कल दो अक्टूबर 2022 की रात के साढ़े आठ बजे के आसपास, नाशिक के प्रायव्हेट अस्पताल में, कॉम्रेड कुमार शिरालकर कुछ समय से प्रोस्टेट के कैंसर की बीमारि के कारण एडमिट थे ! लेकिन कल रात को मै सोने से पहले मोबाइल चेक करते हुए ! दिनानाथ मनोहर की अंग्रेजी में दो लाईन की फेसबुक पोस्ट थी ! “कि कुमार शिरालकर इज नो मोअर !”


निंद आने का कोई सवाल ही नहीं था ! लगभग पचास साल से भी अधिक समय का मेरे गृह जिला धुलिया (अब विभाजित होकर नंदुरबार यह नया आदिवासी बहुल तालुकाओ को मिलाकर जिला बन गया है ! ) जो सातपुडा पर्वत के गोद में बसा हुआ है ! और पस्चिम दिशा में गुजरात और उत्तर में मध्य प्रदेश, जो नर्मदा ( जिसे आदिवासी रेवा बोलते हैं ! ) और तापी नदीयो की सिमा तक ! लगभग पचहत्तर प्रतिशत आदिवासीयो की, हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता है ! जिसमें भिल्ल, पावरा, गावित, कोंकणे इत्यादि जातियों के आदिवासी बहुल, क्षेत्र को धुलिया जिले का अंदमान बोला जाता था ! वहां किसी भी सरकारी विभागों के कर्मचारियों का तबादला, यानि कालापानी की सजा माना जाता था !
क्योंकि हमारे देश के बहुसंख्यक आदिवासीयो के क्षेत्र में, आजादी के बाद भी ! आवागमन की सुविधा नही के बराबर ! और अन्य तथाकथित विकास भी नही के बराबर ! इस कारण आदिवासीयो का शोषण, तथाकथित अगड़ी जाती के लोग उन क्षेत्रों में घुसकर (जिन्हें झारखंड में दिकू मतलब डाकू बोला जाता है ! ) कर रहे ! यह बात भी धुलिया जिले के काफी लोगों को पता भी नहीं थी !
साठ के दशक में आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के कारण ! उस क्षेत्र में विनोबा के एक अनुयायी श्री. दामोदर दास मुधंडा नाम के सर्वोदयी व्यक्ति ने सातपूडा सर्वोदय मंडल की स्थापना करने के बाद ! वहां आदिवासीयो के बच्चों के लिए स्कूल, कंट्रोल के अनाज की दुकानें तथा अन्य सुधार के कार्यक्रम की शुरुआत की है ! उन्हें भील्ल समाज में एक अंबरसिंग सुरवंती नामके अध्यात्मिक रुचि के युवा नेता ! जिन्हें लोग अंबरसिंग महाराज के नाम से पुकारते थे ! वह भी सातपूडा सर्वोदय मंडल के कामों में रुचि लेने लगे ! तो वहां की दबंग गुजर पाटील जाती के लोगों ने, गुजरात से इस क्षेत्र में आकर ! आदिवासीयो को कर्ज देने की शुरुआत ! (भारत के बहुसंख्यक आबादी में राजस्थान के अकालग्रस्त मारवाड़ के क्षेत्र से निकल कर मारवाड़ी, लगभग संपूर्ण देश में कोने – कोने में फैल गये हैं ! और यही कर्ज देने और अन्य व्यापार के बल पर देश के संपन्न लोगों में शुमार हो गया है ! और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर यहुदीयो को हजारों वर्ष से यही बोला जाता है ! )

मुंधडाजी के बाद सत्तर के दशक में महाराष्ट्र सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष श्री गोविंदराव शिंदे बनने के बाद उन्होंने इस मामले में ज्यादा रुचि लेना शुरू किया और बाबा आमटेजिकी श्रमसंस्कार शिबीरार्थियो के संपूर्ण देश के हजारों की संख्या में युवक-युवतियों को देखते हुए उन्होंने सत्तर के दशक में बाबा आमटेजिको भी शहादा तालुका मे आदिवासीयो की जमीन गैरआदिवासियोने सदियों से दखल कर के रखि हुई है ! इस विषय पर ध्यान दिलाने के लिए विशेष रूप से बुलाया ! तथा उनके उपस्थिति में, हजारों की संख्या में संपूर्ण सातपूडा के गोद में बैठे हुए ! आदिवासीयो के संमेलन आयोजित किए गए ! और उन्हीं के सोमनाथ प्रकल्प से कुछ युवाओं ने भी इस प्रश्न का महत्व समझने के बाद ! शहादा में जाने का निर्णय लिया !

उसमें कुमार शिरालकर, दिलीप कामत, दिनानाथ मनोहर, विजय कान्हेरे इत्यादी लोग सोमनाथ (महाराष्ट्र के पुराने चंद्रपूर जिले का मुल तालुका मे का क्षेत्र ! अब शायद गडचिरोली जिला बनने के बाद उसका हिस्सा है ! ) प्रकल्प से शहादा पहले सातपूडा सर्वोदय मंडल के अंतर्गत ग्राम स्वराज्य समिति के बॅनर तले काम शुरू किया फिर बाद में कुछ मतभेदों की वजह से श्रमिक संघठना के अलग बॅनर से काम शुरू किया ! और लगभग दस हजार एकड से भी अधिक जमीन जो गैरआदिवासियोने सदियों से दखल कर के रखि हुई थी उसे मुक्त करने के बाद आदिवासीयो को देने का ऐतिहासिक आंदोलन सत्तर से अस्सी के दशक में शायद भारत की आजादी के बाद पहली बार इस तरह की कामयाबी शहरों से आए कुछ युवाओं ने स्थानीय लोगों के सहयोग से इस तरह की लड़ाई को अंजाम देने की कोशिश की है ! जिसमें कुमार शिरालकर का नेतृत्व उभरकर सामने आया है !


महाराष्ट्र में सत्तर के दशक में, भारत में और संपूर्ण विश्व में, जो भी उथल-पुथल हो रही थी ! उसे लेकर पुणे – मुंबई और बाद में मराठवाडा में, एक “युवक क्रांती दल” नाम का गुट मुख्यतः समाजवादी युवा और युवतियों का, कायम हुआ था !


उसमें कुमार शिरालकर अपनी आई आई टी पढ़ाई खत्म करने के बाद, मुंबई में प्रिमियर अॉटोमोबाईल के कारखाने में नौकरी करने लगा था ! लेकिन देश और दुनिया की स्थिति को देखकर ! उसने नौकरी छोड़कर, पहले विदर्भ के बाबा आमटेजिकी सोमनाथ के प्रकल्प पर अन्य और भी युवाओं के साथ काम करना शुरू किया ! जिसमें गोवा का अजित, नाशिक का दिनानाथ मनोहर, ठाणे का नागेश हटकर, बेलगांव के दिलिप कामत जैसे मध्यवित्त वर्ग के पढे – लिखें युवा बाबा आमटेजिके साथ जुडकर कुछ नवनिर्माण का काम कर रहे थे ! और गोविंदराव शिंदे जी की पहल पर, सातपूडा सर्वोदय मंडल के बॅनर तले ! ग्राम स्वराज्य समिती का गठन करने के बाद, शहादा तालुका के आदिवासियों के साथ अपनी मध्य – वित्त वर्ग की आदतों को छोड़कर ! ( मार्क्सवादी भाषा में डीक्लास होकर ! ) सातपूडा पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में, ज्यादा तर पैदल और आदिवासियों की घास-फूस की झोपड़ीओ में रहकर, उन्हीं के जैसा खान – पान करके रहना भी एक बहुत बड़ी क्रांतिकारी बदलाव की बात है ! जो इन युवाओं ने संपूर्ण समर्पण भाव से आदिवासीयो के साथ घुलमिल कर, आज से चालीस साल पहले की, यह संपूर्ण रूप से जनाधारीत आंदोलन की दास्तानगोई के केंद्र में, कुमार शिरालकर के निधन के पहले तक, उन्होंने अपने जीवन के बेहतरीन पचास साल से भी अधिक समय देकर ! कुछ आदिवासीयो के जीवन को बेहतर बनाने का काम किया है ! ऐसे हमारे चे ग्वारा के हमारे बीच नहीं रहने की कसक, मुख्य रूप से वर्तमान समय में !


भारत के सभी परिवर्तनवादी समुहो के कार्यक्षेत्र भी, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के चपेट में आ गए हैं ! शायद ही कोई ऐसा गांव या क्षेत्र बचा हो जो आज “सवाल आस्था का है कानून का नही” के नारे के साथ है !
यही नंदुरबार और बगल में गुजरात के डांग – अहवा के क्षेत्र में 2004 में, आसिमानंद और अन्य हिंदुत्ववादीयो के तरफसे चलाए गए अभियान “कि आप राम को झुठे बेर खिलाने वाली शबरी के वंशज हो !” और इतनी सी बात पर, उन्हें भी हम हिंदु है ! करके एक पहचान मिली ! और सबसे पहले ख्रिस्ती धर्म के लोगो के तरफसे चलाए जा रहे, निवासी स्कूलों को जलाने और तोडने का काम शुरू किया ! (बगल के नवापूर से चंद फासले पर गुजरात सिमा के अंदर के स्कूलों की बात कर रहा हूँ ! ) और बाद में 2002 के गुजरात दंगों के समय, इस क्षेत्र में भी चुन – चुनकर मुस्लिम समुदाय के, और ख्रिश्चन धर्म के, आदिवासियों के उपर हमले किए गए हैं ! और मुरारीबापु के फोटो जगह – जगह लगे, हुए मैंने अपनी आंखों से देखें हैं ! और मैंने अपने अनुभवों को लेकर, कॉम्रेड शरद पाटील, वहारु सोनवणे से लेकर, किशोर ढमाले, प्रतिभा शिंदे, दिनानाथ मनोहर, कुमार शिरालकर, मेधा पाटकर और अन्य उस क्षेत्र में काम करने वाले सभी मित्रों को विशेष अनुरोध करके कहा “कि आप लोगों की संपूर्ण जिंदगी आदिवासीयो के जमीन के पट्टे दिलाने के लिए चली गई ! लेकिन सांस्कृतिक स्तर पर, सिर्फ राम का नाम लेकर संघ के लोग उनपर चंद दिनों के भीतर ही हिंदुत्व के रंग में आदिवासियों को रंगने में कामयाब हुए हैं !


जैसे कारखाने के मजदूर भी, बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में शामिल हुए थे ! और बोनस तथा अपने अन्य मांगों को लेकर कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट युनियनो के झंडे के निचे, अपनी मांगों को मनवाने के लिए ! आप सभी का सहयोग प्राप्त करने के बावजूद ! “सवाल आस्था का है, कानून का नही यह घोषणा के साथ आराम से हो गए हैं !” यह हमारे देश के समस्त जनांदोलनों की स्थिति है !


आज भारत – जोडो, नफरत – छोडो का नारा देकर, हम सभी ने बहुत ही देर कर दी है ! क्योंकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से हमारे अपने घर भी बचे नही है ! जब लालकृष्ण आडवाणी ने, सोमनाथ से रथयात्राओ का दौर शुरू किया था ! और आज से बत्तीस साल पहले, भागलपुर दंगे के बाद ! मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर, दंगों की राजनीति में गुजरात तेरह साल बाद आया है ! उसके पहले, समस्त भारत की बहुआयामी संस्कृति को नष्ट करने की कृती को क्या कहेंगे ? हमारे अपने आर्थिक और, जिनके हक के आंदोलन चलते रहते हुए ! हमारे अपने भी जनाधार के भीतर ही हिंदुत्व के जंतुओं ने कब प्रवेश किया ? हमें किसिको भी पता नहीं चला ! हम अपने – अपने आंदोलनों में मश्गुल रहे ! आज हमने बहुत ही महत्वपूर्ण साथी को खोया है ! उसके प्रति सही-सही श्रद्धांजली ! वर्तमान ध्रुवीकरण के खिलाफ सभी साथियों ने एकजुट होकर काम करने के संकल्प लेना ही सही श्रद्धांजली होगी ऐसी मेरी मान्यता है !
डॉ सुरेश खैरनार 3 अक्तुबर 2022, नागपुर

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