bhoodan movementआप लंबे समय से इस संगठन से जुड़े रहे हैं. अभी आप राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. तब और अब के बीच सर्व सेवा संघ में आप क्या अंतर देखते हैं?

सबसे बड़ा अंतर तो यही है कि पहले इस संगठन के पास विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश जी जैसा बड़ा नेतृत्व था. उनके जाने के बाद अब मुझे लगता है कि सर्व सेवा संघ का राष्ट्रीय महत्व कम हुआ है. उनके बाद की भी एक पीढ़ी थी, दादा धर्माधिकारी की, धीरेंद्र मजूमदार की. वे भी हमारे बीच नहीं रहे. हम तीसरी पीढ़ी के लोग हैं, जिनके भरोसे ये आंदोलन चल रहा है.

ये सही बात है कि हमारी राष्ट्रीय छवि अभी नहीं है. लेकिन सर्वोदय आंदोलन भूदान से जुड़ा रहा है और देश के अधिकांश भागों में भूदान की जमीनें मिली हैं. जिन लोगों को भूदान की जमीनें मिली हुई हैं, वे सब आज भी सर्वोदय को नाम से जानते हैं. इसलिए अभी भी गांव-गांव में सर्वोदय को याद करने वाले लोग हैं. भले ही अखबारों में हमारा नाम कम आता हो, लेकिन गांवों में अब भी हमारा गुडविल है और अब भी सर्व सेवा संघ में लोगों की बहुत आस्था है.

आपने कहा कि मौजूदा समय में आपकी राष्ट्रीय पहचान नहीं है. क्या कारण है कि वर्तमान समय में लोग आपकी विचारधारा के साथ नहीं जुड़ रहे हैं और इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानते  हैं?

हमारे संगठन का सदस्य बनने के लिए जरूरी शर्त है कि आपकी सत्य और अहिंसा में पूरी आस्था हो और आप किसी भी राजनीतिक दल से नही जुड़े हों. साथ ही आप किसी भी तरह का कोई पद धारण नहीं करेंगे, चाहे वो ग्रामसभा के प्रधान का पद ही क्यों न हो. पिछले कुछ समय में सत्ता का आकर्षण बहुत बढ़ा है. अभी जब ग्राम पंचायतों के पास बहुत से कोष आने लगे, तो कई लोग सोचने लगे कि कम से कम पंचायत का प्रधान तो मैं बन ही जाऊं. हमारे यहां इन सबकी पाबंदी है. कई लोगों को लगता है कि यहां आना अपना विकास रोकने जैसा है.

सर्व सेवा संघ की स्थापना से पहले गांधी जी ने इसके लिए तैयार किए गए दस्तावेज में लिखा था कि भारत के सात लाख गांवों में मुझे सात लाख जिंदा शहीद चाहिए. ऐसे कार्यकर्ता को समाज की कुरीतियों से लड़ना होता है, जातिवाद से लड़ना होता है, रूढ़िवादी परम्पराओं से लड़ना होता है. इसलिए ये आसान काम नहीं है. इस काम में कोई ग्लैमर नहीं है, इसलिए आम लोग इससे प्रभावित नहीं हो पाते हैं. भूदान कार्यक्रम का एक आर्थिक पक्ष था, इसलिए भी लोग उससे प्रभावित हुए. जो लोग विचारों की गहराई में जाते हैं, वे हमसे जुड़ते हैं.

आजादी की लड़ाई के साथ-साथ गांधी जी वैचारिक और सामाजिक सुधारों की भी एक लड़ाई लड़ते थे. उससे जुड़ने वाले लोगों के लिए उन्होंने ऐसी कोई पाबंदी नहीं रखी कि वे राजनीति नहीं कर सकते. क्या ये पाबंदी भी एक वजह है, लोगों के सर्व सेवा संघ के साथ नहीं जुड़ने का?

गांधी जी ने अपना अंतिम वसीयतनामा 29 जनवरी 1948 को लिखा. उसमें उन्होंने लिखा कि देश को आजादी मिलने के साथ ही अब कांग्रेस का काम खत्म हो गया है. कांग्रेस आजादी के लिए बना हुआ संगठन था. देश आजाद हो गया, अब उसका काम खत्म हो गया. इसको अब लोकसेवक संघ के रूप में बनाना चाहिए. यानि कांग्रेस एक राजनीतिक दल था. इसलिए राजनीतिक दल में सबको आने की छूट थी. लेकिन गांधी जी ने खुद कहा था कि अब उसका काम खत्म हो गया और उसको लोक सेवक संघ में विकसित करना चाहिए. हम भी उसीv विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं.

आपके अनुसार भूदान एक आर्थिक कार्यक्रम था, जिससे लोग जुड़े. मौजूदा समय में क्या आपके पास इस तरह का कोई कार्यक्रम है, जो जनसाधारण को अपने साथ जोड़ सके?

भूदान की तरह आज भी हमने भूमि से जुड़े सवालों को अपने हाथ में लिया है. नई आर्थिक नीति के बाद और खासकर पिछले चार-पांच वर्षों में सरकार छोटे किसानों और आदिवासी क्षेत्रों की जमीनें अधिग्रहीत कर रही है. पहले तो सरकार सार्वजनिक कामों के लिए जमीन अधिग्रहीत करती थी, लेकिन अब कंपनियों के लिए सरकार ने जमीन अधिग्रहीत करना शुरू कर दिया है.

एक बार जमीन छिन जाती है, तो फिर वो लौटकर नहीं आती. लोगों के पास पैसे तो आ जाते हैं, लेकिन बहुत कम लोग हैं जो दोबारा जमीन खरीदते हैं. जब तक पैसे रहते हैं, मौज करते हैं. एक जमाने में जो लोग जमींदार थे, उनमें से अनेक लोग आज झोपड़पटि्‌टयों में रहते हैं. जब तक पैसे थे गाड़ियां खरीदी, मौज किए.

सरकार से हमारा कहना है कि लोगों की जमीनें न छीनी जाएं. आर्थिक संसाधनों पर जनता का अधिकार रहना चाहिए. एक दूसरा मुद्दा है, पानी का. इसका भी व्यापारीकरण हो रहा है. इन दोनों मुद्दों को केंद्र में रखकर हम लोग आगे बढ़ रहे हैं. हमारा मानना है कि प्राकृतिक संसाधन पर जनता का अधिकार होना चाहिए. विकास के नाम पर जनता को संसाधनों से बेदखल नहीं किया जाना चाहिए. इस मुद्दे पर जनता हमारे साथ है. गुजरात में हमारा एक आंदोलन चल रहा है. शहरों की कंपनियों से निकलने वाले वेस्ट केमिकल को गांवों में डंपिंग साइट बनाकर उसमें डाल दिया जाता हैं.

उस वेस्ट केमिकल से ग्राउंड वाटर प्रदूषित हो जाता है. इससे गांवों में अनेक तरह की बीमारियां फैलती हैं. इसके कारण ही अहमदाबाद के बटवा में इंडस्ट्रियल एरिया के आसपास के गांवों में लोग चर्म रोग से प्रभावित हैं. वहां का पूरा ग्राउंड वाटर रंगीन हो गया है. शुरू में जब वहां कंपनियां स्थापित हुईं, तब लोग बहुत खुश थे कि उन्हें रोजगार मिलेगा. लेकिन अब उन्हें इसका अहसास हो रहा है कि ये अभिशाप बन गया है.

गुजरात में लगभग 60 हजार एकड़ भूदान की जमीन अभी तक वितरित नहीं हो सकी है. बिहार में भी भूदान की जमीन है. जमीन सही लोगों तक पहुंचे, इसमें सर्व सेवा संघ की क्या भूमिका रहेगी?

एक लाख तीन हजार एकड़ जमीन हमें गुजरात में मिली थी. उसमें से 52 हजार एकड़ जमीन बांटी गई. अभी भी 53 हजार एकड़ जमीन बची हुई है. इसके लिए हमारे ही कुछ लोग जिम्मेदार हैं, जो आंदोलन से जुड़े हुए थे. इसका एक और कारण है. विनोबा जी के समय में जब सभी राज्यों में भूदान एक्ट बना, जिसका ड्राफ्ट हमारे संगठन ने ही तैयार किया था, तब उस समय गुजरात नहीं था. उस समय बाम्बे राज्य था. बाम्बे राज्य में भूदान एक्ट नहीं बना. बाम्बे राज्य के नाम से एक नोटिफिकेशन निकाला था. वही नोटिफिकेशन आज तक गुजरात और महाराष्ट्र में चल रहा है.

इसे कुछ लोगों ने हाई कार्ट में चैलेंज किया था कि ये नोटिफिकेशन एक्ट नहीं है, अधिनियम नहीं. भूदान में ये नियम है कि भूदान की जमीन बिक नहीं सकती है. अहमदाबाद में एक बड़े वकील ने भूदान की जमीन खरीदी जिनका सत्ता पक्ष से संबंध है. उन्होंने कोर्ट में कहा कि कोई कानून नहीं है, जिसके द्वारा आप हमें जमीन खरीदने से रोक सकें. लेकिन हाई कोर्ट ने इसके खिलाफ फैसला दिया और कहा कि भूदान की जमीन गरीबों के लिए है, बेचने खरीदने के लिए नहीं.

एक तो इसे लेकर कानूनी ढिलाई रही और दूसरा ये कि जमीनें कई संस्थाओं के पास चली गईं. भूदान की जमीन भूमिहीन लोगों को मिलनी चाहिए. कुछ साल पहले बिहार सरकार ने लैंड रिफॉर्म कमीशन बनाया था. जिसकी अंतरिम रिपोर्ट में डी बंदोपाध्याय ने लिखा था कि 11,500 एकड़ भूदान की जमीन 59 संस्थाओं को दी गई है. ये सभी गांधी के नाम पर चलने वाली संस्थाएं हैं. विनोबा भावे जी ने जो जमीन गरीबों के लिए मांगी थी, वो संस्थाओं ने ले ली. वो या तो सर्वोदय की संस्था हो या कोई और सरकारी संस्था.

यदि इसके कारण जनता का विश्वास आपके ऊपर से घटता है या आपके प्रति गुस्सा बढ़ता है, तो वो गलत नहीं है. इसके लिए मैं व्यक्तिगत तौर पर लड़ रहा हूं. मैंने गुजरात में इस मुद्दे को उजागर किया. वहां के अखबारों ने भी इसे प्रमुखता से उठाया. शासन को भी नहीं मालूम था कि क्या करना है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि भूदान की जमीन लैंडलेस एग्रीकलचर के लिए है. ये फैसला 1988 में आया था. प्रावधान ये है कि जमीन नहीं बिकनी चाहिए, जबकि जमीन बिक रही थी. आरटीआई के जरिए जब रेवेन्यू डिपार्टमेंट से पूछा, तो कहा गया कि लॉ डिपार्टमेंट से पूछो.

इस तरह से टाल-मटोल किया जाता रहा. हम उन लोगों को संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी जमीनें छिन गई हैं. हाल ही में अहमदाबाद के साइंस सिटी में भूदान की 11 एकड़ जमीन एक करोड़ दस लाख में बेची गई. गौर करने वाली बात है कि उनमें से एक एकड़ जमीन की कीमत सात करोड़ है. गुजरात के सौराष्ट्र में भूदान की जमीन बड़े-बड़े राजनीतिक लोगों के पास है और वे नहीं चाहते हैं कि इसे भूमिहीनों में वितरित किया जाय.

ये सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि सर्व सेवा संघ का उद्देश्य है, सत्य, अहिंसा और शोषण से मुक्त समाज की स्थापना करना. लेकिन मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक दौर में ये कैसे संभव हो पाएगा?

ये एक दीर्घकालीन लक्ष्य है, साथ ही एक कठिन काम भी है. अब तक जो भी क्रांति हुई, चाहे वो कम्युनिस्टों की क्रांति हो, फ्रांस की क्रांति हो या कोई और क्रांति, सभी का एक ही लक्ष्य था, शोषण से मुक्ति और अन्याय से मुक्ति. वो लक्ष्य पूरा हुआ या नहीं, ये अलग सवाल है. आमतौर पर लोग सत्ता में परिवर्तन को क्रांति मानते हैं.

लेकिन सर्वोदय में हम मानते हैं कि मूल्यों और सम्बंधों में परिवर्तन से क्रांति होती है. व्यक्ति का बदलना क्रांति नहीं है, व्यवस्था का बदलना क्रांति होता है.  यदि वही व्यवस्था रही, सिर्फ लोग बदल गए, तो ये क्रांति नहीं हुई. हमारे लक्ष्य में कठिनाइयां जरूर हैं, लेकिन उस लक्ष्य को पाए बिना हमारा उद्देश्य सिर्फ उद्देश्य रह जाएगा.

सर्व सेवा संघ नए लोगों को, खासकर  युवाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए क्या कोई कार्यक्रम लेकर आएगी?

जब मैं अध्यक्ष बना, तो सर्व सेवा संघ का सबसे कम उम्र का अध्यक्ष था. अब तक अध्यक्ष और कार्यकर्ताओं की बीच में बहुत दूरी हुआ करती थी. लेकिन अब हमारे कार्यकर्ताओं को लगता है कि आज उनका एक साथी अध्यक्ष है. उनके साथ साथी की हैसियत से मेरी बातचीत होती है. इससे मुझे प्रसन्नता होती है. मैं चाहता हूं कि आगे का नेतृत्व उनके हाथ में आए और जो भी निर्णय होते हैं, उसमें उनकी भी भागीदारी हो.

जिससे उन्हें लग सके कि ये उनका संगठन है. सरकार में कुछ खास लोगों के पास ही सब कुछ केंद्रित होता है, लेकिन हमारे संगठन में ऐसा नहीं है. सर्वोदय लोगों का संगठन है, समाज का संगठन है. युवा कार्यकर्ताओं को शोषण से लड़ने में मजा आता है. मैनेजमेंट के स्टुडेंट, टेक्नोलॉजी के स्टुडेंट बड़े पैमाने पर गांधी जी के विचारों से आकर्षित होते हैं. वे संगठन के सदस्य नहीं हैं, लेकिन अपने-अपने तरह से काम कर रहे हैं.

 

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