सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम खुला पत्र !
माननी मुख्यन्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय भारत ! चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव में हुई धांधली का सर्वोच्च न्यायालय ने सज्ञान लिया ! उसके लिए सब से पहले आपका तथा आपके साथ के सभी न्यायाधीश महोदयो का हार्दिक अभिनंदन !
लेकिन 2014 के बाद भाजपाने भारतीय लोकतंत्र के साथ मजाक करने की शुरूआत की है ! जिसके लिए उन्होंने जिन एजेंसियों को कभी पोपट कहा था ! उन्हीं की मदद लेकर, विरोधी दलों के नेताओं की जांच के नाम पर ! उन्हें डरा – धमकाकर अपने दल की सरकारों को, बनाने की शुरुआत की है !
उदाहरण के लिए, ईडी सीबीआय तथा आई बी की मदद से डरा धमकाकर, विधायकों को चुनाव में चुनकर आई हुई पार्टी से, भाजपा को सरकार बनाने के लिए ! अपने मर्जी के राज्यपालों की मदद से, महाराष्ट्र में तो सुबह-सुबह राज्यपाल महोदय को निंद से उठाकर शपथ ग्रहण समारोह करने के लिए ! शायद भारत के संसदीय जनतंत्र के इतिहास का पहला शपथ ग्रहण समारोह होगा ! जो रात के समाप्त होने के पहले ! मुंबई के मलबार हिल स्थित, राजभवन मे सुबह किया गया होगा ! और चंद कुछ घंटों के भीतर, वह सरकार बहुमत के अभाव में गिर जाने का उदाहरण है ! मतलब उन राज्यपाल महोदय ने शपथ दिलाने के पहले जो सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है ! उसका पालन नहीं किया ! और इसका बिल्कुल उल्टा रांची में वर्तमान राज्यपाल महोदय अपने पास विधायकों को बुलाकर, उनकी गिनती लेने के बावजूद ! शपथ ग्रहण समारोह को टाल-मटोल करने का उदाहरण ताजा है !
उसी महाराष्ट्र के कुछ विधायकों को कुछ समय के बाद दोबारा पहले गोवा, फिर बंगलोर, और बाद में सूदूर पूर्व में आसाम की राजधानी गुवाहाटी में छुपा कर रखने के बाद ! जो सर्कस संपूर्ण राष्ट्र खुलेआम देख रहा था ! फिर उन्हें मुंबई में लाकर, मंत्रिमंडल बनाने के बाद ! उन विधायकों की वैधता सिध्द करने के लिए ! एक साल से भी अधिक समय लगता है ! और उसके बावजूद वह मंत्रिमंडल अस्तित्व में रहता है ? क्या यह सब भारतीय संसदीय राजनीति के लोकतांत्रिक नियमों के तहत हो रहा था ? उस विधानसभा के अध्यक्ष को महामहिम सर्वोच्च न्यायालय बार – बार आदेश दे रहा है ! कि विधायकों की दल बदलने की प्रक्रिया पर फैसला लिजिए ! और वह अध्यक्ष उस निर्णय को लेने में, साल भर से अधिक समय टाल-मटोल करते हुए, निर्णय नही लेता है ! और सरकार एक साल से भी अधिक समय तक अस्तित्व में रहती है ! और इस बीच में ईडी, सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों की मदद से ! और दलबदल करवा कर, उन्हीं एजेंसियों के द्वारा कि गई जांच के बाद, भ्रष्टाचार के आरोपों वाले लोगों को, अपनी सरकार को समर्थन देने के लिए तैयार करते हैं ! प्रधानमंत्री एक दिन पहले उनमे से एक उपमुख्यमंत्री बनाएं गए नेता ने, सिंचाई विभाग में पचास हजार करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार करने का आरोप किया था ! और उसी आदमी ने अपनी पार्टी के दो फाड करते हुए, भाजपा के साथ सरकार में शामिल होने की करतूत करते ही ! उसके उपर पचास हजार करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार करने वाले प्रधानमंत्री जिन्होंने कभी घोषणा की थी कि “न ही मैं खाऊँगा और न ही किसी को भी खाने दुंगा” घोषणा करने वाले कैसे भूल जाते हैं ? उनके खिलाफ चल रही भ्रष्टाचार की कार्रवाई थमने के उदाहरण खुलेआम चलते हैं !
और सबसे हैरानी की बात उनके साथ गए हुए लोगों में से कोई सार्वजनिक बांधकाम विभाग के भ्रष्टाचार मे जेल से बाहर आता है ! और मंत्रि पद पर आसीन होता है ! मतलब कल तक भ्रष्टाचार के आरोप में लिफ्त आदमी भाजपा को साथ देने से ही, बिल्कुल साफ-सुथरा हो जाता है ! क्या बात है ? शायद भाजपा दल के पास एक ऐसा धुलाई मशीन है ! जिसमें सिर्फ भाजपा को समर्थन देने के बाद आपका भ्रष्टाचार शिष्टाचार में परिवर्तित हो जाता है !
अभी – अभी-अभी बिहार तथा झारखंड में की जा रही, कार्रवाईयों के खबरों की अखबारों की सुर्खियों की शाई भी सुखी नहीं होगी ! मध्य प्रदेश राजस्थान, छत्तीसगढ़, बंगाल, कर्नाटक मतलब जो भी राज्य भाजपा की सरकारों के नही है ! उन सभी जगहों पर ईडी, सीबीआई के छापेमारी कर के, उनके साथ रह रहे नेताओं को डरा – धमकाकर ! भाजपा की सरकार बनाने के लिए मजबूर करने के दर्जनों उदाहरण मौजूद हैं !
सुनते हैं कि, जो नितिश कुमार अभी- अभी तक कह रहे थे, कि “मर जाऊंगा लेकिन भाजपा की मदद से सरकार नही बनाऊंगा” और भाजपा के नरेंद्र मोदी के बाद दुसरे नंबर के, बाहुबली नेता ! और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि “हमारे दल के दरवाजे नितिश कुमार के लिए, हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिए गए हैं ! ” वही नितिश कुमार जितेजी सुबह इस्तीफा देते हैं ! और श्याम को भाजपा के मदद से शपथविधी लेते हैं !
और जिस आदमी को, राज्य की कानून व्यवस्था ठीक ठाक चल रही या नहीं ! यह निगरानी रखने के लिए, विशेष रूप से राज्यपाल महोदय का पद होता है ! उन्होेंने इसमें कोई देर न लगाते हुए ! आसानी से शपथ ग्रहण समारोह करने करते हैं !
और उसी बिहार से अलग कर के अस्तित्व में आया, झारखंड राज्य में ! सब से पहले मुख्यमंत्री को लगातार ईडी, सीबीआई के जांच के दबाव में रखते हुए ! अंत में उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जाता है ! और उनकी जगह उन्हि के दल के नेता को मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण के लिए, राज्यपाल सबसे पहले, उनके समर्थन देने वाले विधायकों को, जिस तरह शिक्षक अपने विद्यार्थियों की हाजिरी लगाने का काम करते हैं ! बिल्कुल हूबहू राजभवन में समर्थन देने वाले विधायकों की एक दो तीन करते हुए, उनकी हाजिरी लेते हैं ! और उसके बावजूद शपथविधी करने के लिए टाल-मटोल करते हैं ! तो विधायकों को सुरक्षित रखने के लिए कवायद करने की नौबत आना ! मतलब भारत के जनतंत्र की हालत कितने नाजुक दौर से गुजर रही है ? इसका प्रमाण है ! भारतीय जनता पार्टी ने दस साल से हमारे जनतंत्र को एक सर्कस में तब्दील कर के रख दिया है ! जो चंडीगढ़ के निकाय चुनाव के बहाने उजागर हो गया है !
लेकिन दस सालों से विभिन्न गैर भाजपा सरकारों को गिराने के लिए, इस ‘पार्टी वुईथ डिफरंस’ का ढोल पीटने वाले दल ने, हमारे संसदीय जनतंत्र के सभी मानमर्यादाओ को तोडकर, सिर्फ अपने झंडे के निचे आने के लिए ! जो जोड़तोड़ करने के कारनामे हमारे देश की संविधानिक एजेंसियों की मदद से किए जा रहे हैं ! उन सभी के तरफ से मै माननीय सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान आकर्षित करने के लिए ! यह खुल पत्र लिख रहा हूँ ! आपने चंडीगढ़ के नगरनिगम के चुनाव में की गई गड़बड़ी के बारे में ! जो सख्त शब्दों का प्रयोग किया है ! कि “यह लोकतंत्र के साथ मजाक !” और “उसकी हत्या है !” यह सिलसिला तो पिछले दस सालों से लगातार जारी है ! लेकिन आज आपने चंडीगढ़ जो केंद्रशासित प्रदेशों में शुमार होता है ! वहां के नगर निगम के मेयर पद के चुनाव में ! जिस व्यक्ति को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी ! उसने आम-आदमी पार्टी और कांग्रेस का चुनावी गठबंधन के, बीस पार्षदों के रहते हुए ! उनमे से आठ पार्षदों को जानबूझकर रद्द करने की करतूत करते हुए ! भाजपा अल्पमत में रहने के बावजूद ! भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को मेयर बनाने का कारनामा कर दिखाया ! अंत में हमारे सर्वोच्च न्यायालय को सज्ञान लेना पड़ता है ! क्या यह भारत का लोकतंत्र कौन से दौर से गुजर रहा है ? इसकी एक झलक मात्र है !
जबकि चंडीगढ़ में पंजाब हरियाणा हायकोर्ट के रहते हुए ! जिसने इस केस में अंतरिम आदेश देने की जरूरत थी ! जिसे देने में चंडीगढ़ हाईकोर्ट विफल होने की बात, भी हमारे न्यायालय के उपर चल रहे, राजनीतिक दबाव का क्लासिकल उदाहरण है ! लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने, उसी पंजाब हरियाणा के हाईकोर्ट के, रजिस्ट्रार के पास, चुनाव से संबंधित दस्तावेजों को जमा करने का आदेश दिया है ! इसमें मुझे लगता है कि पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने इस मामले में पहले ही अनदेखी करते हुए ! मामले को अखिरकार सर्वोच्च न्यायालय में जाने के लिए मजबूर किया है ! तो मुझे पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को चुनाव से संबंधित दस्तावेजों को तथा विडियोग्राफी के रेकॉर्ड को सुरक्षित रखने के लिए कहा है ! मुझे इसमें संशय है कि जो कोर्ट इतना बडे गडबड घोटाले की घटना को नजरअंदाज किया है ! उसी कोर्ट के रजिस्ट्रार को दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए कहना कहा तक ठीक है ?
और सबसे अहं बात आनेवाले समय में भारत के सबसे बड़े सभागार लोकसभा का चुनाव प्रस्तावित है ! और चुनाव आयोग के सदस्यों का चयन करने के लिए अब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नही रहेंगे ! जो निर्णय वर्तमान सत्ताधारी दल ने, लोकसभा में विशेष संविधान संशोधन करते हुए ! और सिर्फ सत्ताधारी पार्टी के बहुमत रहने का प्रावधान किया है ! क्योंकि विरोधी दल का नेता अकेला हमेशा ही अल्पमत में रहेगा ! और जो भी चयन प्रक्रिया पूरी की जायेगी, वह शतप्रतिशत सत्ताधारी दल के लिए अनुकूल सदस्यों का ही चयन किया जायेगा ! मतलब वह चुनाव आयोग शतप्रतिशत सत्ताधारी दल के सुविधा के लिए बनाया गया चुनाव आयोग रहेगा !
ईडी के प्रमुख को पांच बार बढ़ोतरी देना ! और खुद सर्वोच्च न्यायालय को सज्ञान लेते हुए, कहना पड़ता है ! कि “क्या हमारे देश में कोई और व्यक्ति नही है ? कि जो ईडी के प्रमुख पदाधिकारी बन सके ?” मतलब सभी संविधानिक संस्थानों में अपने लिए अनुकूल लोगों का ही चयन करने वाले लोगों ने ! हमारे न्यायालय के न्यायाधीश के आपके द्वारा चयनित, न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करना ! किस बात का परिचायक है ?
सवाल सिर्फ अकेले चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के चुनाव में हुई धांधली का नही है ! सवाल संपूर्ण देश के जनतंत्र को बचाने का है ?