” Conscience of even malleable pinches and forces them to speak a word of truth !”

चंडीगढ़ महानगर पालिका के मेयर पद के चुनाव में भाजपा ने कितनी बड़ी धांधली की है ! जिसे हमारे सर्वोच्च न्यायालय को सज्ञान लेकर सुधारने की नौबत आई है !
दुसरा मुद्दा भी चुनावों से संबंधित तथाकथित चुनावी बॉंड के नाम पर सत्ताधारी दल भाजपा ने बेतहाशा धनऊगाही करने का दुःसाहस को भी सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द करने का फैसला इसी महीने के भीतर का है !
भाजपा सत्ता में आने के लिए क्या क्या कर सकता है ? इसके नमूनों के तौर पर यह दो उदाहरण, वह भी सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले लिए इसलिए, देश और दुनिया को पता चल रहे हैं !


भाजपा की सत्ता की वासना किस हदतक जा सकती है ? यह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी, आम आदमी पार्टी के तीन सदस्यों को जोड़तोड़ करते हुए, अपने खेमे में कर लेने की हरकत को, सर्वोच्च न्यायालय ने अनदेखी करते हुए ! आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को मेयर बनाने के लिए रास्ता साफ कर दिया ! लेकिन अपने आपको ‘पार्टी वुईथ डिफरंस’ बोलने वाले दल भाजपा में और अन्य दलों में क्या डिफरंस है ? यह पूरी दुनिया देख रही है !


शायद भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार, सर्वोच्च न्यायालय को किसी एक शहर के मेयर पद के चुनाव के बैलेट पेपर मंगवा कर, न्यायालय में उनकी गिनती करने की नौबत आना, मतलब हमारे देश की वर्तमान चुनाव प्रक्रिया को भले ही वह किसी मुनसिपालटी हो या देश का सबसे बड़ा सभागार लोकसभा हो! वर्तमान सत्ताधारी दल, किस स्तर तक बाधित कर सकती है ? यह तो 2014 से अब तक विभिन्न गैरभाजपा सरकारो को गिराने के लिए जिसमें, महाराष्ट्र की विधान सभा तथा मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा, कर्नाटक, झारखंड और सभी उत्तर पूर्व के प्रदेश के राज्यों में विधानसभा सदस्योंको अपने गृहराज्य के बाहर, अलग- अलग जगहों पर, भगा कर ले जाने, तथा छुपाने के नाटक किसी से भी छुपे हुए नही है !
अपने आप को ‘पार्टी वुईथ डिफरंस’ बोलने वाले दल के लोगों को, संपूर्ण भारत में ग्रामपंचायत से लेकर संसद तक सिर्फ और सिर्फ भाजपा के ही लोग दिखने चाहिए कि बिमारी ने अंधा बना दिया है ! जो संसदीय जनतंत्र के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति है !
हमारे देश की आजादी के पचहत्तर साल के सफर में, जो भी संसदीय नीतियां विकसित हुई है ! उनके चिथड़े – चिथड़े करते हुए, राज्यसभा में किसानों से संबंधित तीनों कृषिकानूनों को तथाकथित आवाजी मतदान से पारित करने का उदाहरण ! भारतीय संसदीय राजनीति के इतिहास का एकमात्र उदाहरण होगा कि, कार्पोरेट जगत को मदद करने के लिए ! भाजपा को हमारे संसदीय जनतंत्र की भी परवाह नहीं है ! यह उन तीनों कृषिकानूनों को पारित करने के लिए, पिठासिन अध्यक्ष भले ही जेडीयू के तरफ से राज्यसभा में भेजे गए सदस्य हैं ! लेकिन उन्होंने, उन विधेयकों को पारित करने के लिए, राज्यसभा में वोटिंग करने की मांग की अनदेखी करते हुए ! आवाजी मतदान के कोलाहल में पारित करने की करतूत ! भारतीय संसदीय इतिहास में हमेशा के लिए एक काला अध्याय के रूप में माना जायेगा !


चंडीगढ़ तो सिर्फ एक केंद्रशासित शहर है ! जो हरियाणा और पंजाब दोनों प्रदेशों की राजधानी है ! उस शहर के नगर निगम के चुनाव की धांधली को सर्वोच्च न्यायालय को ठीक करने की नौबत आना मतलब हमारे जनतंत्र वर्तमान समय में कितने नाजुक दौर से गुजर रहा है ! इसकी एक झलक मात्र है ! वह भी सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला लिया तब ! कहीं दुरुस्त हुआ ! लेकिन चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने इस बारे में जो अनदेखी की है ! वह भी हमारे देश की न्यायिक प्रणाली के बारे में चिंतित करने की बात है !
जनवरी 2018 से चुनावी बॉंड के नाम पर, छह सालों में जो धन उगाही की है ! और सबसे संगिन बात चुनावी बॉंड को सूचना के अधिकार से बाहर करने की करतूत ! दिनदहाड़े डाका डालने का काम सत्ताधारी दल ने किया था ! जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द करने का फैसला लिया है ! लेकिन छह सालों में चुनावी बॉंड के नाम पर सभी दलों ने जो धन इकठ्ठा किया है ! उसे भी वापस करने का फैसला लेना चाहिए ! क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय चुनावी बॉंड को मनिलॉंडरिंग बोल रहा है ! तो जिस मनिलॉंडरिंग के नाम पर सत्ताधारी दल, गत दस सालों से अपने विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई किए जा रहा है ! तो उसने और अन्य दलों ने भी चुनावी बॉंड के नाम पर जो भी पैसे लिए है ! उन्होंने उन पैसो को वापस करना चाहिए ! क्योंकि सर्वोच्च न्यायालयने अपने फैसले में साफ साफ कह दिया है ! “कि एक करोड़ से अधिक पैसे के बॉंड ज्यादा तर कार्पोरेट घरानों ने लिये है ! और उन्होंने वह पैसे अपने लिए अनुकूल निर्णय सत्ताधारी दल ने लेने चाहिए ! इस उद्देश्य से दिए जाने की संभावना ! सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्त की है !” और यह बात किसिसे भी छुपी नहीं है ! “कि औद्योगिक घराने सत्ताधारी दल को धन, सिर्फ दया या करुणा के लिए नहीं देते हैं ! वह उसके एवज में अपने अनुकूल औद्योगिक नीतियां बनाने के लिए ही देते हैं ! “और सत्तारूढ़ दल, औद्योगिक घरानों को देश के विकास का नाम लेते हुए ! पर्यावरण संरक्षण तथा विस्थापन जैसे संवेदनशील मुद्दो की अनदेखी करते हुए ! उन्हें औद्योगिकी करने के लिए खुली छूट देते हैं ! भोपाल के ‘यूनियन कार्बाइड’ नाम के कारखाना उसका सबसे बड़ा उदाहरण है ! और वर्तमान समय में अदानी तथा अंबानी समूह के, औद्योगिक उत्पादन के लिए, वर्तमान सरकार हमारे देश के आदिवासियों के संरक्षण के लिए, तथा जल जंगल और पानी के संरक्षण के लिए बनाए गए कानूनों की अनदेखी करते हुए! औद्योगिकी करने की होड़ लगी हुई है !
उदाहरण के लिए अदानी समूह को गुजरात का कांडला पोर्ट जो शायद भारत का पहला पोर्ट होगा जिसे प्रायवेट मास्टर को दिया गया है ! और उन्होंने उस पोर्ट को लेने के बाद, उसके विकास के नाम पर विश्व धरोहर मॅंग्रोह के पेड़ नष्ट करने का गुनाह किया ! जिसे देखते हुए हमारे देश के ग्रिन ट्रायबूनल ने जुर्माना लगाया है ! लेकिन तत्कालीन पर्यावरण संरक्षण के मंत्री महोदय ने कहा कि “यह ग्रिन ट्रायबूनल ही खत्म कर देना चाहिए !” सत्ता के नशे में भोपाल जैसी विश्व के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना हुई है ! जिसमें हजारों की संख्या में लोगों की मौत हो गई ! और उस गॅस से पिडीत हजारो लोग आज भी उस औद्योगिक दुर्घटना के परिणाम भुगत रहे हैं !


हमारे देश में इतना बड़ी औद्योगिक दुर्घटना होने के बाद भी, हमारे देश के राजनीतिक दलों को होश आना तो दूर की बात है ! उल्टा विकास के नाम पर, पर्यावरण संरक्षण के तथा मजदूरों के भले के कानून तक बदलने का दुःसाहस कर रहे हैं !
हालांकि भारतीय जनता पार्टी 1950 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा स्थापित ( 1950 ) जनसंघ का ( 1980 ) के बाद वर्तमान रुप है ! यह दल मुक्तपूंजीवाद का समर्थन करने वाले दलों में शामिल होने की वजह से ! इस दल को हमेशा ही पूंजीपतियों के हित में ही नीतियों के लेना का, सब से बड़ा उदाहरण तथाकथित गुजरात मॉडल है !

गुजरात में भाजपा की सत्ता के दौर में, और मुख्यतः वर्तमान प्रधानमंत्री जब गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर कार्यरत रहे हैं ! इन्होंने गुजरात के विकास के नाम पर, औद्योगिक घरानों को फेवर करने के लिए ! सभी कानूनों की अनदेखी करते हुए ! कई औद्योगिक इकाइयों को गुजरात में रेड कार्पेट बिछाकर आमंत्रित करने के दर्जनों उदाहरण है ! जिसमें बंगाल के किसानों द्वारा भगाया गया, तथाकथित टाटा समूह का नानो प्रोजेक्ट है ! और इस नानो प्रोजेक्ट को गुजरात में नरेंद्र मोदी ने आमंत्रित करने के बाद, टाटा ने कहा कि “नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए पॅकेज है !”


वर्तमान प्रधानमंत्रीने अपने आप को भले ही चाय बेचने वाला बोलते हुए! चुनाव प्रचार में तालियां बजावा ली है ! लेकिन दस सालों में चंद धन्नासेठों की तिजोरियों को भरने के अलावा किसानों तथा बेरोजगार लोगों को रोजगार देने की जगह, उन्हें अपाहिजों के जैसी कुछ चंद रेवडीया बाटने के अलावा ! एक भी सम्मानजनक योजना लाने का काम नही किये है !

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