तथागत की तपोभूमि पर इन दिनों भू-माफिया की नजर है. महाबोधि मंदिर के वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल होने के बाद बोधगया में लोगों का खासकर बड़े व्यावसायियों का झुकाव बढ़ा है. इस कारण बोधगया में जमीन की कीमत भी आसमान छूने लगी है. यहां विदेशी बौद्ध धर्मावलंबियों के साथ-साथ विदेशी मठों की स्थापना के लिए भी विदेशियों में एक तरह से होड़ लगी है. जमीन का मनमाना मूल्य मिलने के कारण भू-माफिया ने परवाना की जमीन की अवैध रूप से खरीद-बिक्री शुरू कर दी है. कुछ दिन पूर्व एक जांच में पाया गया कि दर्जन भर से अधिक विदेशी बौद्ध मठ परवाना की भूमि पर स्थापित हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बोधगया में भू-माफिया कितने सक्रिय हैं. इस मामले की गहराई से जांच की जाए, तो बोधगया के अंचल कार्यालय के कई पूर्व व वर्तमान तथा निबंधन विभाग के कई कर्मियों की संलिप्तता उजागर हो सकती है.

बोधगया में सैकड़ों एकड़ भूमि परवाना के रूप में दलितों के बीच बांटी गयी थी. इस भूमि में से अधिकतर पर दूसरे लोगों का कब्जा है या फिर बेच दी गई है. पिछले पांच दशक से सरकार से मिली परवाना की जमीन पर कब्जा दखल के लिए जिलाधिकारी से लेकर अंचल अधिकारी तक लोग दौड़ लगा रहे हैं, लेकिन इसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है. बोधगया अंचल के मोचारिम गांव के 52 दलितों में से प्रत्येक को साढ़े तेरह डिसमिल जमीन 1970-71 में सरकार के परवाना केस नंबर 01/69-70 के आधार पर दी गई थी. लेकिन आज की तारीख में इस भूमि पर भू-माफिया की नजर लग गई है. 2011 में परवाना में शनिचर मांझी, उदय मांझी, जगदेव मांझी, सोहराय मांझी, नन्हक मांझी, शिवा मांझी, गोपी मांझी, रामेश्वर मांझी समेत 52 लोगों को सरकार ने जमीन दी थी. लेकिन, भू-माफिया ने इनमें से कुछ लोगों को पैसे का लालच देकर और बरगला कर परवाना की जमीन अपने नाम लिखवा ली. पहली बार इसमें पीड़ित लोगों ने 27 जून 2011 को गया के भूमि सुधार उप समाहर्ता और दो अगस्त 2013 को गया के जिलाधिकारी के यहां लिखित शिकायत की, इसके बाद भी दोषी लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

पीड़ितों की लड़ाई लड़ रहे व सामाजिक कार्यकर्ता बच्चू मांझी का कहना है कि प्रशासन साथ नहीं दे रहा है. स्थानीय दबंग लोग बाहरी तत्वों की मदद लेकर एवं झूठ का सहारा लेकर जमीन पर कब्जा जमा रहे हैं. यदि सरकार का यही रवैया रहा, तो लोग फिर से भूमिहीन हो जाएंगे. जानकारी मिली है कि बोधगया प्रखंड में सभी जगह एक जैसा ही हाल है. एक एनआरआई ने 2014 में महाबोधि मंदिर के दक्षिण स्थित उरैल में पर्चे की जमीन की रजिस्ट्री सोसाइटी के नाम से करवा ली है. उस पर धर्मेंद्र मांझी से 40 डिसमिल, रामजी मांझी से 45 डिसमिल, कौशल्या देवी से 40 डिसमिल, तपेश्वरी देवी से 88 डिसमिल व वीरेन्द्र राम से 42 डिसमिल जमीन बहला-फुसलाकर रजिस्ट्री कराने का आरोप लगाया गया है. इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय तक दरख्वास्त की गई, लेकिन नतीजा सिफर है. निश्चित तौर पर अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल बोधगया में भू-माफिया की सक्रियता बढ़ गई है. भू-माफिया द्वारा कुछ सरकारी सेवकों की मिलीभगत से भू-हदबंदी अधिशेष, अनाबाद बिहार सरकार व अनाबाद सर्वसाधारण भूमि के फर्जी कागजात के आधार पर उसका स्वरूप परिवर्तन किया जा रहा है. बाद में स्वरूप के परिवर्तन के बाद वैसी जमीन को देशी-विदेशी बौद्ध मठों के हाथों में ऊंची कीमत पर बेच दी जा रही है.

एक उदाहरण सामने है. बोधगया प्रखंड का कटोरवा व मोचारिम गांव महादलित बहुल है. इन भूमिहीन महादलितों को चार डिसमिल आवासीय भूखंड न देकर पांच एकड़ 60 डिसमिल जमीन की बंदोबस्ती नौकरीपेशा वाले एक ही परिवार के कई सदस्यों के बीच कर दिया गया. यह कारनामा 1989-90 में किया गया. इस अनियमितता की पहली शिकायत 18 जून 1999 को जिलाधिकारी से की गई थी. मोचारिम के लेखा महतो व उसके परिवार के बीच भूखंड के बांटे जाने की शिकायत के बाद भी नतीजा शून्य है. ऐसे में जिलाधिकारी कार्यालय की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है. जानकारी के अनुसार मोचारिम के लेखा महतो के पुत्र बालगोविन्द प्रसाद को खाता संख्या 570 प्लॉट 2017/18 के अंतर्गत 49 डिसमिल के भूखंड की बंदोबस्ती की गई है. इसी तरह बालगोविन्द प्रसाद के पुत्र व ईंट भट्‌ठा संचालक के नाम खाता संख्या 570, 537, प्लॉट संख्या 2017/18 के तहत 63 डिसमिल, लेखा महतो के पुत्र व सरकारी कर्मचारी शिवकुमार प्रसाद के नाम उक्त प्लॉट में एक एकड़ 11 डिसमिल, सरकारी कर्मचारी किशोरी प्रसाद के नाम पर एक एकड़ 12 डिसमिल, व्यवसायी रामेश्वर प्रसाद के नाम 64 डिसमिल, कैलाश प्रसाद के नाम एक एकड़ 12 डिसमिल व रामेश्वर प्रसाद के पुत्र रविचन्द के नाम से 49 डिसमिल भूखंड की बंदोबस्ती की गई है.

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