चंबल के बीहड़, जो कभी खूंखार डकैतों की शरण-स्थली के रूप में जाने जाते थे, आजकल वीरान-से हैं. कल तक बीहड़ों में दस्यु सरगनाओं एवं दस्यु सुंदरियों के सौतिया डाह के चलते जहां चूड़ियों की खनखनाहट और गोलियों की तड़तड़ाहट आम बात थी, आज वहां सन्नाटा-सा पसरा है. उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के ज़्यादातर दस्यु गिरोहों के खात्मे के चलते दस्युओं का जो खौफ ग्रामीणों के सिर चढ़कर बोलता था, वह अब नज़र नहीं आता! कल तक गोलियों से बीहड़ थर्रा देने वाले डकैत अब वन बचाने की मुहिम में शामिल होने जा रहे हैं. कल के बागी अब लोगों को पर्यावरण बचाने का संदेश देंगे. इस मुहिम में चंबल के खूंखार डकैत रहे मोहर सिंह, मलखान सिंह एवं सरला यादव समेत दर्जनों पूर्व डकैत हिस्सा लेंगे. चंबल की सबसे चर्चित दस्यु सुंदरियों में से एक सीमा परिहार भी मुहिम में भागीदारी करेंगी. इसके लिए तैयारियां भी जोरों पर चल रही हैं.
सीमा कहती हैं कि जंगल बहुत ज़रूरी हैं. तरक्की चाहे कितनी भी हो, लेकिन जीवन इन्हीं से है. वह पहले बसाया बीहड़-अब बचाएंगे बीहड़ का नारा देंगी. 13 साल की उम्र में हथियार उठाने वाली सीमा पर लगभग 70 हत्याओं और 150 से ज़्यादा लोगों के अपहरण का आरोप था. 18 मई, 2000 को पुलिस मुठभेड़ में लालाराम के मारे जाने के बाद 2003 में उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. औरैया में रहते हुए वह राजनीति में भी सक्रिय हैं. सीमा मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं और अपनी कहानी की एक फिल्म में काम कर चुकी हैं. पिछले दिनों वह बिग बॉस में भी देखी गईं. औरैया के दिबियापुर निवासिनी 35 वर्षीय सीमा परिहार ने कहा कि यह एक अच्छी मुहिम है, अब समाज-सेवा ही हमारा लक्ष्य है और पेड़-पौधे जीवन का अहम हिस्सा हैं. वह कहती हैं कि उन्होंने काफी समय जंगल में बिताया है, इसलिए वह पेड़-पौधों की अहमियत अच्छी तरह समझती हैं. सीमा कहती हैं कि मौजूदा वक्त में तेजी से पेड़ काटे तो जा रहे हैं, लेकिन लगाए नहीं जा रहे हैं.
दरअसल, जयपुर में पर्यावरण और वनों को बचाने के लिए एक जागरूकता कार्यक्रम में चंबल के पूर्व डकैत भी शिरकत करने वाले हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में 1970-80 के दशक में जो डकैत कभी बीहड़ में रहा करते थे, उनमें से कई अब आम आदमी की तरह ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. ज़ाहिर है, ये लोग जंगल बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. ये जंगल के भूगोल और हालात को अच्छी तरह समझते हैं. जयपुर के कार्यक्रम में क़रीब दो दर्ज़न से ज़्यादा पूर्व डकैतों के हिस्सा लेने की संभावना है. आज चंबल में न तो दस्यु सुदरियों की चूड़ियां खनकती दिखती हैं और न गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई पड़ती है. ज़्यादातर डकैत मारे जा चुके हैं. ऐसे में कभी बीहड़ों में गोलियों की तड़तडाहट करने वाले डकैतों द्वारा समाज-सेवा की ओर बढ़ाए जा रहे इस क़दम की सभी लोग सराहना कर रहे हैं. बीहड़ों के आस-पास बसे ग्रामीणों के मुताबिक, चंबल के डाकुओं के भी अपने आदर्श एवं सिद्धांत हुआ करते थे. अमीरों को लूटना और ग़रीबों की मदद करना चंबल के डाकुओं का शगल हुआ करता था. ग्रामीणों का मानना है कि अन्याय और शोषण के खिला़फ विद्रोह करने वाले भले ही पुलिस की फाइलों में डाकू के नाम से जाने जाते हों, लेकिन उनके नेक कामों की वजह से लोग उन्हें सम्मान से बागी ही मानते थे. बागी यानी अन्याय के खिला़फ बगावत करने वाला.
मानसिंह एवं मलखान सिंह जैसे दस्यु सरगनाओं की गाथाएं और आदर्श की मिसाल यहां के लोग बड़ी दिलचस्पी से सुनाते हैं. दस्यु मलखान सिंह, जिसे चंबल का राजा माना जाता था, के खिला़फ 113 मामले हत्या से जुड़े थे. उसने 1982 में आत्मसमर्पण कर दिया. 2003 में वह मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी लड़ा. दस्यु मोहर सिंह के ला़फ क़रीब 115 मामले दर्ज थे, जिनमें 71 हत्याओं के थे. मोहर सिंह ने आत्मसमर्पण के बाद मेहान गांव नगर पंचायत के अध्यक्ष के रूप में जनसेवा भी की. दस्यु तहसीलदार सिंह को भी एक राष्ट्रीय पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया. यह बात दीगर है कि वह चुनाव नहीं जीत सके. फूलन देवी एवं सीमा परिहार ने भी आत्मसमर्पण के बाद राजनीति से नाता जोड़ा. अब ये पूर्व दस्यु अगर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे आ रहे हैं, तो इसकी सराहना की जानी चाहिए.