बुधनी। लाल पत्थर का एक विशाल और भव्य प्रवेशद्वार बुधनी में आपका स्वागत करता है। ऐसे ही द्वार भाजपा के कई आला नेताओं की भी पसंद हैं।इस इलाके को प्रवेश द्वार के अलावा और भी कई चीज़ें बाकी से अलग करती हैं। दीवारें पेंटिंगों से सजी हुई हैं, सड़कें चौडीं हैं और आगंतुकों का स्वागत करते बोर्ड सब तरफ हैं।जाहिर है यह सब बुधनी के खास होने के परिचायक है।
राजधानी भोपाल से 70 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित बुधनी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चुनाव क्षेत्र है। वे किसी चुनाव में यहा आ कर प्रचार नहीं करते। उनका चुनाव अभियान उनकी पत्नी के जिम्में हैं लेकिन इस चुनाव में ज्यादातर काम उनके पुत्र कार्तिकेय कर रहे हैं।जाहिर है चौहान को भरोसा है कि जनता उन्हें जिताएगी। और यह अति-आत्मविश्वास नहीं है। चौहान बुधनी के बहुत से लोगों की पहली पसंद हैं।
इसलिए सोचा या माना जा सकता है कि बुधनी में चुनावों को लेकर बहुत उत्साह होगा। जोश और रोमांच भी। उनके प्रशंसक, मामा के उत्साही अनुयायी, उनके पक्ष में चुनावी माहौल बना रहे होंगे, गली-गली में उनका शोर होगा।चर्चा होगी। लेकिन कस्बे में सूनापन है। भाजपा का स्थानीय कार्यालय खाली पड़ा है।मानो मुर्दनी सी छाई हुई है। कुछ कार्यकर्ता मौजूद हैं जो मोबाइल पर बात करते हुए और कागज के छोटे-छोटे कपों में चाय पीते हुए समय काट रहे हैं।
सब कुछ उतना ठीक-ठाक नहीं है, जितना कि होना चाहिए। मामा के प्रति असंतोष और गुस्सा कई जगह झलका। गांवों में भी शहर जैसी ही खामोशी है लेकिन गांव के लोग अपने मन की बात साझा करते हैं। देवगांव की चाय की दुकान पर मौजूद हर व्यक्ति के पास चौहान के खिलाफ कहने के लिए कुछ न कुछ है। कुछ लोग पर्याप्त विकास न होने से नाराज हैं और कुछ इसलिए क्योंकि समाज कल्याण योजनाओं के अमल में भेदभाव हुआ है। पर सबसे ज्यादा असंतुष्ट युवा हैं, जो पहली बार वोट देने जा रहे हैं। उनके पास काम नहीं है और ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ से उन्हें फायदा नहीं मिला है।
चुनाव के कुछ महीने पहले लागू इस योजना का उद्देश्य पंजीकृत संस्थाओं के ज़रिये युवाओं को रोज़गार और अपने कौशल में सुधार करने का मौका देना है। अजय और उनके दोस्त इस योजना का फॉर्म कब का भर चुके हैं पर वे अब तक उस फ़ोन या चिट्ठी का इंतज़ार कर रहे हैं जो उनके लिए रोज़गार के दरवाजे खोलेगी और उन्हें कुछ नया सीखने का मौका देगी। उनके दूसरे साथियों को शिकायत है कि क्षेत्र के दो बड़े उद्योगों – ट्राईडेंट और वर्धमान – में उन्हें काम नहीं मिलता। मनोज अपना गुस्सा और हताशा छुपाने की ज़रा भी कोशिश नहीं करते।“काहे के कारखाने, हमें उनसे क्या मिला? वे गाँव के लोगों से केवल मजदूरी करवाते हैं। बाकी ऊपर के लोग तो दूसरे राज्यों से आते हैं,” वे कहते हैं। यही शिकयत अधिकांश युवाओं की है। फिर भावनात्मक जुड़ाव का भी सवाल है। कुसुम लाड़ली बहना योजना की लाभार्थी हैं और उन चंद भाग्यशाली लोगों में से एक हैं जिन्हें वर्धमान फैक्ट्री में काम मिला है। परन्तु उनके माता-पिता के विपरीत, उनका मुख्यमंत्री से भावनात्मक जुड़ाव नहीं है। उनके पिता मामा की तारीफ करते नहीं थकते मगर कुसुम अपनी राय अपने तक ही रखती हैं।
बुधनी में विकास है लेकिन जानकारों के अनुसार छिंदवाड़ा जैसा फिर भी नहीं है। शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र की कमलनाथ के क्षेत्र से तुलना जम कर हो रही है। पंडादोआ गाँव के राकेश, जो छिंदवाड़ा जा चुके हैं, कहते हैं कि बुधनी में उस तरह का चमकदार विकास नहीं हुआ है जैसा कि छिंदवाड़ा में हुआ है। छिंदवाड़ा में कुछ साल पहले कमलनाथ ने 102 फुट ऊंची हनुमान की मूर्ति स्थापित करवाई थी। और शायद उसी के जवाब में लाल पत्थर का दरवाज़ा, जिसकी डिजाईन मंदिर की तरह की है, यहा बनवाया गया है। मगर औद्योगिक विकास का इस क्षेत्र में अता-पता नहीं है। एक भूमिहीन श्रमिक मनोज कहते हैं कि यहाँ लोग ठीक-ठाक स्थिति में हैं मगर मुख्यमंत्री के क्षेत्र के नाते वहां कुछ असाधारण हुआ हो, ऐसा नहीं है।
बुधनी, छिंदवाड़ा नहीं है। बल्कि वह योगी के गोरखपुर की तरह है। और योगी की तरह, शिवराज का भी बुधनी में ख़ासा प्रभाव है। परन्तु बुधनी के लोगों में शिवराज को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न बनाने के कारण कोई गुस्सा नहीं है। आख़िरकार, शिवराज यदि मामा हैं तो मोदी नाना हैं!
शिवराज सिंह चौहान बुधनी में मजे से जीत जाएंगे। लेकिन उनकी जीत का अंतर शायद घटेगा, जैसा कि पिछले कई चुनावों से होता आ रहा है। सन 2013 में शिवराजसिंह ने कांग्रेस के महेंद्र सिंह चौहान को 84,000 वोटों से हराया था। सन 2018 में कांग्रेस ने उनके खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, जो कि उनकी तरह ओबीसी हैं, को खड़ा किया था।तब जीत का अंतर घट कर 59,000 रह गया। इस बार कांग्रेस ने विक्रम मस्ताल नाम के एक टीवी कलाकार को शिवराज के मुकाबले खड़ा किया है। मस्ताल ने एक टीवी सीरियल में हनुमान की भूमिका निभायी थी।
शिवराज के चुनाव कार्यालय से कुछ मीटर दूर कांग्रेस का कार्यालय हैं। वह और ज्यादा सूना है। वहां और ज्यादा मुर्दनी छाई हुई है। ऐसा लग रहा है मानों कांग्रेस हार चुकी है। वहां चौकीदारी कर रहा गार्ड बताता है कि उम्मीदवार और पार्टी के कार्यकर्ता गांवों में प्रचार के लिए गए हुए हैं। मगर मुझे मेरी यात्रा में कांग्रेस का प्रचार करता कोई नज़र नहीं आया। और ना ही कोई होर्डिंग दिखी। कांग्रेस मैदान से गायब नज़र आती है।
शिवराज के 25 साल पुराने इस क्षेत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है जो दूसरे राजनेताओं को रास्ता दिखाने वाला हो। मगर मामा का कोई विकल्प नहीं है। उन्हें 1980 से कोई हरा नहीं पाया है। वे हमेशा 60 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल करते रहे हैं और उनका राजनैतिक करियर परवान चढ़ता रहा है। पर एक बात है। बुधनी के लोगो के लिए शिवराज भले ही ख़ास हों, मगर वे बुधनी को ख़ास नहीं बना पाए हैं।
(कॉपी: अमरीश हरदेनिया)
source : Naya India