जिस गुजरात मॉडल की चर्चा पूरे दुनिया में फैलाई गई, उस गुजरात मॉडल में ही बिहारी और हिन्दी प्रवासी कामगारों को पीट-पीट कर भगाया जा रहा था. आखिर ये कैसा गुजरात मॉडल है, जहां स्थानीय लोगों को अपने कामगारों से ही डर लगने लगा. गुजरात के जहरीले महौल (वहां से लौटे मजदूरों के शब्दों में) के कारण वहां से कोई 50 हजार प्रवासी हिन्दी-भाषियों के पलायन बात कही जा रही है, जिनमें सबसे ज्यादा बिहार के ही हैं.
हालांकि उक्त तीनों मुख्यमंत्री हिन्दी-पट्टी के प्रवासी मजदूरों को गुजरात के प्रशासन व पुलिस पर भरोसा और अपनी हिम्मत बनाए रखने की सलाह दे रहे हैं. पर यह सलाह निर्गुण भजन जैसा ही लगता है. जब पुलिस और प्रशासन बलवाइयों के साथ हो तो क्या अंजाम हो सकता है, इसकी कल्पना ही की जा सकती है.
गुजरात के विभिन्न इलाकों से ट्रेनों में लद कर आ रहे प्रवासी मजदूर जब ठाकोर सेना के बलवाइयों व गुजरात पुलिस की मिलीभगत के सबूत पेश करते हैं, तो बिहार व उत्तर प्रदेश के रेल स्टेशनों पर उत्तेजना का आवेग दौड़ जाता है. पर सुखद यह है कि गुजरात में प्रताड़ित होकर घर लौटे लोगों की आपबीती सुन कर भी मौखिक प्रतिक्रिया ही देखने को मिल रही है
. बिहार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों व राजनीति-जगत की प्रतिक्रिया के बाद गुजरात प्रशासन सक्रिय हुआ. प्रशासन ने प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाने की हिंसक घटनाओं के जिम्मेवार लोगों के खिलाफ कोई पांच दर्जन मुकदमे दायर करने व साढ़े चार सौ से अधिक उपद्रवियों को गिरफ्तार करने का दावा किया है.
लेकिन यह साफ नहीं हुआ है कि ये मुकदमे भारतीय दंड विधान की किन धाराओं के तहत दायर किए गए हैं. यह भी साफ नहीं है कि ऐसी हिंसक घटना को भड़काने के जिम्मेवार कांग्रेस के विधायक अल्पेश ठाकोर व भाजपा विधायक के खिलाफ किन धाराओं में कितने मुकदमे दायर हुए हैं.
अपलेश ठाकोर की ठाकोर सेना उक्त घटना को लेकर हिंसा भड़का रही थी, तो भाजपा विधायक वहां काम कर रहे हिन्दी भाषी मजदूरों से फैक्ट्रियों को मुक्त करने के हिंसक अभियान चला रहे थे. राज्य सरकार से सवाल किया जा सकता है कि इन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
प्रश्न है कि ऐसी आपराधिक व क्षेत्रीयतावादी कार्रवाई को प्रशासन की अघोषित छूट देश की एकता व राष्ट्रवाद की परिभाषा में आता है क्या? क्या यही भाजपा के अघोषित सुप्रीमो-द्वय-नरेंद्र मोदी और अमित शाह का गुजरात मॉडल है? क्या वाइब्रेंट गुजरात की इसी और ऐसी ही क्षेत्रवाद की परिणति की कल्पना की गई थी? दोनों विधायकों को नफ़रत की जहर फैलाने की छूट दोनों राष्ट्रीय दलों के नेतृत्व ने दी या गुजरात प्रशासन ने? ऐसे अनेक सवालात हैं, जिनके उत्तर राजनीति को देने हैं.