झारखंड के वरिष्ठ अधिकारियों पर उठ रहे भ्रष्टाचार और अनियमितता के सवालों से राज्य के प्रशासनिक हलकों में अस्थिरता का माहौल बन गया है. अपने तीन साल पूरे करने वाली पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार अब नौकरशाहों पर उठ रहे सवालों को लेकर सांसत में फंसी नजर आ रही है. विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाकर सदन की कार्यवाही में व्यावधान डाल रहे हैं. विपक्षी नेताओं के सवाल भी जायज हैं. आखिर मुख्यमंत्री इन दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं? भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेन्स की बात करने वाले मुख्यमंत्री राज्य के तीन शीर्ष अधिकारियों पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? झारखंड में भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लंबी फेहरिस्त है. किसी अन्य मामले में झारखंड की पहचान भले ही देश में न हो, पर भ्रष्ट राज्यों की अगर सूची अगर बनाई जाय, तो शायद यह राज्य पूरे देश में शीर्ष स्थान पर काबिज हो जाएगा.
भ्रष्ट अधिकारियों को बर्खास्त करने की मांग को लेकर सम्पूर्ण विपक्ष ने एकमत से विधानसभा में सरकार का विरोध किया. इससे बजट सत्र भी प्रभावित हुआ. हालांकि भारी हंगामे के बीच ही आम बजट एवं अनुपूरक बजट पारित करा लिया गया. अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर विपक्षी दलों ने तल्ख तेवर में सरकार को चेतावनी दी है कि जब तक इन अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की जाती है, तब तक वे सदन को नहीं चलने देंगे. राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा और अवर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह चारा घोटाले में फंसे हैं, डीजीपी डीके पाण्डेय फर्जी मुठभेड़ के मामले में घेरे में हैं, अपर पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता और मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार पर राज्यसभा चुनाव के दौरान विधायकों को डराने और सौदेबाजी करने के आरोप हैं. खुद को ईमानदार और पाक-साफ बताने वाले मुख्यमंत्री ने इन अधिकारियों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की, उल्टा इन्हें बचाने के उपक्रम किए जा रहे हैं.
सुशासन के ज़िम्मेदारों पर कुशासन का आरोप
चारा घोटाले में घिरीं राज्य की मुख्य सचिव के मामले में सरकार के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय ने ही मोर्चा खोल दिया है. राज्य के संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने एक निजी बैंक के वरीय अधिकारी का एक पत्र जारी किया है, जो राजबाला वर्मा द्वारा उस बैंक अधिकारी पर अपने बेटे की कंपनी में निवेश के लिए दबाव बनाने के बारे में है. इस पत्र के सार्वजनिक होने के बाद बाद प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मचा हुआ है. मंत्री सरयम राय भी मुख्य सचिव पर कार्रवाई को लेकर सरकार पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं. उन्होंने मुख्य सचिव के खिलाफ कार्रवाई करने के बाबत मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिखा है. इसके साथ ही सरकार में शामिल गठबंधन दल आजसू ने भी मुख्य सचिव पर कार्रवाई करने की मांग की है. गौरतलब है कि राजबाला वर्मा के चाईबासा की उपायुक्त रहते हुए चाईबासा कोषागार से 35 करोड़ की अवैध निकासी फर्जी आवंटन पत्र के सहारे की गई थी. चूंकि उपायुक्त, कोषागार के नियंत्री पदाधिकारी होते हैं, इसलिए सीबीआई ने राजबाला वर्मा को भी दोषी मानते हुए उन्हें पत्र भेजा था. सीबीआई द्वारा 22 बार रिमाइंडर भेजे गए, लेकिन राजबाला वर्मा ने कोई जवाब नहीं दिया. अब जब मामला तूल पकड़ने लगा तो मुख्यमंत्री ने खानापूर्ति की और कार्मिक विभाग ने एक पत्र भेजते हुए पन्द्रह दिनों के अंदर जवाब मांगा. मुख्य सचिव ने भी रटा-रटाया सा जवाब कार्मिक को भेजते हुए लिखा है कि उन्हें इस चीज की भनक भी नहीं थी कि कोषागार से अवैध निकासी हो रही है. मुख्य सचिव को यह भली-भांति पता है कि मुख्यमंत्री उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने वाले हैं. गौर करने वाली बात यह भी है कि मुख्य सचिव के रिटायरमेंट में मात्र एक माह ही शेष बचे हैं. नियमों के तहत अगर कार्रवाई के पूर्व ही मुख्य सचिव रिटायर हो जाती हैं, तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है, क्योंकि चार वर्ष से ज्यादा पूर्व के मामलों में किसी भी अधिकारी पर सरकार रिटायरमेंट के बाद कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है.
राज्य में आम बजट को लेकर जोर-शोर से तैयारी चल रही थी, उसी बीच वित्त विभाग के प्रधान सचिव सह राज्य के अपर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाला मामले में आरोपी बनाते हुए स्पष्टीकरण मांगा. सुखदेव सिंह जब देवघर के उपायुक्त थे, उस समय देवघर कोषागार से पशुपालन माफियाओं ने फर्जी आवंटन के आधार पर 85 लाख रुपए की अवैध निकासी कर ली थी. इस मामले में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सहित 16 लोग रांची जेल में सजा काट रहे हैं. सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा आरोपी बनाए जाने के बाद सुखदेव सिंह ने खुद को वित्त विभाग से हटाने का अनुरोध किया, क्योंकि कोषागार वित्त मंत्रालय के अधीन ही आता है.
सुशासन का राज स्थापित करने के जिम्मेदार शीर्ष पुलिस पदाधिकारी ही झारखंड में कुशासन को लेकर सवालों के घेरे में हैं. राज्य के पुलिस विभाग के मुखिया डीके पाण्डेय पर फर्जी एनकाउन्टर एवं फर्जी नक्सली बनाकर आत्मसमर्पण कराने जैसे कई गंभीर आरोप लगे हैं. डीके पाण्डेय बकोरिया फर्जी मुठभेड़ मामले में बुरी तरह से घिरे हैं, जहां 12 निर्दोष लोगों की हत्या कर उसे नक्सली-पुलिस मुठभेड़ का रूप दे दिया गया था. अब जब उसे लेकर सवाल उठने शुरू हुए हैं, तो पुलिस महानिदेशक अपने पद का दुरुपयोग करते हुए इस मामले की जांच को आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं. अगर कोई पुलिस अधिकारी इस मामले की फाईल खोलने की हिम्मत करता है, तो उसका स्थानान्तरण कर दिया जाता है. हाल में जब सीआईडी के एडीजी एमवी राव ने इस मामले की जांच को आगे बढ़ाना चाहा, तो आनन-फानन में राव का स्थानान्तरण दिल्ली कर दिया गया. पुलिस महानिदेशक ने एडीजी राव को यह हिदायत दी थी कि इस मामले की जांच में वे तेजी नहीं लाएं. इस बात को लेकर डीजीपी और एडीजी के बीच तीखी नोक-झोंक भी हुई. इस मामले को लेकर राव ने राज्यपाल एवं गृह सचिव को भी पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने डीजीपी डीके पाण्डेय के खिलाफ कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं. लेकिन इसके बावजूद पुलिस महानिदेशक की कुर्सी मुख्यमंत्री के आशीर्वाद से सुरक्षित बनी हुई है. ऐसी चर्चा है कि पुलिस महानिदेशक भाजपा के एक आला नेता के नजदीकी रिश्तेदार हैं यही कारण है कि इतने गंभीर आरोप के बाद भी वे कुर्सी पर डटे हुए हैं.
कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति
नौकरशाहों द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर नेताओं के हित में काम करने की घटनाएं भी झारखंड में देखने-सुनने को मिलती रहती हैं. ऐसे ही एक मामले में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता सवालों के घेरे में हैं. अनुराग गुप्ता जब सीआईडी के एडीजीपी थे, उस समय राज्यसभा चुनाव हुए थे. उस चुनाव के दौरान उनपर कांग्रेस विधायकों को धमकाने एवं प्रलोभन देने का आरोप लगा था. कांग्रेस के दो विधायकों निर्मला देवी एवं बिट्टू सिंह पर एडीजीपी ने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के लिए दबाव डाला था. अनुराग गुप्ता ने दोनों विधायकों से यह भी कहा था कि अगर वे भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करते हैं, तो दोनों पर दायर अपराधिक मामले हटा लिए जाएंगे, अन्यथा उन्हें परिणाम भुगतना पड़ सकता है. उन दोनों विधायकों से अनुराग गुप्ता की बातचीत सीडी जारी होने के बाद राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया था और उनकी बर्खास्तगी की मांग होने लगी थी. चुनाव आयोग ने भी इसे गंभीरता से लिया और राज्य सरकार को पत्र लिखकर अनुराग गुप्ता के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आदेश दिया था. ऐसा ही आरोप मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार पर भी है. अजय कुमार पेशे से पत्रकार हैं और मुख्यमंत्री रघुवर दास के काफी करीबी माने जाते हैं. भाजपा के राज्यसभा प्रत्याशी महेश पोद्दार के लिए निर्दलीय सहित अन्य विधायकों को येन-केन प्रकारेण भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में कराने की जिम्मेदारी अजय कुमार को सौंपी गई थी. अजय कुमार ने अनुराग गुप्ता के साथ मिलकर विपक्षी और निर्दलीय विधायकों पर भाजपा के पक्ष में मतदान करने के लिए दबाव डाला था. इस मामले में चुनाव आयोग ने जब अजय कुमार पर कार्रवाई करने को कहा और जब विपक्ष ने इसे सरकार के खिलाफ मुद्दा बनाया, तो अजय कुमार को राजनीतिक सलाहकार के पद से हटाकर मुख्यमंत्री का प्रेस सलाहकार बना दिया गया. अजय कुमार के प्रति मुख्यमंत्री की कृपा के पीछे भी एक बड़ा कारण है. ऐसी चर्चा है कि एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र में कार्यरत अजय कुमार जब भाजपा से संबंधित खबरे देखते थे उस समय रघुवर दास ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के खिलाफ खबरे प्रकाशित कराने में उनका सहयोग लिया था. झारखंड की राजनीति में अर्जुन मुंडा और रघुवर दास एक-दूसरे के घोर विरोधी माने जाते हैं और दोनों में छत्तीस का रिश्ता है. मुख्यमंत्री बनने के बाद रघुवर दास ने अजय कुमार को पुरस्कृत करते हुए उन्हें अपना राजनीतिक सलाहकार बनाकर अहसान का बदला चुका दिया.