साथियों यह कोरोना के समय, बंगला सांस्कृतिक मंच के तरफसे पाठशालाओं के बंद होने के कारण शुरू किए गए चलोमान पाठशालाओं की श्रृंखला है ! जो बिरभूम, बर्धमान जिला मे शुरू की गई, गतिविधियों में से एक है ! बलगना मुस्लिम मोहल्ला जिला बर्धमान की एक पाठशाला को आज 19 अक्तुबर 2022 को दी गई, भेंट के फोटो है !


हमारे देश के हायफाय टेक्नॉलॉजी के पैरोकार ! और उसी टेक्नोलॉजी के उपर, कोरोना के समय करोड़ों लोगों के रोजगार और जाने जाते हुए ! एक दो उद्योगपति कई गुना अमिर होने के रहस्य को ! मराठी में मरे हुए मुडदे के तालु के मख्खन खाने वाले मानसिकता के लोग बोला जाता है !
तो मुख्य मुद्दा तथाकथित अॉनलाईन स्कूल की वास्तविकता क्या है ? यह बात इस जगह पर जाने के बाद, मुझे कम-से-कम तिनचार फोन आए थे ! और एक से भी बात नहीं हो ! पाई क्योंकि उस जगह नेटवर्क का प्राब्लम है ! शायद साडे छ लाख से अधिक गांवों में भी नेटवर्क का प्राब्लम जरूर होगा ! और प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया की बात करते हैं ! सचमुच इनके डिजिटल क्रांति का हमारे देश की आबादी में से आधे से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे और ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है ! लॉकडॉऊन के दो वर्षों में जो विद्यार्थियों का नुकसान हुआ है ! उसकी पूर्ति कैसे की जायेगी ?


इन बस्तियों के लोगों ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए, खुद पहल करते हुए ! रविंद्रनाथ टागौर की तर्ज पर ! कभी खुले आसमान के निचे, तो धुप के समय पेड के निचे, और बारिश में स्थानीय लोगों के सामुदायिक प्रयास से बांस तथा प्लास्टिक के छत के नीचे ! चलोमान (सतत चलने वाली प्रक्रिया) पाठशाला शुरू करने के बाद ! बंगला सांस्कृतिक मंच, जो कोरोना में लोगों को अॉक्सिजन, दवा तथा अन्य आवश्यक मदद करते हुए देखकर ! लोगों ने इन पाठशालाओं को भी ! चलाने के लिए आग्रह किया ! तो पहले से ही जो बच्चे आठवीं, दसवीं कक्षा के छात्रों ने, पहली दूसरी तथा अन्य कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए शुरू किया ! जिसमें मनिषा बॅनर्जी की बीए फायनल मे पढ़ने वाली बेटी मेघना, रूनी खातून , लेस्ली फोस्टर जो मनीषा बॅनर्जी के ही बृहत परिवार के सदस्यों में से है ! और अन्य मित्रो के सहयोग से यह पाठशालाओं की श्रृंखला आज भी जारी है ! और बच्चे अपने पहले के पाठशालाओं के अलावा अन्य समय में इन पाठशालाओं में भी काफी संख्या में आने का सिलसिला जारी है ! क्योंकि पारंपरिक पाठशाला में और इन पाठशालाओं में काफी फर्क है ! यहां के सभी पढाने वाले से लेकर, चलाने वाले तक, सभी एक परिवार के सदस्यों के जैसे इस प्रक्रिया में शामिल है ! इन में से एक का भी आर्थिक लाभ तो दूर की बात है ! उल्टा इनमेसे कुछ अपनी हैसियत के अनुसार, संसाधन जुटाने हेतु, पैसे से लेकर वस्तुओं का इंतजाम करते हैं ! और सबसे महत्वपूर्ण बात, कोई भी त्योहार इन पाठशालाओं में मनाने की, विभिन्न कल्पनाओं का इस्तेमाल करते हुए मनाया जाता है ! उदाहरण के लिए आने वाले 24 अक्तूबर को, काली पूजा की तैयारी विविध प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम, बच्चों के ही द्वारा अभिनीत तालिम जारी है ! और 24 से 31 अक्तुबर तक, एक हप्ते तक नृत्य नाटक गाने तथा अन्य कला के आयामों को लेकर होने वाले हैं ! बंगला सांस्कृतिक मंच की संयोजिका, और राष्ट्र सेवा दल बंगाल की पूर्व मनोनीत अध्यक्षा श्रीमती मनीषा बॅनर्जी ने, उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, राष्ट्र सेवा दल के साथ जोड़ने की पहल की है ! और दिसंबर के अंतिम सप्ताह में, एक सप्ताह के लिए चलोमान पाठशालाओं के बच्चों के शिबिर लेने की इच्छा जाहिर की है !


इन शालाओं में 23%अल्पसंख्यक, और 75 %आदिवासीयो (संथाल और मुंडा तथा अन्य आदिवासी) और 2% दलित पिछडी जातियों के बच्चे – बच्चियां शामिल है ! जो राष्ट्र सेवा दल के सौ में पावे पिछडा साठ सिद्धांत के अंतर्गत आता है ! यह आजके मेरे इस पाठशाला में जाने की सबसे बड़ी उपलब्धि है !
काश सभी परिवर्तनवादी लोगों ने, सिर्फ आर एस एस की आलोचना करने के अलावा, पर्यायी शिक्षा तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी किया होता ! तो आज अचानक भारत जोडो और नफरत छोडो जैसी नौबत नहीं आई होती ! 35 सालों में सांप्रदायिकता और भी नस नस में फैल चुकी है ! जिससे हमारे अपने घर भी महफूज़ नही है ! अब सिर्फ नफरत छोडो – भारत जोडो के नारों से क्या होगा ?


क्योंकि मध्य प्रदेश के खरगोन के दंगों के बाद ! प्रशासन ने हिंदु और मुस्लिम बस्तियों के बीच फिलिस्तीन की तर्ज पर (इस्राइली सरकार के तरफसे गाझा पट्टी, वेस्ट बॅंक और जेरूसलेम जैसे शहर में ! अरब और यहुदियो के बस्तियों के बिचमे उंची – उंची दिवारें खडी कर दिया है ! जिन्हें मैं भारत पॅलेस्टाईन सॉलिडॅरिटी फोरम के अध्यक्ष के नाते ! दो बार अपनी आंखों से हप्ता भर रहकर देखकर आया हूँ !)


बिल्कुल उसी तरह शायद भारत में आजादी के बाद और पचहत्तर साल के अमृतमहोत्सव के दरमियान ! पहली बार किसी दंगे के बाद, तथाकथित कानून – व्यवस्था के नाम पर हिंदु – मुसलमानो के बस्तियों के बीच में, दिवारें खडी करने वाले ! जिला प्रशासन के बौद्धिक दिवालिया पन का उदाहरण देखने के बावजूद ! मुझे पुरजोर विरोध करने का उदाहरण नही दिखाई दिया है ! और खरगोन, बडवानी हमारे देश के सबसे प्रसिद्ध आंदोलन नर्मदा बचाओ आंदोलन की भूमि है !


तो खरगोन की नफरत की रोकथाम के लिए, दिवारों को खडे करने वाले प्रशासन को रोकने के बजाय ! अन्य जगहों पर नफरत छोडो करना शुतुरमुर्ग की मानसिकता दर्शाता है ! पहले अपने घर को ठीक करो ! तभी दुसरों को कोई उपदेश करने का नैतिक अधिकार रहेगा ! क्योंकि मैंने अपने आखों से, बडवानी और खरगोन के पाटीदारो के घरों में(जो नर्मदा बचाओ आंदोलन के सबसे बड़े समर्थन करने वाले लोगों में शुमार होते हैं ! जिनके चौखट को पार करते ही सामने की मुख्य दिवारपर गोलवलकर और हेडगेवार के बड़े-बड़े फोटो देखें है !
मतलब बांध के पानी में, डुबने वाली जमीन को बचाने के लिये नर्मदा बचाओ आंदोलन तो चाहिए ! लेकिन सिर्फ परियोजना के खिलाफ ! बाकी उनकी राजनीतिक प्रतिबध्दता किसी की बीजेपी और किसी की कांग्रेस के साथ है !
और कमअधिक प्रमाण में भारत के सभी परिवर्तनवादी समुहो के जनाधारो की यही स्थिति है ! आदिवासीयो से लेकर दलित और संघटित क्षेत्र के मज़दूरों की भी यही स्थिति है ! तो हमारे अपने – अपने कार्यक्षेत्र भी ! सम्हालने का काम करेंगे तो बहुत बड़ी बात होगी !


1985 – 86 में शाहबानो के मामले में कांग्रेस ने ऐतिहासिक गलती की ! (सर्वोच्च न्यायालय ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के तरफसे दिए गए फैसले को संसद में रद्द करने की कृती करके, और उसे सुधारने के नाम पर ! बाबरी मस्जिद का ताला खोलकर ! लालकृष्ण आडवाणी को, सोमनाथ से रथयात्राओ का कार्यक्रम करने की राह आसान कर दि !
और 24 अक्तूबर 1989 के दिन शिलापूजा जुलुस, और उसके बाद भागलपुर का दंगा ! जो सिर्फ भागलपुर शहर तक सीमित न रहते हुए ! बगल के मुंगेर, गोड्डा, बांका, साहेबगंज, दुमका मतलब संपूर्ण भागलपुर कमिश्नरी के क्षेत्र में युद्ध के जैसा फैल गया था ! (उसके पहले के दंगे 1947 के बाद के बहुसंख्य गली – कुचे के होते थे ! ) लेकिन भागलपुर के दंगे में हजारों की संख्या में लोग, पारंपरिक हथियारों से लैस होकर ! तीन सौ से अधिक गांवों के मुसलमानों के मकान, तथा भागलपुर के मशहूर रेशम के बुनने के यंत्रों को, नष्ट करने के बाद ! कम-से-कम तीन हजार लोगों की जाने गई है ! और सौ के आसपास गैरमुस्लिम छोड़ दें तो ! सबके सब मुस्लिम समुदाय के महिला बच्चों से लेकर बुढो को भी बक्शा नही है ! और हमारे जैसे लोगों ने, इस भयानक दंगे को देखने के बाद देश भर में यह बताने की कोशिश की है कि “आने वाले पचास वर्षों कि राजनीतिका केंद्रबिंदू, सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता ही रहेगा ! और अन्य सभी मुद्दे हाशिये पर चले जायेंगे !” लेकिन हमारे देश के एक भी समाजवादी, सेक्युलर, गांधीवादी, कम्युनिस्ट, तथाकथित प्रगतिशील विचारों के संघठन, या व्यक्ति ने इस बात की गंभीरता को समझा नहीं, या हम उन्हें समझाने में नाकामयाब रहे !
आज से तीन दिन बाद, भागलपुर दंगे को, तैतीस साल पूरे होने जा रहे हैं ! गुजरात का दंगा, भागलपुर के तेरह साल बाद है ! और संसदीय राजनीति का सबसे बड़ा पराजय ! दंगों कि राजनीति करने वालों को ! आज भारत और अन्य राज्यों में सरकारे बनाने का मौका मिलना ! हमारे संसदीय राजनीति का स्वतंत्रता के बाद सब से बड़ा पतन का उदाहरण बन गया है ! अघोषित हिंदुराष्ट्र बनाने की लगातार कोशिश जारी है ! जो कि हमारे संविधान के खिलाफ हैं !
महात्मा गाँधी जी के, हिंद स्वराज मे संसद के संदर्भ में की गई टिप्पणी को, शत-प्रतिशत सिद्ध कर रहा है ! आज से नब्बे साल पहले,जर्मनी में हिटलर भी ड्युमा में चुनाव जीत कर ही, प्रवेश किया है ! 31 जनवरी 1933 के दिन उसने शपथ ग्रहण की थी ! बिल्कुल भारत में यही घटना 16 मई 1914 के दिन हुई है ! जिसके लिए हम आप सभी जिम्मेदार है ! ईसिलिए मै 9 अप्रैल 2017 को राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष के पद पर आसीन होने के बाद संघमुक्त भारत की घोषणा की थी ! और मुझे खुशी है “कि हमारे देश भर से आए हुए सभी साथियों ने एक सुर में सुर मिला कर इस घोषणा को अमली जामा पहनाने की कोशिश शुरू कर दी है !”
और सबसे अहम बात राष्ट्र सेवा दल कि स्थापना, 4 जून 1941 के दिन सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को रोकने के लिए कि गई है ! आज इतिहास के क्रम में कभि नही ! इतनी महत्वपूर्ण भूमिका राष्ट्र सेवा दल को निभाने के लिए, इस तरह चलोमान पाठशालाओं की गतिविधियों को राष्ट्र सेवा दल की गतिविधियों में शामिल करना आवश्यक है ! धन्यवाद, 20 अक्तुबर 2022, शांतिनिकेतन

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