जी ! ये ‘पब्लिक सेंटीमेंट्स’ हैं। लोगों के मुंह से सुने गये तीन शब्द। एक व्यक्ति की हार जब देश की जीत हो जाए । आमतौर पर कहा जाने लगा था कि मोदी की आलोचना देश की आलोचना है । ग्लोबल वार्मिंग है और मौसम बदल रहा है। मोदी तो नहीं समझेंगे क्योंकि उनका घमंड अभी टूटने में बहुत वक्त लगेगा पर आरएसएस को समझने में देर नहीं लगनी चाहिए कि पब्लिक का मूड बदलते ही सब कुछ धरा के धरा रह जाता है। कर्नाटक के नतीजे कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे दिखते हैं। मोदी ने एक ‘लोकतांत्रिक तानाशाह’ बनने में बहुत ‘मेहनत’ की इससे इंकार नहीं किया जा सकता। जब इंसान स्वयं समझ ले कि मैं ‘भगवान’ बन चुका हूं तब उसका दिमाग उसी धारा पर मजबूती से चलने लगता है जहां से उसने राह पकड़ी थी या जहां से उसमें ये बीज पड़े थे। मोदी का घमंड अभी नहीं टूटेगा और न टूटने दिया जाएगा क्योंकि ये उत्तर भारत के चुनाव नहीं, दक्षिण भारत के चुनाव थे। बेशक मोदी ने यहां 19 रैलियां और छह रोड शो करके समां बदलना चाहा हो और बेशक वे इसमें धराशाई हुए हों। खैर।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बीज उसी दिन से पड़ने लगे थे जिस दिन राहुल गांधी ने अपनी मुहब्बत की यात्रा का प्रवेश कर्नाटक में कराया था। उन 21 दिनों को आप एतिहासिक मानिए। इसलिए कि कांग्रेस की इतनी बड़ी जीत लंबी प्यास और लंबी चाह के बाद मिली है। यकीनन पहली बार लगा कांग्रेस चुनाव के लिए और जीतने के लिए गंभीर हुई है और पहली बार कांग्रेस से कहीं भी और किसी भी स्तर पर गलती होती नहीं दिखाई दी । इसके कौन कौन से कारक हैं। बड़ा कारण तो एंटीइंकमबैंसी रही, जो ठीक उसी तरह से थी जैसे 2013 में देश की जनता को भ्रष्ट कांग्रेस से थी। ऐसे ही यहां बीजेपी सरकार से थी। इसके अलावा यात्रा के दौरान डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया का हाथ पकड़े राहुल गांधी की जो तस्वीर सामने आई थी उसने भी कमाल किया रहा। संयोग से कर्नाटक के सपूत मल्लिकार्जुन खड़गे, जो संयोग से ही दलित भी ठहरे , वे कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। बड़ा लाभ इसका भी हुआ। सबसे बड़ी बात रणनीति, मुद्दे और भाषण, तीनों का संयुक्त कमाल था। पहली बार भाजपा कांग्रेस की पिच पर खेलती दिखाई दी । लोगों ने और कई स्वयंभू बड़े पत्रकारों ने माना कि बजरंग दल पर बैन की बात कह कर कांग्रेस ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। अपने पिछले लेख में मैंने साफ लिखा था यह मानना ही मूर्खता है और इसी बात की ताकीद कल अभय दुबे ने भी अपने शो में की । उन्होंने तो इसे कांग्रेस का ‘मास्टरस्ट्रोक’ तक कह डाला । यही कारण है कि अब सोशल मीडिया पर इन स्वयंभू पत्रकारों को सुनने से ऊब होने लगी है। खासतौर से ‘सत्य हिंदी’ पर। बहरहाल, कांग्रेस के रणनीतिकार मुख्य रूप से तीन थे – सुनील कानूगोलू, शशिकांत सेंथिल और नरेश अरोड़ा। नरेश अरोड़ा की कल अभय जी ने भी भूरि भूरि तारीफ की थी। प्रियंका गांधी ने जो भाषण दिए और जिन मुद्दों को उठाते हुए मोदी से सीधी टकराईं इसके अलावा एक बड़ी बात कांग्रेस की कोई अंदरुनी कलह सतह पर न आई , न आने दी गई। एक तरफ मुहब्बत की ये राहें थीं और दूसरी तरफ एक आदमी का गुरूर या कहिए चीखता हुआ घमंड कि मैं सारी बाजी पलट दूंगा। ऐसे ही वक्तों (?) पर हमें मिथकीय कथाओं के पात्र याद आते हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि कर्नाटक जो शुरु से कांग्रेस की जीत की मुनादी कर रहा था, यह सारा किस्सा क्या आगे के चुनावों में दोहराया जाएगा। हालांकि तीनों रणनीतिकार अगले चुनावों के लिए मुस्तैद कर दिए गए हैं।
लेकिन मित्रो, सबसे बड़ा सवाल 2024 के आम चुनावों का है। अभी यह कहने में जल्दबाजी होगी कि मोदी ब्रांड खत्म हो चुका है। सच यह है कि इस पर हल्का से डेंट पड़ा है। लेकिन यदि कांग्रेस ने जनता में भरपूर विश्वास जगाया तो यह ब्रांड खत्म होने में देर नहीं लगेगी। विकल्प पार्टी का और विकल्प मोदी का । इसी की दरकार है। अनपढ़ जनता के दिमागों में ‘विकल्प’ शब्द घुसेड़ कर बैठा दिया गया है। अपनी रोजमर्रा की मजदूरी और दिहाड़ी के बाद जनता जब रात को फुर्सत में चर्चा करती है तो मोदी के गुणगान के बाद पूछती है ‘विकल्प’ कहां है। तो ‘विकल्प’ दे दीजिए और शांति से फिर देखिए। अनपढ़ जनता का यही लोकतंत्र है।
कल महान फिल्मकार मृणाल सेन का जन्मदिन था और इसी के साथ कल से ही उनकी जन्मशताब्दी का वर्ष भी शुरु हो गया। सरकार को इसकी कोई सुध नहीं होगी और हो भी तो किसी तरह का कैसा भी लाग नहीं रहेगा। इस मामले में मूढ़ सरकार है ये । पर ‘सत्य हिंदी’ पर अमिताभ ने मृणाल सेन को याद किया और खूब किया। बहुत बेहतरीन और यादगार चर्चा , जो इसलिए याद रहेगी कि हम अपने नगीनों को खोते और भूलते जा रहे हैं। मृणाल सेन एक व्यक्ति के रूप में और एक फिल्मकार के रूप में क्या थे यह जानने और समझने के लिए यह चर्चा जरूर ‘सत्य हिंदी’ के ‘सिनेमा संवाद’ कार्यक्रम में सुनी जानी चाहिए। मैं अमिताभ को बहुत पहले से जानता था पर मुझे नहीं मालूम था कि वह सिनेमा के विषय में इतना पारंगत हैं । इस कार्यक्रम में मनमोहन चढ्ढा, अजय ब्रह्मात्मज, विनोद दास जैसे लोगों ने मृणाल सेन से संबंधित नयी नयी जानकारियों के साथ सेन को याद किया। पहली और आखिरी बार किसी ने महादेवी वर्मा की कहानी पर फिल्म बनाई जो हिंदुस्तान की पहली ऐसी फिल्म भी थी जिस पर प्रतिबंध भी लगाया गया। ‘नील आशानेर’ यह फिल्म तेलुगू में सेन ने बनाई थी। 1969 की फिल्म ‘भुवन सोम’ में सुहासिनी मुले की अचानक ठठाती हुई हंसी अमिताभ के साथ मुझे भी आज तक याद है। डिस्को डांसर मिथुन चक्रवर्ती को ‘मृगया’ में सबसे पहली बार जंगल में शिकार करते आदिवासी युवा के रूप में मृणाल सेन ने ही ‘इंट्रोड्यूज़’ किया था। यह कल्पनातीत है। सड़क पर सिगरेट पीता चलता ‘प्राइवेट कम्युनिस्ट’ जो जिंदगी की आम घटनाओं को अपनी फिल्मों से जब चाहे तब जोड़ दे ऐसे शख्स का नाम है मृणाल सेन। इस कार्यक्रम को जरूर देखा जाना चाहिए।
संतोष भारतीय के साथ अभय दुबे जी ने अपने शो में कल कर्नाटक की जीत की भरपूर चर्चा की । उन्होंने जिसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक कहा उसकी चर्चा तो हमने ऊपर की ही । उनका यह भी कहना था कि कर्नाटक में कांग्रेस ने हिंदू अस्मिता का सबसे सटीक आकलन किया। अभय दुबे आजकल हर किसी चैनल पर आपको मिल जाएंगे। कल भी पूरे दिन काली शर्ट में सब जगह नजर आए । काले पर याद आया आजकल श्रवण गर्ग भी बाल काले करके चमकदार होकर बैठते हैं मुकेश कुमार के कार्यक्रम में। और यही नहीं सबकी बात सुनते हुए मुस्कुराते भी रहते हैं। इसके पीछे क्या भाव है उसे पढ़िए। लेकिन ‘सत्य हिंदी’ के बाकी कार्यक्रमों से ऊब हो रही है। अब देखिए नीलू व्यास कर्नाटक का दौरा करके लौटीं। तो सत्य हिंदी के हर कार्यक्रम में नीलू ही नीलू। शुरुआत के दो एक कार्यक्रमों में मैंने उन्हें सुना । अच्छा लगा। मैंने उन्हें मैसेज करके बधाई भी दी । लेकिन ये क्या आपके पास नीलू और शीतल जी के सिवा फिर वही रोज के घिसे पिटे लोग। शीतल पी सिंह की ‘स्टडी’ बहुत गहन है और जब भी बोलते हैं अच्छा लगता है। इसलिए उनकी ठोस उपस्थिति होती है। कर्नाटक पर ही एक बहुत अच्छी चर्चा आरफा खानम शेरवानी ने ‘वायर’ में की । लगभग सब नये लोग थे। पर अब योगेन्द्र यादव का राग बोर करता है कुछ कुछ बनावटी सी शैली। ऐसा लगता है जैसे हम सेव (apple) पर चीनी लगा कर खा रहे हैं उनको सुनते हुए और उनके हटते ही चीनी साफ ।
मोदी ने नारा दिया था ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ , योगेन्द्र यादव ने कहा था ‘कांग्रेस को मर जाना चाहिए’ । यादव की बात से तो लोग उस समय जुड़े थे। और इस बोल्ड वक्तव्य के लिए उनकी तारीफ भी कर रहे थे। पर अचानक फिर क्या हुआ। समय के बदलते स्वरूप को न मोदी पड़ पाए न यादव । जबकि यादव तो जाने माने ‘सैफोलोजिस्ट’ कहलाए जाते हैं। कहा जाता है बहुत मीठे बोलने वाले से थोड़ा बच कर रहना चाहिए और हरियाणवी से भी या उससे भी जिसने हरियाणा में लंबा समय गुजारा है । मोदी हरियाणा के लंबे समय तक प्रभारी रहे हैं।
खैर,अब यहां से चुनावों की ‘बाधा दौड़’ शुरु हुई है जो चौबीस के आम चुनावों तक जाएगी । बाधा दौड़ में यदि कांग्रेस बाजी मारती रही तो मोदी का क्या हाल होगा और बकौल अमित शाह कर्नाटक में तो नहीं कांग्रेस के आने से देश में दंगे तो होंगे ही। करवाएगा कौन यह पूरा देश जानता है। दंगे करवाने में माहिर कौन है। कौन है जो कहता है कि ‘बटन यहां दबे और करेंट वहां लगे’ । कुछ भी हो सकता है, कुछ भी !! ‘लोकतांत्रिक तानाशाह’ को आप इतनी आसानी से नहीं समझ सकते।
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