानकारी के मुताबिक राज्य अल्पसंख्यक आयोग से उन लोगों को बड़ी राहत की उम्मीदें लगी होती हैं, जो सीधे सरकार के पास जाने या अदालतबाजी से बचने के रास्ते तलाशते हैं। यहां हरदिन पहुंचने वाली सैंकड़ों शिकायतों पर संवैधानिक दायरे में सुनवाई और कार्यवाहियां होती हैं। कुछ मामलों में सरकार को अनुशंसाएं भी यहां से की जाती हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे मामले भी होते हैं, जिनमें पीडि़त पक्ष को न्याय दिलाने के लिए आयोग आरोपित को अपनी अदालत में बुलाकर फैसले करने का अधिकार रखता है। बताया जाता है कि आयोग में अध्यक्ष रहे इब्राहिम कुरैशी, अनवर मोहम्मद खान और न्याज मोहम्मद खान के कार्यकाल में कई बड़े मामलों में आयोग ने पीडि़त व्यक्तियों को न्याय दिलाने के लिए बड़े फैसले देकर लोगों को राहत पहुंचाई है।

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अधिकार सिर्फ पदाधिकारियों को
प्रदेश में पिछले कई महिनों से खाली पड़े आयोगों की व्यवस्था फिलहाल सरकारी अधिकारियों द्वारा देखी जा रही है लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि आयोग में अधिनियम में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करने का अधिकार सिर्फ इसके पदाधिकारियों को ही होता है। जबकि इसमें मौजूद सरकारी अधिकारी ओहदेदारों द्वारा दिए गए निर्देशों पर कार्य करने या व्यवस्था बहाल करने का काम कर सकते हैं।

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मंत्री को नहीं मिल सकता दायित्व
निगम-मंडलों में नियुक्ति का मामला टलने के साथ सरकार ने इस बात के आदेश जारी किए हैं कि सभी निगम-मंडलों की व्यवस्था पदाधिकारियों की नियुक्ति होने तक संबंधित विभाग के मंत्री संभालेंगे। संभवत: इसी आदेश को आयोगों पर भी लागू मान लिया गया है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सभी तरह के आयोग संवैधानिक दायरे से बंधे हुए हैं, जिसमें एक छोटी अदालत का वजूद होता है। इससे होने वाले काम या फैसले कभी-कभी सत्ता पर काबिज सरकार के खिलाफ भी जा सकते हैं। ऐसे में किसी मंत्री या राजनीतिक व्यक्ति को यहां पदस्थ नहीं किया जा सकता। किसी राजनीतिक व्यक्ति के आयोग में नियुक्त होने के बाद उसका राजनीतिक दायरा भी स्वत: ही समाप्त मान लिया जाता है।

खान अशु

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