भोपाल। करीब 15 दिन पहले उन्हें ब्लैक फंगस के लक्षण परिलक्षित हुए। इलाज के लिए पहले अस्पताल और फिर दवाओं की भागदौड़ शुरू हुई। सब कुछ ठीक होने के हालात बनने लगे इसी बीच व्यवस्थाओं और लापरवाहियों ने ऐसा घेरा कि फंगस से मरने वालों में एक और संख्या की बढ़ोतरी हो गई। शासन, प्रशासन, अस्पताल प्रबंधन अब इसको होनी को कौन टाल सकता है कहकर टालता नजर आ रहा है।
मामला आदिल शेख नामक पेशेंट से जुड़ा है। मप्र विद्युत मंडल से एक साल पहले रिटायर हुए आदिल को कोविड जैसे कोई लक्षण नहीं पाए गए थे। गाल पर हल्की सूजन और उसका असर आंखों तक पहुंचने वाले हालात में उनका इलाज शुरू हुआ। देवास में कम चिकित्सकीय सुविधाओं के चलते उन्हें इंदौर के शेल्बी हॉस्पिटल में रैफर किया गया। पहले ही दिन से डॉक्टर का फैसला ऑपरेशन करने और आंख निकालने का आया। परिजनों ने इस फैसले से इतर जाते हुए आदिल को लेकर दशमेश अस्पताल का रुख किया।
फिर दौड़ शुरू हुई इंजेक्शन की
फंगस को नियंत्रित करने डॉक्टरों द्वारा आदिल शेख को इंजेक्शन एंफोटेरिसिन बी सजेस्ट किया। सरकारी नियंत्रण वाले इस इंजेक्शन के लिए एसडीएम राजेश राठौर ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन को सिफारिश की। लेकिन मारामारी के चलते इंजेक्शन के लिए इंतजार बढ़ता ही गया।
बीच रास्ते गायब हो गए इंजेक्शन
एमजीएम मेडिकल कॉलेज से नियमनुसार एक इंजेक्शन प्रतिदिन दिए जाने का कोटा तय कर दिया गया। लेकिन मेडिकल स्टोर ने एलॉटमेंट के तीन दिन तक न तो परिजन को इसकी सूचना दी और न ही इसकी सप्लाई दशमेश अस्पताल को भेजी। इंजेक्शन की मांग पर जब दोबारा एसडीएम राठौर को कॉल किया तो परिजन को जानकारी मिली कि उनका कोटा अलॉट हो चुका है।
बाजार से भी भरपूर हो रही इंजेक्शन की बिक्री
जहां एक तरफ सरकार एंफोटेरिसिन बी इंजेक्शन की कालाबाजारी न होने देने के दावे के साथ नियंत्रण अपने हाथ में होने की बात कह रही है, वहीं इसकी बाजार बिक्री जोरों पर है। सूत्रों का कहना है कि 10=12 हजार रुपए तक इसकी बिक्री हो रही है। एक मरीज को 50 इंजेक्शन तक लगने वाले डोज को मुहैया करना आम व्यक्ति के लिए किसी पहाड़ से कम नहीं है। हालांकि सरकारी सप्लाई में भी इसका रेत 7500 रुपए तक पहुंच रहा है।
स्टॉफ की कमी बना रही मुश्किल
महामारी के दौर में शहर से लेकर गांवों तक के अस्पतालों में डॉक्टर्स और स्टॉफ की कमी बनी हुई है। एक डॉक्टर की दस अस्पताल की दौड़ से मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। वहीं प्रशिक्षित और अनुभवी स्टॉफ की कमी का नतीजा यह है कि नए, अप्रशिक्षित और गैर अनुभवी स्टॉफ मरीजों को ऑक्सीजन से लेकर इंजेक्शन देने जैसे काम कर रहे हैं। जिसके चलते मरीजों के सामने मौत जैसे हालात बन रहे हैं।