नई दिल्ली (ब्यूरो, चौथी दुनिया)। केंद्र और महाराष्ट्र सरकार में साथ-साथ बीजेपी और शिवसेना, बीएमसी चुनाव में एक दूसरे के आमने सामने तलवारें लिए खड़ें दिखाई दी थीं। वो सत्ता का सुख तो साथ-साथ भोग रहे हैं लेकिन बीएमसी चुनाव के पहले एक दूसरे के खिलाफ खुलकर बयानबाजी भी कर रहे थे। जिसका परिणाम ये हुआ कि स्थानीय चुनाव की चमक राष्ट्रीय मंच पर भी दिखाई देने लगी।
इस सियासी तनातनी का और असर हुआ, वो ये कि बीएमसी चुनाव के बुनियादी मुद्दे इस चकाचौंध भरी खबरों के बावजूद अनदेखी के अंधेरे में तड़पते रह गए। मुंबई में एक बड़ा वर्ग है जो छोटे मोटे काम करके अपनी जिंदगी की गाड़ी ग्लैमरस सिटी में खीच रहा है। ऐसा कहा जाता है कि मुंबई में ये ही असली मतदाता वर्ग हैं जो पानी से लेकर शौचालय तक की समस्याओं से हर दिन, दो चार होते हैं।
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अगर नतीजे फिर से बीजेपी और शिवसेना के पक्ष में नहीं आते हैं तो ये महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बड़े संकेत हो सकते हैं। इस बात को न सिर्फ महाराष्ट्र को समझने की जरूरत है बल्कि हर राज्य के लोगों को समझने की जरूरत है कि चुनाव में वोट उसी को दें जो आपकी रोमर्रा की समस्या समझ सकें, न कि किसी ग्लैमरस नेता को जो हर रोज टीवी में दिखाई देता हो।