11बिहार के मुजफ्फरपुर के मुस्लिम बाहुल्य अज़ीज़पुर गांव पर उपद्रवियों के हमले ने राज्य के सांप्रदायिक सौहार्द और शांतिपूर्ण वातावरण को भंग कर दिया है. गांव के चार मुसलमानों के मारे जाने की ख़बर है कई लोग लापता हैं. गांव में कई जगह आगजनी की गई, इसमें कई घर जलकर राख हो गए हैं. राजनीतिज्ञ सियासी रोटियां सेंकने में व्यस्त हैं. इस हमले से किसे नुक़सान हुआ यह सब जानते हैं, लेकिन फ़ायदा किसे पहुंचा? दंगे की आग 8 जनवरी की सुबह उस समय भड़की, जब मुज़फ्फरपुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर सरिया थाने के तहत अज़ीज़पुर गोठी के एक खेत में 11 दिनों से लापता एक गैर मुस्लिम युवक भार्तेन्दु सहनी की लाश मिलने की खबर फैली. ख़बर मिलते ही गांव के लोग घटनास्थल पर पहुंच कर लाश और आसपास की परिस्थितियों का निरीक्षण कर ही रहे थे कि आसपास के गांवों के तकरीबन 5 हज़ार लोेगों ने दिन के 2 बजे गांव पर हमला कर दिया. हमलावर भारी शस्त्रों से लैस थे. इससे पहले कि अज़ीज़पुर के लोग कुछ समझ पाते या अपने बचाव के लिए कुछ करते, हमलावर उन पर क़हर बनकर टूट पड़े. घरों और बाहर खड़ी गाड़ियों को आग लगा दी और लूटमार की गई. देखते ही देखते 45 घरों वाले इस गांव से आग की लपटें उठने लगीं. दंगाईयों ने मस्जिद को भी नहीं छोड़ा, उसे भी आग के हवाले कर दिया. हमलावारों ने पुलिस और फ़ायर ब्रिगेड को घटनास्थल पर पहुंचने नहीं दिया, घंटों उनका रास्ता रोके रखा, और गांव में खुलकर तांडव मचाया.

घटना के समय मौके पर मौजूद और पीड़ित मोहम्मद मुतुर्जा, मोहम्मद कय्यूम, मोहम्मद शमशेर, मोहम्मद सना उल्लाह, मोहम्मद निसार, मोहम्मद ईसा, मोहम्मद शकूर, हनीफ़, ऐजाज़ मुन्ना, रियाज़ और मोहम्मद अलाउद्दीन के अलावा कई महिलाओं ने बताया कि आगज़नी से पहले हमलावरों ने घरों से नक़दी, ज़ेवर और क़ीमती सामान लूट लिया, इसके बाद घर में आग लगा दी. गांव की महिलाओं ने बताया कि गांव के अधिकतर पुरुष रोज़गार के लिए राज्य से बाहर रहते हैं, इसलिए गांव में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की संख्या अधिक है. एक पीड़ित नजमून ख़ातून ने बताया कि लड़की की शादी के लिए डेढ़ लाख रुपये नक़द और सोने-चांदी के ज़ेवर बनाकर रखे थे, दंगाईयों ने सब कुछ लूट लिया. इस दर्दनाक घटना में अपना सबकुछ खोने वाली सलमा ख़ातून ने रोते हुए बताया कि जिस समय उनके घर पर हमला हुआ, वह घर के अन्दर थीं, हमलावर लोहे की ग्रिल तोड़कर घर में घुस गये. हम डर की वजह से एक कमरे में बंद हो गये, हमलावर दरवाज़ा तोड़ने लगे. इस पर मेरे शौहर ने दरवाज़ा खोला और उनसे हाथ जोड़कर कहा कि हम लोग बिल्कुल निर्दोष हैं, हमें मत मारो. लेकिन दंगाईयों ने कोई बात नहीं सुनी. उन्हें घसीटकर पीटते हुए खेत में ले गये, उन्हें बुरी तरह घायल करने के बाद जिंदा जला दिया.
अब्दुल रज्जाक के घर शरणार्थी महिला ने बताया कि सशस्त्र हमलावरों ने अचानक हमला किया और उनके घरों से सभी क़ीमती सामान, नकदी व जे़वर लूट लिए. इरफ़ान की बहन ने बताया कि उसके भाई के शैक्षणिक प्रमाण पत्र जला दिये गए. मोहम्मद शमशेर के घर वालों ने बताया कि उनके तीन भाईयों मोहम्मद निसार, मोहम्मद शम्सुद्दीन का ख़ानदान सामूहिक रूप से रहता है. हमलावरों ने शाहिद को बुरी तरह घायल करके अधमरा कर दिया है. वह मुज़फ्फरपुर के एक निजि अस्पताल में भर्ती हैं, जबकि इम्तियाज़, तनवीर और जावेद लाल गंज में भर्ती हैं. अपने भाई को बचाने गईं शकीला उर्फ लाड़ली को भी बेरहमी से निशाना बनाया गया. उनके सिर पर गहरी चोटें आई हैं. इस गांव के लोग अपनी पूरी जिंदगी की कमाई खो चुके हैं. कड़ाके की सर्दी से बचने और सिर छिपाने के लिए भी अधिकांश लोगों के पास कोई जगह नहीं है. कई मुस्लिम संगठन राहत व बचाव कार्यों में लग गये हैं. सरकार और प्रशासन की ओर से भी लोगों को मुआवाज़ा और राहत पहुंचाने की कार्यवाही शुरू हो गई है. मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये और मकानों की मरम्मत के लिए 1-1 लाख रुपये सरकार की ओर से दिये जा रहे हैं, लेकिन जिन लोगों के परिजन इस हिंसा में मारे गये हैं या जो लापता हैं, उनके घरों से रोने और सिसकियों की आवाज के अलावा और कुछ सुनाई नहीं देता है. गांव वालों को सबसे अधिक मलाल इस बात का है कि उन्हें निर्दोष होने की सज़ा मिली है. जिस नौजवान के अपहरण और हत्या की वजह से इतनी हिंसा हुई, उसकी अज़ीज़पुर गांव के किसी भी बाशिंदे से कोई दुश्मनी नहीं थी. उसका अपने ही संप्रदाय के किसी व्यक्ति से विवाद चल रहा था और क्योंकि उसे 9 जनवरी को आख़िरी बार मोहम्मद इब्राहीम के घर पर देखा गया था, इसलिये उसके पिता कमल सहनी ने एफआईआर में उनके पोते सदाक़त अली उर्फ विक्की का नाम दे दिया था, कारण बहन से प्रेमप्रसंग बता दिया था, जो कि ग़लत है.
इस संबंध में सदाक़त उर्फ विक्की के दादा इब्राहिम का कहना है कि भारतेंदु 9 जनवरी की सुबह उनके घर आया था और उनके पोते सदाक़त से सरिया चलने को कहा था, लेकिन जुमे का दिन था, इसलिए उसने साथ जाने से इंकार कर दिया. बाद में भारतेंदु किसी दूसरे लड़के के साथ मोटर साइकिल से चला गया. इसके 11 दिन बाद उसकी लाश देखने को मिली. जिस जगह लाश को मिट्टी में दबाया गया था, उसके निरीक्षण से पता चलता है कि लाश को किसी और जगह से लाकर वहां जल्दबाज़ी में मिट्टी से ढंकने की कोशिश की गई है. उन्होंने कहा कि पहले तो प्रेम प्रसंग वाली बात बिल्कुल बे-बुनियाद और फ़र्ज़ी है, समझने वाली बात यह है कि कोई आदमी किसी की हत्या करेगा तो उसे अपने घर के पीछे ही दफ़न क्यों करेगा? दरअसल मुजरिम कोई और है. उसने एफआईआर में सदाक़त उर्फ विक्की का नाम आने के बाद इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए भारतेन्दु की हत्या कर सदाक़त के घर के पीछे डाल दिया. ऐसा कैसे संभव था कि गांव वालों को लाश मिलने की ठीक से सूचना भी नहीं थी कि हज़ारों की संख्या में संप्रदाय विशेष के लोग हथियारों के साथ वहां कैसे पहुंच गये. यह हमला इतने संगठित रूप से हुआ है कि इससे इस बात का साफ़ संकेत मिलता है कि इसके पीछे दंगों का अनुभव रखने वाले संघ परिवार का हाथ है, जो चुनावी वर्ष में एक तीर से दो शिकार करके एक पार्टी विशेष को राजनीतिक लाभ पहुंचाना चाहता है. गौरतलब है कि इस क्षेत्र में कुछ दिनों पूर्व ही भाजपा के विवादित सांसद योगी आदित्यनाथ ने धर्म परिवर्तन की सभा की थी और इस क्षेत्र के भाजपा विधायक और पार्टी के अन्य कई नेता लगातार माहौल खराब करने वाले बयान दे रहे हैं, इसलिए इस पूरे मामले की टाइम बाउंड निष्पक्ष जांच होनी चाहिये.
अज़ीज़पुर गांव में जो कुछ हुआ, वह सांप्रदायिक तत्वों की संगठित साजिश का नतीजा था, अन्यथा स्वर्गीय जगलाल सहनी की विधवा शीला देवी ने अपने घर में एक दर्जन मुस्लिम युवकों व महिलाओं को शरण नहीं दी होती. अज़ीज़पुर में इस समय स्थिति बेहद चिंताजनक है. अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में गहरा भय और असुरक्षा की भावना है. राज्य के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझाी और राष्ट्रीय जनता के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव सहित सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि इस गांव का दौरा कर चुके हैं.

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