प्रदेश में भाजपा की ये अंदरूनी लड़ाई कितनी बढ़ चुकी है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ के प्रभारी सह संगठन सौदान सिंह अपने रायपुर दौरे के दौरान सरकार के 5 हज़ार दिन वाले किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. वे ज़्यादातर वक्त बीजेपी के अंदर के झगड़ों को सुलझाने में लगे रहे. पार्टी कार्यालय में मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ हुई उनकी दो घंटे की बातचीत को लेकर भी काफी कयास लगाए गए.


Raman-Singhछत्तीसगढ़ में भाजपा के आला नेताओं के बीच घमासान मचा है. हालांकि घमासान पहले भी था, लेकिन अब यह साफ-साफ दिख रहा है. पिछले एक-दो महीनों के घटनाक्रम और नेताओं के बयान को देखें, तो पता चलता है कि पार्टी में एक तरफ सत्ता के लिए संघर्ष मचा है, तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को निपटाने की कोशिशें हो रही हैं. मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह अपनी कुर्सी बचाने और खतरा बन चुके प्रतिद्वंदी को निपटाने में लगे हैं, तो उनके विरोधी उन्हें निपटाने में. इन सब के बीच संघ के छत्तीसगढ़ के प्रमुख नेता पुर्णेंदु सक्सेना की सत्ता के गलियारों में बढ़ती सक्रियता भाजपा के समीकरणों को दिलचस्प बना रही है.

हालांकि भाजपा के अंदर शुरू से ही सत्ता का संघर्ष रहा है, लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक आलाकमान पर रमन सिंह की पकड़ इतनी मज़बूत रही कि उनके विरोधी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके. लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य में भाजपा के अंदर नए समीकरण बने जिससे हालात बदल गए. जब रमन सिंह के धुर विरोधी नंदकुमार साय का टिकट काटकर उनकी जगह रामविचार नेताम को राज्यसभा भेजा गया, तब लगा कि रमन सिंह ने अपने एक और विरोधी का शिकार कर लिया. लेकिन रमन सिंह को झटका तब लगा, जब केंद्र सरकार ने नंदकुमार साय को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाकर रमन सिंह के समानांतर खड़ा कर दिया. नंदकुमार साय ने सबसे पहले कुनकुरी ज़मीन घोटाले की जांच करवाई, जिससे सरकार की किरकिरी तय है. विधानसभा चुनाव के बाद हुए लोकसभा चुनाव में एक मात्र सीट पर हारने वाली प्रत्याशी थीं सरोज पांडेय. आज सरोज पांडेय अमित शाह की टीम में राष्ट्रीय महासचिव हैं. कहा जाता है कि सरोज पांडेय को निपटाने में रमन सिंह के चहेते नौकरशाह की अहम भूमिका रही है. सरोज पांडेय की महात्वाकांक्षा रमन सिंह के लिए खतरा बन रही थी. लेकिन हारने के बाद भी राष्ट्रीय महासचिव बनकर सरोज पांडेय फिर से ताकतवर हो गई हैं. वहीं प्रदेश भाजपा में नंबर टू माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मोदी और अमित शाह से नजदीकियां बढ़ाकर अपनी ताकत बढ़ा ली है. कुल मिलाकर मोदी और शाह की जोड़ी ने रमन सिंह की वजह से कमज़ोर पड़ चुके उनके विरोधियों को ताकत देकर रमन सिंह की घेरेबंदी कर दी है.

पीएम मोदी की कार्यशैली से वाकिफ जानकार कहते हैं कि मोदी अपने लिए भविष्य के राजनीतिक प्रतिद्वंदी पनपने नहीं देते. बतौर मुख्यमंत्री लंबी पारी खेलने वाले रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान को मोदी संभावित खतरे के रूप में देखते हैं. लिहाज़ा देर-सबेर वे इनके पर कतरेंगे ही. लेकिन अगर सीधे तौर पर इन दोनों मुख्यमंत्रियों पर हाथ डाला गया, तो भाजपा के अंदर से नाराज़गी सामने आ सकती है. दूसरा सबसे बड़ा खतरा है कि दोनों राज्यों में नए मुख्यमंत्री के साथ चुनाव लड़ना जोखिम भरा होगा, क्योंकि दोनों मुख्यमंत्रियों का ये तीसरा कार्यकाल है और वे पूरे प्रदेश को कई बार नाप चुके हैं. नया मुख्यमंत्री बनाने की सूरत में उसके पास इतना वक्त नहीं होगा कि उसे प्रोजेक्ट किया जा सके.

इन तमाम बातों का असर छत्तीसगढ़ भाजपा में मचे घमासान के रूप में दिख भी रहा है. दो महीने पहले ही सरोज पांडेय ने कार्यसमिति की बैठक के बाद सार्वजनिक रूप से ये बयान दिया कि अगला सीएम कौन होगा इसका फैसला भाजपा संसदीय समिति करेगी. ये कहते हुए सरोज पांडेय का आत्मविश्वास देखने लायक था. दूसरी तरफ अजीत जोगी को लेकर भी पार्टी के दो धड़ों के बीच तलवार खिंचती दिख रही है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति को लेकर हाईपावर कमेटी के फैसले में उन्हें आदिवासी नहीं माना गया है. इस आदेश के बाद कानूनन जोगी पर एफआईआर दर्ज होनी थी. लेकिन बिलासपुर प्रशासन ने जब ऐसा नहीं किया, तो इसे लेकर सीएम रमन सिंह निशाने पर आ गए. नंदकुमार साय ने सरेआम आरोप लगाया कि राज्य सरकार से जोगी को संरक्षण मिला हुआ है.

इसी बीच बृजमोहन अग्रवाल पर ज़मीन घोटाले के आरोप लगे. उसके बाद रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह के स्विस बैंक में अकाउंट का मुद्दा गरमाया. इन दोनों मामलों ने मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह और कृषिमंत्री बृजमोहन अग्रवाल की लड़ाई को सार्वजनिक रूप से सामने ला दिया. बृजमोहन खेमे के लोग ऑफ द रिकार्ड बताते हैं कि ज़मीन मामले में फंसाकर रमन सिंह अपने विरोधियों को निपटाने की नीति पर काम कर रहे हैं. इस मामले के सामने आते ही बृजमोहन अग्रवाल ने इसे अपने खिलाफ साज़िश बताया. उन्होंने ये भी कहा कि इसके जवाब में वे अब पुराने चिट्ठे खोलेंगे. ये मामला चल ही रहा था कि पनामा केस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद बेटे अभिषेक सिंह को लेकर रमन सिंह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के निशाने पर आए गए. ये बात भी सामने आई कि रमन सिंह के खिलाफ इस मामले को हवा देकर बृजमोहन ज़मीन मामले का बदला ले रहे हैं.

इसके बाद खबर आई कि रमन सिंह और बृजमोहन के बीच समझौता हो गया है. इसका असर भी देखने को मिला, जब अचानक ही विधानसभा की कार्रवाई स्थगित कर दी गई. इसे लेकर विपक्ष ने आरोप भी लगाया कि हम रमन सिंह और बृजमोहन के भ्रष्टाचार के मामले को न उठाएं इसलिए विधानसभा स्थगित की गई है. हालांकि एक-दूसरे के भ्रटाचार को लेकर इन दोनों नेताओं द्वारा किए गए समझौते की बात अटकलें ही साबित हुई. बीते दिनों मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि उन्होंने बृजमोहन के ज़मीन घोटाले की जानकारी केंद्रीय नेतृत्व को दे दी है. जब अमित शाह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए तो उन्हें बधाई देने के लिए दोनों नेताओं ने अलग-अलग मुलाकात की और अपने झगड़े पर अपना पक्ष भी रखा. बृजमोहन अग्रवाल से चुनौती मिल ही रही थी कि रमन सिंह के सबसे करीबी अमन सिंह के खिलाफ मिकी मेहता ने गलत तरीके से अथाह संपत्ति बनाने के आरोप लगा दिए. हालांकि इन आरोपों को खारिज करते हुए अमन सिंह ने मिकी मेहता पर मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया. लेकिन इससे भी रमन सिंह की खूब किरकिरी हुई.

प्रदेश में भाजपा की ये अंदरूनी लड़ाई कितनी बढ़ चुकी है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ के प्रभारी सह संगठन सौदान सिंह अपने रायपुर दौरे के दौरान सरकार के 5 हज़ार दिन वाले किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. वे ज़्यादातर वक्त बीजेपी के अंदर के झगड़ों को सुलझाने में लगे रहे. पार्टी कार्यालय में मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ हुई उनकी दो घंटे की बातचीत को लेकर भी काफी कयास लगाए गए. इस बैठक से प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को भी अलग रखा गया. ऐसी चर्चा थी कि सौदान आलाकमान का संदेश लेकर आए थे. हालांकि ये संदेश झगड़ा सुलझाने का था या चेतावनी देने का, ये पता नहीं चल पाया. गौर करने वाली बात है कि जिस वक्त सौदान सिंह और रमन सिंह की मीटिंग चल रही थी, उसी वक्त संघ के पुर्णेंदु सक्सेना विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के साथ उनके घर और विधानसभा में वन टू वन बैठक कर रहे थे. पुर्णेंदु इससे एक दिन पहले सीएम हाऊस में ही जन्माष्टमी के कार्यक्रम के दौरान सौदान सिंह से लंबी चर्चा कर चुके थे. पुणेंदु सक्सेना संघ मुखिया के बेदह करीबी हैं, चाहे सुदर्शन हों या फिर मोहन भागवत. जब भी सरसंघ चालक रायपुर आते हैं, पुर्णेंदु सक्सेना के यहां ही रुकते हैं. अब उनकी बढ़ती राजनीतिक सक्रियता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. मीडिया का एक तबका तो उन्हें भविष्य का मुख्यमंत्री भी बताने लगा है. कहा जा रहा है कि संघ उन्हें भविष्य के मुख्यमंत्री के तौर पर तैयार कर रहा है. जो भी हो, ये तो तय है कि पुर्णेंदु सक्सेना की राजनीतिक सक्रियता किसी खास रणनीति के तहत बढ़ाई गई है. इस परिप्रेक्ष्य में अपने सियासी भविष्य को लेकर रमन सिंह का ये बयान भी महत्वपूर्ण है. हाल ही में उन्होंने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि अगला सीएम तो दिल्ली से तय होगा, लेकिन अगर उनसे पूछा जाए, तो वे छत्तीसगढ़ में ही रहना पसंद करेंगे.

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