भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय की मौत से खाली हुई भभुआ सीट पर उपचुनाव को लेकर जोड़ तोड़ शुरू हो गया है. भले ही अभी उपचुनाव के तारीख की घोषणा नहीं हुई है, पर यूपीए व एनडीए के संभावित उम्मीदवारों ने क्षेत्र में अपने-अपने दावे पेश करने शुरू कर दिए हैं. वैसे तो एनडीए की तरफ से आनंद भूषण पांडेय की पत्नी रिंकी रानी पांडेय की दावेदारी मजबूत है. रिंकी रानी पांडेय ने पति के श्राद्ध कर्म के दिन कहा भी था कि अगर उन्हें राजनीति में आने का मौका मिला, तो पति के अधूरे सपने को पूरा करना उनकी पहली प्राथमिकता होगी. इस लिहाज से भाजपा उन्हें मैदान में उतार सकती है, क्योंकि उनके पक्ष में सहानुभूति वोट भी जा सकता है.
लेकिन फिर भी कुछ अन्य नामों पर चर्चा जारी है. यूपीए की तरफ से पूर्व विधायक रामचंद्र यादव टिकट मिलने का दावा कर रहे हैं, लेकिन हाल के दिनों में पुराने वापमपंथी नेता रामलाल की पुत्रवधू विजय लक्ष्मी का नाम भी यहां से संभावित यूपीए उम्मीदवार के रूप में तेजी से उभरा है. यहां के कुशवाहा मतों के धु्रवीकरण के लिए यूपीए कोई नई चाल चलने के फिराक में है. पिछले चुनाव में भाजपा व जदयू की कांटे की टक्कर के बाद आनंद भूषण पांडेय ने जदयू प्रत्याशी डॉ प्रमोद पटेल को बहुत छोटे अंतर से हरा दिया था. उस समय यूपीए के साथ कुर्मी बाहुल्य भभुआ विधानसभा सीट पर प्रमोद पटेल ने मजबूत दावेदारी पेश किया था. अब जदयू के एनडीए में आने से कुर्मी मतों का स्वाभाविक झुकाव भाजपा प्रत्याशी के तरफ होना लाजिमी है. इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है. हालांकि यादव मतदाताओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले पूर्व विधायक रामचंद्र यादव भी क्षेत्र भ्रमण में जुटे हुए हैं.
बदले समीकरण के बाद दोनों तरफ से चल रहे जोड़ तोड़ के बीच सबकी निगाहें बहुजन समाज पार्टी के पैंतरे पर टिकी हुई है. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व प्रत्याशी भरत बिंद का कहना है कि बहन जी ने उन्हें भभुआ उपचुनाव की तैयारी में जुट जाने के निर्देश दिए हैं. भरत बिंद बसपा के आधार मतों के साथ-साथ अपने स्वजातीय मतों पर भी पकड़ बनाने में लगे हैं. भभुआ सीट भाजपा के अति पिछड़ा कल्याण मंत्री ब्रजकिशोर बिंद के लिए भी एक चुनौती है. बिंद बाहुल्य चैनपुर विधानसभा सीट से ब्रजकिशोर बिंद लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. चैनपुर के भभुआ से सटा होने के कारण ब्रजकिशोर बिंद की यहां के बिंद वोटरों पर भी अच्छी पकड़ है. अब यह देखने वाली बात होगी कि उनका पभाव पड़ोसी सीट पर पड़ता है या नहीं. पिछले चुनाव में भरत बिंद ने बसपा के आधार मतों के साथ-साथ अपने स्वजातीय मतों के कारण भभुआ सीट पर प्रभावशाली लड़ाई लड़ी थी. इसी कारण भाजपा की जीत का अंतर काफी कम था.
इसबार के उपचुनाव में भी अगर वो प्रभाव कायम रहा, तो भाजपा को नुकसान होगा. लेकिन जदयू के एनडीए में शामिल होने से इस नुकसान की भरपाई होती दिख रही है. प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष निवेदिता सिंह की मानें, तो भभुआ सीट पर भाजपा की जीत लगभग तय है. उन्होंने यह भी कहा है कि इस बार पार्टी ज्यादा व प्रभावी मतों से जीत दर्ज करेगी. उतरप्रदेश से सटे इस विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का भी असर रहता है. हाल ही में राजद में शामिल हुए पूर्व विधायक रामचंद्र यादव इससे पहले सपा के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष हुआ करते थे.
हालांकि रामचंद्र यादव ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की थी. इनकी जीत में यादव जाति के आधार मतों का अच्छा खासा प्रभाव था. हालांकि उस समय भभुआ का परिसिमन नहीं हुआ था. बदले परिसिमन में जातीय समीकरण भी बदल चुके हैं. अब क्षेत्र में ब्राम्हण और कुर्मी मतदाताओं की निर्णायक भूमिका है, वहीं वैश्य, अल्पसंख्यक, यादव, बिंद और राजपूत मतदाताओं का भी यहां प्रभाव है. भभुआ विधानसभा सीट पश्चिम और दक्षिण में चैनपुर और पूरब और उत्तर में मोहनियां विधानसभा से घिरा हुआ है.
इसके कुछ हिस्से रोहतास के चेनारी विधानसभा के प्रभाव में रहते हैं. अगर भगौलिक दृष्टि से देखा जाए तो इस विधानसभा के चारो तरफ भाजपा या एनडीए की सीटें हैं. लेकिन एक तथ्य यह भी है कि भभुआ राजद के मजबूत नेता जगदाबाबू का गृह जिला है. राजनीतिक दाव पेंच के लिए मशहूर जगदाबाबू इस सीट को अपने पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे. यह सीट जीतना राजद के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि राजद सुप्रीमो अभी जेल में हैं और राजद इस जीत से विपक्षियों को कड़ा संदेश दे सकती है.