bbबिहार में विधान परिषद की सात और राज्यसभा की पांच सीटों के लिए 10 और 11 जून को होने वाला चुनाव नीतीश कुमार के लिए भाजपा से हिसाब चुकता करने का सुनहरा मौका साबित हो सकता है. सभी जानते हैं कि 2014 के राज्यसभा के चुनाव में भाजपा ने जदयू के बागी विधायकों की ओर से खड़े किए गए उम्मीदवार अनिल शर्मा को समर्थन देकर नीतीश कुमार के लिए परेशानी खड़ी कर दी थी. चूंकि इस चुनाव में वोट दिखाकर देने की बाध्यता नहीं है इसलिए क्रॉस वोटिंग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

अब यह चुनाव मैनजमेंट करने वाले महारथियों पर निर्भर करता है कि कौन किस पर भारी पड़ेगा, क्योंकि परिषद की सातवीं सीट के लिए घमासान के आसार अभी से बनने लगे हैं. गौरतलब है कि विधानसभा में महागठबंधन की सदस्य संख्या 178 है. दलगत स्थिति इस प्रकार है- राजद 80, जदयू 71 , भाजपा 53, कांग्रेस 27, भाकपा माले 3, लोजपा 2, हम एक, रालोसपा 2 और निर्दलीय चार.  राज्यसभा में बिहार की 16 सीटों में से अभी 12 जदयू के पास और भाजपा के पास चार है.

चुनावी गणित कहता है कि विधान परिषद की एक सीट के लिए 31 सदस्यों के वोट की जरूरत होगी. इस हिसाब से पांच सीट तो बिना लागलपेट के महागठबंधन को मिल जाएगी. इसके बाद महागठबंधन के पास 23 सरप्लस वोट बचेगा. सदन में भाजपा और उसके सहयोगियों की कुल संख्या 58 है. इस आधार पर भाजपा एक सीट सीधे हासिल कर लेगी. इसके बाद उसके पास 27 सरप्लस वोट बचेगा. इसी सरप्लस वोटों के आधार पर सातवीं सीट के लिए दावेदारी होगी. इस काम में चार निर्दलीय सदस्यों के वोट अहम हो जाएंगे.

राज्यसभा की पांच सीटों के लिए खास उलझन नहीं है. एक सीट के लिए 41 वोट चाहिए. 178 की ताकत के बूते महागठबंधन चार सीटें आसानी से ले लेगा. पाचवीं सीट पर भाजपा आसानी से अपने उम्मीदवार को जीता ले जाएगी. लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार इतनी आसानी से विधान परिषद की सातवीं सीट पर भाजपा का कब्जा नहीं होने देंगे.

भाजपा का दावा है कि उसकी अपनी संख्या 53 की है, पांच उसके सहयोगी हैं और चार निर्दलीय हैं. मतलब 62 की ताकत एनडीए के साथ है. यानी 31 के हिसाब से दो सीटों की जीत में कहीं कोई परेशानी नहीं आएगी. लालू और नीतीश भाजपा के इसी गणित को बिगाड़ने में दिमाग लगा रहे हैं. जानकार सूत्र बताते हैं कि सातवीं सीट के लिए महागठबंधन की ओर से कांग्रेस को उम्मीदवार खड़ा करने का प्रस्ताव दिया जा सकता है. कांग्रेस के मना करने पर किसी धनकुबेर निर्दलीय प्रत्याशी को आगे किया जा सकता है. रणनीति यह है कि सातवीं सीट पर एनडीए को जबरदस्त झटका दिया जाए. चार निर्दलीय विधायकों पर डोरे डाले जाने का काम शुरू है.

निर्दलीय विधायक रिंकू सिंह तो नीतीश कुमार से मिल भी आए हैं. रिंकू सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार अच्छा काम कर रहे हैं तो उन्हें समर्थन क्यों नहीं देंगे. इसी तरह अन्य निर्दलीय विधायकों के साथ ही साथ लोजपा और रालोसपा के विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए ऑपरेशन जारी है. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को सरकार में होने का पूरा फायदा मिल रहा है. विधायकों से कहा जा रहा है कि आप साथ दीजिए सरकार आपके साथ है. रिंकू सिंह की मुख्यमंत्री से मुलाकात इसी की एक कड़ी थी. कहा तो यह भी जा रहा है कि कुछ भाजपा विधायकों पर भी डोरे डाले जा रहे हैं और उनसे क्रॉस वोटिंग के लिए कहा जा रहा है. बदले में आश्वासनों की झड़ी लगी हुई है.

आश्वासनों पर भरोसा करने का कारण भी है क्योंकि सरकार लालू और नीतीश की है. पहले यह माना जा रहा था कि निर्दलीय विधायाकों में फूट नहीं पड़ेगी और चारों के चारों भाजपा के पक्ष में वोट करेंगे. लेकिन रिंकू सिंह वाले प्रकरण ने भाजपा को चौकन्ना कर दिया है. रिंकू सिंह को वापस अपने खेमे में लाने के लिए भाजपा ने प्रयास शुरू कर दिए हैं. लेकिन भाजपा के लिए असली चिंता का विषय रालोसपा और लोजपा के विधायक हैं. इसको एकजुट रखना एनडीए के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि इन दोनों दलों के चारों विधायक अभी से छाती ठोक कर कह रहे हैं कि पाला बदलने का सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन लालू और नीतीश की तिकड़मी चाल क्या गुल खिलाएगी यह कहना मुश्किल है.

लालू प्रसाद खुलेआम कह रहे हैं कि पासवान को अपने परिवार और पार्टी की चिंता है, इसलिए वह बार-बार कह रहे हैं कि यह सरकार ढाई साल में गिर जाएगी. सभी जान लें कि यह सरकार गिरने वाली नहीं है. बेहतर होगा पासवान अपनी पार्टी और परिवार को संभालें. मतलब साफ है कि लालू प्रसाद ने इशारों ही इशारों में रामविलास पासवान को आने वाले संकट की तरफ इशारा कर दिया है. जहां तक राज्यसभा और विधान परिषद के लिए संभावित उम्मीदवारों की बात है तो इसके लिए हरेक दल में लंबी लाइन लगी हुई है.

बात जदयू से शुरू करें तो इस पार्टी के खाते में राज्यसभा की दो और विधान परिषद की दो सीटें आने वाली हैं. राज्यसभा के लिए इस पार्टी से शरद यादव, आरसीपी सिंह और केसी त्यागी का नाम सबसे आगे है. संभावना है कि इन तीनों में से ही दो लोगों को राज्यसभा का टिकट मिलेगा. जदयू से विधान परिषद के लिए सीपी सिन्हा और गुलाम रसूल बलियावी का नाम तय किया गया है. बात राजद की करें तो राबड़ी देवी और मीसा भारती में से एक का राज्यसभा जाना तय है. ज्यादा संभावना है कि मीसा भारती को दिल्ली का टिकट मिल सकता है, क्योंकि बिहार की राजनीति के मद्देजनर राबड़ी देवी की उपयोगिता यहां ज्यादा महसूस की जा रही है.

बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद के दोनों बेटे भी चाहते हैं कि सदन में उनका मागदर्शन मिलता रहे. राज्यसभा की दूसरी सीट के लिए राजद से प्रख्यात वकील रामजेठमलानी की नाम की चर्चा है. विधान परिषद की सीट के लिए भोला राय, निरंजन कुमार पप्पू, रामचंद्र पूर्वे और शहाबुद्दीन की पत्नी हिना सहाब का नाम चर्चा में है. शहाबुद्दीन के सीवान जेल से भागलपुर जेल भेजने की घटना से उनके समर्थकों में नाराजगी है. लालू प्रसाद चाहते हैं कि हिना सहाब को परिषद में भेजकर उनकी नाराजगी दूर की जाए.

परिषद की एक सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है, जिसके लिए हरकू झा सबसे प्रबल दावेदार हैं. एक नाम प्रेमचंद्र मिश्रा का भी आ रहा है. लेकिन कांग्रेस चाहती है कि उसे एक सीट राज्यसभा की दी जाए और इसके लिए सीपी जोशी और शकील अहमद का नाम चर्चा में है. भाजपा से राज्यसभा के लिए सुशील कुमार मोदी का नाम सबसे आगे है. बताया जा रहा है कि श्री मोदी को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. परिषद के लिए भाजपा में दावेदारों की पूरी फौज है लेकिन सबसे प्रबल दावेदारों में सुधीर शर्मा और सुखदा पांडे का नाम शामिल है.

भाजपा सातवीं सीट के लिए भी अपना पूरा जोर लगाएगी और इसके लिए अतिपिछड़ा समाज से किसी को मौका दिया जा सकता है. हालांकि भाजपा के सहयोगी दल लोजपा का कहना है कि विधानसभा चुनाव के समय ही यह तय हुआ था कि परिषद की एक सीट लोजपा को दी जाएगी. लेकिन बदले हालात में लगता नहीं कि सहयोगी दलों के खाते में कोई सीट आएगी. फिलहाल सहयोगी दल अपने विधायक ही बचा लें तो बड़ी बात होगी.प

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