राजस्थान में चुनाव की बिसात बिछ चुकी है. यहां की परंपरा है कि हर पांच साल में सरकार बदलती रही है. भैरोसिंह शेखावत को हराकर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने, अशोक गहलोत को हराकर वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं, वसुंधरा राजे को फिर अशोक गहलोत ने हराया और अशोक गहलोत को हराकर फिर वसुंधरा राजे ने सरकार बनाई. कहा जा रहा है कि यह परंपरा इस बार भी यहां निभाई जाएगी. पांच साल बाद वसुंधरा राजे की सरकार पलट दी जाएगी और नई सरकार आएगी.
लेकिन इस बार माहौल ऐसा नहीं लग रहा है कि पांच साल वाली परंपरा निश्चित तौर भी निभेगी ही. हालांकि जो चुनावी सर्वे आए हैं, उनमें कांग्रेस भाजपा से बहुत आगे है. सट्टा बाजार में भी कांग्रेस को भाजपा से बहुत आगे बताया जा रहा है. सर्वे के मुताबिक, इस बार 100 से ज्यादा सीटें कांग्रेस जीत रही है और भाजपा, जिसकी अभी 163 सीटें हैं, वो घटकर 63 तक पहुंच जाएंगी. मतलब, 100 सीट का सीधा-सीधा नुकसान भाजपा को बताया जा रहा है. इस बार की वसुंधरा राजे सरकार काफी असफल रही है. हालांकि, वसुंधरा राजे सरकार ने पांच साल में कई काम किए हैं, लेकिन वो सब काम बेकार साबित हुए हैं.
चुनावी माहौल शुरू होने पर उन्होंने किसानों की कर्जमाफी का एलान किया, फसलों की बड़े पैमाने पर खरीद की और किसानों को मुफ्त बिजली देने की घोषणा की. अजमेर में अपनी गौरव यात्रा के समापन के मौके पर उन्होंने नरेंद्र मोदी के सामने घोषणा की कि किसानों को मुफ्त बिजली दी जाएगी. इस घोषणा के तत्काल बाद ही आचारसंहिता लागू हो गई. भामाशाह कार्ड धारकों को लगभग 10 लाख स्मार्ट फोन मुफ्त दिए जाएंगे. जो बच्चे अच्छे अंकों से पास हुए हैं, उन्हें मुफ्त में लैपटॉप दिया जा रहा है. मेधावी छात्रों को लैपटाप बांटे जा रहे हैं.
स्पष्ट बहुमत मुश्किल है
उपरोक्त सारे काम वसुंधरा सरकार ने जनहित में किए हैं, लेकिन ये सब काम भी वसुंधरा सरकार को वापस सत्ता में लाने के लिए आज की तारीख में सफल नहीं माने जा रहे हैं. बहुतों का अनुमान है कि आज अगर मतदान होता है, आज का जो माहौल है, तो उसके अनुसार निश्चित रूप से कांग्रेस की सरकार बन रही है. लेकिन अभी टिकटों का बंटवारा बाकी है. माना जा रहा है कि जब टिकटों का बंटवारा होगा, तब आज के समीकरण लगभग बदल जाएंगे.
जो चुनावी सर्वे आए हैं या जो सट्टा बाजार कह रहा है, वो स्थिति प्रधानमंत्री मोदी की अजमेर में हुई सभा से पहले की है. मौजूदा आकलन वसुंधरा राजे की एक महीने की गौरव यात्रा के दौरान की है. अब बताया जा रहा है कि माहौल थोड़ा भाजपा के पक्ष बना है. आमलोगों का यह भी मानना है कि धीरे-धीरे कांग्रेस की सीटें 110 से अधिक नहीं बढ़ पाएंगी, बल्कि नीचे आ सकती हैं और भाजपा अपनी सीटों को 63 से बढ़ा कर 80-85 पर ले जा सकती है. निष्पक्ष आकलन करने वाले राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार दोनों ही पार्टियां स्पष्ट बहुमत नहीं ला पाएंगी. भाजपा 90 के लगभग सिमट कर रह जाएगी और कांग्रेस भी 90 का आंकड़ा छू सकती है.
कांग्रेस और भाजपा की बयानबाज़ी
जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौर और तेज हो गया है. दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे की अंदरुनी खींचतान को मुद्दा बना रही हैं. ऐसे में चुनाव तक प्रदेश की सियासत का पारा गरमाएगा. कांग्रेस ने राजस्थान भाजपा अध्यक्ष की खींचतान तो कभी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के बीच की तनातनी को सियासी मुद्दा बनाया.
इसके जवाब में भाजपा ने कांग्रेस और भाजपा की बयानबाज़ी के खेमे में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर चल रही रस्साकस्सी पर कांग्रेस को लगातार घेरने की कोशिश की. दोनों ही पार्टियां खुले मंच से एक-दूसरे की अंदरुनी सियासत की खींचतान को सबके सामने लाना चाहती हैं, ताकि चुनाव में इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले. इसके अलावा, दोनों ही दल अपनी सोशल मीडिया टीम के जरिए इन मुद्दों को ज्यादा हवा दे रहे हैं. कांग्रेस कई तरह की बयानबाजी करके भाजपा या वसुंधरा सरकार पर वार कर रही है. जैसे, अशोक गहलोत ने बयान दिया कि भाजपा वसुंधरा राजे के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती. इसीलिए पार्टी के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं.
भाजपा इस बार वसुंधरा सरकार को स्टार कैंपेनर नहीं बना रही है. दूसरी तरफ, सचिन पायलट ने आदिवासी सम्मेलन में कहा कि फूट कांग्रेस में नहीं, भाजपा में है. वसुधरा राजे और अमित शाह मंच पर साथ-साथ नहीं दिखते. कांग्रेस ने भाजपा पर आचार संहिता उल्लंघन का आरोप भी लगाया है. राज्य की गौरव यात्रा और प्रधानमंत्री की जयपुर में आयोजित सभा में सरकारी पैसे के दुरुपयोग का आरोप भी कांग्रेस ने लगाया है. इसके अलावा, कांग्रेस ने यह भी कहा है कि पेट्रोल की बढ़ती कीमतें कम करने और आचार संहिता लागू होने से पहले किसानों के बिजली बिल को माफ करने की जो घोषणा भाजपा ने की है, वो कारगर साबित नहीं होंगे. भाजपा ने भी इन आरोपों के जवाब में पलटवार किया.
भाजपा के चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि कांग्रेस में गहलोत और सचिन पायलट खेमे के बीच मची खींचतान को लेकर कांग्रेस यहां सीएम प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है. राहुल गांधी की पसंद सचिन पायलट हैं, लेकिन वे इसकी घोषणा करने से डरते हैं. वहीं गहलोत कह रहे हैं कि अभी तो खेल की शुरुआत हुई है. वसुंधरा राजे पायलट को राजनीति का नौसिखिया बताती हैं. उन्होंने कहा कि पायलट अभी बच्चे हैं. यह राजस्थान है, यहां की राजनीति को वे नहीं पहचानते हैं. भाजपा ने पायलट के गैर राजस्थानी होने का भी मुद्दा उठाया है. भाजपा ने उन घोटालों को चुनाव में फिर से उछालने का तैयारी की है, जिसमें कांग्रेस घिरी हुई है.
प्रकाश जावड़ेकर ने भाजपा के मीडिया सेंटर का उद्घाटन करते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस को आने वाले वक्त में देश को एम्बुलेंस घोटाला और जमीन घोटाले सहित बहुत सारे मामलों के जवाब देने होंगे. इन दोनों मामलों में सीबीआई की जांच चल रही है. इस तरह से भाजपा और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं. हकीकत तो यही है कि कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं है और भाजपा के पास मुख्यमंत्री का ऐसा चेहरा है, जो जनता को रास नहीं आ रहा है. यदि भाजपा को अपना ग्राफ आगे बढ़ाना है, तो उसे अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी सभा और रैलियों के सहारे ही आगे बढ़ना होगा.
100 भाजपा विधायकों के टिकट कटे तो…!
राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि वर्तमान में भाजपा की 163 सीटों में से 100 विधायकों के टिकट काटे जाएंगे. अगर 100 विधायकों के टिकट कटते हैं तो भाजपा के लिए माहौल काफी बदल जाएगा, क्योंकि वर्तमान में भाजपा के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी ज्यादा है. प्रत्येक मंत्री और प्रत्येक विधायक से जनता खफा है. मुख्यमंत्री के चेहरे से भी जनता खफा है. यदि मुख्यमंत्री को आगे करके चुनाव लड़ा जाएगा, तो भाजपा की सीटें बढ़ने की बिल्कुल भी संभावना नहीं रहेगी.
जाहिर है, अगर राजस्थान की राजनीति में भाजपा की जमीनी स्थिति यही रही, तो फिर नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ही कमान संभालनी होगी और यही लगभग हो भी रहा है. पिछली बार जब अमित शाह राजस्थान के दौरे पर आए थे, तो उन्होंने कहीं भी वसुंधरा राजे को अपने साथ नहीं रखा. वे अपनी अलग चुनावी रैली करते रहे. वसुंधरा राजे अपनी गौरव यात्रा में व्यस्त रहीं. प्रधानमंत्री मोदी जरूर गौरव यात्रा के समापन पर अजमेर आए थे. तब उन्होंने वसुंधरा सरकार की तारीफ की थी. लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वसुंधरा सरकार की तारीफ से शायद वोट प्रतिशत नहीं बढ़ेगा. मोदी को अपनी सरकार और अपनी पार्टी की ही वाहवाही करनी होगी.
तीसरे मोर्चे से किसे फायदा, किसे नुक़सान
राजस्थान के चुनाव में इस बार एक तीसरा मोर्चा भी है, जिसके गठन की तैयारी हो रही है. इस बारे में राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेंद्र छाबड़ा का मानना है, ङ्गकांग्रेस तीसरे मोर्चे के साथ नहीं मिल सकती, क्योंकि तीसरे मोर्चे में इस तरह की पार्टियां हैं, जो कांग्रेस को साथ लेकर नहीं चल सकती हैं. अगर तीसरा मोर्चा बनता है, तो निश्चित रूप से वह भाजपा का मददगार होगा. सीकर में थोड़ा-बहुत सीपीएम का जोर है. वहां अगर सीपीएम और कांग्रेस अलग लड़ती हैं, तो उसका फायदा भाजपा को होगा.
कांग्रेस और तीसरे मोर्चे की पार्टियों के बीच औपचारिक चुनावी सम्बन्ध की संभावनाओं से साफ तौर पर इन्कार किया जा रहा है.ङ्घ सात पार्टियों से मिलकर बने लोकतांत्रिक मोर्चा के अर्जुन देथा कहते हैं कि कांग्रेस के साथ हमारा कोई दुआ-सलाम भी नहीं है, गठबंधन का सवाल ही कहां है. ऐसे राज्य में जहां परंपरागत रूप से दो दलीय राजनीति के प्रति जनता का झुकाव रहा है, वहां तीसरे मोर्चे की पार्टियां ताल ठोंककर इस बार चुनाव मैदान में उतर रही हैं.
इसमें आम आदमी पार्टी, घनश्याम तिवारी की भारत वाहिनी पार्टी, पूर्व भाजपा नेता हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली नई पार्टी आदि हैं. इन छोटी पार्टियों को मिलाकर एक नया मोर्चो बना है. लेकिन सीटों के संभावित बंटवारे को लेकर तीसरा मोर्चा कैसे तालमेल बनाएगा, इसपर अभी संशय है. लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना से तीसरा मोर्चा साफ इन्कार कर रहा है. सीटों के बंटवारे को लेकर मायावती की बसपा अपने पिछले चुनाव के आकलन के हिसाब से सोचती है कि इस बार उसको अच्छा वोट मिल सकता है. राजस्थान विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रभाव भी सीमित रहा है.
यहां के चुनाव में बसपा के वोटों का प्रतिशत बराबर घटता-बढ़ता रहा है. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 6.4 प्रतिशत मत मिले थे, वहीं 2008 में 7.60 प्रतिशत वोट मिले और 2013 में बसपा को महज 3.48 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा. दलित राइट्स के पीएल मिमरोथ कहते हैं कि स्पष्ट रूझानों के सहारे राजनीति आगे नहीं बढ़ती है. समय के साथ छोटी पार्टियां भी बड़ी बन सकती हैं. यही छोटी-छोटी पार्टियां एकजुट हो जाएं, तो कांग्रेस के सामने मुश्किलें आ सकती हैं. खासकर उत्तर प्रदेश से लगते पूर्वी राजस्थान के निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरी पार्टियां अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं.
टिकट बंटवारे से सा़फ होगी तस्वीर
जब तक टिकट बंटवारा नहीं होता है, तब तक राजस्थान की राजनीतिक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकती है. दोनों ही पार्टियों में टिकटों को लेकर घमासान मचा हुआ है. कांग्रेस पार्टी में भी घमासान है. अशोक गहलोत चाहते हैं कि उनके लोगों को ज्यादा टिकट मिले और सचिन पायलट चाहते हैं कि उनके लोगों को ज्यादा सीटें मिलें.
टिकटों के बंटवारे को लेकर ही पार्टी में बहुत उठा-पटक होती है. इसके बाद ही पता लगेगा कि किसके लोगों को ज्यादा टिकट मिले हैं और किस तरह से टिकटों का बंटवारा हुआ. अभी दोनों ही खेमे एक दूसरे के टिकट काट सकते हैं. यही स्थिति भाजपा में भी है. भाजपा में एक खेमा वसुंधरा राजे के साथ है और वसुंधरा राजे अपने लोगों को ज्यादा से ज्यादा सीटें दिलाना चाहती हैं. वहीं अमित शाह और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदनलाल सैनी अपना चुनावी गणित बैठा रहे हैं.
वे चाह रहे हैं कि निष्पक्ष लोगों को अलग से टिकट दिया जाए और जो पुराने हैं, उन सबको हटाकर नए चेहरों को सामने लाया जाए. इस तरह से भाजपा में भी दो खेमे हैं और कांग्रेस में भी दो खेमे हैं. इन खेमों में सीटों का बंटवारा कैसे होता है, यही आगे की स्थिति स्पष्ट करेगा. लेकिन यह सब दीपावली के बाद होने की संभावना है. पिछले दिनों राहुल गांधी राजस्थान के दौरे पर थे. वे झालावाड़ में थे. सचिन पायलट ने वहां कहा कि भाजपा सौ से अधिक विधायकों का टिकट काटने जा रही है. वहीं कांग्रेस पार्टी 51 हजार बुथों पर कार्यकर्ताओं को साथ लेकर काम कर रही है.
सचिन पायलट सीएम पर हमला बोलते हुए कहते हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के झालावाड़ सीट बदलने की चर्चा है, यह अफवाह है या सच्चाई इसका तो बाद में पता चलेगा, लेकिन झालावाड़ की चारों सीटों समेत हाड़ोती की सभी सीटें कांग्रेस पार्टी भारी मतों से जीतेगी. पायलट कहते हैं कि मुख्यमंत्री हाड़ोती क्षेत्र से चुनकर आती हैं, लेकिन बीते दिनों उन्होंने वहां 17 हजार करोड़ के झूठे निवेश का दावा किया है.
वे सवाल उठाते है कि इतना निवेश करने के बावजूद झालावाड़ जिला अभी पिछड़ा हुआ है. वहां के कलेक्टर ने सरकार को लिखकर भेजा भी है कि यहां की शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा का स्तर निचले दर्जे का है, इसलिए इसे पिछड़े जिले की श्रेणी में डाला जाए. जाहिर है, यदि मुख्यमंत्री के जिले का कलेक्टर यह पत्र लिखता है, तो यह बहुत बड़ी बात है. इससे मामलों से कांग्रेस को चुनाव में मुद्दा बनाने का एक बड़ा मौका मिल जाता है.
मंत्रियों के सिर पर हार का खतरा
पांच साल में भाजपा सरकार के खिलाफ इतनी एंटी-इनकमबेंसी है कि गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया जैसे एकाध मंत्रियों को छोड़कर, कोई चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है. तीन या चार मंत्री हैं, जिनके बारे में कहा जा सकता है कि ये साफ सुथरी छवि वाले लोग हैं और चुनाव जीत सकते हैं. बाकी सारे मंत्री अपने-अपने क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं और उनके खिलाफ एंटी-इनकमबेंसी है.
उनके बेटे, उनके भाई या उनके रिश्तेदारों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं. कई मंत्री खुद आरोपों में घिरे हुए हैं. ऐसे मंत्री सीट बदलकर दूसरी सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. लेकिन राजस्थान के चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर ने साफ कहा है कि किसी भी मंत्री या अविधायक को सीट नहीं बदलने दिया जाएगा. जाहिर है, जब तक सीटों का बंटवारा नहीं होता है, स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकती है. दिवाली के बाद जब सीटों का बंटवारा हो जाएगा, तब स्पष्ट तौर से कहा जा सकता है कि किसे कितनी सीटें मिलेंगी.
कांग्रेस क्यों सचिन पायलट को सीएम चेहरा घोषित नहीं कर रही है?
कांग्रेस सचिन पायलट को इसलिए सीएम चेहरा घोषित नहीं कर रही है, क्योंकि वो गुर्जर हैं. राजस्थान की परंपरा रही है कि यहां मीणा, जाट, गुर्जर में से कोई मुख्यमंत्री नहीं बनता है. तीनों जातियां एक दूसरे की जानी दुश्मन हैं. अगर सचिन पायलट को कांग्रेस आगे करती है, तो मीणा और जाट बिल्कुल विपक्ष में चले जाएंगे. वैसे भी जाट, अशोक गहलोत से खफा हैं.
सचिन पायलट को यदि आगे करते हैं, तो मीणा साफ तौर पर कांग्रेस से दूर चले जाएंगे. इसलिए सचिन पायलट की सीएम के तौर पर दावेदारी घोषित नहीं की जा रही है. लेकिन सवाल यह है कि यदि अशोक गहलोत को सीएम चेहरा घोषित किया जाता है, तो फिर सचिन पायलट का खेमा, जो पिछले पांच साल से मेहनत कर रहा है, रूठ जाएगा. पिछली बार जब राहुल गांधी राजस्थान आए थे, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि हमारी पिछली गहलोत सरकार के मंत्रियों ने काम नहीं किया. इसबार आप हमें जिताइए, हमारे मंत्री काम करेंगे.
राहुल गांधी ने यह संकेत दिया कि इस बार अशोक गहलोत मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, बल्कि मुख्यमंत्री सचिन पायलट बनेंगे. राहुल गांधी का इस तरह से अशोक गहलोत पर वार करना सचिन पायलट खेमे को रास आ रहा है. एक और अहम बात यह है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत स्पष्ट तौर पर आमने-सामने हो गए हैं. इतना अधिक कि यदि अशोक गहलोत प्रेस कान्फ्रेंस करते हैं, तो सचिन पायलट उसके जवाब में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं. पर्दे के पीछे दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हैं. ये चीजें कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत घातक हैं.
राजस्थान का मुसलमान किधर जाएगा
ए यू आसिफ
राजस्थान में मुसलमानों की आबादी 10 से 11 प्रतिशत के आसपास है. राजस्थान पहला ऐसा राज्य है, जहां भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनावों में चार मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से दो चुनाव जीतने में कामयाब भी हुए. कामयाब उम्मीदवारों में से एक, यूनुस खान, मौजूदा सररकार में मंत्री हैं. मौजूदा विधानसभा की एक और उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें कांग्रेस पार्टी से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है, जबकि पार्टी ने 2013 विधानसभा चुनाव में 15 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे.
कुल मिलाकर देखा जाए, तो राज्य की सियासत में मुलसमानों को नज़रअंदाज़ किया गया है. इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से कम से कम 36 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों की अच्छी खासी तादाद है. इन 36 सीटों में से 15 सीटों के नतीजों को मुसलमान वोटर प्रभावित करते हैं. वहीं 8-10 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट नतीजे तय करते हैं. इसी कारण कांग्रेस और भाजपा दोनों इन सीटों से मुस्लिम उम्मीदवार उतारती हैं.
यदि मुस्लिम उम्मीदवारों की कामयाबी का विश्लेषण किया जाए तो एक चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आता है कि यहां कांग्रेस के उम्मीदवारों के मुकाबले में भाजपा के उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत बेहतर है. पिछले चार चुनावों में कांग्रेस ने 64 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 26 उम्मीदवार कामयाब हुए. वहीं दूसरी तरफ पिछले चार चुनावों में भाजपा ने 14 मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में खड़े किए, जिनमें से छह ने जीत हासिल की.
राजस्थान के कुल सात डिवीज़नों में से चार डिवीज़न (अजमेर, जयपुर, जोधपुर और भरतपुर) ऐसे हैं, जहां अधिकतर मुस्लिम आबादी वाले विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें अजमेर डिवीज़न के छह, जयपुर डिवीज़न के सात, जोधपुर डिवीज़न के चार और भरतपुर डिवीज़न के चार विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इन्हीं क्षेत्रों से कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां हमेशा मुस्लिम उम्मीदवार खड़ी करती रही हैं.
राजस्थान की सियासत का एक और दिलचस्प तथ्य यह भी है कि यहां एक मुस्लिम मुख्यमंत्री भी रहा है. कांग्रेस पार्टी ने बरकतुल्लाह खान को दो बार राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था. बहरहाल, 2018 के विधानसभा चुनावों में राज्य के मुसलमानों की मांग है कि राजनीतिक दल उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में टिकट दें, क्योंकि 2013 के चुनाव में मुस्लिम प्रतिनिधित्व अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था, जो चिंताजनक है.
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भाजपा और कांग्रेस की ओर से उनके उम्मीदवारों की अंतिम सूची नहीं आई थी, लेकिन इस बीच सोशल डेमोक्रटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीआई) ने 8 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की है. इन आठ उम्मीदवारों में से सात मुसलमान हैं. ज़ाहिर सी बात है एसडीपीआई जितने अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारेगी, उसका फायदा भाजपा को होगा.
इस बार चुनाव पर मॉब लिंचिंग के असर का अनुमाना लगाया जा रहा है. दरअसल इसका संकेत अलवर और अजमेर की दो लोकसभा सीटों और मंडलगढ़ की एक विधानसभा सीट पर इसी वर्ष हुए उपचुनावों से मिल गया था. इन चुनावों से एक और तथ्य का इशारा मिलता है. यदि मंडलगढ़ के साथ अजमेर और अलवर के आठ विधानसभाओं को जोड़ दें, तो कुल 17 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव हुए थे. अलवर हरियाणा से लगा हुआ है, जबकि अजमेर मध्य राजस्थान में स्थित है और मंडलगढ़ मध्य प्रदश के नज़दीक है. इससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि वोटरों का भाजपा विरोधी रुझान केवल क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं है.
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि मौजूदा हुकूमत के कार्यकाल में 30 मई 2015 को अब्दुल गफ्फार कुरैशी की नागौर में, 1 अप्रैल 2017 को पहलू खान की अलवर में, 16 जून 2017 को ज़फर खान की प्रतापगढ़ में और 10 सितम्बर 2018 को अलवर में रक्बर की लिंचिंग का प्रभाव पूरे राज्य और हर वर्ग के लोगों में देखने को मिल सकता है.
राज्य की जनता लिंचिंग को राज्य की आपसी सहिष्णुता और भाईचारे के खिलाफ मान रही है. कई मामलों में लिंचिंग के आरोपियों पर प्रशासन के नर्म रुख ने भी आम लोगों में बेचैनी पैदा की है. मुसलमानों के साथ दूसरे कमज़ोर वर्ग के लोग भी लिंचिंग के शिकार हुए हैं, जिनमें दलित भी शामिल हैं. दरअसल, सत्ता विरोधी फैक्टर और मॉब लिंचिंग के कारण अन्य कमज़ोर वर्गों के साथ-साथ मुस्लिम समाज में भी बेचैनी का माहौल है, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है.
कोट
कांग्रेस तीसरे मोर्चे के साथ नहीं मिल सकती, क्योंकि तीसरे मोर्चे में इस तरह की पार्टियां हैं, जो कांग्रेस को साथ लेकर नहीं चल सकती हैं. अगर तीसरा मोर्चा बनता है, तो निश्चित रूप से वह भाजपा का मददगार होगा. सीकर में थोड़ा-बहुत सीपीएम का जोर है. वहां अगर सीपीएम और कांग्रेस अलग लड़ती हैं, तो उसका फायदा भाजपा को होगा.
राजेंद्र छाबड़ा, वरिष्ठ पत्रकार