दिल्ली विधानसभा चुनाव का शंखनाद होते ही दिल्ली का पारा चरम पर पहुंच गया है. हर दल अपनी चालों से विपक्षी दलों को मात देने में किसी तरह की कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को अपने साथ जोड़कर ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला कि विपक्षी दलों, खासकर आम आदमी पार्टी के सदस्यों ने दांतों तले उंगली दबा ली. उनके पास भाजपा की इस चाल का कोई जवाब नहीं था. किरण बेदी के राजनीति में क़दम रखते ही विरोधी दलों में बगावत की बयार चल पड़ी. सबसे पहले आम आदमी पार्टी की शाजिया इल्मी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की इसके बाद आप के पूर्व विधायक विनोद कुमार बिन्नी भी भाजपा में शामिल हो गए. इससे पहले आप के संस्थापक सदस्य अश्विनी कुमार और आप सरकार के दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहे एमएस धीर भी भाजपा में शामिल हो गए थे. दलबदल की हद तो तब हो गई, जब कांग्रेस का दलित चेहरा एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की. उसके बाद शाम होते-होते वह भाजपा की औपचारिक रूप से सदस्य बन गईं. यह एक बार फिर से उठ खड़ी होने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था. दूसरी पार्टी में पलायन करने वालों में सबसे ज़्यादा तादाद आम आदमी पार्टी के सदस्यों की है. पलायन तक़रीबन हर पार्टी से हो रहा है, लेकिन अचानक से सबकी पसंदीदा पार्टी भाजपा बन गई है. भाजपा से केवल वे लोग दूसरे दलों की ओर रुख कर रहे हैं, जो टिकट पाने की आस लगाए बैठे थे, लेकिन टिकट कटते ही उन्होंने बगावत का झंडा बुलंद कर लिया.
दल-बदल के सबके अपने-अपने कारण हैं. भाजपा में शामिल हुए आप के बागी पूर्व विधायक विनोद कुमार बिन्नी 2013 में लक्ष्मीनगर सीट से चुनाव लड़े थे. उन्हें केजरीवाल ने अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी थी. इस वजह से उन्होंने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया. पार्टी ने उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया था. इसके बाद बिन्नी ने अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ विधानसभा चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया था. बिन्नी यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि भाजपा के सहयोग के बिना वह अपने मकसद में सफल नहीं हो सकते. इसी वजह से वह नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के ख़िलाफ़ कैंपेन कर रहे थे और भाजपा में प्रवेश करने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थे. किरण बेदी द्वारा भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते ही बिन्नी को मा़ैका मिल गया और उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया. भाजपा ने उन्हें मनीष सिसौदिया के ख़िलाफ़ पटपड़गंज सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद बिन्नी ने कहा, मैं भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ होने के कारण अन्ना आंदोलन का हिस्सा था. मैं नहीं जानता था कि कुछ अवसरवादी लोग मुझे और दिल्ली के लोगों को ठगेंगे. उन्होंने लोगों से झूठे वादे किए और अपने लाभ के लिए अन्ना जैसे महान व्यक्ति का इस्तेमाल किया.
आम आदमी पार्टी के टिकट पर आरके पुरम सीट से विधानसभा और गाज़ियाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ने वाली शाज़िया इल्मी ने लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद आम आदमी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया. वह लोकसभा चुनाव गाज़ियाबाद से नहीं लड़ना चाहती थीं, लेकिन पार्टी ने उन्हें जबरदस्ती जनरल वीके सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतारा. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद शाज़िया ने आप से इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद वह किसी पार्टी में नहीं गईं. हालांकि, अटकलें लगाई जा रही थीं कि वह भाजपा में जा सकती हैं, लेकिन उन्होंने जल्दबाज़ी में कोई ़फैसला नहीं लिया. वह लगातार आप की नीतियों और क़दमों की आलोचना करती रहीं. किरण बेदी के शामिल होने के बाद उनके लिए भाजपा में आना आसान हो गया. 2013 में जंगपुरा से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले मनिंदर सिंह धीर पार्टी का सिख चेहरा थे. आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान वह विधानसभा अध्यक्ष रहे. आप में आंतरिक लोकतंत्र की कमी की बात कहते हुए उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. आप छोड़ भाजपा में शामिल होने का ईनाम धीर को भी मिला, उन्हें जंगपुरा से पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है.
दल-बदल के सबके अपने-अपने कारण हैं. भाजपा में शामिल हुए आप के बागी पूर्व विधायक विनोद कुमार बिन्नी 2013 में लक्ष्मीनगर सीट से चुनाव लड़े थे. उन्हें केजरीवाल ने अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी थी. इस वजह से उन्होंने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया. पार्टी ने उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया था.
इस विधानसभा चुनाव में मुसलमानों का झुकाव आम आदमी की तरफ़ बढ़ रहा है, ऐसी बातें राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी से जुड़े और पिछले विधानसभा चुनाव में उसके टिकट पर चुनाव लड़ने वाले तीन मुस्लिम उम्मीदवारों ने भी आप का दामन छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया. 2013 में मटिया महल से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार रहे शकील अंजुमन देहलवी, कृष्णा नगर से आप उम्मीदवार रहे इशरत अली अंसारी और बल्लीमारान से पार्टी उम्मीदवार रहीं फरहाना अंजुम किरण बेदी के सदस्यता ग्रहण करने के दिन भाजपा में शामिल हो गए. शकील अंजुमन देहलवी को भाजपा ने मटिया महल से उम्मीदवार बनाया है. वह भाजपा द्वारा जारी 62 उम्मीदवारों की सूची में जगह पाने वाले अकेले मुस्लिम हैं.
दलित उम्मीदवारों का भी आप से मोहभंग हो रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में अंबेडकर नगर से आम आदमी पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए अशोक कुमार चौहान भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. हालांकि, आप ने इस बार उन्हें अंबेडकर नगर से टिकट न देने का मन बना लिया था, इसी वजह से वह भाजपा में शामिल हो गए. भाजपा ने बतौर ईनाम उन्हें अंबेडकर नगर से चुनाव मैदान में उतारा है. उधर, भाजपा से इस्तीफ़ा देने वालों में धीर सिंह बिधूड़ी का नाम सबसे आगे है. वह ओखला से टिकट चाहते थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया. बसपा से भाजपा में शामिल हुए ब्रह्म सिंह बिधूड़ी को वरीयता दी गई और ओखला से पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया गया. दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष एवं पार्षद करतार सिंह तंवर भाजपा छोड़कर आप में शामिल हो गए.
दिल्ली में विभिन्न पार्टियों के छोटे-बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं. कांग्रेसी नेता एवं पीतमपुरा के पूर्व पार्षद राजेश यादव भी भाजपा में शामिल हो गए. राजेश यादव को भाजपा ने बादली सीट से उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस के पूर्व विधायक एवं पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह के बेटे सरदार अरविंदर सिंह, राष्ट्रीय लोकदल की निगम पार्षद अनीता त्यागी, पूर्व कांग्रेस पार्षद दीपक चौधरी, प्रदेश कांग्रेस सचिव शशिकांत दीक्षित, कांग्रेसी नेता गोपाल पहाड़िया, अशोक लोहिया, अरदेश शर्मा, महेंद्र त्यागी, एमपी शर्मा, सरदार हरप्रीत सिंह के साथ-साथ आम आदमी पार्टी के संदीप दुबे, इंजीनियर चंद्रकांत त्यागी और समाजवादी कार्यकर्ता ओंकार सिंह सिकरवार भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं.
आप अथवा अन्ना आंदोलन से जुड़े नेताओं के भाजपा में शामिल होेने पर प्रतिक्रिया देते हुए आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष ने कहा कि भाजपा के पास अपना कोई सशक्त चेहरा नहीं है. वह आप के नेताओं को शामिल कर रही है, जिससे साबित होता है कि भाजपा आम आदमी पार्टी की बी टीम बन गई है. लेकिन, यहां एक बात ग़ौर करने लायक है, जो आम आदमी पार्टी स्वयं को पार्टी विथ डिफरेंस (सबसे अलग) बताती थी, उसमें पार्टी गठन के समय वही लोग साथ आए, जो मौक़ापरस्त थे. अब अधिकांशत: वैसे ही लोग आप छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं, जिन्हें लगता है कि इस चुनाव के बाद आप का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा. इसी आशंका के आधार पर वे दूसरी पार्टियों में शामिल हो रहे हैं. उनकी कोई विचारधारा नहीं है. वे स़िर्फ अपना भविष्य तलाश रहे हैं. उन्हें पार्टी और विचारधारा से ज़्यादा अपने भविष्य की चिंता है. पार्टियों में स्थापित सदस्यों पर पैराशूट उम्मीदवारों को वरीयता देना भी बगावत का एक प्रमुख कारण है. आप ने पिछली बार यह दावा किया कि उसने प्रत्याशियों का चयन जनता की पसंद पर किया है, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. इस बार प्रत्याशियों के चयन में धनाढ्यों को वरीयता दी गई. ऐसे में, जो लोग आंदोलन के समय से आप से जुुड़े हुए थे, वे या तो चुपचाप बैठे हैं या पार्टी में साइड लाइन कर दिए गए हैं. जो घुटन भरे माहौल में नहीं रह पा रहे, वे दूसरी पार्टियों में अपने लिए जगह तलाश रहे हैं. यूं तो कहा जाता है कि मोहब्बत और जंग में सब जायज है, लेकिन अब इस मुहावरे में राजनीति को भी शामिल कर लेना चाहिए.