एक ऐसे वक्त में जब घाटी में फिर से हालात ख़राब होने की अफवाहें गश्त कर रही हैं, नई दिल्ली की एक घोषणा से राज्य सरकार को राहत मिली है. केंद्र की तरफ से कहा गया है कि अभी न तो कश्मीरी पंडितों के लिए पृथक कॉलोनियां बसाने की कोई योजना विचाराधीन है और न ही जम्मू क्षेत्र में रह रहे पश्चिमी पाकिस्तान के हिन्दू शरणार्थियों को पहचान-पत्र दिए जाने की कोई योजना है.
कश्मीरी पंडितों के लिए घाटी में अलग से बस्तियां बसाने, पूर्व सैनिकों के लिए कॉलोनियों का निर्माण करने और पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को यहां की स्थाई नागरिकता देने की कथित योजनाएं पिछले कई वर्षों से कश्मीरी जनता के लिए बेचैनी का कारण बनी हुई है.
अलगाववादी कई बार ये आरोप लगा चुके हैं कि कश्मीर में विभिन्न योजनाओं के बहाने नई दिल्ली यहां की डेमोग्राफी बदलने की कोशिश कर रही है. उनका आरोप है कि घाटी में कश्मीरी पंडितों और पूर्व सैनिकों के नाम पर अलग बस्तियां और कॉलोनियां स्थापित करके उनमें दूसरे राज्यों के बाशिंदों को बसाने की योजना बनाई जा रही है.
उनका ये भी आरोप है कि पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता देने की कोशिश की जा रही हैं, ताकि इस मुस्लिम बहुल राज्य में आबादी का अनुपात बदला जा सके. विश्लेषकों का मानना है कि जुलाई 2016 में घाटी में जो हिंसक लहर फैली थी, उसके पीछे की वास्तविकता भी जनता की असहजता ही थी. कई महीनों तक चली इस हिंसा में कश्मीरी लोगों के जान व माल की काफी क्षति हुई थी.
वरिष्ठ पत्रकार और रोज़नामा चट्टान के संपादक ताहिर मुहीउद्दीन कहते हैं कि बुरहान वानी के मारे जाने के बाद पूरी घाटी में जो लहर चली, उसका एक कारण कश्मीरियों का यह संदेह भी था कि नई दिल्ली यहां की डेमोग्राफी को बदलने की योजना बना रही है. लोगों को लगा कि भाजपा राज्य में अपने कट्टरपंथी एजेंडे को लागू कर रही है. इसी संदेह की वजह से यहां की जनता में सरकार और नई दिल्ली के खिला़फ गुस्सा पनपा था. बुरहान वानी की मौत इस गुस्से को सामने लाने का एक जरिया बन गई.
उल्लेखनीय है कि पिछले कई हफ्तों से एक बार फिर घाटी में ये अफवाहें उड़ रही हैं कि सरकार इन योजनाओं को अमल में लाने के लिए काम कर रही है. राज्य सरकार की ओर से पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को निवास प्रमाण-पत्र देने की घोषणा ने लोगों के संदेह को और मज़बूत किया.
यह अफवाह भी है कि यहां के अवामी हलकों में हालात दोबारा ख़राब हो जाने की संभावना है. हालांकि केन्द्र सरकार के ताज़ा स्पष्टीकरण के बाद दोबारा हालात ख़राब होने की संभावना कम हो जाएगी. पिछले दिनों केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने संसद में बयान देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में कश्मीर पंडितों के लिए अलग कॉलोनियां बसाने की सरकार की तरफ से कोई योजना के विचारधीन नहीं है.
उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को पहचान-पत्र उपलब्ध कराने का भी कोई प्रस्ताव नहीं है. उल्लेखनीय है कि विभाजन के बाद पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन करने वाले 20 हज़ार हिन्दू परिवार फिलहाल जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं. इन शरणार्थियों को यहां का स्थाई निवासी बनाने की मांग कई दशकों से की जा रही है, लेकिन कश्मीर की अलगाववादी पार्टियों के साथ-साथ मुख्यधारा की पार्टियां भी इस मांग का विरोध कर रही हैं.
यही कारण है कि अभी तक किसी भी सरकार ने इस मांग को स्वीकार करने का साहस नहीं जुटाया है. लेकिन जब से भाजपा राज्य की सरकार में भागीदार बनी है, इस बात की संभावना जताई जा रही है कि पूर्व सरकारों के उलट ये सरकार शरणार्थियों को यहां की नागरिकता देने की मांग पूरी करेगी.
भाजपा कई अवसरों पर इन्हें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता दिलाने की प्रतिबद्धता जाहिर कर चुकी है. 2014 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद नरेंद्र मोदी ने पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात में उनसे वादा किया था कि उनकी सरकार इस मांग को पूरा करेगी.
इतना ही नहीं मोदी सरकार ने इस आरंभिक दौर में ही राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को नई दिल्ली तलब करके उन्हें जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और पूर्व सैनिकों के लिए कॉलोनियां बनाने के लिए ज़मीन को चिन्हित करने का आदेश दिया था.
जब राज्य सरकार ने इस आदेश को अमल में लाने की तैयारियां शुरू की, तो कश्मीर में इसका कड़ा विरोध शुरू हो गया. यहां तक कि पाकिस्तान सरकार ने भी भारत पर विवादित राज्य की डेमोग्राफी बदलने की कोशिश का आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की. इसके बाद राज्य सरकार ने इन योजनाओं को अमल में लाने का का काम सुस्त कर दिया.
बहरहाल, केन्द्र सरकार के ताज़ा स्पष्टीकरण से संभव है कि कश्मीरी जनता की इच्छाओं का निवारण होगा. ताहिर मुहीउद्दीन कहते हैं कि केन्द्र सरकार के इस नए रुख से राज्य सरकार को का़फी राहत मिली है. इससे जनता की कश्मकश भी काफी हद तक दूर होगी. लेकिन कुछ विश्लेषकों को लगता है कि यह विश्वास करना काफी मुश्किल है कि सरकार में सहयोगी भाजपा राज्य के बारे में अपनी योजनाओं को त्याग देगी. राजनीतिक विश्लेषक ज़री़फ अहमद ज़री़फ ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के बारे में भाजपा की नीति और रुख़ जगज़ाहिर है. भाजपा राज्य को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म करना चाहती है.
यह मुद्दा भाजपा के राष्ट्रीय चुनावी घोषणापत्र में भी शामिल रहा है. भाजपा राज्य का पूरी तरह से भारत में विलय करना चाहती है. राज्य की सरकार में शामिल होने के बाद भाजपा ने पीडीपी को दबाव में लाकर कई काम करवाए. अभी सरकार के चार साल बाक़ी हैं. संभव है कि भाजपा अपनी योजनाओं को अमल में लाने के लिए सही समय का इंतज़ार कर रही है. हालांकि भविष्य में क्या होगा, इस बार में कुछ भी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता.