जातिवाद और देश भक्ति अपने मूल अर्थों में परस्पर विरोधी प्रवृतियां हैं । जातिवाद की मूल प्रवृत्ति संकीर्ण है ,लेकिन देश भक्ति में भौगोलिक आधार व्यापक एकता का आग्रह होता है । किसी देश के नागरिक अपनी मजबूत एकता और सदभाव से ही सच्चे अर्थों में देश भक्त सिद्ध हो सकते हैं। यदि किसी देश के नागरिकों का एक वर्ग दूसरे वर्ग के नागरिकों के धर्म , जाति और संस्कृति को दोयम दर्जे और पराया साबित करेगा तो यह देश भक्ति नहीं है ।
कोई भी जातिवादी संगठन अंततः देश की एकता में बाधक होता है । इसलिए जातिवाद और देश भक्ति को एक साथ नहीं साधा जा सकता ।यदि जो लोग इसे एक साथ साधने का दंभ भर रहे हैं तो इसके दो ही कारण हो सकते हैं ।पहला कारण तो अज्ञानता है और दूसरा कारण जनता को भ्रमित करने की चालाकी ।
देश भक्ति के मूल भाव को अंततः व्यापक होना चाहिए । इस भाव और संवेदना को विश्व शांति और सदभाव की तरफ अग्रसर होना चाहिए ।

    शैलेन्द्र शैली 

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