रेल बजट के आने से पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कह कर एक राजनीतिक बहस छेड़ दी थी कि मुझे रेल बजट से कोई उम्मीद नहीं है. चूंकि नीतीश कुमार रेल मंत्री भी रह चुके हैं इसलिए यह बहस कुछ ज्यादा ही संजीदा हो गई, लेकिन सुरेश प्रभु ने बिहार को रेल बजट में 3,171 करोड़ की सौगात देकर सारे कयासों का पटाक्षेप कर दिया. इसके बाद एनडीए के नेता कहने लगे कि नीतीश कुमार को बजट से पहले ही इस तरह की निराशा भरी बातें नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन जदयू और राजद के नेताओं का अब भी मानना है कि बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया गया है और रेल बजट में बिहार के लिए कुछ खास नहीं है. खैर राजनीतिक बयानवाजी को अगर दरकिनार करके देखें तो सुरेश प्रभुु के बजट से ऐसा नहीं लगता है कि बिहारवासियों को बहुत निराश होने की जरूरत है. बिहार के लिए जो बड़ी बात हुई है वह यह है कि सूबे की लंबित पड़ी रेल परियोजनाओं के पूरा होने का रास्ता बजट में साफ हो गया है. मढ़ौरा और मधेपुरा में इंजन कारखाना के निर्माण में आने वाली सारी दिक्कतों को दूर कर दिया गया है और इसके लिए टेंडर अवॉर्ड करने की घोषणा भी रेल मंत्री ने कर दी है. बिहार में चूंकि रेलवे में आधारभूत संरचना का समुचित विकास नहीं हो पाया है. इसलिए सुरेश प्रभु ने बजट में इस ओर काफी जोर दिया है.
इस रेल बजट में 1,601 करोड़ रुपये की लागत से विक्रमशिला से कटोरिया तक नई रेल लाइन का निर्माण करने के साथ ही साथ 227 करोड़ रुपये से मानसी-सहरसा-दौरम, मधेपुरा-सहरसा-कटिहार के बीच 172 किलोमीटर की नई रेल लाइन का निर्माण करने की घोषणा की गई है. इसी तरह 131 करोड़ की लागत से करौटा पतनेर मनकट्ठा सर्फेस तिहरी लाइन के निर्माण का भी फैसला किया गया है. बिहार में यात्री सुविधाओं के लिए 51 करोड़ रुपये व यातायात सुविधा के लिए 39 करोड़ रुपये की राशि का बजट में प्रावधान किया गया है. रेल बजट में सुगौली से वाल्मीकि नगर तक 744 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली 10 किमी लंबी रेल लाइन के दोहरीकरण के लिए भी राशि आवंटित की गई है. बिहार की लंबी मांग को पूरा करते हुए सुरेश प्रभु ने 700 करोड़ की लागत से 787 किमी लंबे रेलखंड के विद्युतीकरण का फैसला किया है. इसके अलावा 245 किमी सिंगल लाइन के दोहरीकरण की घोषणा भी बजट में की गई है. उत्तर बिहार के लोगों को अधिक सुविधा देने के लिए मोेकामा में वर्तमान रेल पुल के सामानांतर एक और दोहरी रेल लाइन पुल बनाने की घोषणा बजट में की गई है. गया से मानपुर तक अलग से बाइपास रेल लाइन बनाने का फैसला भी बजट में किया गया है. इससे लंबी दूरी की ट्रेनों के संचालन में सुविधा होगी. चालू योजनाओं को पूरा करने के लिए आवंटन किया गया है. राजगीर तिलैया एवं नटेसर इस्लामपुर रेल लाइन के लिए 75 करोड़, बिहारशरीफ बरबीधा-शेखपुरा रेललाइन के लिए 176 करोड़ रुपये, हाजीपुर-सुगौली के लिए 100 करोड़ रुपये और छपरा-मुजफ्फरपुर के लिए 20 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है.
कुल मिलाकर इस बजट से बिहार के लिए उम्मीद जगती है. लेकिन हमेशा की तरह रेल बजट को पक्ष-विपक्ष के नजरिए से देखा जा रहा है, नेताओं की प्रतिक्रिया भी बजट को लेकर कुछ इसी तरह की है. नीतीश कुमार कहते हैं कि रेलबजट में सुरेश प्रभु ने मुसाफिरों के साथ भद्दा मजाक किया है. नीतीश कुमार का कहना है कि हाई स्पीड गाड़ियों का कोई मतलब नहीं है. नीतीश कुमार का कहना है कि सबसे पहले रेल का ढ़ांचा बदलना होगा तभी इन ट्रेनों का मतलब है अन्यथा यह सब दिखावे वाली बात है. नीतीश कुमार कहते हैं कि पिछले बजट से ही साफ-सफाई और यात्री-सुविधाओं की बातें हो रही हैं पर हक़ीकत क्या है इसे सब जानते हैं. इस बजट मेंे भी इस संबंध में लंबी चौड़ी बातें कहीं गईं हैं पर जमीनी स्तर पर होना कुछ नहीं है. इसी तरह लालू प्रसाद यादव ने भी रेलबजट को बेहद निराशाजनक बताया है. उनके बेटे और सूबे के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि अंत्योदय, हमसफर , तेजस और आस्था एक्सप्रेस की घोषणा तो कर दी गई है पर ये कहां से कहां तक चलेगी इस बारे में नहीं बताया गया है.
लेकिन प्रदेश के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी कहते हैं कि इस बजट में बिहार को उम्मीद से ज्यादा मिला हैै. मार्च तक मुंंगेर रेल पुल के चालू होने की बात कही गई है. इसके अलावा बिहार की लंबित योजनाओं के लिए भी बजटीय आवंटन किया गया है. मढ़ौरा और मधेपुरा के लिए बजट में खास प्रावधान किया गया है. नीतीश कुमार के बयान पर मोदी कहते हैं कि उन्हें हर बात में निराशा ही नज़र आ रही है. लगता है उनपर लालू प्रसाद का ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है. बिहार के विकास के लिए केंद्र सरकार रात-दिन खड़ी है पर यह बिहार सरकार पर निर्भर करता है कि वह केंद्र से किस तरह मदद लेती है. यदि उसकी हर काम में अड़चन डालने की प्रवृति बनी रहेगी तो विकास कैसे होगा? केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि यह बेहतरीन रेल बजट है और जिस तरह बिहार को इसमें केंद्र में रखा गया है. उससे यह साफ है कि नरेंद्र मोदी की सरकार बिहार के लिए कितनी फिक्रमंद है. बयानों से बाहर निकलें तो कहा जा सकता है कि बिहार के लिए बहुत ज्यादा तो नहीं पर इतना कुछ बजट में तो दिया ही गया है कि सूबे को निराश होने की जरूरत नहीं है. जरूरत इस बात की है कि जो घोषणाएं हुई हैं उनपर काम शुरू हो और लंबित योजनाओं को जल्द से जल्द पूरा किया जाए. इस पर पक्ष और विपक्ष दोनों की नज़र होनी चाहिए ताकि बिहार के लोंगों को कुछ सहूलियत हो सके.