गौर किशोर घोष की आने वाले 20 जून से जन्मशताब्दी समारोह की शुरुआत हो रही है ! गौर किशोर घोष पत्रकार, साहित्यिक तथा संवेदनशील नागरिक थे ! 25 जून 1975 की रातको आनंद बाजार पत्रिका के टेलीप्रिंटर पर श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा करने की खबर पढकर ! गौर किशोर घोष तुरंत सेंट्रल अॅवेन्यू के फुटपाथ पर बैठे पहले नाई से अपने सरपरके सभी बालों को मुंडवा कर रस्ते से चलने लगे ! तो जान पहचान वाले लोगों ने पुछा की गौरदा की होलो ? गौरदा का जवाब होता था ” जनतंत्र मारा गेलो ! और इस तरह का आपातकाल और सेंसरशिप के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निषेध का उदाहरण किसी व्यक्ति का  भारत में दुसरा नही है ! कुछ संघठनो ने मिलकर सत्याग्रह वगैरह किए हैं !
आने वाले 25 जून को आपातकाल की घोषणा के 47 साल होने जा रहे ! और वर्तमान सत्ताधारी दल पानी पी – पी कर आपातकाल और, अभिव्यक्ति की आजादी पर छाती पिटने का कार्यक्रम करेंगी ! और साथ ही बहुसंख्यक पत्रकारों में भी होड लगेगी !


लखनऊ में भी एक नमूना कभी पत्रकारों के संघटनाओ का आंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पदाधिकारी रहा है ! और सबसे हैरानी की बात वह आपातकाल के खिलाफ हुए बडोदा डायनामाईट कांड में दो नंबर का आरोपी था ! लेकिन एक नंबर के आरोपी के जैसा ही यह बीजेपी का हिंदुत्ववादी स्वयंघोषित प्रवक्ता बन गया है ! और नरेंद्र मोदी और सबसे ज्यादा आदित्यनाथ जैसे आदमी की हरकतों की मुंह फटने तक तारिफ के कशिदे पढते रहता है ! और उसी के जैसे और भी पत्रकारों में होड लगी हुई है ! ऐसे लोगों के लिए गौर किशोर घोष का परिचय बहुत ही आवश्यक है !

गौर किशोर घोष 24 अक्तूबर 1989 के भागलपुर दंगे के बाद ! मुझे भागलपुर चलने के आग्रह करने वाले लोगों में से एक थे ! उनका मनुष्येरदेर सांधाने टाइटल से, शायद बीस जनवरी 1991 के रविवार सरिय आनंद बाजार पत्रिका में प्रकाशित लेख, बहुत ही संवेदनशील और भागलपुर दंगे में कुछ लोगों ने अपनी जान जोखिम में डाल कर कुछ मुसलमानों को बचाने के प्रयास को लेकर लिखा था ! इसीलिए उसका शिर्षक मानवता की खोज जैसा था !


और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, कलकत्ता में तांगरा तथा खिदिलपूर – मेटीयाबुर्ज इलाकों में शायद 1946 – 47 के दौरान के दंगों के बाद ! दुसरी बार 1992 के छ दिसंबर से दस दिन से अधिक दिनों तक कर्फ्यू लगा दिया था ! और इस कर्फ्यू में गौरदा दंगों के जगहों पर रोज जाकर वहां की पारिस्थितिका रिपोर्ट रोज आनंद बाजार पत्रिका में देते थे ! (उम्र 70 साल ! ) टेबल जर्नलिज्म के जमाने में उनके जैसे पत्रकारिता आज कितने लोग कर रहे हैं ?


और भागलपुर दंगे के बाद की स्थिति को लेकर आज जो भी कुछ काम हम लोग कर रहे हैं ! उसमें उनकी भुमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ! तब उनकी तीन बायपास सर्जरी हो चुकी थी ! और उम्र सत्तर ! लेकिन मेरे हिसाब से महात्मा गाँधी कलकत्ता, नोआखाली, बिहार, और अंत में दिल्ली के दंगों के दौरान जिस तरह से अपने आपको 78-79 साल की उम्र में  झोंक दिये थे ! बिल्कुल गौर किशोर घोष को मैंने उन्हें भागलपुर तथा बाबरी विध्वंस के बाद कलकत्ता के दंगों के दौरान वैसाही देखा है ! भागलपुर में हम लोग स्कूलों के आहातो से लेकर खाली पड़े गोदामों रहे हैं ! और बाथरुम गड्ढा खोदकर बैठने के लिए लकड़ी के पट्टे और प्रायवसी के लिए चारों तरफ से जूट के बोरे फाड़कर लगाएं पडदे होते थे ! और यह आलम एक – दो दिन का नहीं हप्ते दस – दस दिनों का होता था ! हालांकि वह देश के पहली पंक्ति के पत्रकारों में एक थे ! उन्हें सर्किट हाउस या सरकारी अतिथगृह बहुत ही मामूली दाम देकर रहने की सहुलियत थी ! लेकिन हमारे साथ ही रहने की जीद में ! वह इस तरह की असुविधा में ही रहते थे ! वहीं हाल कलकत्ता से भागलपुर जाने की यात्रा का ! मै अपने पत्नी के पर्स से पैसे लेकर बड़ी मुश्किल से तिसरे दर्जे का टिकट निकाल कर जाता था ! और उन्हें आनंद बाजार के तरफसे किसी भी तरह के वाहनों से जाने की सहुलियत थी ! लेकिन वह भी मेरे साथ आने के लिए तिसरे दर्जे में आते थे !


और उस समय की गाड़ियों में पंखों से लेकर लाईट तक लोग मायबाप सरकार की संपत्ती होने के कारण ! अपने घर निकाल कर ले जाते थे ! एक बार तो हमारे सामने ही एक आदमी बडेसे थैले में एक – एक बल्ब खोलकर उसमे डाल रहा था ! मुझे लगा कि वह दुसरा बल्ब लगायेगा ! लेकिन डब्बे में पूरा अंधेरा हो गया ! तो मैंने पुछा की आपने बल्ब किस लिये निकालें ? तो वह व्यक्ति बोला कि मां दुर्गा की पूजा पंडाल में लाईटिंग के लिए मै अपने गांव ले जा रहा हूँ ! मैंने कहा कि मां के अन्य बच्चों को अंधेरे में डालकर क्या मां बहुत खुश हो रही होगी ? और आप रेल के कर्मचारी होने के बावजूद इस तरह की हरकतों को रोकने का काम करने के जगह, खुद ही रेल संपत्ति की चोरी करते हुए क्या बहुत ही अच्छा काम कर रहे हो ? गौरदा यह नजारा मुस्कुराते हुए अपने बर्थ परसे देख रहे थे !

मैंने उनके तरफ हाथ दिखाते हुए कहा कि आप इन्हें जानते हो ? तो वह व्यक्ति बोला कि नही ! मैंने कहा कि यह गौर किशोर घोष है ! आनंद बाजार पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार  है ! तो वही व्यक्ति तुरंत उठकर सभी बल्ब लगा कर कोई स्टेशन आया था तो उतर कर भाग गया ! लेकिन हमारे साथ की यात्रा में कभी भी उन्होंने खुद होकर अपने पत्रकारिता या लेखक होने की बात कही नही ! इसलिये शुरू में भागलपुर गांधी शांती प्रतिष्ठान मे एक नौजवान ऐ बुढ्ढे शब्द इस्तेमाल कर के संबोधित किया ! तब मुझे उस नौजवान को कहना पडा की तुम्हे मालूम नहीं है कि किसके साथ बात कर रहे हो ! उस समय भी गौरदाके चेहरेपर मुस्कान थी ! इतना विनम्र प्रतिभाशाली आदमी की जीवन की आखिरी दस – पंद्रह सालों की जिंदगी महात्मा गाँधी के जैसी तथाकथित रामजन्मभूमि के कारण आजसे तीस पैतिस साल पहले रथयात्राओ का दौर चलाकर भारत के धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति का सुत्रपात हुआ था और आज मै जीस उम्र के दौर से गुजर रहा हूँ बिल्कुल गौरदा उसी उम्र के थे ! और इसीलिये उन्होंने अन्य लेखकिय काम की जगह सांप्रदायिकता को आग्रक्रम देकर लिखने की कोशिश की है और इसलिये उन के जीवन की आखिरी किताब प्रतिवेशी उपन्यास ही है !


वैसे तो वह बंगला भाषा के मुर्धन्य लेखक-पत्रकार थे ! शायद भारत के पत्रकारों में सबसे पहले पत्रकार थे ! जिसे मॅगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ! इसके अलावा कोरिया तथा महाराष्ट्र का फायफौंडेशन जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गये !
सगिना महातो जैसा उपन्यास के लेखक (तपन सिन्हा ने उसपर हिंदी बंगला में सिनेमा बनाया है! दिलिप कुमार, सायरा बानो, अपर्णा सेन, अनिल चॅटर्जी के अभिनय के साथ !)
लेकिन उन्होंने सत्तर के दशक में बंगाल के नक्सल आंदोलन के दौरान के पीक पिरियड में आमाके बोलतेदाव जैसे लेखों की सिरिज बंगला भाषा की देश नाम की पत्रिका में लिखा है ! जो बाद में किताब की शक्ल में प्रकाशित हुई है ! और नक्सलियों के तथाकथित जनता न्यायालय ने उन्हें फासी की सजा सुनाई थी ! बंगाल सरकार से लेकर आनंद बाजार पत्रिका के मालिकों ने उन्हें सिक्युरिटी देने की पेशकश की ! लेकिन उन्होंने नही ली !


और आपातकाल में अलिपूर जेल में बंद थे ! और 1976 के समय माओ त्से तुंग का देहांत हुआ ! तो जेल में नक्सलियों ने श्रद्धांजली सभा रखी थी ! तो गौरदा उस कार्यक्रम में शामिल होने गयें ! लेकिन बेअर फुट ! तो किसी नक्सल नेता ने पुछा की आपके चप्पल कहा है ? तो गौरदा ने कहा कि हमारे घर का कोई वरिष्ठ सदस्य मरने के बाद क्या हम चप्पल – जुता पहनते हैं ?
गौरदा को आपातकाल में जब पुलिस गिरफ्तार कर के जेल ले गई तो उनका बेटा अप्पू स्कूल नाम भास्कर उम्र में काफी छोटा था ! तो गौरदा ने उसे पत्र लिखा था “कि मुझे पुलिस गिरफ्तार कर के जेल में क्यों ले गई है !” जो जनतंत्र से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी का सुंदर दस्तावेजों में से एक है ! हम लोगों ने उसे आपातकाल के समय, मराठी में अनुवाद कर के बुलेटिन के रूप में काफी वितरित किया है ! यह मेरी और उनके साथ अप्रत्यक्ष परिचय की शुरुआत है !


उसके बाद 1986 में बाबा आमटेजिकी भारत जोडो यात्रा के दौरान! मै बाबा आमटेजिके साथ मुलाकात करने के लिए दमदम एअरपोर्ट पर गया था ! तो एक टिपिकल बंगाली परिवेश में एक बुजुर्ग पहले से ही मौजूद थे ! तो बाबाने उनके साथ मेरा परिचय करते हुए कहा कि “डॉ सुरेश खैरनार माय यंगफ्रेंड और उनका परिचय देते हुए कहा कि सुरेश यह गौर किशोर घोष !” तो मैंने कहा कि हमने आपातकाल में आपने बेटे को लिखे पत्र को मराठी में अनुवाद कर के बुलेटिन बना कर काफी संख्या में बाटने का काम किया है ! और मेरे कॉलेज के दिनों में आपके उपन्यास पर तपन सिन्हा ने बनाई सगिना महातो मेरे प्रिय फिल्मों में से एक है ! तो तुरंत पुछा की तुम कलकत्ता में कबसे हो ? तो मैंने कहा कि मै 1982 के पूजा के समय से ही हूँ ! तो बोले इतने दिनों में कभी मीले क्यो नही ? मैंने कहा कि आप ठहरे बंगाल के सेलेब्रिटी लेखक-पत्रकार ! तो मेरा हाथ पकडकर बोले कि मेरे घर चलो तो तुम्हें पता चलेगा कि मैं कितना बड़ा सेलेब्रिटी हूँ ! इस तरह उनके घर पर लेकर गए !


एअरपोर्ट से दोनों एक ही समय बाहर निकल कर घर जाने के समय उन्होंने पूछा कि तुम कहां रहते हो ? और घर कैसे जाओगे ? तो मैंने कहा कि मै फोर्ट विल्यम में रहता हूँ ! और बस से आया था तो उसी तरह वापस जाऊंगा ! तो वह बोले मै आनंद बाजार की गाडी से आया हूँ ! मेरा घर पहले पड़ता है ! इसलिए तुम्हें घर लेजाकर फिर आनंद बाजार जाने के पहले तुम्हें फोर्ट विल्यम छोड़ कर आऊंगा !


घर उल्टाडांगा में गए परिवार के सदस्यों को बुलाया ! और परिचय कराने के बाद मुझे फोर्ट विल्यम, छोड़कर आनंद बाजार के आफिस में जाने के पहले ! बोल कर गए कि यहां से आनंद बाजार चलने के फासले में है ! तुम दोपहर तीन के बाद कभी भी अड्डा जमाने के लिए आ सकते हो ! यह हमारे दोस्ती की शुरुआत हुई थी ! और उनके मृत्यु तक रही ! और अब परिवार के सदस्यों साथ भी वैसा ही संबंध है ! और इसी लिये विशेष तौर पर शताब्दी समारोह की शुरुआत में शामिल होने आया हूँ ! और उन्हें विनम्र अभिवादन के साथ मेरा मुक्तचिंतन समाप्त करता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 17 जून 2022, शांतिनिकेतन

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