बिहार का मैनचेेस्टर कहे जाने वाले गया के मानपुर पटवा टोली में 11 सूत्रीय मांगों को लेकर क़रीब दस हज़ार बुनकर मज़दूरों के अचानक हड़ताल पर चले जाने से 20 हज़ार पावरलूमों की धड़कन नौ दिनों तक बंद रही. जिसके चलते पावरलूम मालिकों को क़रीब पांच करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा. लेकिन कमजोर आर्थिक स्थिति और प्रतिदिन कमाकर पूरे परिवार का भरण पोषण करने की लाचारी के चलते बुनकर मज़दूरों को नौ दिनों के बाद ही मांग पूरी हुए बिना काम पर वापस लौटना पड़ा. हड़ताल का आह्वान करने वाली यूनियन के नेताओं ने इस दौरान ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी कि पावरलूम संचालकों और हड़ताली बुनकर मज़दूरों के बीच मारपीट होने लगी, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ थाने में प्राथमिकी दर्ज भी कराई गई. श्रम अधीक्षक का हड़ताल समाप्त कराने का प्रयास भी विफल हो गया. लेकिन जब आर्थिक तंगी के चलते बुनकर मज़दूरों के घरों में चूल्हे जलने बंद होने की नौबत आने लगी, तो वे धीरे-धीरे काम पर वापस लौटने लगे.
श्रमिकों ने आरोप लगाया कि उन्हें बढ़ती महंगाई के हिसाब से मेहनताना नहीं मिल रहा है, इसलिए मेहनताने में 15 फ़ीसद का इजाफा होना चाहिए. उधर पावरलूम मालिक-संचालक मज़दूरी में पांच फ़ीसद वृद्धि की बात कह रहे थे, जो उन्होंने कर भी दी. लेकिन, मज़दूरों की हालत देखते हुए यह वृद्धि काफी नहीं मानी जा सकती. बुनकर मज़दूरों का कहना है कि राज्य सरकार भी उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रही है. मानपुर में आठ हज़ार पावरलूम चल रहे हैं, एक भी मिल मालिक ग़रीब नहीं हैं, फिर भी उन्हें सरकार से करोड़ों रुपये की ऋण माफी मिल रही है. यहां से हर वर्ष लगभग आठ-दस छात्र आईआईटी एवं एनआइटी की पढ़ाई के लिए चुने जाते हैं, लेकिन आज तक एक भी मज़दूर के लड़के को आईआईटी में अवसर नहीं मिला. क्या इन मज़दूरों की माली हालत पर किसी भी संगठन या राजनेता का ध्यान नहीं जाना चाहिए? बुनकर मज़दूर रात-दिन मशीन चलाते हैं, उन्हें वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और जल प्रदूषण का सामना करना पड़ता है. यही नहीं, मज़दूर आए दिन नई-नई बीमारियों के शिकार बनते हैं. पूरा भविष्य दांव पर लगा होने के बावजूद पावरलूम मालिक-संचालक कभी मज़दूरों के बारे में नहीं सोचते.
मानपुर पटवा टोली के वस्त्र उद्योग में मज़दूरों ने पहली बार इतनी लंबी हड़ताल की. अब तक पावरलूम मालिकों-संचालकों और बुनकर मज़दूरों की आपसी सहमति से मज़दूरी आदि तय हो जाती थी और काम चलता रहता था. मज़दूरों की समस्याओं का हल भी आपस में मिलजुल कर निकाल लिया जाता था. लेकिन, कुछ यूनियनबाज नेताओं की वजह से जहां मानपुर वस्त्र उद्योग को क्षति पहुंच रही है, वहीं बुनकर मज़दूरों को भी उनका वाजिब हक़ नहीं मिल पा रहा है. पावरलूम मालिकों-संचालकों के अनुसार, जिस तरह यूनियनबाजी करके रोहतास इंडस्ट्रीज डालमिया नगर, गुरारु चीनी मिल, वारसलीगंज चीनी मिल, गया कॉटन एवं जूट मिल समेत बिहार के अन्य कई उद्योग बंद कराकर कामगारों को भूखे मरने के लिए विवश किया, उसी तरह मानपुर वस्त्र उद्योग भी बंद कराने की साजिश रची गई थी. दरअसल, किसी भी मज़दूर ने अपने पावरलूम संचालक या मालिक से लिखित रूप से कोई मांग नहीं की थी. ज़िला पदाधिकारी के समक्ष प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए ट्रेड यूनियन के नेताओं ने उन्हें 11 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन दिया, तब पता चला कि मज़दूरों की मांगें क्या-क्या हैं. मूल रूप से वर्तमान मज़दूरी में 20 फ़ीसद बढ़ोत्तरी की मांग थी.
श्रमिकों ने आरोप लगाया कि उन्हें बढ़ती महंगाई के हिसाब से मेहनताना नहीं मिल रहा है, इसलिए मेहनताने में 15 फ़ीसद का इजाफा होना चाहिए. उधर पावरलूम मालिक-संचालक मज़दूरी में पांच फ़ीसद वृद्धि की बात कह रहे थे, जो उन्होंने कर भी दी. लेकिन, मज़दूरों की हालत देखते हुए यह वृद्धि काफी नहीं मानी जा सकती.
पावरलूम पर काम करने वाले मज़दूरों को एक मशीन पर आठ घंटे काम करने की 80 रुपये मज़दूरी दी जाती है. एक शिफ्ट में एक मज़दूर एक साथ तीन पावरलूमों पर काम करता है.
वस्त्र उद्योग बुनकर सेवा समिति के अध्यक्ष प्रेम नारायण पटवा ने कहा कि हड़ताल के पहले ही हमने मज़दूरी में पांच फ़ीसद की वृद्धि कर दी थी, लेकिन बुनकर कामगार संघ ने 20 फ़ीसद वृद्धि की मांग को लेकर हड़ताल कर दी. बाद में उद्योग मालिकों और पचास फ़ीसद कामगारों के बीच आपसी सहमति से मामला सुलट गया और सभी कामगार वापस लौट आए. 12 से 20 जनवरी तक हुई इस हड़ताल के चलते वस्त्र उद्योग को क़रीब पांच करोड़ रुपये का घाटा हुआ. बुनकर मज़दूर नंदू प्रसाद ने बताया कि इससे पहले कभी इतनी लंबी हड़ताल नहीं हुई. जब हम मज़दूरी बढ़ाने की बात करते, तो मालिक-संचालक हमारी बात मान लेते थे. इस लंबी हड़ताल के चलते घर में चूल्हा जलना मुश्किल हो गया. बुनकर मज़दूर नूर आलम के अनुसार, काम करते हैं, तभी हमें और परिवार को भोजन मिलता है. सच भी यही है कि कामगारों को रोज कमाना-रोज खाना के हिसाब से चलना पड़ता है. अगर वे एक दिन भी काम छोड़कर बैठ जाएं, तो परिवार का भरण पोषण मुश्किल हो जाता है.