बिट्टू का यह नया शौक है
आँखें मीच कर वो चलता है
जगह जगह वो टकराता है
गिरता और मचलता है
नहीं सोचता कहाँ टिका है
कैसे भी टिक जाता है
कुछ होता ना पीठ के पीछे
झट से वो गिर जाता है
नन्ही की तब हँसी छूटती
बिट्टू तब खिसियाता है
दादू की छाती पर चढ़ता
सब गलती नन्ही पर मढता
नन्ही उसकी दीदी बनती
पर दोनों की कभी ना पटती
दादी के कानो को भरता
फिर बापू से वो ना डरता
मम्मा को दौड़ाता रहता
काम सदा बेढंगे करता
तोड़ फोड़ और उठा पटक में
मन उसका बेहद लगता है
नहीं निठल्ला यही जताता
सदा व्यस्त ही वह रहता है
बिट्टू का यह नया शौक है
आँख मीच कर वो चलता है l
|| डाॅ अजय भटनागर ||
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