मेडम खैरनार के केंद्रीय विद्यालय की नौकरी के कारण ,हमारे तबादले होते रहते थे ! और अक्तूबर 1982 के दुर्गा-पूजा के पहले ही दिन हम लोग महाराष्ट्र के वर्धा के पास के सेंट्रल अम्युनेशन डिपोसे (सी ए डी कैंप) पुलगाव से एक हजार से भी ज्यादा किलोमीटर दूरी पर के कलकत्ता के फोर्ट विलियम, (भारत में अंग्रेजी सल्तनत की नींव रखने का पहला किला ! जो पहले वर्तमान जीपीओ के जगह पर ही था ! लेकिन सिराजुद्दौला ने इटसे इट बजा देने के कारण हुगली नदी से सटकर यह किला अंग्रेजो ने बनाया और 1947 भारत छोडने तक इस किले को खरोंच भी नहीं आई ! )
जो आज हमारे सेना का पूर्वी कमाण्ड का मुख्यालय है और उसीके केंद्रीय विद्यालय मे होने के कारण हमें पुलगाव से बोरिया-बिस्तर समेट कर कलकत्ता के लिए निकलना पडा ! तब हमारे बडे बेटे की उम्र दो साल और छोटे की एक साल थी ! पहले तो सामान के साथ सीधे केंद्रीय विद्यालय फोर्ट विलियम चले गए थे ! तो तत्कालीन प्राचार्य महोदय ने उपप्राचार्य के ऑफिस में हमारे सामान के साथ हमें भी ठहराया ! फिर हम कलकत्ता जैसे महानगर में घर की तलाश करने के लिए निकल पड़े लेकिन हमारे बजट के बाहर का मामला लगा ! तो ईस्टर्न कमांडर के ऑफिस के चक्कर दोनों बच्चों को लेकर काटने के लिए मजबूर हुए ! तो ऑफिस के घर एलाट करने वाले अफसर ने तंग आकर एक तबेले जैसे वह भी फोर्ट विलियम से चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर के कलकत्ता के कमांड हास्पीटल के अंदर का एक कमरा (सिर्फ कमरा ! बाथरूम के बगैर!!) सही में वह एक घोडे का ही तबेला था !
सो हम लोग एक महिने के स्कूल के कमरे से कमांड हास्पीटल के तबेले में शिफ्ट हो गए ! बाथरूम कमरे में नहाने के बाद झाडू मारकर पानी निकालने का काम कर के और पाखाना सामने ही सार्वजनिक पाखाने की हमारे तबेले के सामने ही होने के कारण उसका उपयोग किया करते थे ! हमारे उस तबेले की खासियत थी कि उसमें एक आम का पेड़ था ! और कमांड हास्पीटल के पास ही कलकत्ता का झू और सामने ही बाॅटनिकल गार्डन होने के कारण ! हमने अपने जीवन में चिडियाँ, कौआ, मिठ्ठू, कबूतरों के अलावा शायद ही कोई अन्य पक्षी देखे होंगे ! लेकिन हमारे तबेले के सामने के आम के पेड़ पर जो अलग-अलग तरह के पक्षी देखे ! वह हमने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखें थे ! और मैंने एक आर्मी फर्नीचर में मिली खटिया डाल कर दोनों बच्चों को बगैर किसी खिल्लोने के सिर्फ विभिन्न प्रकार के पक्षी दिखा-दिखा कर उनका दिल बहलाने का काम किया है !
मेडम खैरनार के विद्यार्थीयो में ईस्टर्न कमांडर के सुपुत्र भी था ! और वह कभी-कभी डिफीकल्ट लेसन के कारण ! हमारे तबेले नुमा जगह आया करता था ! तो उसने अपने पीता को शायद हमारे क्वार्टर के बारे मे बोला होगा ! क्योंकि क्वार्टर एलाट करने वाले अफसर ने खुद आकर हमें स्कूल के पास ही तुरंत फोर्ट विलियम के अहाते में दो कमरों वाले मकान देने की पेशकश की है ! तो दो बेडरूम और किचन, बाथरूम वाले मकान में हम लोग शिफ्ट हुए ! लेकिन हमारे कमांड हास्पीटल के तबेले की याद आज भी आती है ! क्योंकि जीवन में इतनें प्रकार के पक्षी हमने और हमारे दोनों बच्चों ने कभी भी नहीं देखें थे ! पाखाना या बाथरूम की कमी उस अतिरिक्त सुविधा जो निसर्ग का चमत्कार के कारण हमारे लिए असुविधा नहीं रहीं थीं ! उल्टा हम लोग उस कमरे को आज भी याद करते हैं !
क्योंकि सामने ही बाॅटनिकल गार्डन और उसीके बगल में नेशनल लायब्ररी होने के कारण मैंने पहले हप्ते में ही सदस्यता लें ली थी ! और रोज श्याम को बच्चों को कभी नेशनल लायब्ररी जो कभी भारत के वायसराय का आवास था ! शायद अंग्रेजी हुकूमत वही से चलती थी ! और शुरू मे राजधानी भी वही थी ! तो बगल के बाॅटनिकल गार्डन और नेशनल लायब्ररी(जो वायसराय लाॅज थी) यह हमारे बच्चों को रोज श्याम के समय लेकर हमारे घुमने की जगह बन गई थी ! और सबसे बड़ी उपलब्धि बाॅटनिकल गार्डन में टाइम्स ऑफ इंडिया की तरफ से संपूर्ण रात गुरू-शिष्य परंपरा का संगीत समारोह होतां था !
तो मैंने जीवन में पहली बार किशोरी आमोणकर, भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व, मल्लिकार्जुन मंसुर, ओंकार नाथ ठाकुर, हरिप्रसाद चौरसिया, अली अकबर, विलायत खाॅ, रवि शंकर, आमजद अली, एम एस गोपालकृष्णन, पंडित जसराज, शिवकुमार शर्मा, डागर बंधुओं से लेकर अजय मुखर्जी, जाकिर हुसैन, अल्लाहरखा, निखिल बॅनर्जी, शायद उस समय के सभी तरह के शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को सुनने का आनंद उठाने का लाभ मिला है ! और नाटक रूद्र सेन गुप्ता के ! नांदिकार नाट्य समारोह के कारण जीतने मराठी, हिंदी के नाटकों को मैंने नहीं देखा होगा ! उतना बैकलाग कलकत्ता के पंद्रह साल के रहने में घासीराम कोतवाल, सखाराम बाइंडर, कन्यादान, चरणदास चोर जैसे महत्वपूर्ण नाटक और रतन नियम,हबीब तनवीर के जैसे मणिपुर के तथा संपूर्ण देश की बेहतरीन से बेहतर कलाकृति देखने को मिलीं है ! और नंदन नाम का काम्पलैक्स मेरे सामने ही तैयार हुआ ! (1982-97) इस कारण आर्ट सिनेमा ! और बगल के ही आर्ट गैलरी में जीतने चित्र और मूर्तियों की प्रदर्शनी ! रोदा के मूर्तियो को भारत में जहाज से लाकर दिखाना !
मुझे तो लगा कि मेरा जीवन सार्थक हो गया ! एक तरह से मेरी सांस्कृतिक भुक मिटानेके लिए ही मै कलकत्ता गया था! उम्र के तीस साल के दौरान और पैंतालीस साल की उम्र में वापस आया ! तो मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन पल मैंने कलकत्ता जिसे डोम्नीक लॅपिए ने सीटी ऑफ जाॅय बोला है ! फिर बाद में गौर किशोर घोष, अम्लान दत्त, शिव नारायण राय, महश्वेता देवी, सुभाष मुखर्जी, सुनिल गांगुली, चिदानंद दासगुप्ता, अपर्ना सेन, सावली मित्र, बादल सरकार, समर बागची, दिलीप चक्रवर्ती, शक्ति चटर्जी केजी सुब्रह्मण्यम, श्यामली खस्तगिर, वाणी सिंह तथा मनिषा बैनर्जी,अरूण मांझी एमानुएल हक जैसे मित्रों ने मेरे कलकत्ता के सहवास में और आनंद तथा मुझे समृद्धि प्रदान करने के लिए बहुत ही बडा काम किया है ! तो कलकत्ता मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन पल मैंने बिताया जिसे मै कभी भी नहीं भूल सकता !
मेधा खानोलकर नाम की स्कर्ट में एक लडकी 1966-67 राष्ट्र सेवा दल के दस्तानायक-शाखानायक शिबिर जो राष्ट्र
सेवा दल के पुणे के मुख्यालय में एक सप्ताह का हुआ था ! तो मै भी शिंदखेडा शाखा के तरफसे उसमें हाँफ पेंट में शामिल था ! और कलकत्ता 1982 में जाने के बाद कुछ ज्यादा संपर्क नहीं था !तो 1990-91 के दर्मियान कलकत्ता में मेधा पाटकर आई थी ! तो उनके जजमान मेरे मित्र निरंजन हालदार ने कहा कि आपको उसके कार्यक्रमों में आना है ! तो मै गया था ! और देखां कि यह तो मेधा खानोलकर नाम की स्कर्ट में एक लडकी जो मेरे साथ राष्ट्र सेवा दल के पहले ही कैम्प में थीं ! तो शायद उसे भी याद आया ! तो उस यात्रा के बाद वह जब भी कलकत्ता आई तो हमारे ही घर ठहरने लगीं ! तो मैंने देखा कि बहुत सीमित लोग निरंजन भाई बुलाते थे ! तो मैंने सोचा कि विकास की अवधारणा की समस्या तो सभी की है ! और मैंने थोड़ा दायरा बढानेका शुरू कर दिया ! जिससे पहलीबार लगभग बंगाल के सभी तरह के विभिन्न आंदोलन करने वाले एक छत के नीचे देखकर, मैंने कहा कि इनका एक साझा मंच बना ने का सुझाव दिया था !और उसीके बदौलत फ्रेंड्स ऑफ नर्मदा की स्थापना हुई !
फिर 1992 के भोपाल गैस त्रासदी के दिन 3 दिसम्बर, भोपाल में जिने के हक की लड़ाई नाम से एक साझा मंच बना ने का सुझाव आया था ! फिर उस मंच ने भारत यात्रा के अंतिम पडाव 1994 को सेवाग्राम मे ! नेशनल अलायन्स फाॅर पीपुल्स मुव्हमेंट की स्थापना हुई है और इस का हिंदी संस्करण जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय है ! जोके सिर्फ भारत के सभी जन-आंदोलनों का साझा मंच है ! जिसे सिर्फ विकास के नाम पर चल रहे विभिन्न प्रकार की योजनाओके खिलाफ आंदोलन करने वाले संगठनों को कोऑर्डिनेट करने का है ! लेकिन हमारे कुछ लोगों की गलतफहमी हो गईं हैं कि वह बहुत लोकप्रिय है ! तो संसद, विधायक तथा ग्राम पंचायत में भी चुनाव लड़ कर जा सकते हैं जिसका मैंने विरोध किया है तो मुझे एन ए पी एम से अलग होना पडा ! हालाँकि मैं संस्थापक संयोजक हूँ ! और जो लोग चुनाव के लिए मैदान में उतरे हैं ! आज वही एन ए पी एम का नेतृत्व कर रहे हैं !