Santosh-Sirदस सालों के बाद भारत के प्रधानमंत्री को लोगों के बीच भाषण करते देखना सुखद लगता है और खासकर तब, जब प्रधानमंत्री भारत की सबसे बड़ी समस्या बिजली की समस्या पर चिंता व्यक्त करें और साथ ही यह आशा दिलाएं कि अगले कुछ सालों में देश में बिजली उपलब्ध हो जाएगी और शहरों ही नहीं, गांवों को भी 24 घंटे बिजली मिलेगी. बिजली विकास की सबसे बड़ी आधारशिला है. बिजली अगर सबसे बड़ी आधारशिला है, तो उसका उत्पादन होगा कैसे और वह सर्वसुलभ होगी कैसे? प्रधानमंत्री भी इस बात से अनजान नहीं हैं कि देश में कोयले का भंडार खर्च
करने की जगह उसे बचाना ज़रूरी है और बिजली के लिए पानी उपलब्ध है नहीं.
अभी तक यही दो ज्ञात स्रोत बिजली के रहे हैं और जिस बात की तरफ़ उन्होंने इशारा किया, वह है सौर ऊर्जा यानी सूरज की रौशनी से बिजली का उत्पादन. यह तकनीक महंगी है, लेकिन इसके अलावा देश के पास कोई चारा नहीं है. जब प्रधानमंत्री ने यह कहा कि हर घर को अपने लिए बिजली का उत्पादन करना चाहिए, तो उनके इस वाक्य की सराहना भी होनी चाहिए और इस पर अमल भी होना चाहिए. हर घर में सौर ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए सौर पैनल लगाने पड़ेंगे, लेकिन उनकी क़ीमतों में जिस प्रकार से बढ़ोतरी होने जा रही है, वह यह बताता है कि प्रधानमंत्री की कही हुई इस योजना को पलीता लगाने की कोशिश होने वाली है.
वे सारे लोग, जो सरकार के किसी भी वक्तव्य में मुनाफा देखते हैं, अचानक सक्रिय हो गए हैं और सौर पैनलों का निर्माण करने वाले लोगों के बीच आपस में एक गठबंधन हो गया है. अगर प्रधानमंत्री ने तत्काल यह फैसला नहीं लिया कि घरों के लिए इस्तेमाल होने वाले सौर पैनलों की क़ीमत एक सीमा से आगे नहीं बढ़ेगी, तो फिर प्रधानमंत्री का यह वाक्य कि हर घर अपने लिए सौर ऊर्जा का उत्पादन करे, मुनाफाखोरों के लिए एक नया रास्ता खोलने वाला क़दम साबित हो सकता है. अभी तक प्रधानमंत्री की ओर से ऐसी कोई घोषणा सामने नहीं आई है. आशा करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री तत्काल इस तरह की घोषणा करेंगे, ताकि सौर ऊर्जा पैनलों का निर्माण करने वाली कंपनियां इस देश को मुनाफाखोरी के जाल में नए सिरे से धकेलने में कामयाब न होने पाएं.
प्रधानमंत्री को यह भी फैसला लेना होगा कि जो कंपनी चाहे, वह इस देश में एक मेगावाट से लेकर 500 मेगावाट तक का सौर ऊर्जा निर्माण संयंत्र कहीं भी लगा सकती है. लगाने का स्थान ग्रिड के क़रीब हो और उसकी अनुमति उसे 5 से 7 दिन में मिल जाए. इसके लिए आवश्यक है कि एक पूर्णकालिक मंत्रालय का गठन इस ज़िम्मेदारी के साथ हो कि अगले साल भर में इस देश में कम से कम एक लाख से दो लाख मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखकर उसे पूरा भी किया जाए. मैं देश के लोगों के सामने यह साफ़ कर दूं कि सौर ऊर्जा के निर्माण में 8 महीने से ज़्यादा समय नहीं लगता और यही बात नरेंद्र मोदी को सौर ऊर्जा के काम में लगने वाले मंत्री और अधिकारियों को समझानी होगी तथा उनके सामने स़िर्फ आठ महीने का लक्ष्य रखना होगा कि वे आठ महीने में किस तरह सौर ऊर्जा का उत्पादन करते हैं. और, अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स़िर्फ सौर ऊर्जा को ही अगले बजट से पहले का अपना लक्ष्य मान लें, तो वह इस देश के लिए विकास का नया मार्ग खोलने में सक्षम हो पाएंगे और उनके ऊपर लोग भरोसा करेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक वाक्य भ्रष्टाचार की मुखालफत के रूप में कहते हैं कि यह समाप्त होना चाहिए, लेकिन यह नहीं कहते कि जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ खड़ा होगा, वह देश के लिए खड़ा होगा और उसका साथ सरकार हर क़ीमत पर देगी. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने वालों का साथ सरकार कैसे देगी, यह भी प्रधानमंत्री को साफ़ करना होगा. साथ ही प्रधानमंत्री को देश के गांवों में रहने वाले लोगों का आह्वान करना होगा कि वे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ खड़े हों. दरअसल, पिछले दस सालों में ही नहीं, बल्कि पिछले कई सालों में जितनी भी योजनाएं बनीं, वे सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं और जो सबसे कुरूप पहलू सामने आया है, वह यह कि देश के गांवों की पंचायतें इस भ्रष्टाचार का हिस्सा बन गई हैं.
मैं दक्षिण भारत की बात नहीं करता, लेकिन उत्तर भारत में ज़्यादातर ग्राम पंचायतें भ्रष्टाचारी तंत्र का आख़िरी हिस्सा बनी हुई हैं. इस भ्रष्टाचार को रोकने में स़िर्फ और स़िर्फ गांव के लोग ही अपनी इच्छा शक्ति भी दिखा सकते हैं और इसे रोक भी सकते हैं. अब यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या देश की सरकार के ऊपर निर्भर करता है कि वह भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों का साथ देते हैं या भ्रष्टाचार का विरोध करने के नाम पर भ्रष्टाचारियों का साथ देते हैं. लोगों को यह नहीं लगना चाहिए कि सरकार कहती तो भ्रष्टाचार का विरोध है, लेकिन साथ भ्रष्टाचार करने वालों का देती है.
क्यों नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के गांवों में रहने वाले नौजवानों का, किसानों का आह्वान करते हैं कि वे गांव में चलने वाली सारी योजनाओं के ऊपर नज़र रखें और कहीं पर भ्रष्टाचार होता हुआ देखें, तो उसका तत्काल विरोध भी करें और सरकार को उसकी जानकारी भी दें. हो सकता है कि कई जगहों पर लोग दुश्मनी निकालने के लिए गलत शिकायतें भी करें. वहां पर सरकार को उन शिकायतों की जांच करने वालों को भरोसा दिलाना होगा कि अगर वह सही जांच करेंगे, तो उन्हें उसका उचित पुरस्कार मिलेगा. एक संपूर्ण योजना गांवों में चल रही योजनाओं के भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सरकार को जल्दी से जल्दी लानी होगी, अन्यथा उसकी बात एक होगी और उसकी करनी दूसरी होगी.
विद्युत क्षेत्र में 30 से 40 प्रतिशत की चोरी होती है. यह चोरी बड़े पूंजीपति भी करते हैं, यह चोरी शहरों में भी होती है, यह चोरी गांवों में भी होती है और यह सब बिजली तंत्र का काम देख रहे सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से होता है. इस चोरी को रोकने के लिए जन-जागरण भी ज़रूरी है और जन-अभिक्रम भी ज़रूरी है. हालांकि, विद्युत राज्यों का विषय है, लेकिन केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को मोटिवेट करके इस बिजली चोरी को रोकने की दिशा में सख्त क़दम उठाना चाहिए. दरअसल कुछ विषय ऐसे हैं, जिनमें कहीं राजनीति होनी ही नहीं चाहिए. जैसे कि बुनियादी ढांचे का निर्माण, जिसका पहला क़दम विद्युत उत्पादन, विद्युत वितरण और विद्युत चोरी है. ये किसी राजनीतिक बहस के दायरे में नहीं आते, ये शुद्ध और शुद्ध भ्रष्टाचार हैं. इस भ्रष्टाचार का विरोध हर पार्टी को करना चाहिए.
प्रधानमंत्री समझदार हैं, लेकिन जब आप देश के सारे लोगों को अपने अभियान में शामिल करना चाहते हैं, तो आपको देश के साधारण से साधारण आदमी की बात में भी निहितार्थ तलाशने चाहिए. लोग अपनी समस्याओं के फौरन निदान की बात नहीं कर रहे. वे पिछले पैंसठ सालों से अपनी समस्याओं के निदान का रास्ता देख रहे हैं, जो उन्हें कहीं नज़र नहीं आ रहा. हर बार विकास के नाम पर उन्हें भ्रष्टाचार मिलता है और सामान्य गति से हुए काम उनके सामने उपलब्धियों के रूप में रखे जाते हैं. इसीलिए जब कोई प्रधानमंत्री कहता है कि हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, तो इसका मतलब वह भी लोगों को एक नए सिरे से भटकाने का रास्ता तलाश रहा है. यह हर्ष की बात है कि अभी तक यह वाक्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से नहीं निकला है. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक वाक्य तो कहा है कि 60 सालों तक राज करने वाले 60 दिनों का भी हनीमून टाइम नहीं दे रहे हैं और आलोचना कर रहे हैं.
यह वाक्य कि 60 दिनों में कुछ नहीं हो सकता, उस वाक्य की पूर्व भूमिका बन सकता है, अगर प्रधानमंत्री ने सावधानी नहीं बरती कि हमारे हाथ में कोेई जादू की छड़ी नहीं है, जिससे हम रातोरात देश का कायाकल्प कर दें. इस देश की जनता तो पीढ़ियों से यही वाक्य सुनती आई है और देश का 70 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा लगभग नर्क में जीता आया है. इसलिए जब कोई नई सरकार आती है, तो लोगों के मन की इच्छाएं, आकांक्षाएं नए सपने देखने लगती हैं और उन सपनों को पूरा होने के लिए पांच साल की बात कही जाती है. और, फिर पांच साल के बाद यह कहा जाता है कि वे सपने क्यों नहीं पूरे हो पाए. यह वाक्य इस देश में उन ताकतों को मजबूत करता है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक नई व्यवस्था खड़ा करना चाहती हैं.
इसलिए पहली आशा प्रधानमंत्री से यही है कि वह भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ खड़े होने के लिए गांव के लोगों का आह्वान करें और यह भरोसा दिलाएं कि जो भ्रष्टाचार का विरोध करेगा, उसका साथ सरकार देगी और किस रूप में देगी, यह स्पष्ट करें. सौर ऊर्जा के निर्माण में लगने वाली कंपनियों की मुनाफाखोरी, गांवों में फैले पंचायतों के भ्रष्टाचार और विशेषकर बिजली चोरी जैसे मामलों के ख़िलाफ़ खड़े होने का आह्वान करना आज की पहली आवश्यकता है और आशा करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री इन समस्याओं को समझ कर इनके ख़िलाफ़ खड़े होने के लिए लोगों का आह्वान करेंगे और जो खड़ा होगा, उसका साथ भी देंगे.

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