दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है. सात फरवरी को विधानसभा की सभी 70 सीटों के लिए मतदान होगा. पिछली बार की तरह इस बार भी सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में जोर-शोर से जुट गई हैं. मुक़ाबला आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच है. हर कोई अपने को दूसरे से बेहतर साबित करने की कोशिश में लगा है. इसके लिए प्रचार के नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं.
चुनावी सर्वे को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की परंपरा आम आदमी पार्टी ने साल 2013 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में शुरू की थी. उस दौरान जो भी स्थापित सर्वे एजेंसियां थीं, उनमें से अधिकांश ने आप को चार से 10 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था. आप ने अपने इंटरनल सर्वे को आधार बनाया और उसके आधार पर चुनाव प्रचार किया. इसका फ़ायदा उसे मिला और अंतत: वह 28 सीटें जीतने में सफल हुई. इस बार भी वह ऐसा ही कुछ कर रही है. इस बार भी उसने प्रचार के लिए अपने पक्ष में आए टोटल टीवी के सर्वे को चुनावी हथियार बनाया है. इस सर्वे के मुताबिक, आप को 48 प्रतिशत लोगों ने वोट देने की बात कही है, जबकि भाजपा 40 प्रतिशत लोगों की पसंद है. इसके अलावा इस बार आम आदमी पार्टी ने एक नई परंपरा शुरू की. पिछली बार उसने अपना चुनाव प्रचार तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को केंद्र में रखकर किया था, लेकिन इस बार उसने विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों की खुद ही घोषणा कर दी और उनकी तुलना अरविंद केजरीवाल से करते हुए चुनाव प्रचार शुरू किया. आप ने भाजपा के जगदीश मुखी को अपनी ओर से मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया और उनके मुकाबले मुख्यमंत्री पद की दौड़ में केजरीवाल को अपनी पहली पसंद बताया. इस आधार पर उसने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की.
आप को मात देने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने आख़िरी समय में अपने पत्ते खोले. चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद सबसे पहले कांग्रेस ने अजय माकन जैसे साफ़ छवि वाले नेता को चुनाव प्रचार की कमान सौंप दी. दूसरी तरफ़ भाजपा ने एक बड़ा दांव खेलते हुए लोकपाल आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल की सहयोगी रह चुकीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को पार्टी में शामिल करा लिया. यही नहीं, उन्हें दिल्ली के चुनावी समर में उतारने की घोषणा भी कर दी.
विभिन्न सर्वे एजेंसियां टीवी चैनलों के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव के लिए सर्वे कर रही हैं. इस कड़ी में बीते दिसंबर में इंडिया टुडे ग्रुप और सिसरो ने दिल्ली की 70 विधानसभा क्षेत्रों के अलग-अलग आयु वर्ग के 4,273 लोगों की राय जानी कि मुख्यमंत्री के रूप में उनकी पहली पसंद कौन है? जवाब में 35 प्रतिशत लोगों ने अरविंद केजरीवाल को अपनी पहली पसंद बताया, जबकि 19 प्रतिशत लोगों ने डॉ. हर्षवर्धन, नौ प्रतिशत लोगों ने शीला दीक्षित और आठ प्रतिशत लोगों ने दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली को अपनी पसंद बताया. सर्वे तीन अलग-अलग आयु वर्ग (18-35, 35-50 और 50-75 वर्ष) के लोगों के बीच किया गया था. लेकिन, जब पार्टी के आधार पर वोट डालने की बात आई, तो लोगों ने भाजपा को पहली पसंद बताया. इस आधार पर भाजपा को 34 से 40 सीटें, आप को 25-31 सीटें और कांग्रेस को 03-05 सीटें मिलने की संभावना जताई गई.
चुनावी सर्वे को अन्य राजनीतिक दल और उम्मीदवार भी अपना हथियार बना रहे हैं. हर विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवार अपना सर्वे करा रहे हैं और अनजान एजेंसियों के नाम से लोकप्रियता के मामले में खुद को सबसे आगे दिखा रहे हैं तथा भावी विधायक के रूप में खुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं. कोंडली विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक अमरीश सिंह गौतम ने भी क्षेत्र में एक पोस्टर लगवाया, जिसमें उन्होंने एक सर्वे का हवाला देते हुए खुद को क्षेत्र के 61 प्रतिशत लोगों की पसंद बताया. पिछली बार इस विधानसभा क्षेत्र से जीतने वाले आम आदमी पार्टी के मनोज कुमार को केवल 11 प्रतिशत लोगों की पसंद बताया गया. ऐसा ही राजधानी के अन्य इलाकों में भी हो रहा है. सर्वे रिपोर्ट्स की बाढ़-सी आ गई है. मतदाता कन्फ्यूज हो गया है और राजनीतिक दलों के इस हथकंडे को नज़रअंदाज़ कर रहा है. शायद अब उसका यकीन सर्वे रिपोर्ट्स में नहीं रह गया है.
फिलहाल उक्त चुनावी सर्वे के जो परिणाम निकल कर सामने आ रहे हैं, उनमें एक बड़ा विरोधाभास है. वह यह कि जितनी बार सर्वे हो रहे हैं, उनके परिणामों में हर बार भाजपा को मिलने वाली सीटों की संख्या में इजाफा होता दिख रहा है. दूसरी तरफ़ केजरीवाल मुख्यमंत्री होंगे, ऐसे भी परिणाम सामने आ रहे हैं. व्यवहारिक रूप में दोनों ही बातें एक साथ पूरी नहीं हो सकतीं कि भाजपा को सबसे ज़्यादा सीटें मिलें, लेकिन केजरीवाल मुख्यमंत्री बनें. एक प्रमुख बात यह भी है कि भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियों ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने उम्मीदवार घोषित ही नहीं किए थे. ऐसे में, केजरीवाल का मुख्यमंत्री के रूप में लोगों की पहली पसंद बनना लाजिमी था.
आप को मात देने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने आख़िरी समय में अपने पत्ते खोले. चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद सबसे पहले कांग्रेस ने अजय माकन जैसे साफ़ छवि वाले नेता को चुनाव प्रचार की कमान सौंप दी. दूसरी तरफ़ भाजपा ने एक बड़ा दांव खेलते हुए लोकपाल आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल की सहयोगी रह चुकीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को पार्टी में शामिल करा लिया. यही नहीं, उन्हें दिल्ली के चुनावी समर में उतारने की घोषणा भी कर दी. इन दोनों नामों के सामने आने के बाद स्थिति यह बनी कि अब तक जो भी सर्वे हुए हैं, वे सभी आधारहीन हो जाएंगे. कांग्रेस और भाजपा के क़दमों का भी दिल्ली की जनता पर सीधा फ़़र्क पड़ेगा. इसलिए आगे जो भी सर्वे रिपोर्ट्स आएंगी, उनमें भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा.